Marwar ka Rathore Vansh - मारवाड का इतिहास

Marwar ka Rathore Vansh - मारवाड़ का इतिहास - नागौर, जोधपुर, पाली तथा बीकानेर, जैसलमेर, बाडमेर, जालौर का कुछ क्षेत्र मारवाड़ कहलाता था 

Marwar ka Rathore Vansh

Marwar ka Rathore Vansh - मारवाड का इतिहास
Marwar ka Rathore Vansh - मारवाड का इतिहास 


डॉ गोपीनाथ शर्मा के अनुसार राठौड़ शब्द संस्कृत के राष्ट्रकूट से बना है राष्ट्रकूट का प्राकृत रूप रट्टऊड़ है, जिससे राठौड़ शब्द बना । 
राजरत्नाकर तथा कुछ भाटों के अनुसार राठौड़ हिरण्यकश्यप की संतान है ।
डॉ गोरी शंकर हीराचंद ओझा के अनुसार राठौड़ बदायूं के राठौडों के वंशज है ।
कर्नल जेम्स टॉड ने राठौडों की वंशावली के आधार पर इन्हें सूर्यवंशी माना है
मारवाड़ के वे सामंत जिन्हें राजा का निकट सम्बन्धी होने के कारण तीन पीढियों तक चाकरी और रेख देने से मुक्त रखा जाता था, राजवी कहलाते थे ।
औरंगजेब के शासनकाल के दौरान नागौर का महान सेनानी अमरसिंह अपने घोड़े के साथ आगरा किले से कूदा था

राव सीहा (1240-1273 ई.)

कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार राव सीहा कन्नौज के अंतिम राजा जयचंद गहड़वाल का पौत्र था तथा कन्नौज के पतन के बाद अपने 200 साथियों के साथ मरूभूमि की ओर आया और लगभग 1212 ई. के आस-पास मारवाड़ में प्रवेश किया ।
  • राव सीहा मारवाड़ के राठौड़वंश का संस्थापक था
  • इनको को राठौड़वंश का आदि पुरूष या मूल पुरूष कहा जाता है ।
  • राव सीहा मूलत: बदायूँ( कन्नौज ) का रहने वाला था ।
  • 1273 ई. में राव सीहा ने पाली आकर राठौड़वंश की नींव रखी ।

राव चूड़ा (1384-1423 ई )

मारवाड़ के राठौड़वंश (Marwar ka Rathore Vansh) का वास्तविक संस्थापक राव चूड़ा था । राव चूड़ा वीरमदेव का पुत्र था राव चूडा ने मण्डोर को राजधानी बनाया । मारवाड़ के राठौड़ो की प्रारंभिक राजधानी मण्डोर थी ।

  • राव चूड़ा को राजस्थान का भीष्म कहा जाता है । ( ग्रैड तृतीय-2०13 )
  • राठौड़वंश का प्रथम बड़ा शासक राव चूड़ा था  ( पुलिस-1997 )
  • रावचूड़ा ने मारवाड़ में सामन्त प्रथा की शुरूआत की ।
  • उत्तर भारत में एकमात्र रावण मन्दिर मंडोर ( जोधपुर ) में है
  • रावण की पत्नी मंदोदरी मण्डोर की ही रहने वाली थी ।
  • राव चूड़ा ने अपने छोटे पुत्र कान्हा को राज़ दिया तो बड़ा पुत्र रणमल नाराज होकर मेवाड में चला गया ।

राव रणमल

रणमल का अधिकांश समय मेवाड में बीता था । रणमल ने अपनी बहन हंसाबाईं का विवाह मेवाड़ के राणा लाखा/लक्ष सिंह से किया ।

  • राणा लाखा व हंसाबाई से उत्पन्न संतान राणा मोकल था । राणा मोकल 1421 में मेवाड़ का राजा बना ।
  • राणा मोकल की हत्या रणमल ने चाचा व मेरा की सहायता से करवाई गई ।
  • हंसा बाईं की एक दासी/डाबरिया (प्राचीनकाल में राजा अपनी पुत्री के साथ दहेज के रूप में भेजी जाने वाली लड़कियां)भारमली के द्वारा कुंभा ने रणमल को जहर दिलवाया ।
  • राणा कुम्भा ने रणमल की हत्या चितौड़गढ़ दुर्ग में करवाई ।
  • जब रणमल की हत्या की जा रही थी तब एक नगाड़ा बजाने वाले नगाडची ने रणमल के पुत्र जोधा को संकेत दिया जोधा भाज सके तो भाज तेरो रिणमल मारयो गयो
  • दासी से उत्पन्न पुत्र दरोगा/चाकर/राणा राजपूत के नाम से पुकारा जाता था ।
  • रणमल की पत्नी कोड़मदे ने कोडमदेसर (बीकानेर) में कोडमदेसर बावडी बनवाई ।
  • कोडमदेसर बावडी पश्चिमी राजस्थान की प्राचीनतम बावडी है ।

राव जोधा

सन 13 मई 1459 को रावजोधा ने जोधपुर नगर बसाया तथा जोधपुर को राजधानी बनाया जोधपुर को सूर्यनगरी/सनसिटी तथा मरूस्थल का प्रवेश द्वार भी कहते है

  • 1459 मे रावजोधा ने चिडियाटूक पहाड़ी पर मेहरानगढ किले (गिरि दुर्ग )की नींव करणी माता (बीकानेर के राठौडों व चारणों की कुलदेवी) द्वारा रखवाई ।
  • इसमें राजा राम खण्डेला नामक व्यक्ति को जिंदा सुनवाया गया जहाँ वर्तमान में सिल्ह खाना है ।
  • मेहरानगढ की मयूरध्वज या मोरध्वज भी कहते है ।
  • यह किला मोरपंख की आकृति का है ।
  • मेहरानगढ को गढचिंतामणि, सूर्यगढ़ व कागमुखी दुर्ग भी कहते है ।
  • उपन्यासकार रुडयार्ड किपलिंग ने मेहरानगढ किले के लिए कहा यह किला परियों व अप्सराओं द्वारा निर्मित किला है ।

मेहरानगढ़ दुर्ग ke दर्शनीय स्थल

मेहरानगढ़ दुर्ग में मेहरसिंह व भूरे खां की मजार, चामुंडा माता का मंदिर, मान प्रकाश पुस्तकालय, कीरत सिंह व धन्ना सिंह की छतरियां, मोती महल, फूल महल, सूरी मस्जिद आदि दर्शनीय स्थल है

  • Mehrangarh Fort में शम्भूबाण, किलकिला खां व गजनी खां नामक तोपें रखी है ।
  • राव जोधा ने मेहरानगढ किले में चामूण्डा देवी का मंदिर बनवाया ।
  • 30 सितम्बर 2008 को चामुण्डा देवी मंदिर में दुर्घटना हुई जिसकी जांच के लिए जशराज चोपड़ा कमेटी गठित की गई ।
  • जोधपुर के राठौडों की कुल देवी को नागणेची माता है । ( राठौड राजा धूहड़ ने राठौडों की कुलदेवी चक्रेश्वरी/नागणेची की मूर्ति कर्नाटक से लाकर नगाणा गांव-बाड़मेर में स्थापित करवाई तथा जोधा ने मेहरानगढ़ दुर्ग में नागणेची माता का मंदिर भी बनवाया )
  • जोधा की पत्नी हाडी रानी जसमादे ने मेहरानगढ़ दुर्ग के समीप रानीसर तालाब का निर्माण करवाया ।
  • मारवाड़ के राव जोधा व मेवाड के राणा कुम्भा के बीच आवल-बावल की संधि हुई ।
  • जिसके दौरान मेवाड़ व मारवाड़ की सीमा का निर्धारण किया गया तथा जोधा ने अपनी पुत्री श्रृंगारी देवी का विवाह राणा कुम्भा के पुत्र रायमल से किया ।
  • श्रृंगारी देवी ने घोसुण्डी नामक स्थान पर बावडी बनवाई

जोधा के बेटे

राव सांतल - सांतल की रानी फुला भटयाणी ने जोधपुर शहर में फुलेलाव तालाब बनवाया ।
अजमेर के हाकिम मलू खां के सेनापति घुडेल खां ने मारवाड़ की 140 कन्याओं का अपहरण कर लिया तो सांतल ने अजमेर घुड़ले खां को मारा व खुद भी मारा गया ।

  • घुड़ले खां का छिद्रित सिर मारवाड़ की अपहरणत कुंवारी कन्याओं ने मारवाड़ में घुमाया ।
  • मारवाड़ का प्रसिद्ध लोकनृत्य -घुड़ला नृत्य । घुड़ला नृत्य चैत्र कृप्या अष्टमी को होता है ।
  • छिद्रित मटके में दीपक रखकर किया जाने वाला नृत्य घुड़ला 
चैत्र कृष्ण अष्टमी
1 . घुड़ला नृत्य 2. ऋषभदेव जयंती 3. शीतला अष्टमी ।

  • चैत्र कृष्ण अष्टमी को शीतला देवी / चेचक की देवी / सेंडल माता की पूजा होती है ।
  • शीतला माता का मंदिर चाकसू जययुर में माधव सिंह द्वितीय ने बनवाया
  • Sheetla Mata एकमात्र देवी है जिनकी खंडित प्रतिमा पूजी जाती है ।
  • शीतला माता के मंदिर का पुजारी कुम्हार जाति का होता है ।
  • शीतला माता का प्रतीक दीपक व वाहन गधा है ।
  • चैत्र कृष्ण अष्टमी को प्रथम जैन तीर्थकर ऋषभदेव / आदिनाथ / कालाजी /केसरिया जी की जयंति होती है 
  • राजस्थान में ऋषभदेव का मूल स्थान धुलेव, उदयपुर में कोयल नदी किनारे है ।
  • जहां सभी संप्रदाय के लोग इनकी उपासना करते है ।
  • चैत्र शुक्ल अष्टमी को करौली के यदुवशियों की कुलदेवी कैलादेवी का लखी मेला लगता है जिसका लांगुरियां नृत्य प्रसिद्ध है ।
  • राजस्थान में लोक कलाओं को संरक्षण देने वाला रूपायन संस्थान ( वीरूदां, जोधपुर) में स्थित है । जिसके संस्थापक पद्म श्री कोमल कोठारी थे ।

राव बीका

1465 में राय बीका ने करणी माता (चूहों की देवी) के आशीर्वाद से जांगल प्रदेश में बीकानेर के राठौड़वंश की नीव रखी 1488 में राव बीका ने बीकानेर शहर बसाया तथा बीकानेर को राजधानी बनाया 

  • जांगल प्रदेश की राजधानी अहिछत्रपुर ।
  • अहिंछत्रपुर का वर्तमान नाम नागौर/धातुनगरी ।

राव गांगा

17 मार्च 1527 ( खानवा का युद्ध ) को खानवा का युद्ध हुआ इस युद्ध में मारवाड़ के राव गांगा ने अपने पुत्र मालदेव के साथ 4 हजार सैनिक भेजकर राणा सांगा की सहायता की ।
राय गांगा ने जोधपुर में गांगलाव तालाब व गंगा की बावड़ी का निर्माण करवाया ।

राव मालदेव (1531-62)

मालदेव की मारवाड़ का पितृहंता राजा कहते है  मालदेव का राज्यभिषेक 1532 ईस्वी में सोजत, पाली में हुआ ।
फारसी इतिहासकारों ने मालदेव को हश्मतवाला राजा कहा ।

  • बदायूनी ने इसे भारत का षुरूषार्थी राजकुमार कहा है ।
  • हिन्दुओं का सहयोगी होने के कारण मालदेव को हिन्दु बादशाह कहते है ।
  • मालदेव ने अपने जीवन में कुल 52 युद्ध किये मालदेव ने मारवाड़ राज्य का सर्वाधिक विस्तार किया ।
  • 1541 में मालदेव व बीकानेर के जेतसी के बीच पाहेबा या शाहेबा ( फलौदी, जोधपुर ) का युद्ध हुआ जिसमें जैतसी मारा गया और मालदेव ने बीकानेर पर अधिकार किया ।

गिरी सुमेल का युद्ध (पाली)

5 जनवरी 1544 को मालदेव व अफगान शासक शेरशाह सूरी (फरीद) के बीच जैतारण का युद्ध गिरी सुमेल का युद्ध (पाली) में हुआ । जिसमें मालदेव के दो स्वामी भक्त सैनिक जेता और कुँपा मारे गए तथा शेरशाह सूरी इस युद्ध में विजयी हुआ 

  • इस विजय के बाद शेरशाह सुरी ने जोधपुर दुर्ग में सूरी मस्जिद का निर्माण करवाया ।
  • गिरी सुमेल युद्ध जीतने के बाद शेरशाह सुरी ने कहा कि एक मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैं हिन्दूस्तान की बादशाहत खो बैठता 
  • सुमेल गिरी के युद्ध से पहले मालदेव ने सिवाणा दुर्ग ( हल्देश्वर की पहाडी पर स्थित, बाडमेर) में शरण ली । अत: सिवाणा दुर्ग को मारवाड़ के राजाओ की शरणस्थली कहा जाता है ।
  • सिवाणा दुर्ग को कूमट दुर्ग, खैराबाद, जालौर दुर्ग की कुंजी भी कहा जाता है । 
  • 7 नवम्बर 1562 में अकबर व मालदेव के बीच जैतारण नामक स्थान पर युद्ध हुआ जिसमें मालदेव मारा गया ।
  • पश्चिमी राजस्थान के अधिकांश किलों का निर्माण मालदेव ने करवाया । जैसे सोजत का किला ( पाली ), पोकरण का किला ( जैसलमेर ) सारण का किला ( पाली ), मालकोट का किला ( मेडता का किला नागौर ) ।
  • मालदेव की पत्नी उमादे (जैसलमेर के लूणकरण की पुत्री) को इतिहास में रूठी रानी के नाम से जानते है ।
  • जो मालदेव से रूठकर अजमेर में तारागढ दुर्ग ( गढबीठडी ) में आजीवन रही तथा 1562 में मालदेव की मृत्यु के बाद उसकी पगड़ी के साथ सत्ती हुई । (पति की वस्तु के साथ सत्ती होना अनुमरण कहलाता है )
  • मारवाड़ चित्र शेली ( जोधपुर चित्र शैली ) का स्वतंत्र उद्भव मालदेव के काल में हुआ ।
  • खानवा के युद्ध ( 1527 ) में मारवाड़ सैना का नेतृत्व राव मालदेव ने किया ।

राव चन्द्रसेन 1562-81

चन्द्रसेन का जन्म 16 जुलाई 1541 में हुआ तथा 1562 ईस्वी में चन्द्रसेन का राज्यभिषेक हुआ । 

  • चन्द्रसेन को मारवाड़ का प्रताप, महाराणा प्रताप का अग्रगामी या पथ प्रदर्शक, राजस्थान का भूला-बिसरा राजा (द फारगेटन हीरो आँफ राजस्थान) , विस्मृत राजा कहा जाता है ।
  • मुगलो की अधीनता स्वीकार न करने वाला मारवाड़ का अंतिम राजा चन्द्रसेन था । चन्द्रसेन के भाई उदयसिंह व रामसिंह अकबर की सेना में चले जाते है । 

नागौर दरबार

अकबर ने 1570 मे नागौर दरबार अहिछत्रपुर दुर्ग में लगाया । यहाँ बीकानेर के राजा कल्याणमल अपने दो पुत्रों के साथ ( रायसिंह व पृथ्वीराज राठौड़/पीथल ) व जैसलमेर के राजा हरराय भाटी, बूंदी व रणथम्भौर के सूरजनहाड़ा ने मुगलों की अधीनता स्वीकार की ।

  • 1570 मे चन्द्रसेन अपने पुत्र को नागौर दरबार में छोडकर लौट आता है तथा मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं करता है ।
  • चन्द्रसेन ने सिवाणा दुर्ग ( बाडमेर) को केन्द्र बनाकर मुगलों का विरोध किया ।
  • अकबर ने बीकानेर के रायसिंह को 1572 में चन्द्रसेन के विरूद्ध भेजा तथा सिवाणा दुर्ग का प्रशासक नियुक्त किया ।
  • चन्द्रसेन ने मुगलों के विरोध हेतु धन की आवश्यकता के लिए सोजत दुर्ग जैसलमेर के हरराय के पास गिरवी रखा । चन्द्रसैन ने जंगलो, पहाडियो को युद्ध के लिए उत्तम माना ।
  • चन्द्रसेन मारवाड़ का पहला राजा था जिसमे छापामार युद्ध पद्धति या गोरिला युद्ध पद्धति का प्रयोग किया ।
  • 11 जनवरी 1581 को बैरसल द्वारा भोजन में विष दिया जाने के कारण सचियाप जोधपुर में चन्द्रसेन की मृत्यु हो गयी ।
  • चंद्रसेन की छत्तरी सचियाप नामक स्थान पर बनी है जिसके साथ पांच सत्तीयों के सतीत्व का प्रतीक बना है ।

मोटाराजा उदयसिंह (1582-95)


  • उदयसिंह को मोटाराज की उपाधि अकबर ने दी ।
  • मोटाराज उदयसिंह मारवाड़ का पहला राजा था जिसने मुगलों से वैवाहिक सम्बन्ध बनाकर अधीनता स्वीकार की ।
  • मोटाराज उदयसिंह ने अपनी पुत्री मान बाई/मानीबाई /जगत गुसांई/जोधाबाई का विवाह अकबर के पुत्र जहाँगीर से किया । शाहजहाँ (खुर्रम) उन्ही की संतान था ।
  • मारवाड़ चित्रकला शैली पर मुगलों का सर्वाधिक प्रभाव मोटाराज उदयसिंह के समय पड़ा ।

सूरसिंह

अकबर ने इसे सवाई राजा की उपाधि दी । सूरत सिंह अकबर और जहांगीर के समकालीन था अकबर ने सूरत सिंह को 2000 का मनसब प्रदान किया जिसे जहांगीर ने बढ़ाकर पहले 3000 और बाद में 5000 तक कर दिया

गजसिंह

जहाँगीर ने इसे सवाई राजा को उपाधि दो ।
गजसिंह ने अपने पुत्र अमरसिंह राठौड को राज ना देकर जसवंत सिंह को जोधपुर का राजा घोषित किया ।

अमरसिंह राठौड़

1644 मे बीकानेर के कर्ण सिंह व मारवाड़ के अमरसिंह राठौड़ के बीच मतीरै की राड़ ( सिलवा मांव, बीकानेर व जीखणियां गांव, नागौर ) हुई । इस युद्ध में अमरसिंह राठौड विजयी हुआ ।

  • अमरसिंह राठौड़ ने शाहजहाँ के सेनापति सलावत खां की हत्या की और उसके बाद शाहजहाँ पर भी आक्रमण कर दिया लेकिन वह स्वयं मारा गया ।
  • इस समय शाहजहाँ लालकिले में छुपा था । अमरसिंह राठौड के सैनिकों ने लालकिले के बुखारा द्वार से लालकिले मे प्रवेश किया और मुगल सैना से युद्ध करते समय ये सैनिक भी मर गये । उस दिन से बुखारा द्वार ईटों से बंद कर दिया गया और इसका नाम अमरसिंह फाटक पड़ गया ।
  • अमर सिंह राठौड़ को छतरी 16 खंबो की छतरी है । जो नागौर मे स्थित है ।

जसवंत सिंह (1538-78)


  • महाराजा की उपाधि इसे शाहजहाँ ने दी ।
  • 1658 में औरंगजेब य दाराशिकोह के बीच धरमत का युद्ध हुआ ।
  • इस युद्ध में जसवंत सिंह ने दाराशिकोह का साथ दिया तथा औरंगजेब इसमें विजयी हुआ । इस विजय के बाद औरंगजेब ने धरमत का नाम फतेहबाद कर दिया ।
  • धरमत, उज्जैन ( क्षिप्रा नदी ) m.p. में स्थित है ।

दौराई का युद्ध ( अजमेर)

1659 में औरंगजेब व दाराशिकोह के बीच दौराई का युद्ध ( अजमेर) हुआ । जिसमें जसवंत सिंह ने दाराशिकोह का साथ दिया तथा औरंगजेब विजयी हुआ तथा इस युद्ध के बाद औरंगजेब ने दाराशिकोह को कांकणबाडी किले, अलवर में कैद करके रखा ।

  • 1678 पें जमरूद ( अफगानिस्तान ) में जसवंत सिंह की मृत्यु हुई ।
  • जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद औरंगजेब ने कहा कि आज कुफ़्र ( धर्म विरोध ) का दरवाजा टूट गया है
  • जसवंत सिंह ने भाषा-भूषण आनन्द विलास व गीता महात्म्य  ग्रन्थो की रचना की ।

राजपूताने का अबुल फजल मुहणौत नैणसी

जसवंत सिंह का दरबारी कवि व इतिहासकार मुहणौत नैणसी (ओसवाल जैन जाति) था । मुहणौत नैणसी का जन्म 1610 ई में जोधपुर में हुआ ।

  • मुहणौत नैणसी को मुंशी देवी प्रसाद ने राजपूताने का अबुल फजल कहा है ।
  • मुहणौत नैणसी ने दो ऐतिहासिक ग्रन्थ नैणसी री ख्यात ( राजस्थान की सबसे प्राचीन ख्यात ) व मारवाड़ रै परगणा री विगत लिखे ।
  • नैणसी री ख्यात की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें कहीं भी 'है' का प्रयोग नहीं हुआ है ।
  • ख्यातें 16वीं शताब्दी में लिखनी शुरू की गई ।
  • ख्यातें भाट व चारण जाति द्वारा लिखी जाती है लेकिन नेणसौ री ख्यात इसका अपवाद है ।
  • 'मारवाड़ रै परगणा री विगत' में मुहणौत नैणसी ने इतिहास का क्रमबद्ध लेखन किया ।
  • अत: मारवाड़ रै परगणा री विगत को राजस्थान का गजेटियर कहते है ।
  • राजस्थान में इतिहास को क्रमबद्ध लिखने का सर्वप्रथम श्रेय मुहणौत नैणसी को है ।
  • राजस्थान के सम्पूर्ण इतिहास को क्रमबद्ध लिखने का श्रेय कर्नल जेम्स टाँड ( घोडे वाले बाबा ) को है
  • अत : कर्नल टॉड को राजस्थान के इतिहास का पितामह कहते है ।
  • नैणसी री ख्यात व मारवाड़ रै परगना री विगत राजस्थानी भाषा में लिखे गये हैं ।
  • मारवाड़ चित्र शैली ( जोधपुर चित्र शैली ) का स्वर्णकाल जसवंत सिंह के समय था ।
  • जोधपुर चित्रकला शैली में पीले रंग व आम के वृक्षों का चित्रांकन किया गया है
  • जसवंत सिंह का सेवक आसकरण था । आसकरण का पुत्र दुर्गादास राठौड़ था ।
  • दुर्गादास राठौड़ को मारवाड़ का उद्धारक कहते है तथा कर्नल टॉड ने इसे राठौड़ो का यूलीसैस कहा
  • दुर्गादास राठौड़ ने जसवंतसिंह को वचन दिया कि उसकी मृत्यु के बाद मारवाड़ का राजा उसका पुत्र बनेगा ।
  • जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद औरंगजेब ने 1678 में मारवाड़ की भूमि (जोधपुर की भूमि) को खालसा भूमि ( राजकीय नियन्त्रण भूमि ) घोषित किया ।

दुर्गादास राठौड़

जन्म 1638 ई ० सालवां गांव ( जोधपुर रियासत )
पिता - आसकरण राठौड़ ।
कर्नल जेम्स टॉड ने इसे 'राठोडों का यूलीसैस' कहा है ।
दुर्गादास राठौड़ को 'मारवाड़' का अणबिंदिया मोती' व 'मारवाड़ का उद्धारक' कहा जाता है ।
1718 में दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु उज्जैन , मध्यप्रदेश में हुई ।
उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे ही दुर्गादास राठौड़ की छतरी बनी है ।

अजीत सिंह (17०7-1724 )


  • अजीत सिंह का जन्म 1679 में लाहौर में हुआ ।
  • औरंगजेब ने अजीतसिंह व उसकी माता को दिल्ली के किले में केद किया ।
  • दुर्गादास राठौड़ ने मुकुंद दास खींची की सहायता से अजीत सिंह को दिल्ली के किले से निकालकर कालिन्दी ( सिरोही ) में जयदेव ब्राह्मण के घर रखा तथा मेवाड़ के राजा राजसिंह से सहायता प्राप्त की ।
  • राजसिंह ने अजीत सिंह को केलवा सहित 12 गांव का पट्टा देकर वहाँ का जागीरदार बनाया ।
  • अजीत सिंह का पालन-पोषण गोराधाय ने किया । गोराधाय को 'मारवाड़ की पन्नाधाय' कहा जाता है 
  • गोराधाय का नाम मारवाड़ के राष्ट्रगीत 'धूंसा' में शामिल किया गया है
  • 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद देबारी समझौता ( उदयपुर ) में हुआ ।
  • देबारी समझौते में तय हुआ कि मारवाड़ के राजा अजीत सिंह अपनी पुत्री सूरज कंवर व मेवाड के राजा अमरसिंह द्वितीय अपनी पुत्री चन्द्रकंवर का विवाह जयपुर के राजा सवाई जयसिंह से करेंगे चंद्र कंवर से उत्पन संतान (माधवसिंह) जयपुर का शासन संभालेगा
  • इश्वरी सिंह व माधव सिंह प्रथम के बीच 1747 मे राजमहल  (टोंक) का युद्ध हुआ
  • जिसकी विजय मे इश्वरी सिंह ने जयपुर के त्रिपोलिया बाजार मे ईसरलाट (सरगासूली) का निर्माण करवाया
  • अजीतोदय के रचनाकार जगजीवन भट्ट थे ।

अभयसिंह (1780)

खेजड़ली ग्राम/गुढा बिश्नोई ग्राम (जोधपुर) में अभयसिंह ने खेजड़ी/जांटी/शमी के वृक्ष कटवाने का आदेश दिया ।
अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में बिश्नोई सम्प्रदाय के 363 लोगों ने खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनेरैरिया) के पेडों से चिपककर बलिदान दिया ।

  • राजस्थान में इसे चिपको आंदोलन/खेजड़ली आंदोलन कहते है ।
  • विश्व में एकमात्र वृक्ष मेला खेजड़ली मेला खेजड़ली ग्राम (जोधपुर) में लगता है ।
  • यह मेला भाद्रपद शुक्ल दशमी ( तेजादशमी ) को लगता है ।
  • खेजड़ी वृक्ष की पूजा दशहरा/विजयदशमी ( आश्विन शुक्ल दशमी) के दिन होती है ।
  • दशहरे पर लीलटांस पक्षी देखना शुभ माना जाता है ।

विजयसिंह

इसने जोधपुर में चांदी के विजयशाही सिक्के चलवाये ।
नोट राजस्थान मे पंच मार्क सिक्के सबसे प्राचीन है 

भीमसिंह

मेवाड के महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णा कुमारी का संबंध मारवाड के भीमसिंह से तय हुआ । परंतु विवाह से पूर्व ही मारवाड़ के भीमसिंह की मृत्यु हो जाती है और मेवाड के महाराणा अपनी पुत्री कृष्णा कुमारी का संबंध जयपुर के शासक जगतसिंह द्वितीय से तय कर देते है ।

  • इस विवाह को लेकर जोधपुर के राजा राव मानसिंह व जयपुर के राजा जगतसिंह द्वितीय के मध्य 1807 ईं. में नागौर के 'गींगोली' नामक स्थान पर युद्ध हुआ,
  • जिसमें अमीर खाँ पिंडारी के सहयोग से जयपुर के जगतसिंह द्वितीय की विजय हुई इस युद्ध को ' गिंगोलो का युद्ध ' के नाम से जाना जाता है ।
  • 1810 ई. में कृष्णा कुमारी के जहर खाकर आत्महत्या करने के बाद यह विवाद समाप्त हुआ ।
  • महाराणा भीमसिंह ने सत् 1818 ई. में 'ईस्ट इंडिया कंपनी' से संधि की ।
  • इस संधि पत्र पर हस्ताक्षर मेवाड़ की और से आसीद, भीलवाडा के 'ठाकुर अजीत सिंह' ने किया था । अंग्रेजों की ओर से 'चार्ल्स मेटकॉफ' ने किए थे ।

मानसिंह (1803-1843 ई.)

मानसिंह नाथ संप्रदाय का अनुयायी था, इसलिए इसे ' सन्यासी राजा ' के नाम से भी जाना जाता है
इनके के राजगुरू गोरखनाथ संप्रदाय के आयस देवनाथ थे ।

  • मानसिंह का दरबारी कवि बांकीदास था ।
  • आयस देवनाथ ने मानसिंह के लिए जोधपुर का राजा बनने की भविष्यवाणी की तथा यह भविष्यवाणी सही सिद्ध हुई ।
  • मानसिंह ने आयस देवनाथ की प्रेरणा से जोधपुर में महामंदिर का निर्माण करवाया जो राजस्थान में नाथ संप्रदाय का बड़ा केन्द व प्रमुख पीठ/गद्दी है
  • 18०7 ई. में मानसिंह के समय मे ही कृष्णा कुमारी विवाद के तहत् परबतसर (नागौर) के गिंगोली नामक स्थान पर गिंगोली का युद्ध जगतसिंह द्वितीय के साथ हुआ । 
  • तख्तसिंह (1857ई)
  • 1857 की क्रांति के समय जोधपुर का शासक तख्तसिंह था ।
  • 8 सितम्बर, 1857 ई. को आउवा के ठाकुर कुशालसिंह चम्पावत व कैप्टन हीधकोट, जोधपुर के तख्तसिंह की संयुक्त सैना के बीच बिथौडा का युद्ध ( पाली ) हुआ ।
  • 18 सितम्बर, 1857 ई को जोधपुर के गवर्नर मेकमोसन व क्रांतिकारियों के बीच चेलावास का युद्ध ( पाली ) हुआ ।
  • जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह के राज्याभिषेक उत्सव मे लुडलो पोलिटिकल एजेंट ने भाग लिया था । ( पशुधन सहायक-2०16 )
  • तख्तसिंह ने जोधपुर में बिजोलाई महल, श्रृंगार चौकी का निर्माण करवाया ।

जसवंत सिंह द्वितीय (1878-95 ई)

जसवंत सिंह द्वितीय की प्रेमिका नन्ही जान ने 29 सितम्बर, 1883 ई. को महर्षि दयानन्द सरस्वती को दूध में शीशा घोलकर पिला दिया, जिसके कारण दीपावली के एकदिन पूर्व 30 अक्टूबर, 1883 ई. को अजमेर में इनकी मृत्यु हो गई 

सर प्रतापसिंह

जसवंत सिंह के छोटे भाई सर प्रताप ने जोधपुर में कायलाना झील का निर्माण करवाया ।

  • महारानी विक्टोरिया के स्वर्ण जुबली उत्सव में भाग लेने के लिए 1887 ईं. में मारवाड़ के प्रतिनिधि के रूप में प्रतापसिंह को इंग्लैण्ड भेजा गया था ।
  • कायलाना झील को प्रतापसागर झील के नाम से भी जाना जाता हैं ।
  • महारानी विक्टोरिया के स्वर्ण जुबली उत्सव में भाग लेने के लिए 1887 ई . में मारवाड़ के प्रतिनिधि के रूप में प्रतापसिंह को इंग्लैण्ड भेजा गया था । ( जेईएन, मेकेनिकल, डिप्लोमा-2०16 )

सरदार सिंह (1895-1911)

सरदारसिंह ने जसवंतसिंह द्वितीय की याद में जोधपुर में जसवंतथडा ( 1899-1906 ई. ) का निर्माण करवाया ।
जसवंतथड़ा को ' राजस्थान का ताजमहल ' कहा जाता है । जसवंतसिंह ने जोधपुर में घंटाघर बनवाया ।

उम्मेदसिंह (1918-1947 ई.)


  • उम्मेदसिंह को आधुनिक मारवाड़ का निर्माता/मारवाड़ का कर्णधार कहा जाता हैं ।
  • इन्होने सुमेरपुरा पाली में जवाई बाँध का निर्माण करवाया ।
  • उम्मेदसिंह ने जोधपुर में उम्मेद भवन/छीतर पैलेस ( 1929-1938 ई. ) का निर्माण करवाया ।

हनुमंत सिंह


  • एकीकरण के समय जोधपुर का शासक हनुमंत सिंह था ।
  • हनुवंतसिंह ने एकीकरण विलयपत्र पर हस्ताक्षर करते समय रियासती विभाग के सदस्य सचिव बी पी. मेनन के कनपटी पर पिस्तौल तान दी थी ।
  • एकीकरण के समय राज्य की क्षेत्रफल में सबसे बडी रियासत जोधपुर थी ।
  • मारवाड़ रियासत राजस्थान की एकमात्र ऐसी रियासत थी जिसे मुगलों ने दो बार खालसा घोषित किया था
  • प्रथम बार चंद्र सिंह की मृत्यु पर अकबर द्वारा
  • दूसरी बार जसवंत सिंह को मृत्यु पर औरंगजेब के द्वारा की गई ।

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