Aahad Sabhyata Udaipur in Hindi - आहड़ सभ्यता

राजस्थान की प्राचीन सभ्यता आहड़ के बारे में पूरी जानकारी आप को इस पोस्ट में मिल जाये गी यह पोस्ट कॉम्पीशन एग्जाम को ध्यान में रखा कर बनाई गयी है  

आहड़ सभ्यता

Aahad Sabhyata Udaipur in Hindi - आहड़ सभ्यता
Aahad Sabhyata Udaipur in Hindi - आहड़ सभ्यता

  • आहड़ उदयपुर नगर/ मेवाड़ क्षेत्र ( ग्रेड द्वितीय-2015 ,ग्रेड तृतीय 2013 ) के पूर्व में बहने वाली आयड़/बेड़च नदी के तट पर स्थित है । 
  • आहड़ को प्राचीनकाल में ताम्बवती/ताम्रवती के नाम से जाना जाता था । ( आर पी एस सी-2010 ) 
  • 10 वीं व 11वीं शताब्दी में आहड़ को अघाटपुर या अघाटदुर्ग भी कहा जाता था ।
  • वर्त्तमान में आहड़ के स्थानीय लोग इसे धूलकोट के नाम से जानते हैं । ( जेईएन, मैकेनिकल, डिप्लोमा-2०16 )

आहड़ संस्कृति की मुख्य विशेषताएं

  • कालीबंगा सभ्यता नगरीय सभ्यता थी, आहड़ सभ्यता ग्रामीण संस्कृति की सभ्यता है ।
  • आहड़ के उत्खनित स्थल को महासत्तियों का टीला कहा जाता है ।
  • बनास संस्कृति आहड़ स्थल से संबंधित है ।
  • आहड़ को मेवाड के महाराणाओं का शमशान भी कहते है
  • आहड़ सभ्यता की खोज 1953 ई. में पं. अक्षय कीर्ति व्यास द्वारा तथा सर्वप्रथम लघु स्तर पर उत्खनन भी पं॰ अक्षय कीर्ति व्यास द्वारा किया गया । इसके पक्षात् 1954-56 ई. में धूलकोट टीले का उत्खनन व्यापक स्तर पर रत्तनचंद्र अग्रवाल द्वारा किया गया । तत्पश्चात् आहड़ का उत्खनन 1961 -62 ई. में बी.एन॰ मिश्रा व एच डी. सांकलिया ( पूना विश्वविद्यालय ) द्वारा किया गया  ( आरपी एस सी-2011 )

आहड़ सभ्यता का काल

  • डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने आहड़ सभ्यता का काल 1900 ई.पू. से 1200 ई. पूर्व  माना है ।
  • कार्बन-14 वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार आहड़ सभ्यता का काल 2000 ई. पू. से 1200 ई. पू. के मध्य माना जाता है तथा बर्तन व मृदभांड के डिजाईन के आधार पर 2000 ई. पू. से 1000 ई. पू. के काल में आहड़वासियों का सम्बन्ध ईरान से था ।

आहड़ सभ्यता के स्तर 

  • आहड़ के उत्खनन के दौरान 8 स्तर मिले है, जिन्हें पुरातात्विक सामग्री के आधार पर 3 चरणों में बांटा गया है
  1. स्फटिक पत्थरों के प्रयोग व औजार व उपकरण के आधार पर ।
  2. ताम्र , कांस्य व लोहे के उपकरण के आधार पर ।
  3. मृदभांड से संबंधित सामग्री तथा मिट्टी व काले मुलायम पत्थर से निर्मित भवनों के आधार पर ।

आहड़ सभ्यता से प्राप्त वस्तुएँ 

  • आहड़ संस्कृति पूर्णत: ग्रामीण संस्कृति थी । यहाँ के निवासी भवन निर्माण के दौरान नींव मे पत्थर डालकर भवनों का निर्माण करते थे । 
  • आहड़ से 45 फुट लम्बे भवन के अवशेष प्राप्त हुए है । 
  • मकानों में औसतन 2 या 3 चूल्हे मिले है । 
  • एक मकान में 6 चूल्हे मिले है, जिनमें एक पर मानव हथेली की छाप है । 
  • आहड़ के भवनों की रसोई में अनेक सिलबट्टे प्राप्त हुए है और आहड़ के एक भवन से 4 × 3 फुट का सिलबट्टा प्राप्त हुआ है । 
  • आहड़ सभ्यता लाल व काले मृदभांड (RBW) वाली संस्कृति का महत्वपूर्ण केन्द्र था ।
  • aahad sabhyata के मृदभाण्ड उल्टी तपाई विधि से पकाये जाने के कारण विशिष्ट रंग के बन जाते थे । इस विधि को विज्ञान की भाषा मे क्रमशः अपचयन की स्थिति में जलन ऑक्सीकरण की स्थिति में जलन कहा जाता है 
  • आहड़ के उत्खनन के दौरान अनाज रखने के मृदभाण्ड मिले है, जिन्हें स्थानीय भाषा में गोरे व कोंठ कहा जाता है ।
  • टेराकोटा/ मृणमूर्ति कोई भी कलाकृति जो मिट्टी से निर्मित हो तथा अग्नि से पक्का ली गई हो उसे मृणमूर्ति कहा जाता था
  • आहड़ के उत्खनन में चार मानव मृणमूर्तियाँ प्राप्त हुई है ।
  • aahad sabhyata से नारी की खण्डित मृणमूर्ति मिली है । जो कमर के नीचे लहंगा धारण किये हुए है ।
  • आहड़ की मृणमूर्तियों में हाथी, घोड़े व बैलगाड़ी के पहियों की मृणमूर्तियाँ मुख्य रूप से मिली है ।
  • आहड़ से मिली बैल की मृणमूर्ति को 'बनासियन बुल्स टेराकोटा की संज्ञा दी गई है ।
  • इन मृणमूर्तियों में कार्नेलियन, क्रिस्टल, फेन्यास, जैस्पर,सेलखडी तथा लेपिस लाजूली जैसे कीमती उपकरणों का प्रयोग किया जाता था ।
  • आहड़ की खुदाई में 6 तांबे की मुद्राएं और 3 मुहरें मिली है ।
  • एक मुद्रा पर त्रिशुल खुदा है, जिसकी दूसरी तरफ यूनानी शासक अपोलो के हाथ में तीर व तरकश है । मुद्रा के किनारों पर यूनानी भाषा में लेख है, जिसके आधार पर यह दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व का माना गया है ।

आहड़ सभ्यता की अन्य प्रमुख विशेषता

  • आहड़ संस्कृति के निवासी ताम्र उपकरणों का निर्माण करना जानते थे और हड़प्पा संस्कृति और गंगा घाटी की ताम्र निधि संस्कृति के अतिरिक्त आहड़ संस्कृति के पुरास्थलों से ही सर्वाधिक मात्रा मे ताम्र उपकरण प्राप्त हुए है ।
  • आहड़ क्षेत्र में लगभग 40 ताँबे की खदानें है जहाँ वर्तमान में भी खुदाई कर ताँबा खनिज निकाला जाता है ।
  • आर सी. अग्रवाल ने आहड़ से 12 किमी. दूर मतून एवं उमरा नामक स्थलों पर ताम्र शोधन के साक्ष्य प्राप्त किए है ।
  • आहड़ से ताम्र कुल्हाडी तथा आयताकार , सपाट व अर्द्धचन्द्राकार उपकरण प्राप्त हुए है तथा ताँबा गलाने की भट्टी भी मिली है ।
  • आहड़ से 79 लोहे के उपकरण, कुल्हाड़ी चाकू,कील आदि प्राप्त हुए है । इसलिए माना जाता है कि आहड़ क्षेत्र में लौह युग का प्रवेश हो चुका था ।
  • आहड़ से अवतल चक्की/आटा पीसने की चक्की मिली है ।
  • खाद्यान्न फ़सल ज्वार व चावल के अवशेष व पालतू
  • कुत्ते, मिट्टी के मनकों के आभूषण के अवशेष मिले है ।
  • इस सभ्यता के लोग चावल से परिचित थे तथा पशुपालन इनका प्रमुख व्यवसाय था ।
  • आहड़ में कुछ मिट्टी के दीपक मिले है, जिनका प्रयोग धार्मिक दृष्टिकोण से पूजा करना या रोशनी करना था ।
  • आहड़ में रंगाई या छपाई के ठप्पे/छापे मिले है ।
  • आहड़ में माप तोल के बाट मिले है, जिससे इनके व्यापार वाणिज्य के बारे में पता चलता है ।
  • aahad sabhyata के लोग मृतकों के साथ आभूषण भी दफनाते थे ।

Read also


Post a Comment

0 Comments

close