गुहिल वंश के राजा राहप ने उदयपुर के सिसोदा ग्राम मे जाकर रहना शुरू किया राहप के ही वंशज लक्ष्मण देव सिसोदिया/राणा कहलाये
Sisodiya Vansh ka Itihas | Mewar Vansh Part-3
Sisodiya Vansh ka Itihas | Mewar Vansh Part-3 |
लक्ष्मण देव सिसोदिया के सात पुत्रों में से छ: पुत्र चितौड़ के पहले साके ( 1303 ई. ) में मारे गऐ तथा सातवा पुत्र अरिसिंह या अजयसिंह का पुत्र हम्मीर सिसोदिया जो कि मेवाड में सिसोदिया राजवंश का कर्णधार बना ।
हम्मीर से पूर्व मेवाड के गुहिल ' रावल ' कहलाते थे ।
हम्मीर के बाद मेवाड के गुहिल 'सिसोदिया/राणा' कहलाये ।
Rana Hammir मेवाड में सिसोदिया साम्राज्य का संस्थापक था, जबकि राहप सिसोदिया शाखा का संस्थापक था ।
राणा हम्मीरदेव ने चितौड़ का दुर्ग मालदेव सोनगरा से प्राप्त किया ।
मेवाड के सिसोदिया वंश की कुलदेवी बाणमाता है ।
बाणमाता का मंदिर उदयपुर में बना है ।
राणा हम्मीर (1326-1364 ई.)
मेवाड़ के सिसोदियावंश का संस्थापक राणा हम्मीर था । राणा हम्मीर ने 1326 ई. में सिसोदिया वंश की नींव रखी ।
राणा हम्मीर को मेवाड़ का उद्धारक कहते है ।
राणा कुंभा द्वारा रचित रसिकप्रिया ( जयदेव की गीतगोबिन्द पर टीका ) तथा अत्रि व महेश द्वारा विजय स्तम्भ पर लिखी गयी कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति (1460 ई. ) में राणा हम्मीर को विषमघाटी पंचानन (युद्ध में सिंह के समान ) बताया गया है ।
Rana Hammir को मेवाड़ का उद्धारक ( आपात परिस्थिति में मेवाड संभाला ) कहा जाता है ।
राणा हम्मीर ने दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद तुगलक के चितौडगढ पर आक्रमण को विफल कर दिया ।
Rana Hammir व मुहम्मद बिन तुगलक के मध्य युद्ध हुआ, जिसे हम ' सिंगौली का युद्ध ' कहते हैं ।
कुंभा के द्वारा गीत गोविंद पर लिखी गई रसिक प्रिया नामक टीका मे राणा हम्मीर को ' वीर राजा ' की उपाधि दी गई ।
राणा हम्मीर ने चित्तौड़ दुर्ग में अन्नपूर्ण माता का मंदिर बनवाया जिसकी जानकारी मोकल जी के शिलालेख से मिलती हैं ।
कर्नल जेम्स टॉड ने राणा हम्मीर को अपने समय का प्रबल हिंदू राजा माना है ।
एकलिंग महात्मा के अनुसार राणा हम्मीर ने जीलवाडा के सरदार राघव को पराजित किया था ।
राणा हम्मीर ने पहाडी क्षेत्रों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए केलवाड़ा को अपना केन्द्र बनाया था ।
राणा लाखा/लक्षसिंह (1382-1421 ई.)
महाराणा हम्मीर का पौत्र व क्षेत्रसिंह (खेता) का पुत्र लक्षसिंह/लाखा 1382 ई. में मेवाड का शासक बना ।
शासक बनते ही राणा लाखा ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए बूंदी के तारागढ़ किले पर ( तिलस्मी किला ) आक्रमण किया, लेकिन हार गया ।
बूंदी के राजा हम्मीर सिंह हाडा के शासन काल में महाराणा लाखा ने प्रतिज्ञा ली कि - 'जब तक बूंदी के किले को नहीं जीत लूँगा, तब तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा' तब तारागढ़ के किले की प्रतिकृति के रूप में मिट्टी का एक किला बनाकर उसको गिराकर लाखा ने अपना प्रण तोड़ा ।
राणा लाखा ने मेवाड़ के साम्राज्य का विस्तार करते हुए बदनौर विजय की तथा अलाउद्दीन खिलजी के तोडे गये मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया ।
राणा लाखा का विवाह मारवाड़ के रणमल की बहिन हंसाबाई से हुआ ।
मोकल इन्ही की संतान थी जिसने मेंवाड़ का शासन सम्भाला ।
राणा लाखा के पुत्र राजकुमार चूंडा को मेवाड़ का भीष्म कहा जाता है ।
राणालाखा के समय 1387 ई. में छित्तरमल नामक बनजारे ने पिछोला झील ( उदयपुर ) का निर्माण करवाया ।
सीसे जस्ते (जुडवा खनिज) की प्रसिद्ध चाँदी की जावर खान (उदयपुर) की खोज भी राणा लाखा के समय हुई थी ।
लाखा के दरबार में संस्कृत के प्रज्ञात विद्वान झोटिंग भट्ट और धनेश्वर भट्ट रहते थे ।
राणा मोकल 1421-1433 ई.)
जिस समय लाखा की मृत्यु हुई तो मोकल मात्र 12 वर्ष का था ।
राणा लाखा के कहे अनुसार उसका बडा भाई चूडा राज्य के सभी कार्यो को बडी कुशलता से कर रहा था ।
हंसाबाई ( मोकल की माँ व चूडा की सौतेली माँ ) हमेशा चूड़ा को शक की दृष्टि से देखती थी ।
चूड़ा परेशान होकर मेवाड छोडकर मालवा के सुल्तान होशंगशाह के पास चला गया ।
चूंड़ा के मालवा चले जाने के पश्चात हंसाबाई ने मारवाड़ से अपने भाई रणमल को मेवाड़ बुला लिया ।
जिलवाड़ा नामक स्थान पर ही मोकल के पूर्वज क्षेत्रसिंह की उपपत्नी के पुत्र चाचा व मेरा ने महपा पंवार की सहायता से मोकल की हत्या कर दी ।
राणा मोकल ने चितौडगढ़ में समिद्धेश्वर मंदिरा (त्रिभुवन नारायण मंदिर) का पुननिर्माण करवाया था ।
समिद्धेश्वर मंदिर का निर्माण परमार राजा भोज ने करवाये
मोकल के दरबार में मना, फना तथा वीसल नामक शिल्पी निवास करते थे ।
मोकल के दरबार में योगेश्वर तथा विष्णु भट्ट नामक विद्वान निवास करते थे ।
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