डॉ. ए. बी लाल के अनुसार यही वह मरूभूमि है, जिसे हम वर्तमान में जैसलमेर कहते है पौराणिक काल में इस क्षेत्र को माडमड़ प्रदेश के नाम से जाना जाता था । इस प्रदेश के लिए माड शब्द का प्रयोग हमें प्रतिहार शासक ककुक के घटियाला शिलालेख से प्राप्त होता है । इसी अभिलेख में ही इस क्षेत्र हेतु माड के साथ-साथ वल्ल व त्रावणी शब्दों का प्रयोग किया गया है
jaisalmer ke bhati vansh - जैसलमेर के भाटी वंश का इतिहास
Jaisalmer ke Bhati Vansh - जैसलमेर के भाटी वंश का इतिहास |
- शालिवाहन के बलंद व बलंद के भाटी/भट्टी नामक पुत्र हुआ, जो बड़ा प्रतापी था ।
- भाटियों का मूल स्थान 'पंजाब' था ।
भट्टी
- भट्टी/भाटी भाटी राजवंश का 'मूल पुरुष/आदि पुरुष/ संस्थापक कहलाता है ।
- Bhati 285 ई. में पंजाब से आकर भटनेर कस्बा बसाकर भटनेर ( हनुमानगढ ) के किले का निर्माण करवाया ।
मंगलराव भाटी
- भट्टी के बाद उसका पुत्र मंगलराव भटनेर का शासक बना ।
- मंगलराव व गजनी के शासक ढुण्ढी के मध्य युद्ध हुआ, जिसमें मंगलराव पराजित हुआ । पराजित होने के बाद मंगलराव भाटी ने भटनेर से जैसलमेर ( मरुस्थल ) क्षेत्र में जाकर ' तन्नौट ' को अपनी नई राजधानी बनाया ।
तनोट माता का मंदिर
- राजा केहर ने अपने पुत्र तणु के नाम पर नगर बसाकर तनोटिया देवी की स्थापना की ।
- यह 'सेना ( बीएसएफ) के जवानों की देवी/थार की वैष्णो देवी/रूमाल वाली देवी' के उपनाम से प्रसिद्ध है
देवराज
- देवराज ने अपने पिता व दादा की मौत का बदला लेकर वापस हारे हुए क्षेत्रों पर अधिकार कर तनोट की जगह लोद्रवा को अपनी नई राजधानी बनाया ।
- देवराज ने स्वय को महरावल की उपाधि से विभूषित किया । 60 वर्ष को उम्र में देवराज को चन्ना राजपूतों ने धोखे से मार दिया ।
राव जैसल
- जैसलदेव गद्दी पर बैठते ही लोद्रवा से 10 मील दूर जैसलमेर कस्बा बसाकर लोद्रवा से राजधानी बदलकर जैसलमेर को अपनी नई राजधानी बनाया ।
- जैसलदेव भाटी ने 12 जुलाई , 1155 ई. में जैसलमेर दुर्ग बनवाया ।
जेत्रसिंह
- 1275 ई. में जेत्रसिंह जैसलमेर का शासक बना । इस समय दिल्ली पर बलबन का साम्राज्य था ।
- 1311 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी सेना जैसलमेर भेजी । सेना के घेरे के दौरान ही 1311 ई. में जेत्रसिंह की दुर्ग में ही मृत्यु हो गई ।
मूलराज प्रथम
- जेत्रसिंह के बाद उसका बड़ा पुत्र मूलराज प्रथम जैसलमेर का शासक बना । दुर्ग में रसद सामग्री कम पड़ने लगी तो मूलराज प्रथम ने साका करने का निर्णय लिया । सभी राजपूत लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए । इस प्रकार जैसलमेर दुर्ग का यह पहला साका हुआ ।
घड़सी
- घड़सी सिंह ने ही जैसलमेर के निकट घड़सीसर तालाब बनवाया घड़सी सिंह की 1366 ई. में मृत्यु हो गई ।
रावल दूदा
- खिलजी सल्लनत की समाप्ति के बाद दिल्ली पर तुगलक वंश का अधिकार हो गया । फिरोज तुगलक ने जैसलमेर पर आक्रमण कर दुर्ग को घेर लिया ।
- 14वीं शताब्दी के अंत में लगभग 1370-71 ई. में हुआ यह जैसलमेर दुर्ग का दूसरा साका कहलाता है ( क्योंकि 1371 ई. में दूदा की मृत्यु के बाद उसका पुत्र केहर तृतीय जैसलमेर का शासक बना ) ।
लूणकरण
- जेतसिंह की मृत्यु के बाद उसका छोटा पुत्र लूणकरण 1528 ई. में जैसलमेर का शासक बना । लूणकरण के नौ पुत्र व तीन पुत्रियाँ थी । बडी पुत्री रामकुँवरी तथा छोटी पुत्री उमादे का विवाह जोधपुर के महाराजा मालदेव के साथ व बीच की पुत्री का विवाह उदयपुर के महाराणा उदयसिंह के साथ किया ।
- लूणकरण की पुत्री उमादे इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध हुई ।
- लूणकरण ने अपने पिता के समय हुए 'जेतबंध यज्ञ' का आयोजन कर उन भाटियों को बुलाया जिन्होंने सिंध में जाकर इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया और उन्हें पुन: हिंदु धर्म में शामिल करवाया । शुद्धिकरण की दिशा में यह पहली घटना थी ।
- राव लूणकरण के समय जैसलमेर मे अर्द्ध साका हुआ ।
हरराज/हरराय भाटी
- हरराज भाटी ने जयपुर के राजा भारमल के कहने पर 1570 ई. मे हुए नागौर दरबार में उपस्थित होकर अकबर की अधीनता स्वीकार कर अपनी पुत्री नाथी बाई का विवाह अकबर के साथ कर दिया ।
- हरराज भाटी भाटियों में प्रथम व्यक्ति था जिसने मुगलों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए
भीमसिंह भाटी
- भीमसिंह ने अपनी पुत्री का विवाह सलीम ( जहाँगीर) से किया । जहाँगीर बादशाह बना तो उसने इस बेगम का नाम ‘मलिका-ए-जहाँ' रखा ।
मूलराज
- मूलराज ने अपने दिवान सालमसिंह के अत्याचारों से परेशान होकर 1818 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि कर अंग्रेजों का संरक्षण प्राप्त कर लिया ।
जवाहर सिंह भाटी
- जवाहर सिंह जैसलमेर का अंतिम शासक था जिसने शासन काल में स्वतन्त्रता सेनानी सागरमल गोपा को 3 अप्रैल, 1946 ई. को तेल झिड़क कर जेल में जिंदा जला दिया गया था ।
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