Rana Sanga History in Hindi | Mewar Vansh Part - 5

Rana Sanga History in Hindi  - नमस्कार दोस्तों ये पोस्ट Mewar Vansh के इतिहास का Part - 5 है इस पोस्ट में आप Rana Sanga History in Hindi, मेवाड़ के महान राजा Rana Sanga के बारे में जानकारी प्राप्त करोगे हमारी ये पोस्ट Rajasthan GK की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है जो की पटवारी राजस्थान पुलिस और rpsc में पूछा जाता है

Rana Sanga History in Hindi | Mewar Vansh Part - 5


Rana Sanga History in Hindi
Rana Sanga History in Hindi | Mewar Vansh Part - 5

राणा सांगा को हिन्दूपथ कहा जाता हैं । राणा सांगा का  राज्याभिषेक 24 मई 1509 ई. को हुआ ।
इस समय दिल्ली सल्लनत का राजा सिकन्दर लोदी गुजरात का महमुद बेगड़ा तथा मालवा का नसिरूद्दीन खिलजी था ।

राणा संग्राम सिंह (Rana Sanga)


महाराणा संग्राम सिंह सिसोदिया को आमतौर पर राणा सांगा के नाम से जाना जाता था, जो मेवाड़ के भारतीय शासक थे और 16 वीं शताब्दी के दौरान राजपूताना में एक शक्तिशाली राजपूत संघ के प्रमुख थे।


जन्म: 12 अप्रैल 1482, चित्तौड़गढ़
पूरा नाम: महाराणा संग्राम सिंह
माता - रतन कुँवर
पिता: राणा रायमल
पत्नी: रानी कर्णावती
हत्या: 30 जनवरी 1528, कालपी
बच्चे: उदय सिंह द्वितीय, भोज राज, रतन सिंह द्वितीय, विक्रमादित्य सिंह


राणा संग्राम सिंह का जन्म 12 अप्रैल 1482 ई. को हुआ । राणा संग्राम सिंह के पिता रायमल तथा माता रतन कुँवर थी । राणा सागा के शरीर पर 80 घाव थे ।
अत: कर्नल जेम्स टॉड ने राणा सांगा को सैनिकों का भग्नावेश कहा ।

कर्नल टॉड के अनुसार राणा सांगा की सेना में सात राजा, नौ राव ओर 104 सरदार उसकी सेवा में उपस्थित रहते थे ।


खातोली ( बूंदी ) का युद्ध

1517 ई. में राणा सांगा व इब्राहिम लोदी के बीच खातोली ( बूंदी ) का युद्ध हुआ । जिसमें राणा सांगा विजय हुआ ।

बाडी का युद्ध

1518 ई. में राणा सांगा व इब्राहिम लोदी के बीच बाडी का युद्ध ( धौलपुर ) हुआ । जिसमें राणा सांगा विजयी हुआ ।
बाडी के युद्ध में इब्राहिम लोदी ने मिया हुसैन तथा मिया माखन के नेतृत्व में सेना भेजी थी । 

मालवा के महमूद खिलजी द्वितीय को गद्दी पर बैठाने में एक राजपूत मेदिनी राय ने सहयोग किया था, जिसे महमूद खिलजी ने वजीर पद दिया, किन्तु मुस्लिम भाईयों के भड़काने पर उसे मालवा से निष्कासित कर दिया । मेदिनी राय राणा सांगा के पास आया राणा ने उसे गागरोन की जागीर दी ।

1519 ई. में मालवा के महमूद खलजी ने गागरोण पर आक्रमण कर दिया । अत: राणा सांगा ने मेदिनी राय की मदद हेतु गागरोत की लड़ाई में महसूद खलजी को हरा दिया तथा महमूद खलजी द्वितीय का कमरबन्द व ताज छीन लिया ।

पंजाब के दौलत खां व इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खाँ लोदी ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने हेतु आमंत्रित किया । 

बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी ( तुर्की भाषा ) मे उल्लेख किया है कि राणा सांगा की तरफ से सलहदी तँवर भारत पर आक्रमण का आमंत्रण लेकर आया, परंतु डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने इस बात का खंडन किया है ।

तुजुक-ए-बाबरी में बाबर ने कमल के फूल के बाग का वर्णन किया हैं, जो धीलपुर में है ।

पानीपत का प्रथम युद्ध (हरियाणा )


21 अप्रैल 1526 ई. में बाबर व इब्राहिम लोदी के बीच पानीपत का प्रथम युद्ध (हरियाणा ) हुआ जिसमें बाबर विजयी हुआ तथा भारत में मुगल वंश की नींव पडी

पानीपत के प्रथम युद्ध के बाद महमूद लोदी व हसन खां मेवाती दो अफगान सरदार सांगा के पक्ष में मिल गये ।

बयाना का युद्ध 


15 फरवरी 1527 ई. को राणा सांगा व बाबर के सेनापति मेहन्दी ख्वाजा के बीच बयाना का युद्ध ( भरतपुर ) हुआ । जिसमें राणा सांगा विजयी हुआ । 

इसी समय काबुल से आये एकज्योतिष मुहम्मद शरीफ ने बाबर की पराजय की भविष्यवाणी कर दी ।

खानवा का युद्ध


17 मार्च 1527 ई. को राणा सांगा व बाबर के बीच खानवा का युद्ध ( भरतपुर ) हुआ जिसमें मुगल शासक बाबर विजयी हुआ तथा खानवा के इस निर्णायक युद्ध के बाद मुस्लिम ( मुगल ) सत्ता की वास्तविक स्थापना हुई । 

खानवा स्थान फतेहपुर, सीकरी आगरा से 10 मील की दूरी पर स्थित है । खानवा रूपवास तहसील ( भरतपुर) मे स्थित है । खानवा गंभीर नदी के किनारे है ।

खानवा युद्ध के लिए राणा सांगा ने सभी राजपूत हिन्दूराजाओं को पत्र लिखकर युद्ध में आमंत्रित किया । राजपूतों में इस प्रथा को पाती परवण कहा जाता है ।

इस युद्ध में आमेर सेना का नेतृत्व पृथ्वीराज कच्छवाह, मारवाड़ के मालदेव, बूंदी के नारायण राव, सिरोही के अखैहराज देवड़ा, भरतपुर के अशोक परमार, बीकानेर के कल्याणमल, चंदेरी का मेदीनीराय, मेड़ता का वीरमदेव, बागड़ का उदयसिंह, गोगुन्दा का झाला सज्जा, सादडी का झाला अज्जा, डूंगरपुर का रावल उदयसिंह, सलूम्बर का रावल रतन सिंह ने किया ।

महमूद लोदी, हसन खां, मालदेव और मेदिनी राय खानवा के युद्ध में महाराणा सांगा के पक्ष में लडे थे ।
अशोक परमार की वीरता से प्रभावित होकर राणा सांगा ने अशोक परमार को बिजौलिया ठिकाना भेंट किया ।
अत: बिजौलिया ठिकाणा ( भीलवाडा ) का संस्थापक अशोक परमार था ।

राणा सांगा अन्तिम हिन्दू राजपूत राजा था, जिसके समय सारी हिन्दू राजपूत जातियाँ विदेशियों को बाहर निकालने के लिए एकजुट हो गई थी ।

खानवा युद्ध में चंद्रभान, भोपत राम, माणिक चंद, दलपत, रावत जग्गा, रावत बाघ, कर्मचंद, ईडर का भारमल आदि राजपूत सरदार मारे गये ।

खानवा के युद्ध में बाबर ने जेहाद ( धर्मयुद्ध ) का नारा दिया । युद्ध जीतने के बाद गाजी की उपाधि धारण की तथा मुसलमानों से लिया जाने वाला व्यापारिक कर तमगा कर माफ कर दिया ।

तुलगमा युद्ध पद्धति


खानवा के युद्ध में बाबर ने तोपखाने व तुलगमा युद्ध पद्धति का प्रयोग किया । यही उसकी जीत का कारण था ।
इस युद्ध मे बाबर के तोपखाने का नेतृत्व मुस्तफा और उस्ताद अली थे ।

खानवा के युद्ध में रायसीन के सिलहंदी तंवर व नागौर के खानजादा ने राणा सांगा के साथ विश्वासघात किया ।
खानवा के युद्ध में राणा सांगा की सेवा में हरावल सेना का नेतृत्व एकमात्र मुस्लिम सेनापति हसन खां मेवाती ने किया तथा युद्ध में मारा गया ।

इतिहासकार लेनपुल के अनुसार खानवा के युद्ध ने हिन्दुओं के महान संगठन को कुचल दिया ।

खानवा के युद्ध में झाला अज्जा ने सांगा का राज्य चिन्ह व मुकुट लेकर सांगा की सहायता की व अपना बलिदान दिया । झाला शासक कीर्तिगढ़ सिन्धु प्रदेश के मूल निवासी थे ।

खानवा युद्ध में घायल राणा सांगा को मालदेव द्वारा बसवा, दौसा पहुंचाया गया । होश आने पर युद्ध की जानकारी पाकर राणा सांगा निराश हुआ ।

अत: राणा सांगा को बसवा से रणथम्भौर ले जाया गया ।

बाबर ने खानवा युद्ध में भाग लेने वाले मेदिनी राय को परास्त करने हेतु चन्देरी की तरफ बढा, तो राणा सांगा भी 1528 ई. में मेदिनी राय की मदद करने हेतु रणथम्भौर से रवाना हुआ ।

राणा सांगा की मृत्यु 


राणा सांगा ने कालपी गॉव के पास इरिच गाँव में अपनी सेना का शिविर लगाया जहाँ राणा सांगा के ही युद्ध विरोधी सामंत राणा सांगा को जहर दे देते है और उसके युद्ध पक्षधारी सामंत उसे इलाज हेतु कालपी गांव लेकर जाते है । 

अत: कालपी, उत्तरप्रदेश में 30 जनवरी 1528 ई. को राणा सांगा की मृत्यु हो गई । 

राणा सांगा मध्यकालीन भारत का अंतिम हिंदूपंत (हिन्दुओं को एकजुट करने वाला ) राजा था ।

मांडलगढ़ - भीलवाडा ( अशोक परमार द्वारा निर्मित) में राणा सांगा की छतरी बनी हैं ।

बसवा-दौसा (आमेर के पृथ्वीराज कच्छचाहा के काल) में राणा सांगा का स्मारक बना है ।

भक्ति रस कवयित्री मीरांबाई मेवाड़ के राणा सांगा के पुत्र भोजराज की पत्नी थी 

मांडलगढ़ का नाहर नृत्य प्रसिद्ध है । जो भीलों की एक लघु नृत्य नाटिका है भीलों के अन्य नृत्य गवरी, गैर (केवल पुरूष भाग लेते है), नेजा (खेल नृत्य), हाथी मना (विवाह उत्सव पर ) आदि है ।

गवरी राजस्थान का सबसे प्राचीनतम लोकनाट्य है ।

रतनसिंह द्वितीय (1528-1531)


महाराणा साँगा की मृत्यु के बाद रतनसिंह द्वितीय जोधपुर की राजकुमारी व राणा साँगा की पटरानी धनबाई का पुत्र मेवाड़ की गद्दी पर बैठा ।

महाराणा रतनसिंह द्वितीय व इनका नजदीकी रिश्तेदार हाड़ा सूरजमल के मध्य आपस में मन-मुटाव हो गया, जिसके कारण बूंदी में अहेरिया उत्सव के दौरान 1531 ई  में सूरजमल हाडा और रतनसिंह द्वितीय आपस में लडते हुए मारे गए

विक्रमादित्य (1531-1536)


विक्रमादित्य व उदयसिंह महाराणा सांगा की पत्नी कर्मावती/कर्णावती की कोख से पैदा हुए थे 1533 ई में गुजरात के बहादुर शाह ने चितौड पर आक्रमण किया लेकिन कर्मावती ने कमरबन्द व राज्य चिन्ह देकर बाहदुरशाह से संधि की ।

चितौड का दूसरा साका


1534 ई में गुजरात के बहादुरशाह ने चितौड पर पुन: आक्रमण किया । इसे चितौड का दूसरा साका कहते हैं ।
चितौड के दूसरे साके में कर्मावती व विक्रमादित्य की पत्नी जवाहर बाई ने 13 हजार रानियों के साथ जोहर किया ( यह इतिहास का सबसे बड़ा जोहर था ) तथा बाघ सिंह के नेतृत्व में केसरिया हुआ । 

बाध सिंह की छतरी चितीड़गढ दुर्ग में बनी है ।

बहादुरशाह ने किले पर अधिकार कर लिया ।

गुजरात के सुल्तान बहादूर शाह के दूसरे आक्रमण के समय रानी कर्णावती ने मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजी थी, लेकिन हुमायूं ने मेवाड़ की सही समय पर मदद नहीं की

1535 ई. में हुमायूं के चितौड़ आने का समाचार बहादुरशाह को मिला तो बहादुरशाह मेवाड से फारस भागने की तैयारी करता है और कैम्बे की खाड़ी में नाव पलटने से समुद्री रास्ते मे ही बहादुरशाह की मृत्यु हो जाती है ।

मेवाडी सामंतों ने 6 मार्च, 1536 ई. को बुंदी शासकों के सहयोग से पुन: विक्रमादित्य को मेवाड की गद्दी पर बैठाया ।

पृथ्वीराज सिसोदिया की दासी पुतल दे के पुत्र बनवीर ( 1536-154० ई. ) ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर दी और मेवाड का शासक बनाया ।

कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार क्या यह अच्छा नहीं रहता, यदि राणा विक्रमादित्य मेवाड कुल में पैदा न हुआ होता ।

बनवीर (1536-1540 ई.)

विक्रमादित्य की हत्या का राणा रायमल के पुत्र पृथ्वीराज का अनौरस पुत्र बनवीर शासक बन बैठा । 

बनवीर उदयसिंह की हत्या करना चाहता था लेकिन उसकी धाय माँ पन्ना ने उदयसिंह की जगह अपने बेटे चन्दन का बलिदान दिया जो स्वामी भक्ति का अद्वितीय उदाहरण है ।

पन्नाधाय कुछ सरदारों के सहयोग से उदयसिंह को चितौड़ से निकालकर कुंभलगढ़ ले गयी वहाँ के किलेदार आशा देवपुरा ने उन्हें अपने पास रखा ।

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