Bikaner ka Rathore Vansh- राठौड़ साम्राज्य बीकानेर

Bikaner ka Rathore Vansh - राठौड़ साम्राज्य बीकानेर - मारवाड़ के राठौड साम्राज्य के बाद दूसरा राठौड़ साम्राज्य बीकानेर का ही था बीकानेर के राठौड वंश की कुलदेवी नागणेची माता है बीकानेर के राठौड़ वंश की इष्टदेव करणी माता है ।
पुरानी मान्यताओं के अनुसार 'बीका व नरा' के नाम पर इस क्षेत्र का नाम बीकानेर रखा गया ।

Bikaner ka Rathore Vansh- राठौड़ साम्राज्य बीकानेर

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राव बीका (1465-1504)

राव बीका राव जोधा का दूसरा पुत्र था तथा प्रथम पुत्र नीबा था । राव जोधा ने अपनी रानी जसमादे के प्रभाव के कारण बीका को जोधपुर का राज्य न देकर सातल को दिया । इस कारण राव बीका ने अपने चाचा कांधल के साथ जागल देश को विजित किया जो कि मारवाड़ के उत्तर में स्थित था ।
  • दयालदास की ख्यात व वीर विनोद के अनुसार बीका, जोधा का दूसरा पुत्र था । प्रथम पुत्र नीबा था, जिसकी असामयिक मृत्यु हो गयी थी । राव बीका की माता का नाम साँखला रानी नौंरगदे था ।
  • राव बीका की शादी पुगल के शासक राव शेखा की पुत्री रंगदे से हुई । इस वैवाहिक सम्बन्ध के बाद बीका ने कोड़मदेसर नामक स्थान पर रहने का निश्चय किया । राव बीका ने 1465 ईं. में जांगल प्रदेश को जीतकर इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया । राव बीका ने अपनी प्रथम राजधानी 'कोडमदेसर' को बनाया तथा यहाँ भैरव की मूर्ति को स्थापित कर भैरव मंदिर बनवाया ।
  • राव बीका ने यहाँ एक विशेष छोटी सी हल्की खाट बनवाई थी ताकि वह अपने दादा द्वारा भोगे दुर्भाग्य से स्वयं को बचाने के लिए सोते समय किनारों पर अपने पैर लटका सके । रणमल की पत्नी कोड़मदे ने कोडमदेसर बावडी का निर्माण करवाया ।
  • 12 अप्रेल,1488 ई. में बीकानेर शहर की नीव राव बीका ने करणी माता के आशीर्वाद से बैशाख शुक्ल तृतीया ( आखातीज ) को रखी ।
  • प्रत्येक वर्ष आखातीज को बीकानेर स्थापना दिवस के रूप मे मनाया जाता है ।
  • 1488 ई. में राव बीका ने बीकानेर को राठौड़ वंश की राजधानी बनाया ।
  • राव बीका को बीकानेर के राठौड़ वंश का संस्थापक माना जाता है । बीकानेर को प्राचीनकाल में 'राती-घाटी' के नाम से जाना जाता था नागौर, अजमेर तथा मुल्तान के मार्ग जहाँ मिलते थे उस स्थान को पहले 'राती-घाटी' के नाम से जाना जाता था ।

देशनोक (नोखा) में काणीमाता

राव बीका ने देशनोक (नोखा) में काणीमाता के मूल मंदिर का निर्माण करवाया । करणीमाता का मूल नाम रिद्धिबाई था ।
  • इस मंदिर को आधुनिक स्वरूप महाराजा सूरत सिंह ने दिया । करणीमाता को चूहों की देवी के उपनाम से भी जाना जाता है ।
  • करणीमाता के सफेद चूहों को काबा कहा जाता है । करणीमाता बीकानेर के राठौड़ व चारणों की कुलदेवी है ।
  • करणी माता चारण जाति की थी ।चारण जाति के लोग बीकानेर की कोलायत झील में स्नान नहीं करते है ।
  • राव बीका ने बीकानेर मे नागणेची माता के मंदिर का निर्माण करवाया ।
  • राव बीका नें एक दुर्ग के निर्माण की प्रक्रिया भी प्रारंभ की लेकिन उसे पूर्ण नहीं कर सका, जिसे वर्तमान में बीकाजी की टोकरी/टेकरी कहते है ।

राय लूणकरण (1505-1526 ई.)

राव नरा की निसंतान मृत्यु हो गई तो राव बीका के छोटे पुत्र व नरा के छोटे भाई लूणकरण को बीकानेर का शासक बनाया गया । लूणकरण ने 1512 ई. में फतेहपुर के कायमखानियों व 1513 ई. में नागौर के शासक मोहम्मद खाँ को पराजित किया ।
  • लूणकरण अपनी दानशीलता के लिए बहुत प्रसिद्ध हुआ । इसलिए इसे 'कर्मचंद्रवंशोत्कीर्तनकम् काव्यम्' में उसकी दानशीलता की तुलना कर्ण से की है ।
  • विठू सूजा ने अपनी रचना ' राव जैतसी रो छन्द ' में राव लूणकरण को ' कलयुग का कर्ण ' कहा है ।
  • दानशीलता के कारण रावलूणकरण को कर्ण की उपमा दी गई गई है ।
  • राव जैतसी ने चायलवाडा के स्वामी पूना पर आक्रमण किया लेकिन पूना सूचना पाकर भाग गया ।
  • 1526 ई. में उसने नारनौल के नवाब शेख अबीमीरा पर चढाई की । नवाब व राव की सेवाओँ के मध्य ढोसी/ धोसी नामक स्थान पर युद्ध हुआ । जहाँ पर घाटियों और अन्य सरदारों के धोखे के कारण युद्ध करते हुए 31 मार्च 1526 ई. को लूणकरण की मृत्यु हो गई ।
  • डॉ. गोपीनाथ शर्मा के अनुसार यह घटना 31 मार्च, 1526 ई. की है । इस युद्ध में रावत लूणकरण के साथ प्रतापसी, वैरसी व नेतसी आदि योद्धा युद्ध करते हुए मारे गये
  • लूणकरण के द्वारा लूणकरणसर शहर तथा लूणकरणसर झील का निर्माण करवाया गया ।

राव जैतसी (1526-1541 ई.)

राव लूणकरण की मृत्यु के पश्चात राव जैतसी बीकानेर का शासक बना ।
  • राणा साँगा व बाबर के मध्य 1527 ई. में 'खानवा का युद्ध' हुआ तो राव जैतसी ने अपने पुत्र कुँवर कल्याणमल को मेवाड के राणा सांगा हेतु ससैन्य सहायता देकर युद्ध में भेजा ।
1534 ई. में कामरान ( हुमायूँ का भाई ) ने बीकानेर के राव जैतसी को उसकी अधीनता स्वीकार करने के लिए कहा । राव जैतसी ने कामरान को अधीनता स्वीकार नहीं की तो 1534 ई. में कामरान ने बीकानेर के किले पर आक्रमण कर दिया । इस अप्रत्याशित आक्रमण से मुगल सेना बीकानेर दुर्ग को छोडकर भाग खडी हुई और इस बार राव जैतसी की विजय हुई ।
  • बीठू सूजा कृत राव जैतसी रो छन्द में राव जैतसी व कामरान के मध्य हुए युद्ध का वर्णन मिलता है राव जैतसी रो छन्द में कुल 401 छन्द है ।
  • राव जैतसी व कामरान के मध्य हुए युद्ध का वर्णन हमें बीकानेर के चिंतामणी जैन मंदिर के मूल नायक प्रतिमा के अभिलेख से भी प्राप्त होता है ।
  • 1541 ई. में बीकानेर के राव जैतसी व मारवाड़ के मालदेव के बीच पाहेवा/साहेवा का युद्ध  ( फलौदी-जोधपुर ) हुआ
  • पाहेवा/साहेवा के युद्ध में राव जैतसी मारा गया तथा मालदेव ने बीकानेर पर अधिकार का लिया ।

राव कल्याणमल (1641-1574 ई.)

राव जेतसी की मृत्यु के बाद उसका पुत्र राव कलयाणमल बीकानेर का शासक बना अधिकांश जोधपुर पर मालदेव का अधिकार होने के कारण कल्याणमल का राज्याभिषेक ठाकुरियासर में हुआ । सिरसा में रहते हुए ही उसने अपने पैतृक राज्य को प्राप्त करने का प्रयास किया । शेरशाह की सहायता से कल्याणमल ने बीकानेर का राज्य पुन: प्राप्त कर लिया ।
  • 1527 ई के खानवा के युद्ध में बीकानेर सेना का नेतृत्व राव कल्याणमल ने किया था ।
  • शेरशाह सूरी व मालदेव के मध्य 5 जनवरी 1544 ई. को गिरी सुमेल का युद्ध हुआ ।
  • राम कल्याणमल ने गिरी सुमेल के युद्ध में शेरशाह की सहायता की थी ( पटवार-2011 )
  • राव कल्याणमल बीकानेर का प्रथम शासक था, जिसने दिल्ली ( शेरशाह सूरी ) से सबसे पहले सम्बन्ध बनाए ।
  • 1544 ई. में शेरशाह सूरी ने बीकानेर राज्य कल्याणमल को दे दिया ।
  • राव कल्याणमल बीकानेर का प्रथम राजा था, जिसने मुगलों से वैवाहिक संबंध स्थापित किए तथा मुगलों की अधीनता स्वीकार की । राव कल्याणमल ने अपनी पौत्री राव रायसिंह की पुत्री राजकुंवरी का विवाह अकबर से किया था ।
  • राव कल्याणमल बीकानेर राज्य तथा मुगलों के बीच प्रथम संधि पर हस्ताक्षर करने वाले प्रथम शासक थे ।
  • राव कल्याणमल को दो हजार का मनसब दिया गया ।
  • राव कल्याणमल अपने दो पुत्रों पृथ्वीराज राठौड ( पीथल ) व रायसिंह के साथ 1570 ई. के नागौर दरबार में अकबर की सेवा में आया । 1574 ई. में राव कल्याणमल का निधन हो गया ।

पृथ्वीराज राठौड़

पृथ्वीराज राठौड 1570 ई. के नागौर दरबार में अकबर की सेवा में आया पृथ्वीराज राठौड़ अकबर के दरबारी कवियों में से एक था पृथ्वीराज राठौड़ उच्च कोटि का कवि एवं बिष्णु भक्त था
  • अकबर ने पृथ्वीराज राठौड़ को गागरोण दुर्ग भेंट किया था ।
  • पृथ्वीराज राठौड़ ने गागरोण दुर्ग में वेलि किसन रूकमणी री वचनिका की रचना की ।
  • पृथ्वीराज राठौड के अन्य ग्रंथ - दशम भागवत रा दूहा , दशरथ , राउत व गंगा लहरी है ।
  • ' वेलि किसन रूकमणी री वचनिका ' नामक ग्रंथ से हमें श्री कृष्ण एवं रूकमणी के विवाह की कथा का वर्णन मिलता है ।
  • 'वेलि किसन रूकमणी री ' डिंगल भाषा उत्तर-पश्चिमी मारवाडी में लिखी गई ।
  • जोधपुर के कवि दुरसाआढा ने 'वेलि किसन रूकमणी री' को 5वाँ वेद तथा 19वाँ पुराण कहा है ।
  • वेलि किसन रूकमणी री को प्रकाश में लाने का श्रेय टैस्सीटोरी को हैं ।
  • टैस्सीटोरी उदीने गाँव, इटली का मूल निवासी था टैस्सीटोरी ने पृथ्वीराज राठौड को ' डिंगल का हेराॅस ' कहा है ।
  • टैस्सीटोरी ने बीकानेर में रहकर चारण साहित्य पर शोध किया टैस्सीटोरी की कर्मस्थली व छत्तरी बीकानेर में है ।
  • पृथ्वीराज राठौड 'पीथल' नाम से साहित्य की रचना करते थे पृथ्वीराज राठौड़ का जन्म महाराणा प्रताप के जन्म के 9 साल बाद में हुआ, जबकि निधन दो साल बाद में दुआ था ।
  • पृथ्वीराज राठौड़ ने अपनी मृत्यु का समय व स्थान अकबर को 6 माह पूर्व ही बता दिया था, इस प्रकार पृथ्वीराज की मृत्यु आगरा में ही निर्धारित समय पर हुई ।

महाराजा रायसिंह (1674-1612)

रायसिंह कल्याणमल राठौड़ (बीकानेर) का बडा पुत्र था । जिनका जन्म 20 जुलाई 1541 ई. को हुआ ।
  • मुंशी देवी प्रसाद ने रायसिंह को 'राजपूताने का कर्ण' कहा है ।
  • रायसिंह को 'मुगल दरबार का स्तंभ ' भी कहा जाता था ।
  • 1570 ई. के नागौर दरबार में रायसिंह अकबर की सेवा में आया ।
  • गद्दी पर बैठने के पश्चात रायसिंह ने महाराजाधिराज व महाराज की उपाधि धारण की । इससे पहले यहाँ के शासक राव कहलाते थे ।
  • बीकानेर के राठौड़ नरेशों में प्रथम राजा जिसने इन उपाधियों को धारण किया ।

महाराजा रायसिंह के मुगलों से संबंध 

रायसिंह ने मुगलों की जीवन पर्यंन्त सेवा की थी । ( पटवार-2011 )
note - अकबर का दूसरा विश्वासपात्र राजा रायसिंह था । अकबर ने इसे 4000 की मनसबदारी प्रदान की थी अकबर का पहला विश्वासपात्र राजा मिर्जा राजा मानसिंह प्रथम था अकबर ने इसे 7000 की मनसबदारी प्रदान की थी ।
  • रायसिंह जब जोधपुर की व्यवस्था संभाल रहा था, तभी इब्राहिम मिर्जा ने नागौर में विद्रोह कर दिया । रायसिंह ने कठौली नामक गाँव में उसका दमन किया ।
  • अकबर ने 1572 ई. में रायसिंह को जोधपुर का प्रशासक नियुक्त किया ।
  • रायसिंह ने 1573 ई. में मालवा के मिर्जाबंधुओं ( इब्राहिम मिर्जा व मोहम्मद मिर्जा ) के विद्रोह का दमन किया था ।
रायसिंह ने सम्राट अकबर को मिर्जा बन्धुओं के संकट से मुक्त करवा दिया । गुजरात के इस अभियान में रायसिंह की वीरता से अकबर बहुत प्रसन्न हुआ । इस सैनिक अभियान के उपरांत रायसिंह सम्राट का विश्वासपात्र दरबारी बन गया और संतुष्ट अकबर ने राठौड़ों से अपने सम्बन्ध और भी सुदृढ करने की दृष्टि से रायसिंह की पुत्री का विवाह अपने पुत्र सलीम के साथ कर दिया ।
  • 1574 ई. में अकबर ने चंद्रसेन के विरुद्ध रायसिंह को भेजा था ।
  • 1574 ई. में रायसिंह 'महाराजाधिराज' उपाधि के साथ बीकानेर का शासक बना ।
  • रायसिंह की पुत्री का विवाह शहजादे सलीम से हुआ । अभागा शाहजादा परवेज इसी विवाह का फल था ।
  • रायसिंह ने दो मुगल शासकों अकबर व जहाँगीर की सेवा की ।
  • जहाँगीर का सबसे विश्वासपात्र राजपूत राजा रायसिंह था
  • जहाँगीर ने रायसिंह को 5000 मनसबदारी प्रदान की थी ।

दत्ताणी का युद्ध-

यह युद्ध 1583 ई. में पुगल सेना तथा सिरोही के शासक देवड़ा मुल्तान के मध्य हुआ, जिसमें मुगल प्रतिनिधि जगमाल मारा गया तथा देवडा सुल्तान की विजय हुई । सिरोही के समस्त क्षेत्र पर देबड़ा सुल्तान ने अधिकार कर लिया ।
  • जे बी. मैलिसन ने अपनी पुस्तक नेटिव स्टेट्स आँफ इंडिया में सिरोही को राजस्थान का ऐसा प्रदेश बताया है जो कभी किसी के अधीन नहीं रहा ।
  • 1589-94 ई. के बीच रायसिंह ने अपने प्रधानमंत्री कर्मचंद की देखरेख में जूनागढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया तथा जूनागढ़ दुर्ग में रायसिंह प्रशस्ति भी लिखवाई गई ।
  • जूनागढ दुर्ग का निर्माण हिंदू मुस्लिम शैली में करवाया गया जूनागढ़ दुर्ग के सूरजपोल दरवाजे पर जयमल-फत्ता की पाषाण मूर्तियाँ लगबाई गई ।
  • जूनागढ़ के कर्णपोल प्रवेश द्वार को मध्यकाल में मुख्य द्वार माना जाता था । ( नगरपालिका ईं.ओ.-2016 )
  • अकबर ने रायसिंह से प्नसन्न होकर 1593 ई. में उसे जूनागढ़ प्रदेश व 1604 ई. में शमशाबाद तथा नूरपुर की जागीर व राय की उपाधि दी ।
  • कर्मचंद वंशोत्कीर्तन में रायसिंह को राजेन्द्र ( जीते हुए शत्रुओं से अच्छा व्यवहार करने वाला ) की उपाधि दी गई है ।
  • रायसिंह स्वयं एक अच्छा साहित्यकार था, उसने स्वयं रायसिंह महोत्सव, वैद्यक वंशावली, ज्योतिष रत्नमाला ग्रंथों की रचना की ।
मुंशी देवी प्रसाद की मान्यता है कि 'रायसिंह महोत्सव ' तथा " ज्योतिष रत्नमाला " जैसे ग्रंथ उसने ही रचे थे । ये दोनों ग्रंथ संस्कृत में है । रायसिंह महोत्सव में राव सीहा से लेकर रायसिंह तक की संस्कृत श्लोकों में वंशावली दी गई है और साथ में ही रायसिंह का कुछ वृतान्त भी दिया है ।
  • रत्नमाला की टीका का नाम बालबोधिनी रखा गया था । 'राजा रायसिंह री वेल‘ भी इसके समय में ही रची गई थी । 
  • इसमें इसकी प्रशंसा में 43 गीत रचे गये हैं । परंतु इसके रचयिता के नाम का आज तक पता नहीं चला हैं ।
  • रायसिंह के शासनकाल में बीकानेर में घोर त्रिकाल पड़ा रायसिंह ने व्यक्तियों के लिए जगह-जगह ' सदावत ' खोले एवं पशुओ के लिए चारे पानी की व्यवस्था की ।

रायसिंह ने दक्षिण भारत में एक रेगिस्तान के फोम वृक्ष को देखकर नीम्नांकित भावमय दोहे की रचना की

तूं सैंदेशी रूखड़ा, म्हें परदेशी लोग ।
म्हानै अकबर तेडियाँ, क्यों तूं आयो फोग । ।
  • बीकानेर चित्रकला की शुरूआत रायसिंह ने 1612 ई. में की ।
  • बीकानेर चित्रकला का प्राचीन ग्रंथ भगवत पुराण रायसिंह के समय का है ।
  • 1612 ई. मैं बुहरानपुर ( महाराष्ट्र ) में रायसिंह की मृत्यु हुईं । रायसिंह की मृत्यु के बाद उसका एकमात्र लडका कर्णसिंह बीकानेर के सिंहासन पर बैठा ।

कर्णसिंह (1631 1669)

औरंगजेब के अटक अभियान (पंजाब) के तहत् कर्णसिंह ने राजपूताने के शासकों को वहा उज्जबेगों के द्वारा आई विपदा से बचाया था इसलिए राजपूत शासकों ने कर्ण सिंह को जांगलधर बादशाहऔरंगजेब को आलमगीर की उपाधि प्रदान की ।
  • अनूपसिंह के समय में अनूदित चिंतामणि भट्ट के ग्रथ शुक सप्तति में कर्णसिंह को 'जांगल का पातशाह/जांगलधर बादशाह' कहा है ।
  • 1644 ई. में बीकानेर के कर्णसिंह व नागौर के अमरसिंह राठौड़ के बीच 'मतीरे की राड़' हुई ( ग्रेड तृतीय 2013 ) , जो जोखणियाँ गाँव ( नागौर ) व खिलवां गाँव ( बीकानेर ) से संबंधित थी ।
  • 'मतीरे की राड़' में अमरसिंह विजयी हुआ ।
  • कर्णसिंह ने देशनोक ( बीकानेर ) में करणीमाता के मंदिर का निर्माण करवाया
  • कर्णसिंह ने कई विद्वानों की सहायता से "साहित्य कल्पद्रुम' की रचना की ।
कर्णसिंह के शासनकाल में गंगाधर मैथिल ने ' कर्णभूषण ' , ' काव्यडाकिनी" तथा भट्ट होंसिक' ने कर्णावतस कवि मुदुगल ने कर्ण संतोष की रचना की जो वर्तमान में भी संस्कृत पुस्तकालय बीकानेर में सुरक्षित है ।
  • महाराजा कर्णसिंह, शाहजहाँ व औरंगजेब का समकालीन था । ( जेईंएन201 6 , मैकेनिकल, डिग्री )
  • महाराजा कर्णसिंह का निधन 1669 ई. में हुआ ।

अनूपसिंह (1669-1698)

महाराजा अनूपसिंह 1669 ई. में बीकानेर का राजा बना अनूपसिंह को औरंगजेब ने 1670 ई. में मराठों के विरूद्ध भेजा ।
अनूपसिंह की वीरता से प्रभावित होकर औरंगजेब ने इसे ' महाराजा ' व "माही भरातिव' की उपाधि दी अनूपसिंह औरंगजेब के राजनीतिक सलाहकार थे । 1685-86 ई. मे बीजापुर और 1687 ई. में गोलकुंडा के घेरे के समय यह मुगल सेना के साथ था । अनूपसिंह का काल बीकानेर चित्रकला का स्वर्णकाल माना जाता है । अनूपसिंह का काल उस्ताकला का स्वर्णकाल कहलाता है ।
  • अनूपसिंह के समय उस्ताकला लाहोर से बीकानेर आई अनूपसिंह के समय आन्नदराम ने पहली बार गीता का राजस्थानी भाषा में अनुवाद किया ।
  • महाराजा अनूपसिंह के शासनकाल में ही "बेताल पचीसी' की कथाओं का कविता मिश्रित मारवाड़ी गद्य में अनुवाद किया गया ।
  • अनूपसिंह ने स्वयं अनूपविवेक, काम प्रबोध, श्राद्ध प्रयोग, चिंतामणी और गीत गोविंद की अनूपोदय टीका आदि प्रसिद्ध ग्रंथ लिखे ।
  • अनूपसिंह के दरबारी मणिराम ने " अनूप व्यवहार सागर, अनूप विलास ' अनंग भट्ट ने " तीर्थ रत्नाकर ' तथा वैद्यनाथने 'ज्योत्पत्ति सार' नामक ग्रंथों की रचना की ।
  • अनूपसिंह के दरबार में संगीताचार्य जनार्दन भट्ट का पुत्र भावभट्ट इनका दरबारी साहित्यकार व संगीतकार था, जिसने 'संगीत रत्नाकर' की रचना की अनूपसिंह ने 'अनूप संग्रहालय' की स्थापना की ।
  • महाराजा अनूपसिंह को विद्वानों का जन्मदाता कहा जाता है ।
  • अनूपसिंह दक्षिण भारत से अनेक मूर्तियाँ लेकर आया और उन्हें बीकानेर के 33 करोड देवी-देवताओं के मंदिर में रखवाया । अनूपसिंह ने चूंघेर की स्थापना की ।

सुजानसिंह (1700-1785 ई.)

  • सुजानसिंह के शासनकाल में औरंगजेब की मृत्यु हो गई और मुगलों में गृह युद्ध ( उत्तराधिकारी युद्ध ) छिड़ गया ।
  • औरंगजेब की मृत्यु ( 1707 ईं. ) के उपरांत बीकानेर नरेशों का मुगल-राजनीति से विशेष लगाव नहीं रहा ।

राव जोरावर सिंह (1735-1746 ई.)

राव जोरावर सिंह ने हुरडा सम्मेलन 1734 ई. में बीकानेर का नेतृत्व किया था ।

गजसिंह ( 1746-1787 ई.)

  • बादशाह अहमद शाह ने महाराजा गजसिंह को सफदरगंज के विद्रोह को दबाने के लिए भेजा जहाँ महाराजा गजसिंह ने सफलता प्राप्त की ।
  • इस जीत से प्रसन्न होकर बादशाह अहमदशाह ने महाराजा गजसिंह को ' श्री राजराजेश्वर महाराजाधिराज महाराजा शिरोमणि श्री गजसिंह' तथा 7000 मनसब का खिताब दिया ।

सूरतसिंह (1787-1828 ई.)

  • सूरतसिंह ने 16 अप्रेल, 1805 ई. में मंगलवार के दिन जेसलमेर के जास्तासिंह भाटी से भटनेर दुर्ग जीता था ।
  • इसी कारण भटनेर दुर्ग का नाम हनुमानगढ पडा ।
  • भटनेर दुर्ग को उत्तर भड़ किवाड़ के उपनाम से भी जाना जाता है ।
  • सूरतसिंह ने 21 मार्च, 1818 ई. मे अंग्रेजों से आश्रित पार्थक्यनीति के तहत् संधि की ।
  • सूरतसिंह के शासनकाल में दयालदास ने ' बीकानेर राठौड़ री ख्यात ' में जोधपुर व बीकानेर के राठौड़वंश का वर्णन किया ।
  • सूरतसिंह ने करणीमाता मंदिर ( देशनोक ) को आधुनिक स्वरूप दिया ।

रतनसिंह (1828-1851)

  • महाराजा सूरतसिंह का पुत्र रतनसिंह 1828 ई. में बीकानेर का राजा बना ।
  • रतनसिंह ने 1844 ई. में राजपूतों में कन्याओं को न मारने की ' आण ' जारी करवाई ।
  • रतनसिंह ने 1848 ई. में अंग्रेजों की तरफ से सिक्खों के युद्ध में भाग लिया ।
  • रतनसिंह ने बीकानेर में 'रतनबिहारी मंदिर' का निर्माण करवाया । 1844 ई. में आंग्ल अफगान व प्रथम एवं द्वितीय आंग्ल सिक्ख युद्ध में रतनसिंह ने अंग्रेजों की सहायता की अंग्रेजों के दबाव के बावजूद ब्रिटिश विद्रोही व जनप्रिय ' जवाहरजी ' को अंग्रेजों के सुपुर्द नहीं किया ।

सरदारसिंह (1851-1872 ई)

  • सरदारसिंह बीकानेर का एकमात्र राजा था । जिसने 1857 की क्रांति में अपनी रियासत से बाहर स्वंय अपनी 5000 घुड़सवार व पैदल सैना जनरल वॉन कोर्ट लैण्ड के नेतृत्व में ले जाकर पंजाब के बडालुस्तान, हांसी, सिरसा और हिसार जिलों में अंग्रेजों का साथ दिया ।
  • अंग्रेजों ने प्रसन्न होकर सरदारसिंह को डिब्बी परगने के 41 गाँव उपहार में दिये । सरदारसिंह ने ही सर्वप्रथम बीकानेर में सती प्रथा व जीवित समाधि पर रोक लगाई ।

डूंगरसिंह (1872-1887 )

महाराजा सरदार सिंह के निसांतान मरने के बाद मेवाड़ के महाराजा शंभूसिंह की सिफारिश पर अंग्रेजी सरकार ने डूंगरसिंह को महाराजा सरदार सिंह का उत्तराधिकारी बनाया ।
  • डूंगरसिंह ने ही 1878 ई. में अंग्रेजों की सहायता काने के लिए 800 ऊँटों का काफिला काबुल मेजा
  • महाराजा डूंगरसिंह ने पहली बार बीकानेर में हिमालय की नदियों के पानी को लाने का सपना देखा था ।
  • डूंगरसिंह के शासनकाल में बीकानेर में बीकानेरी भुजिया बनाने की शुरूआत हुई ।
  • डूंगरसिंह के समय बीकानेर शैली में मुगल शैली का प्रभाव कम हुआ ।

महाराजा गंगासिंह (1887-1943 ई)

डूंगरसिंह की मृत्यु के पश्चात 31 अगस्त 1887 को महाराजा गंगासिंह बीकानेर की गद्दी पर बैठा, इस समय गंगासिंह की आयु 7 वर्ष थी ।
  • महाराजा गंगासिंह को आधूनिक भारत का भागीरथ तथा राजस्थान का भागीरथ के उपनाम से जाना जाता है । गंगासिंह को आधुनिक बीकानेर का निर्माता करने है । महाराजा गंगासिंह ने 'प्रजावतिनों वयम्' आदर्श का पालन किया ।
  • दमन, उत्पीड़न और निर्वासन महाराजा गगंगासिंह की शासन नीति के मूलमंत्र थे ।
  • महाराजा गंगासिंह के कार्यकाल में लगभग सभी वायसरायों ने बीकानेर में प्रवास किया ।
  • गंगासिंह के समय राजपूताने का सबसे बडा रेल मार्ग बना, जिसका आधुनिक लोको व वर्कशोप था ।
  • महाराजा गंगासिंह के कार्यकाल में 1891 ई. में सडक निर्माण के लिए पी डब्ल्यू. डी. ( सार्वजनिक निर्माण विभाग ) की स्थापना हुई ।
  • गंगासिंह के शासनकाल में 1899 से 1900 ( विक्रमसंवत्1956 ) तक भयंकर अकाल पड़ा, जिसे 'छप्पनिया अकाल' के नाम से जाना जाता है ।
  • छप्पनिया अकाल में गंगासिंह ने बीकानेर में शहरपनाह व गजनेर झील का निर्माण करवाया ।
  • छप्पनिया अकाल के समय राहतकरयों हेतु इनको ब्रिटिश सरकार ने केसर-ए-हिंद की उपाधि दी
  • महाराजा गंगासिंह के कार्यकाल में उत्तम सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त गंगा रिसाला तैयार की गई ।
  • 31 मई , 1901 ई. को लंदन में सम्राट एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक में महाराजा स्वयं सम्मिलित हुए
  • महाराजा गंगासिंह को प्रिंस आफ वेल्स ने इन्हें अपना ए.डी.सी. बनाया ।
  • महाराजा गंगासिंह चीन के 1901 ई. में हुए बॉक्सर विद्रोह को दबाने के लिए ऊंटों की सेना लेकर चीन गये 
  • गंगासिंह की ऊँटों की सेना को गंगा रिसाला के नाम से जाना जाता है ।
  • महाराजा गंगासिंह ने सर अल्फ्रेड के साथ पिटांग के किले पर विजय प्राप्त की ।
  • महारानी ने 24 जुलाई, 1901 ई. को महाराजा गंगासिंह को के.सी.आई. की उपाधि तथा चीन में युद्ध मैडल से सम्मानित किया ।
  • 2 जनवरी,1903 ई. को ड्यूक आफ कनाट भारत आए, उनके सम्मान में आयोजित दिल्ली दरबार में गंगासिंह भी सम्मिलित हुए।
  • जनवरी, 1903 ई. में महाराजा गंगासिंह ने गंगा रिसाला के सैनिक सोमाली लैंड ( अफ्रीका महाद्वीप ) में मुहम्मद बिन अब्दुल्ला हेब्र सुलेमान ओगडेन जाति के नेता) से युद्ध करने भेजे ।
  • 1910 ई. में महाराजा गंगासिंह ने बीकानेर में स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना की ।
  • राजपूताने में यह प्रथम राज्य था, जिसने कार्यपालिका और न्यायपालिका को पृथक किया ।
  • 1912 ई. में महाराजा गंगासिंह ने अपने शासन के रजत जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में हिंदी को अपनी सरकारी कामकाजी भाषा बनाया । यह आदेश 1914 ई. में पूर्ण रूप से लागू हुआ ।
  • 1912 ई. मे गंगासिंह ने बीकानेर में गंगा निवास उद्यान का निर्माण करवाया जो वर्तमान में पब्लिक पार्क के नाम से जाना जाता है । 
  • 1913 ई. में महाराजा गंगासिंह ने बीकानेर में नाम मात्र के अधिकार देते हुए 'प्रजा प्रतिनिधि सभा' की स्थापना की ।
  • 1914-1918 ई. के प्रथम विश्न युद्ध के ब्रिटिश इम्पीरियल वार केबिनेट के एकमात्र non-white सदस्य महाराजा गंगासिंह थे । प्रथम विश्व युद्ध को जुलाई , 2014 में 100 वर्ष पूरे हो गये ।
  • 1919 ई. मे महाराजा गंगासिंह व एस पी. सिन्हा ने प्रथम विश्व युद्ध के बाद पेरिस शांति सम्मेलन ( पहली युद्ध परिषद्  तथा बाद में वर्साय की संधि ) में भाग लिया ।
  • 1921 ई. में नरेन्द मण्डल की स्थापना की गई जिसके प्रथम चांसलर महाराजा गंगासिंह थे ।
  • नरेन्द मण्डल का अधिवेशन प्रतिवर्ष जनवरी या फरवरी में दिल्ली मे होता था।
  • गंगासिंह ने बटलर समिति ( 1927 ई ) के समक्ष यह माँग की कि-उनके संबंध भारतीय सरकार से न होकर इंग्लैण्ड के राजतंत्र के साथ माने जाए ।
  • महाराजा गंगासिंह के द्वारा 1927 ई में गगनहर का निर्माण करवाया गया
  • गंगनहर के 1927 में रामनगर क्षेत्र में आने के के कारण इस क्षेत्र का नाम श्रीगंगानगर पड़ा ।
  • गंगनहर भारत की सबसे प्राचीनतम नहर परियोजना हैं ।
  • राजस्थान का एकमात्र राजा महाराजा गंगासिह था, जिसने 193०, 1931 1932 के लंदन में हुए तीनों गोलमेल सम्मेलनों में भाग लिया ।
  • गंगासिह ने राष्ट्रसंघ के 5वें सत्र मे भारत का प्रतिनिधित्व किया ।
  • गंगासिंह ने 1931 ई. में रामदेवरा मे बाबा रामदेवजी के मंदिर का निर्माण करवाया ।
  • गंगासिह ने गोगामेडी को आधुनिक स्वरूप दिया तथा अग्नि नृत्य को संरक्षण दिया ।
  • 1932 ई में महाराजा गंगासिंह पब्लिक सेफ्टी एक्ट/सार्वजनिक सुरक्षा कानून एक्ट बनाकर सरकार के विरूद्ध आदोलन करने वालों , अखबार व अन्य प्रकाशित करने वालों तथा शासन विरोधी संभाओं पर निषेध लगा दिया ।
  • 17 दिसम्बर, 1933 ई. को पूरे देश में इस कानून के विरोध में बीकानेर दिवस मनाया गया ।
  • महाराजा गंगासिंह द्वितीय विश्वयुद्ध ( 1 939-1945 ई. ) में गंगा रिसाला तथा लाइट इन्फेंट्री सेनाएं लेकर अंग्रेजों की सहायता करने के लिए यूरोप गए थे ।
  • गंगासिंह ने बीकानेर में स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना की तथा हिंदी को कामकाज की भाषा बनाया ।
  • गंगासिंह ने मांड गायिका अल्लाह-जिल्लाई बाई को संरक्षण दिया
  • इन्हीं के काल में बीकानेर में डूंगर कॉलेज की स्थापना हुई ।
  • महाराजा गंगासिंह ने अपने पिता लालसिंह की याद में लालगढ़ पैलेस का निर्माण करवाया ।
  • महाराजा गंगासिंह ने लालगढ़ पैलेस को एक ब्रिटिश द्वारा तैयार करवाया था । ( नगरपालिका ईं.ओ 2016 )
  • महाराजा गंगासिंह का जन्म बीकानेर में हुआ तथा इनकी मृत्यु 2 फरवरी, 1943 ई. को बम्बई में हुई थी

सार्दूलसिंह (1943-1956)

राजस्थान के एकीकरण के समय बीकानेर का शासक सार्दूलसिंह था सार्दूल सिंह के काल में 26 जनवरी 1946 ई. को राज्य में प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया ।
  • 1947 ई. में केन्द्रीय संविधान सभा में शामिल होने वाला बीकानेर प्रथम राज्य था ।
  • एकीकरण विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने वाली प्रथम रियासत बीकानेर थी । ( वनरक्षक-2010 )
  • बीकानेर के शासक सार्दूलसिंह के द्वारा सर्वप्रथम 7 अगस्त 1947 ई. में रियासती विलयपत्र पर हस्ताक्षर किए गए ।
  • सार्दूल सिंह ने 'नोता' ( विवाह निमंत्रण कर ) तथा 'तख्तनशीनी की भाछ ' ( उत्तराधिकार कर ) समाप्त किया था ।
  • सार्दूल सिंह द्वितीय विश्वयुद्ध में बीकानेर की सेनाओं के निरीक्षण के लिए बर्मा व ईरान गये थे ।
  • इन्ही के काल में दूधवा खारा आंदोलन हुआ ।
  • महाराजा सार्दूलसिंह ने के. एम. पणीकर को बीकानेर राज्य के प्रतिनिधि के रूप में संविधान निर्मात्री सभा के लिए मनोनीत किया ।
  • सार्दूलसिंह के समय में ही राजस्थान नहर या इंदिरा गांधी नहर परियोजना (I.G.N.P) का निर्माण इंजीनियर कँवरसेन के द्वारा किया गया ।
  • यह बीकानेर के राठौड़वंश का अंतिम शासक था ।
  • सार्दूल सिंह की मृत्यु के बाद इनके 5 बेटों ने बीकानेर राज्य को 5 भागों में बांट लिया जिसको पंचपाना कहा जाता हैं ।
  • सार्दूल स्पोर्टस स्कूल बीकानेर में है ।

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