Chakrawat aur Prti Chakrvat - वाताग्रजनन, चक्रवात एवं प्रतिचक्रवात

Chakrawat aur Prti Chakrvat - इस पोस्ट में हम वाताग्रजनन, चक्रवात एवं प्रतिचक्रवात उनसे सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ये पोस्ट समान्य ज्ञान की दृस्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है ये नोट्स आगामी प्रतियोगिता परीक्षा के लिए उपयोगी है

वाताग्रजनन, चक्रवात एवं प्रतिचक्रवात (Frontogenesis, Cyclones & Anticyclones)

Chakrawat aur Prti Chakrvat -  वाताग्रजनन, चक्रवात एवं प्रतिचक्रवात
वाताग्रजनन, चक्रवात एवं प्रतिचक्रवात


वाताग्र -  तापमान, गति, दिशा, आर्द्रता, घनत्व आदि के संदर्भ में दो विपरीत गुणों वाली वायु राशियों के बीच ढलुआ सतह को वाताग्र कहते हैं। वाताग्र का ढाल पृथ्वी को अक्षीय गति पर आधारित होता है। वाताग्र के प्रकार 1. उष्ण 2. शीत 3. अधिविष्ट 4. स्थायी

डब्ल्यू कोल -  इन्होंने सर्वप्रथम 1918 में वाताग्र की संकल्पना का प्रतिपादन किया
कोरियोलिस बल -1844 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक जी. डी. कोरियोलिस द्वारा प्रतिपादित

इस बल के प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से दाईं तरफ व दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं तरफ विक्षेपित होती हैं। कोरियोलिस बल अक्षाशों के कोण के सीधा समानुपाती होता है यह बल धुवों पर सर्वाधिक और विषुवत वृत्त पर शून्य होता है।

अंबरक्रोम्बो -1887 में इन्होंने 'वेदर' पुस्तक की रचना की जिसमें चक्रवातों की उत्पत्ति के सिद्धांतों के संबंध में नई दिशा प्रदान की। चक्रवातों के गतिशील होने वाले मार्ग को झंझापथ कहा जाता है।

चक्रवात (वायुमंडलीय विक्षोभ)

चक्रवात - निम्न दाब के केन्द्र होते हैं जिनके चारों तरफ सकेन्द्रीय समवायुदाब रेखाएँ विस्तृत होती हैं तथा केन्द्र से बाहर की ओर वायुदाब बढ़ता जाता है। इसके परिणामस्वरूप परिधि से केन्द्र की ओर हवाएँ चलने लगती हैं जिनकी दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के विपरीत तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अनुकूल होती है। इसमें समभारिक रेखाएँ संकेन्द्रीय होती हैं। चक्रवातों का आकार प्रायः गोलाकार, अंडाकार या V अक्षर के समान होता है।

Eye of the eyelone - चक्रवात के केन्द्र में स्थित अत्यंत कम वायुदाब का क्षेत्र । 

  • केन्द्र की ओर निम्न वायुदाब 
  • बाहर की ओर उच्च वायुदाब 

चक्रवात की विशेषताएँ

  1. मेघ व वर्षा चक्रवात के विशिष्ट गुण हैं।
  2. यह सदैव स्थायी पवनों की दिशा में बहते हैं। शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात पछुआ पवनों की तथा उष्णकटिबंधीय
  3. चक्रवात संमार्गी एवं मानसून पवनों की दिशा में प्रवाहित होते हैं।
  4. चक्रवातों का वेग वायु भार की तीव्रता और न्यूनता पर निर्भर करता है। 
  5. हवाओं की गति समदाब रेखाओं के फैलाव और प्रवणता पर निर्भर करती है।
  6. चक्रवात से वर्षा उसके अग्र भागों द्वारा होती है।
  7. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात अत्यधिक विनाशकारी होते हैं और ताप विनिमय में सहायक होते हैं।

चक्रवात के प्रकार-

1. शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात 2. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात

1. शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात

फिटजरायु- इनके द्वारा 1863 में सर्वप्रथम शीतोष्ण चक्रवातों की उत्पत्ति की खोज की गई। 

सिद्धांत- शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति की व्याख्या के लिए 2 सिद्धांत हैं- 1. संवइन तरंग सिद्धांत 2. भंवर सिद्धांत

ध्रुवीय वाताग्र सिद्धांत (बर्जेन सिद्धांत) - नॉर्वे के ऋतु विज्ञानी वी. बर्कनीज तथा जे. बर्कनीज ने शीतोष्ण कटिबंधी चक्रवातों की उत्पत्ति हेतु 1918 में इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया। 

चक्रवात का जीवन चक्र- 

शीतोष्ण कटिबंधी चक्रवातों के वाताग्रजनन से लेकर उसके अवसान तक का समय। इन चक्रवातों को वाताग्रीय, तरंग, द्रोणी, लहर, पश्चिमी विक्षोभ ( भारत में) कहते हैं। 

मध्य अक्षांशों में निर्मित वायु विक्षोभों के केन्द्र में कम दाब तथा बाहर की ओर अधिक दाब होता है। इसी कारण इन्हें लो, गर्त या टूफ कहा जाता है। इनका क्षेत्र 35° - 65° अक्षांशों के बीच दोनों गोलाद्धों में पाया जाता है। इनका प्रवाह मुख्य रूप से पश्चिम से पूर्व की ओर पछुआ हवाओं के साथ होता है।

इनके द्वारा कपासी वर्षामेघ का निर्माण होता है और मूसलाधार वर्षा होती है, इनके द्वारा की गई वर्षा समान रूप से वितरित नहीं होती है। इनका प्रभाव ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात से चार गुना अधिक होता है एवं बारंबारता अधिक होती है।

प्रकार

(1) चक्रवात (ii) तापीय चक्रवात, (iii) गौण (उप) चक्रवात 

एक आदर्श शीतोष्ण चक्रवात का दीर्घ व्यास 1920 किमी. (1200 मील) तथा लघु व्यास 1040 किमी.(650 मील) होता है।

  1. गर्मियों में इनकी औसत गति 32 किमी. प्रति घंटा होती है परंतु सर्दियों में यह बढ़कर 48 किमी. प्रति घंटा हो जाती है। 
  2. दो विपरीत तापमान वाली वायु राशियों से निर्मित शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात के विभिन्न भागों में तापमान भित्र भिन्न होता है। चक्रवात के दक्षिणी भाग में गर्म हवाएँ होती हैं, अतः वहाँ पर अधिक तापमान होता है।
  3. चक्रवात का तापमान मुख्य रूप से वायुराशियों के गुण, मौसम तथा हवा में नमी की मात्रा पर आधारित होता है। 
  4. ये स्थल व सागर दोनों पर पाये जाते हैं।
  5. इनमें प्राय: दो वाताग्र बनते हैं। इनमें वायु वेग बहुत तीव्र नहीं होता है।
  6. ये शीत ऋतु में अधिक उत्पन्न होते हैं। वायुदाब प्रवणता कम होती है।

2. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात

कर्क तथा मकर रेखाओं के मध्य उत्पन्न चक्रवातों को उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहा जाता है। ये आयनवर्ती क्षेत्रों (30° उत्तरी- 30° दक्षिणी अक्षांश) में उत्पन्न चक्रवात होते हैं, जो एक गर्म आवर्त चक्रवात है। इसे विश्व के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है

क्षेत्र

चक्रवात

अटलांटिक और पूर्वी प्रशांत क्षेत्र

हरिकेन

पश्चिमी प्रशांत और चीन सागर

टायफून

ऑस्ट्रेलिया के निकटवर्ती सागर

विली विली

हिन्द महासागर

साइक्लोन

फिलीपींस

बागियो

बांग्लादेश तथा भारत

चक्रवात


  1. ये 27° तापमान होने पर उपस्थित होते हैं।
  2. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात विषुवत रेखा पर निर्मित नहीं होते। 
  3. उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का जन्म व्यापारिक हवाओं के क्षेत्र में होता है। ये पूर्व से पश्चिम की ओर
  4. अग्रसर होते हैं।
  5. इनकी गति 150 किमी. प्रति घंटे तक हो सकती है। इनमें आँख संरचना पाई जाती है।
  6. इनका जन्म बैरोट्रोफिक वायुमंडल में होता है एवं इनके पीछे कोई प्रतिचक्रवात नहीं होता।
  7. इनकी अधिकतम सक्रियता ग्रीष्म ऋतु के अन्तिम दिनों में तथा शीत ऋतु के आरंभ में होती है।
  8.  उष्ण कटिबंधीय चक्रवात वर्षा वलयाकार आकृति में करते हैं।
  9. इन चक्रवातों की उत्पत्ति हेतु कोरियोलिस बल का होना आवश्यक है। 
  10. भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5-8° अक्षांशों तक के क्षेत्रों में उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का प्रायः अभाव होता है।
  11. अधिकांश उष्णकटिबंधीय चक्रवात 5-30° अक्षांशों की चौड़ी पट्टी में महासागरों के पश्चिमी भागों में उत्पन्न होते हैं। ये प्रायः जल पर ही उत्पन्न होते हैं।
  12. उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का व्यास 80-300 किमी. तक का होता है।
  13. ये विभिन्न गति (साधारण से प्रचंड) से आगे बढ़ते हैं। इनकी समदाब रेखाएँ गोलाकार होती हैं।
  14. ये चक्रवात सागरों के ऊपर तेज चलते हैं, परंतु स्थलों पर पहुँचते-पहुँचते हल्के हो जाते हैं तथा आंतरिक भागों में पहुंचने से पहले ही समाप्त हो जाते हैं। इसी कारण ये महाद्वीपों के तटीय भागों को अधिक प्रभावित करते हैं।
  15. वायु वेग तीव्र होता है (120 किमी प्रति घंटा)। इस प्रकार के चक्रवातों में विभिन्न याताग्र नहीं ताप भिन्नता नहीं पाई जाती।
  16. ये अत्यंत विनाशकारी होते हैं। इनसे सन् 1970 में बांग्लादेश में लाखों मौतें हुई। 
  17. ये अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी में गर्मियों में विकसित होते हैं।

हरिकेन -  

इनमें केन्द्र का दाब 900 से 950 mb होता है, संभवत: चक्रवातों में यह न्यूनतम दाब होता है। केन्द्र तथा परिधि की समदाब रेखाओं के मान में 10-55mp का अंतर होने से दाब प्रवणता अधिक जाती है, जिस कारण परिधि से हवाएँ केन्द्र की ओर तेजी से चलती हैं। 

  1. हरिकेन का चक्षु (आँख)-हरिकेन के केन्द्र में 6-48 किमी. तक का ऐसा क्षेत्र जहाँ पर हवाएँ शांत होती हैं तथा वर्षा नहीं होती।
  2. हरिकेन में मूसलाधार वर्षा होती है तथा उसका वितरण सर्वत्र समान होता है, तापमान संबंधी अंतर नहीं पाया जाता। 
  3. हरिकेन में विपरीत स्वभाव वाली वायु राशियाँ नहीं पाई जातीं। हरिकेन में वायु दिशा में परिवर्तन नहीं होता।
  4. हरिकेन की दिशा शीतोष्ण चक्रवातों के विपरीत पूर्व से पश्चिम होती है। हरिकेन के साथ प्रति चक्रवात नहीं आते।

प्रति चक्रवात (मौसम रहित परिघटना )

चक्रवात के विपरीत दशाओं एवं विशेषताओं वाले वायु परिसंचरण तंत्र को प्रति चक्रवात कहते हैं। वायु की अपसारी तथा अभिसारी क्रियाएँ होने से प्रति चक्रवात उत्पन्न होते हैं।

एफ. गाल्टन ने उच्च वायुदाब वाले, केन्द्र से बाहर की ओर चारों दिशाओं में चलने वाली अपसारी वायु परिसंचरण के लिए (anticyclone) प्रति चक्रवात शब्द का प्रयोग किया। 

प्रति चक्रवात वृत्ताकार समदाब रेखाओं द्वारा घिरा हुआ वायु का एक ऐसा क्रम है जिसके केन्द्र में वायु दाब उच्चतम होता है तथा बाहर की ओर घटता जाता है जिस कारण हवाएँ केन्द्र से परिधि की ओर चलती हैं।

प्रति चक्रवात उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब क्षेत्रों में अधिक उत्पन्न होते हैं। भूमध्य रेखीय भागों में इनका सर्वथा अभाव होता है। प्रति चक्रवातों में उत्तरी गोलार्द्ध में हवाएँ घड़ी की सूइयों के अनुकूल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में प्रतिकूल दिशा में प्रवाहित होती हैं।

प्रति चक्रवात के केन्द्र उपोष्ण कटिबंधीय महासागर के पूर्वी किनारों पर होते हैं। इसी कारण उपोष्ण कटिबंध के पश्चिमी किनारों पर मरुस्थल पाये जाते हैं। इसके तीन प्रकार होते हैं 

  1. शीतल प्रति चक्रवात -  इनकी उत्पत्ति आर्कटिक महासागर में होती है।
  2. उष्ण प्रति चक्रवात - ये मुख्यतः दक्षिणी पूर्वी अमेरिका तथा पश्चिमी यूरोप को अधिक प्रभावित करते हैं। हवाओं के अपसरण द्वारा उत्पन्न होने के कारण इन्हें गतिक (यांत्रिक) प्रति चक्रवात भी कहा जाता है।
  3. अवरोधी प्रति चक्रवात- वायु प्रवाह की स्वतंत्रता में अवरोध उत्पन्न होने से इन प्रति चक्रवातों का निर्माण होता है।

विशेषताएं 

  1. प्रति चक्रवातों का आकार प्रायः गोलाकार होता है।कभी-कभी ये V आकार में भी मिलते हैं। 
  2. केन्द्र में वायुदाब अधिकतम होता है। इनमें वायुदाब प्रवणता निम्न होती है।
  3. प्रति चक्रवात प्रति घंटे 30-35 किमी. की चाल से आगे बढ़ते हैं।
  4. प्रति चक्रवात का तापमान, मौसम, वायु राशि के स्वभाव तथा आर्द्रता पर आधारित होता है।
  5. इनका मार्ग एवं दिशा अनिश्चित होती है। प्रति चक्रवात में वाताग्र नहीं बनते हैं।

टॉरनैडो

ये छलनी की आकृति वाले प्रचंड स्थानीय तूफान हैं जो सर्वाधिक भयंकर, विनाशकारी तथा विस्फोटक होते हैं इनका उपरी भाग छतरीनुमा तथा मध्य एवं निचला हिस्सा पाइप जैसा होता है जो धरातलीय सतह को स्पर्श करते रहते हैं।

  1. टॉरनेडो अत्यंत उग्र रूप से घूमती हुई वायु के स्तम्भ होते हैं जिनका ऊपरी भाग कपासी वर्षा वाले बादलों द्वारा आच्छादित होता है।
  2. ठलेखे आकार की दृष्टि से सभी वायुमंडलीय तूफानों में सबसे छोटा होता है परंतु प्रभाव की दृष्टि से सर्वाधिक प्रलयकारी होता है।
  3. टॉरलैंडो मुख्यत: संयुक्त राज्य अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया में उत्पन्न होता है । 
  4. ध्रुवीय क्षेत्रों को छोड़कर टॉरनेडो का विकास विश्व के किसी भी भाग में हो सकता है।
  5. टॉरनेडो की सर्वाधिक आवृत्ति तीन महीनों अप्रैल, मई तथा जून में होती है।
  6. टॉरनेडो सामान्य रूप से 40-60 किमी प्रति घंटे की चाल से आगे बढ़ते हैं। इनके द्वारा तय किये गये मार्ग की औसत लम्बाई 40-50 किमी. तक होती है।
  7. इनका जीवन काल 15-20 मिनट का होता है। ये देखने में अत्यंत भूरे या काले रंग के होते हैं।

वाताग्रजनन, चक्रवात एवं प्रतिचक्रवात FAQ

Q 1 चक्रवात से क्या समझते हैं ?
Ans - कम वायुमंडलीय दवाब के चारों ओर गर्म हवा की तेज आंधी को चक्रवात कहते हैं. दक्षिणी गोलार्ध में इन गर्म हवा को चक्रवात के नाम से जानते हैं और ये घड़ी की सुई के साथ चलते हैं. उत्तरी गोलार्ध में इन गर्म हवा को हरीकेन या टाइफून कहते हैं
Q 2 चक्रवात के क्या कारण है?
Ans - जब हवा गर्म हो जाती है तो हल्की हो जाती है और ऊपर उठने लगती है. जब समुद्र का पानी गर्म होता है तो इसके ऊपर मौजूद हवा भी गर्म हो जाती है और ऊपर उठने लगती है. इस जगह पर निम्न दाब का क्षेत्र बनने लग जाता है. आस पास मौजूद ठंडी हवा इस निम्न दाब वाले क्षेत्र को भरने के लिए इस तरफ बढ़ने लगती है.
Q 3 चक्रवात और प्रति चक्रवात क्या है?
Ans - चक्रवात एवं प्रतिचक्रवात (Cyclone and Anticyclone) | स्थायी वायुदावं की पेटियों में स्थायी पवनें प्रवाहित होती हैं। इन्हीं स्थायी पवनों के क्षेत्र में ही चक्रवात, प्रतिचक्रवात, तड़ित झंझा आदि उत्पन्न होते हैं। वायुमण्डल की इन्हीं परिघटनाओं को द्वितीयक परिसंचरण की संज्ञा दी जाती हैं।

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