राजस्थान की वेशभूषा एवं आभूषण With Trick - राजस्थान समान्य ज्ञान की इस पोस्ट में हम राजस्थान की वेशभूसा और आभुषण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी और नोट्स प्राप्त करेंगे ये पोस्ट आगामी Exam के दृस्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है
राजस्थान की वेशभूषा एवं आभूषण
जीनगरी कला-कपड़ों की रंगाई की कला तो राजस्थान में लेटा, मांगरोल एवं सालावास कपड़े की मदों की बुनाई के लिए जाने जाते हैं।राजस्थानी पोशाक जोधपुरी कोट को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली हुई है।
राजस्थान की वेशभूषा एवं आभूषण With Trick |
पुरूषों के वस्त्र
1.धोती :- कमर में पहनने का कपड़ा जो प्रायः चार मीटर लम्बा एवं 90 सेमी. चौड़ा होता है। आदिवासियों द्वारा पहने जाने वाली तंग धोती - ढेपाड़ा/डेपाड़ा कहलाती हैं।
2.अंगरखी / बुगतरी ( बंडी) :- ग्रामीण क्षेत्र में पुरुषों के शरीर के ऊपरी भाग में पहना जाने वाला वस्त्र, यह पूरी बाँहों का बिना कॉलर एवं बटन वाला चुस्त कुर्ता जिसमें बाँधने के लिए कसें (डसें) होती है। यह सफेद रंग का वस्त्र है जिस पर कढ़ाई की जाती है।
3.अचकन :- अंगरखी का उत्तर (संशोधित) रूप।
4.साफा, पगड़ी, फलिया, पाग, पेंचा, बागा (फेंटा) :- सिर पर लपेटे जाने वाला प्राय: सफेद एवं 5.5 मीटर लम्बा व 40 सेमी. चौड़ा होता है। उदयपुर की पगड़ी व जोधपुर का साफा प्रसिद्ध है। उदयशाही, अमरशाही, विजयशाही और शाहजहांनी पगड़ी के प्रकार हैं, तो मेवाड़ महाराणा के पगड़ी बाँधने वाला व्यक्ति छाबदार कहलाता है।
5.पोतिया :- भील पुरूषों द्वारा पगड़ी के स्थान पर बाँधा जाने वाला मोटा वस्त्र ।
6.टोपी :- पगड़ी की तरह ही सिर को ढ़कने वाला वस्त्र। खाखसानुमा, चौपलिया, दुपलिया ये टोपी के प्रकार है।
7.शेरवानी :- प्रायः मुसलमान पुरूषों एवं शादियों में हिन्दू पुरूषों के द्वारा पहने जाने वाला वस्त्र जो कोटनुमा एवं घुटने से लम्बा होता है।
8.कमीज :- ग्रामीण पुरूषों के द्वारा धोती के साथ पहने जाने वाला कुर्तानुमा वस्त्र ।
9.चुगा (चोगा) :- अंगरखी के ऊपर पहना जाने वाला वस्त्र ।ऊनी चोखा अमृतसर का प्रसिद्ध है।
10.पायजामा : अंगरखी, चुगा और जामे के नीचे कमर व पैरों में पहना जाने वाला वस्त्र ।
11.बिरजस ( ब्रीचेस) :-चूड़ीदार पायजामे के स्थान पर पहना जाने वाला वस्त्र अर्थात् पुरुषों का कमर से नीचे का वस्त्र ।
12.घुघी (बरसाती ):- ऊन क' बना वस्त्र जो सर्दी या वर्षा से बचाव हेतु ओढ़ा जाता है।
13.पछेवड़ा : सर्दी से बचने के लिए पुरूषों के द्वारा कम्बल की तरह ओढ़े जाने वाला मोटा सूती व पछेवड़ा कहलाता है।
14.आतमसुख :- सर्दी में ऊपर नीचे तक पहने जाने वाला वस्त्र आतमसुख कहलाता है। सबसे पुराना आतमसुख सिटी पैलेस, जयपुर में रखा जा है।
15.कमरबंद( पटका) :- जामा या अंगरखी के ऊपर कमर पर बाँधा जाने वाला वस्त्र, जिसमें तलवार या कटार घुसी होती है। अहमदाबाद एवं बनारस के पटके प्रसिद्ध है।
16.अंगोछा :- आदिवासी पुरूषों द्वारा सिर पर बाँधा जाता है। केरी भाँत का अंगोछा लोकप्रिय है।
ध्यातव्य रहे :-रजाई के नीचे ओढ़ने का वस्त्र-सौड, पगड़ी पर धारण करने वाला जरीदार वस्त्र-बालाबन्द, घेर वाली पुरूषों की सर की पाग-बागौ, पगड़ी पर बाँधा जाने वाला वस्त्र-ऊपरणी तथा पगड़ी पर धारण करने वाला विशेष आभूषण-रतनपेच कहलाता है। ‘तनसुख', 'गदर', 'गाबा' एवं 'डोढ़ी' पुरुषों के वस्त्र हैं।
स्त्रियों के वस्त्र
1.कुर्ती और काँचली वस्त्र, - शरीर के ऊपरी हिस्से में पहना जाने वाला . जो बिना बाँह का होता है। 2.घाघरा, पेटीकोट, लहंगा :- कमर के नीचे एड़ी तक पहना जाने वाला घेरदार वस्त्र जो कलियों को जोड़कर बनाया जाता है रेशमी घाघरा जयपुर का प्रसिद्ध है।
3.ओढ़नी, लुगड़ी ( साड़ी) :- कुर्ती, काँचली व घाघरे के ऊपर शरीर पर पहना जाने वाला वस्त्र पोमचा, लहरिया, चुनरी, मोठड़ा, धनक आदि लोकप्रिय ओढ़नियाँ है। यह 2.10 से 2.50 मीटर लम्बी तथा 1.25 से 1.35 मीटर चौड़ी होती है। लप्पा, लप्पी, किरण एवं बाँकड़ी ये सब गोटे के भिन्न-भिन्न प्रकार हैं। ढींगला, भींडरिया, नाथद्वारिया मेवाड़ की ओढ़नियों के नाम हैं तो मारवाड़ में दामणी ओढणी का एक प्रकार है।
4.पीला पोमचा :- बच्चे के जन्म पर प्रसूता द्वारा पहने जाने वाली पीले रंग की ओढ़नी।
5.लहरिया :- श्रावण मास में तीज पर पहने जाने वाली अनेक रंगों की (धारीनुमा) ओढ़नी। डूंगरशाही ओढ़नियाँ जोधपुर में तैयार होती है। समुद्र लहर नाम का लहरिया जयपुर में एगा जाता है।
6.मोठड़ा :- लहरियें की धारियाँ जब एक-दूसरे को काटती हुई बनाई जाती है, तो वह मोठड़ा कहलाती है, जो जोधपुर की प्रसिद्ध है।
7.तिलका :- मुस्लिम औरतों का पहनावा, जो पायजामे के ऊपर पहना जाता है।
8.आँगी :- बिना बाँह वाली चोली।
9.कापड़ी: कपड़े के दो टुकड़ों को बीच में से जोड़कर बनाई गई चोली जो पीठ पर तनियों से बाँधी जाती है।
10.सलवार :- कमर से लेकर पाँवों में पहने जाने वाला वस्त्र ।
11.घघरी:- कुँवारी व स्कूली छात्राओं द्वारा पहना जाने वाला कमर के नीचे का वस्त्र। यह घाघरे (लहंगा) का छोटा रूप है।
12.कुर्ता :- ऊपरी हिस्से में पहना जाने वाला वस्त्र। 13.शरारा :- सलवार रूपी वस्त्र जो शरीर के नीचले हिस्से, पैरों में पहना जाता है।
14.कटकी:- राजस्थान की आदिवासी अविवाहित युवत्तियाँ / बालिकाओं द्वारा ओढ़ी जाने वाली ओढ़नी कटकी कहलाती है।
आदिवासी स्त्रियों के वस्त्र
- तारा भाँत की ओढ़नी
- केरी भाँत की ओढ़नी
- लहर भाँत की ओढ़नी
- ज्वार भाँत की ओढनी
- सावली भाँत की ओढ़नी
- लूगड़ा
- पावली भाँत की ओढ़नी
- चूनड़ :- इस ओढ़नी में बिन्दियों का संयोजन होता है।
- जाम साई साड़ी :- विवाह के समय पहना जाने वाला वस्त्र जिसमें लाल जमीन पर फूल-पत्तियाँ होती है।
- नान्दणा या नाँदड़ा :- आदिवासी स्त्रियों द्वारा पहना जाने वाला नीले रंग की छींट का वस्त्र ।
- नौदणाः- आदिवासियों द्वारा पहने जाने वाला प्राचीनतम वस्त्र ।
- रेनसाई :- लहंगे की छींट जिसमें काले रंग पर लाल एवं भूरे रंग की बूटियाँ होती है।
ध्यातव्य रहे:- पर्दानशीन औरतों के सिर पर ओढ़ने का वस्त्र अवोचण तथा पर्दानशीन स्त्रियों के पर्दा करने का वस्त्र चांदणी कहलाता है, तो भील जनजाति में कछाबू महिलाएँ पहनती हैं।
राजस्थानी खान-पान (भोजन)
1.सिरावण:- ग्रामीण क्षेत्रों में सुबह का नाश्ता जो प्रायः पिछली शाम का बचा हुआ भोजन होता है।
2.भात / रोट/दोपेर्या :- ग्रामीण क्षेत्रों में मध्याह्न का भोजन जिसके अन्तर्गत प्रायः जौ, बाजरा अथवा मक्के की रोटी तथा मिर्ची, छाछ, दही व हरी सब्जी होती है।
3.ब्यालू एवं कलेवा :- ग्रामीण क्षेत्रों में शाम के भोजन को ब्यालू एवं सुबह के भोजन को कलेवा कहते हैं।
4.सीरा/ लापसी : गेहूँ के आटे को घी में भूनकर व गुड़ या चीनी मिलाकर बनाया जाता है।
5.राब/ राबड़ी :- मक्के या बाजरे के आटे में छाछ मिलाकर बनाया जाने वाला पेय पदार्थ ।
ध्यातव्य रहे:- खेजड़ी की फली से बनी हुई सब्जी सांगरी, केर की सब्जी केरिया, खींप की सब्जी खींफोली, बबूल/कीकर की सब्जी बिछिया कहलाती है।
6.सोगरी :- बाजरे के आटे से बनी मोटी रोटी जो आकरी सेकी जाती है।
7.खींच खीचड़ो :- यह कूटे हुए बाजरे को मोठ के साथ उचित अनुपात में मिलाकर पानी में गाढ़ा-गाढ़ा पकाया जाता है।
8.घाट :- मक्का या बाजरे का मोटा आटा जो पानी या छाछ में पकाया जाता है।
9.खाटा/कड़ी- बेसन को छाछ में मिलाकर बनाई गई सब्जी।
10.चीलड़ा :- मोठ के आटे में नमक, मिर्च, जीरा, धनिया आदि मिलाकर रोटीनुमा व्यंजन
11.लपटा / मीठी राब या गलवान्या :- गेहूँ या बाजरे के आटे को घी में सेककर पानी में गुड़ के साथ उबाल कर बनाया गया पेय। किसान वर्षा होने के बाद जब पहली बार हल जोतता है तब यह बनाया जाता है।
12.धानी :-मिट्टी को गर्म करके उसमें सिके हुए जौ के दाने।
13.भूगड़ा गर्म मिट्टी में सिके हुए चने।
14.सत्तु : ग्रामीण क्षेत्रों में धानी के आटे को सुबह के समय पानी में चीनी के साथ मिलाकर बनाया गया पेय पदार्थ।
15.निरामिष भोजन :- शाकाहारी भोजन जिसमें मक्का, गेहूँ, ज्वार की रोटी, दाले, हरी सब्जी, ककड़ी, टमाटर, पालक, घी, तेल, दुध, दही इत्यादि आते है।
16.आमिष भोजन :- माँसाहारी व्यंजन व पुलाव जिसमें कोरमा,कोपता, कबाब आदि आते है।
17.नुक्ति :- बेसन के छोटे-छोटे दानों को चीनी की चासनी पिलाकर बनाये गये दाने।
18.पुए गुलगुले :- गेहूँ के आटे में चीनी या गुड़ मिलाकर गाढ़ा पतला घोल करके तेल में तलकर बनाये गये छोटे-छोटे अनियमित गोल आकार के टुकड़े।
19. शक्करपारे :- गेहूँ के आटे में चीनी या गुड़ मिलाकर तिकोने चतुर्भुजाकार टुकड़े जिन्हें तेल में तलकर बनाया जाता है।
20.चक्की :- बेसन के आटे से बनी बर्फी ग्रामीण क्षेत्रों में चक्की कहलाती है।
21.घुघरी : चने व गेहूँ को पानी में उबाल कर बनाया गया व्यंजन जो कि प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों में लड़की पैदा होने पर बनाया जाता है।
22.काँज्या:- गाजर के छोटे-छोटे टुकड़ों को उबाल कर नमक मिर्च व मसाले लगाकर बनाया गया सब्जी रूपी पदार्थ।
23.बटल्या :- गेहूँ के आटे के लोए बनाकर प्रायः सर्दियों में दाल के साथ उबाले जाते है। है
24.बरिया :- मोठ या चने को पानी में उबाल कर नमक मिर्च व मसाले मिलाकर बनाया गया व्यंजन।
25.पंचकुटा:- कैर, गूंदा, काचरी, सांगरी (खेजड़ी का फल),कूमता (कूमठ के फूल) पाँच अलग-अलग फलों का मिश्रण जिससे स्वादिष्ट सब्जी बनती है।
26.पंजीरी :- धनिये को पीसकर उसमें बूरे को मिलाकर (पिसी हुई चीनी) बनाया गया स्वादिष्ट मिश्रण। यह राजस्थान में प्रायः कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर प्रसाद के रूप में बाँटी जाती है।
27.दुनी:- मेदे का हलवा जिसमें मेदा की तुलना में दुगुना घी डाला जाता है।
28.दाल-बाटी-चूरमा :- राजस्थान का प्रसिद्ध भोजन जो कि सवामणियों में प्रायः बनाया जाता है।
ध्यातव्य रहे:- पके हुए काचरे को सीधे काटकर बनाया जाता है। वह कोकला तथा सुखाकर बनाया जाता है वह गोटका कहलाता है तथा टिण्डसियों को बराबर दो भागों में काटकर सुखाकर बनी हुई सब्जी को फोफलिया कहते है। राज्य का खान-पान - दाल-बाटी-चूरमा, राज्य एवं राष्ट्रीय मिठाई - जलेबी, राज्य पेय छाछ, राष्ट्रीय पेय चाय, राज्य रोटी बाजरा, राज्य सब्जी बेसन के गट्टे की / कड़ी उर्फ खाटा है, तो राज्य आचार कैर (टीट) सर्दी / लेसुआ (गर्मी) है।
राज्य की प्रमुख खान-पान की वस्तुएँ, जिनके लिए कोई विशेष स्थान प्रसिद्ध है।
हींग की कचौड़ी (दाल) |
कोटा |
कचौरा |
नसीराबाद (अजमेर) |
दूध के मालपुए |
पुष्कर (अजमेर) |
जलेबा |
नगर (भरतपुर) |
प्याज की कचौरी |
जोधपुर |
मावे की कचौरी |
जोधपुर |
सोहन पपड़ी |
अजमेर |
तिलपट्टी |
ब्यावर (अजमेर) |
खीरमोहन |
गंगापुर सिटी (सवाई माधोपुर) |
रबड़ी |
माउण्ट आबू (सिरोही) |
रसगुल्ले, चमचम व भुजिया |
बीकानेर |
पेड़े |
चिड़ावा (झुंझुनूं) |
अचार |
भुसावर (भरतपुर) |
फीणी |
सांभर (जयपुर) |
घेवर |
जयपुर |
गुड़धाणी |
जयपुर |
मिश्री मावा |
जयपुर |
बालूशाई / मक्कखनाबड़ा |
दौसा |
गुलाब हलवा |
पाली |
खजले ( पापड़) |
भरतपुर |
राजस्थान के आभूषण
सिर व मस्तक के आभूषण याद करने की Tricks - सारा माटी में शीश व टीडी के बोर लगते हैं।
- सा-सांकली
- रा-राखड़ी
- मा-मांग
- टी-टीको
- में- मेमंद
- शीश-शीशफूल
- टीडी-टीडी भलको
- बोर-बोरलो
नाक के आभूषण याद करने की Tricks - बाबू कुंभ के मेले में नक कालो चून व खीव की फीणी को बेचो
- बा- बाली
- बू- बुलाक
- कुं-कुड़क
- भ-भंवरकुड़ी
- नक-नकफूल
- का- कांटा
- लो-लोंग
- चू-चूनी
- न-नथ
- खीव- खीवण
- फीणी-फीणी
- को-कोको
- बे-बेसर
- चो-चोप
बाजू के आभूषण याद करने की Tricks - नटखट चूहा अब बाजू पर फूदना शुरू कर दिया है।
- न-नवरत्न
- ट-टड्डा
- चू-चूड़ला / चुड़ली
- हा-हारपान
- अ-अनत / अणत
- ब-बट्टा
- बाजू-बाजुबंद
- फूदना-फूंदना
कान के आभूषण याद करने की Tricks - ओगणीया के कर्ण की टोटी में पीली बाली व टॉप्स की लट की सुर को देखकर झेला झूमने लगा।
- ओगणीया- ओगणीया
- कर्ण-कर्णफूल
- टोटी-टोटी
- पीली- पीपल पन्ना
- बाली- बाली
- टॉप्स-टॉप्स
- लट-लटकन
- सुर-सुरलिया
- झेला-झेला
- झूम-झूमरी / झुमका
पैर के आभूषण याद करने की Tricks - कल सांझ को तो नुपूर ने पग में घुंघरू खनवाऐ
- क-कडा / कडूला
- ल-लच्छी लंगार
- सां-सोंट
- झ-झांझर
- तो-तोटा / तोड़िया
- नुपूर-नुपूर
- ने-पायजेबा / पैजामिया
- प-पायजेब / पैजमिया.
- ग-गठिया
- घुंघरू-घुंघरू ·
- खनवाऐ - खण्डवा / खटूला
पैर के अन्य आभूषण याद करने की Tricks - आज आवला में हिरन का पंजा टनका
- आज-अजवर
- आवला-आवला
- हिरन-हिरनामैन
- पंजा-पैजा
- टनका-टनका
अंगुली के आभूषण याद करने की Tricks - मुद्रिका ह अदा की मुबी
- मुद्रिका- मुद्रिका
- ह-हथपान
- अ-अरसी / आरसी
- दा-दामनी
- मु-मुंदड़ी / मुदरी
- बी-बीठी
छाती / गले के आभूषण याद करने की Tricks - चम्पा व मंजू ने मजाक मे सीता ब मौहिनी क गले में पंच तुलसी का मांदलिया व खुंगाली दुस कर डाल दी।
- चम्पा-चम्पाकली
- मं-मंगलसूत्र
- जू-जूगावली
- ने- नेकलस
- म-मटरमाल
- जा-जालरो
- क-कण्ठी
- सी-सीतारामी
- ता-ताबीज
- ब-बजट्टी
- मौ-मौहरमाला
- हि-हंसती / हाकर कालारो
- नी-निबौरी
- गले-गलपटिया
- म-मंडली
- पं-पंचलडी
- च-चंदनहार / चम्पावली
- तुलसी- तुलसी
- क-कण्ठसरी
- मांदलिया-मांदलिया
- खुंगाली-खुंगाली
- दुस- दुस्सी
Note - दुस्सी आभूषण गर्दन में पहना जाता है, जो नेकलेस से बड़ा और भारी होता है।
Read Also
- Mewar Vansh ka Itihas | मेवाड़ का इतिहास PART-1
- Rawal Ratan Singh History in Hindi | Mewar Vansh Part-2
- Sisodiya Vansh ka Itihas | Mewar Vansh Part-3
- Rana Kumbha History in Hindi | Mewar Vansh Part - 4
- Rana Sanga History in Hindi | Mewar Vansh Part - 5
- महाराणा कुंभा का इतिहास
0 Comments