Bairath Civilization in Rajasthan - बैराठ सभ्यता

बैराठ राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 85 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। इसका नाम प्राचीन ग्रंथों में विराटपुर के रूप में मिलता है। राजस्थान राज्य के उत्तर-पूर्व में जयपुर जिले का विराट नगर या बैराठ कस्बा एक तहसील मुख्यालय है, जो  शाहपुरा उपखण्ड ( जयपुर ) में स्थित है । बैराठ बाणगंगा नदी के किनारे अवस्थित है।

Bairath Civilization in Rajasthan - बैराठ सभ्यता

बैराठ सभ्यता
Bairath Civilization in Rajasthan - बैराठ सभ्यता

  • बैराठ प्राचीन काल में मत्स्य जनपद की राजधानी थी । ( RPSC-2010 )
  • पर्वतीय कंदराओं, गुफाओं एवं वन्यप्राणियों वाला यह बैराठ क्षेत्र प्रागैतिहासिक मानव के आकर्षण का केन्द्र था।
  • महाभारत काल के पांडवों ने अज्ञातवास का अंतिम वर्ष छद्मवेश में विराट नगर के राजा विराट की सेवा में व्यतीत किया । (पटवार-2011 )
  • बैराठ सभ्यता की सर्वप्रथम खोज व उत्खनन कार्य 1936-37 ई. में दयाराम साहनी द्वारा किया गया ।
  • बैराठ का उत्खनन 1962 ई. में कैलाश दीक्षित व नील रतन बनर्जी ने किया ।
  • महाराजा रामसिंह के शासनकाल में किलेदार किताजी खंगारोत ने उत्खनन के दौरान स्वर्ण मंजूषा ( कलश ), जिसमें भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेष प्राप्त हुए ।
  • बैराठ से प्रागैतिहासिक काल के अवशेष, मौर्यकालीन अवशेष, मध्यकालीन अवशेष मिलते है ।
  • विराट नगर की पहाडियों में गणेश डूंगरी, बीजक डूंगरी तथा भीम डूंगरी पर इस सभ्यता का फैलाव है । ( महिला सुपरवाइजर -2016 )
  • बैराठ स्थल से प्रागैतिहासिक काल के मानव के अवशेष मिले है विराट नगर में प्रागैतिहासिककालीन( पाषाणकाल ) हथियारों के निर्माण का एक बडा कारखाना मिला है ।
  • प्रागैतिहासिक काल के मानव ने पेबुलटूल प्रकार के पाषाणों का प्रयोग किया था । जिसके अवशेष बैराठ से मिलते है । इस प्रकार के उपकरण इस क्षेत्र में स्थित ढिंगारिया एवं भानगढ़ से प्रात हुए है । इस काल का मानव पूर्णत: प्रकृतिजीवी था ।
  • बैराठ से 1990 ई. में गणेश, बीजक व भीम डूंगरी से चित्रित शैलाश्रयों ( राज पुलिस 2014 ) की खोज की गई ।
  • यह चित्रांकन लघुपाषाणयुग से प्रारंभ होकर दीर्घकाल तक चलता रहा ।
  • बैराठ से ताम्रयुग के मृदभाण्डों का निर्माण चाक द्वारा किया जाता था । ये पात्र 'आकर कलर पात्र ' परम्परा के नाम से जाने जाते है । इन पात्रों को हाथ लगाने से सिन्दूर या गेरूआं रंग लगने लगता है । इन मृदभाण्डों पर उंकेरण विधि द्वारा अलंकरण किया जाता था और ऐसे मृदभाण्ड जोधपुरा ( जयपुर ) एवं गणेश्वर ( सीकर ) के उत्खनन से भी प्राप्त हुए है ।

आर. सी. अग्रवाल के अनुसार - बैराठवासी अपने ताम्र उपकरणों को तत्कालीन सैंधव केंद्रों को निर्यात किया करते थे ।
  • बैराठ से लोहयुगीन मृदभाण्ड ( NBPW -Northern Black Polished Ware ) उत्तरी काले चमकदार मृदभाण्ड परम्परा के अवशेष प्राप्त हुए है ।
  • बैराठ से लोहयुगीन सलेटी रंग के चित्रित पात्र प्राप्त हुए हैं, जो गंगा घाटी के समकालीन प्रचलित मृदभाण्नडों के समान थे ।

अशोक का भाब्रू शिलालेख


  • बैराठ की बीजक पहाडी ( आर पी एस सी-2010 ) से 1837 ई. में कैप्टन बर्ट ने सम्राट अशोक के भाब्रू शिलालेख की खोज की । ( पटवार-2011 , काँलेज व्याख्याता, सामान्य ज्ञान -2016 )
  • भाब्रू शिलालेख अशोक को बुद्ध व बौद्ध धर्म में आस्था का अभिलेखीय स्रोत है । भाब्रू शिलालेख पत्थर के पहिये पर ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण है ।
  • इस शिलालेख पर 'बुद्ध ,धम्म व संघ' का उल्लेख है ।
  • भाब्रू शिलालेख में अशोक को मगध का राजा कहा गया है ।
  • भाब्रू शिलालेख को चट्टान से काटकर 1840 ई. में कलकत्ता के संग्रहालय में रखवा दिया गया । संग्रहालय का वर्तमान नाम रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल, कलकत्ता संग्रहालय है ।

नोट - विराट नगर या बैराठ में स्थित भीम की डूंगरी पर कींचक नामक राक्षस रहता था, जिसका भीम ने वध किया । बैराठ में कौरवों के पदचिह्न मिले है, वे यहाँ राजा विराट की गाय चोरी करने के लिए आए थे ।

शंख लिपि बैराठ 

  • बैराठ की भीम डूंगरी से सी एल. कार्लाइल ने 1871 ई. में शंख लिपि से उत्कीर्ण शिलालेख की खोज की ।
  • शंख लिपि - ब्राह्मी लिपि को अत्याधिक अलंकृत करके गुप्त रूप प्रदान करना कूटलिपि/गुप्तलिपि/शंखलिपि कहा जाता है ।

ह्वेनसांग की बैराठ यात्रा

  • चीनी यात्री ह्वेनसांग सम्राट हर्षवर्धन के काल में भारत आया था ।
  • ह्वेनसांग ने 634 ई. में बैराठ की यात्रा का उल्लेख करता है । उसने बैराठ का क्षेत्र लगभग ढाई मील बताया था । ह्वेनसांग बैराठ में आठ बौद्ध मठों का उल्लेख करता है । ( ग्रेड द्वितीय-2015 )
  • ह्वेनसांग ने बैराठ के लिए पारयात्र शब्द का उल्लेख करता है ।

बैराठ से मिली वस्तुएँ 

  • virat sabhyata की बीजक पहाडी से मौर्यकालीन बोद्ध विहार ( मंदिर ), स्तूप (हीनयान शाखा) तथा बुद्ध की मथुरा शैली में बनी हुई मूर्ति के अवशेष मिले है । ये बौद्ध विहार भारत में सर्वप्रथम मंदिर के प्राचीनतम अवशेष को दशति है ।
  • बैराठ में एक खण्डहर मिला है जिसमें 67 छोटे कमरे बने हुए है ।
  • बैराठ में 36 मुद्राएं सूती कपडे में बंधी हुई मिली है । जिसमें आठ पंच मार्क, चाँदी को मुद्राएं, 28 इण्डो ग्रीक/हिन्द यूनानी, जिसमें से 16 यूनानी राजा मिनेण्डर की है । ( कॉलेज व्याख्याता, इतिहास-20 16 ) 
  • यहां पर सूती कपडा हाथ से बना हुआ मिला है

बैराठ का विनाश कैसे हुआ 

  • प्रवृत्तिकाल में बैराठ के विनाश के अवशेष मिलते है, क्योंकि स्तंभ , छंत्र, स्तूप आदि के हजारों टुकड़े प्राप्त हुए है ।
  • दयाराम साहनी के मतानुसार यह विनाश लीला हूण शासक मिहिरकुल द्वारा की गई । हुण शासक मिहिरकुल ने छठी शताब्दी ईस्वी के प्रारंभिक काल में पश्चिमोत्तर भारतीय क्षेत्र में 15 वर्षो तक शासन किया था ।
  • चीनी यात्री ह्वेनसांग अपने विवरण में लिखता है कि मिहिरकुल ने पश्चिमोत्तर भारत में 1600 स्तूपों और बौद्ध विहारों को ध्वस्त किया तथा नौ कोटि बौद्ध उपासकों का वध किया । संभवत: इस विनाशकाल में ही बौद्ध धर्मानुयायियों ने कुटलिपि ( गुप्तलिपि ) का इन पहाडियों के शैलाश्रयों में प्रयोग किया था । इसका लाल रंग से 200 से अधिक शिलाखण्डों की सतहों पर अवशेष प्राप्त होता है ।

बैराठ सभ्यता के अन्य विशेषता

  • बैराठ मे मौर्यकाल के अलावा मध्यकाल के अवशेष मिलते है ।
  • वर्तमान विराट नगरी 16वी शताब्दी में बसी, उस समय यहाँ से ताम्बा निकाला जाता था ।
  • बैराठ के मध्य में अकबर ने एक टकसाल खोली जिसमें अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ के समय में ताम्बे के सिक्के ढाले जाते थे । 
  • इतिहासकार महावीर प्रसाद शर्मा ने अपनी पुस्तक तोरावाटी का इतिहास मे चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म स्थान बैराठ बताया है । परंतु यह बौद्ध ग्रंथों के आधार पर प्रमाणित नहीं होता । 

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