Vishva ki Sthaniya Pawan - विश्व की पवने

Vishva ki Sthaniya Pawan - इस पोस्ट में हम पवनें(Winds), विश्व की पवने trick उनसे सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ये पोस्ट समान्य ज्ञान की दृस्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है ये नोट्स आगामी प्रतियोगिता परीक्षा के लिए उपयोगी है

Vishva ki Sthaniya Pawan - पवनें (Winds)

दाब प्रवणता - किन्हीं दो स्थानों के बीच वायुदाब के अंतर को दाब प्रवणता कहते हैं। दाब प्रवणता से ही पवन का संचार होता है। पवन अधिक दाब से कम दाब की ओर चलती है। 

पृथ्वी की घूर्णन गति या कोरियोलिस बल - 

पृथ्वी अपने ध्रुवीय अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है। इस घूर्णन से विक्षेप बल उत्पन्न होता है जो सदैव क्षैतिज वायु वेग या पवन के लम्बवत् कार्य करता है। इसे कोरियॉली बल कहते हैं।अपवाहन शक्ति ध्रुवों पर सबसे अधिक तथा विषुवत रेखा पर सबसे कम होती है।

फेरल का नियम- 

इस नियम के अनुसार पृथ्वी का परिभ्रमण पश्चिम से पूर्व की ओर होने के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में हवाएँ अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती है।

कोरिऑलिस का नियम - 

इसके अनुसार पवन की दिशा अपकेन्द्री या केन्द्रोपसारी बल तथा अभिकेन्द्री या गुरुत्वाकर्षण बल से प्रभावित होती है। प्रत्येक स्थान पर विक्षेप बल समान नहीं होता। यह विषुवत् रेखा पर सबसे कम तथा ध्रुवों पर सर्वाधिक होता है। 

हैडले का नियम -  

इसके अनुसार विषुवत्रेखीय वृत्त सबसे बड़ा होता है, ध्रुवों की ओर अक्षांशीय वृत्त छोटे होते जाते हैं। पृथ्वी 24 घंटे में अपनी धुरी पर एक घूर्णन पूरा करती है। विषुवत् रेखा पर इसकी गति सर्वाधिक (1000 किमी / घंटा) होती है तथा ध्रुवों पर सबसे कम होती है। 


पवन का अपकेन्द्री बल - 

जब कोई कण समान गति से वृत्ताकार मार्ग में चक्कर लगाता है तो उस पर मार्ग के केन्द्र या आवर्तन के अक्ष की दिशा में जो बल कार्य करता है, उसे अपकेंद्री बल कहते हैं। इसी बल के कारण वह कण वृत्ताकार मार्ग पर चलता है।

घर्षण शक्ति - यह शक्ति धरातल से 500 मी. की ऊँचाई तक अधिक सक्रिय होती है।

पवन का वेग

वायुदाब= वेग x स्थिरांक वायु के वेग तथा वायुदाब के संबंध को प्रदर्शित करने वाला सूत्र। 

एडमिरल बोफर्ट - सन्1805 में एडमिरल बोफर्ट ने वायु वेग मापक का आविष्कार किया। इसके द्वारा 65 नॉट वेग मापा जा सकता है। विश्व मौसम संगठन (WMO) इसी मापक का प्रयोग करता है।

पवन के प्रकार

धरातल पर निम्नलिखित प्रकार के पवनों की उपस्थिति पायी जाती है

(1) प्रचलित पवन (Prevailing Wind),
(2) सामयिक या मौसमी पवन (Seasonal Wind) और 
(3) स्थानीय पवन (Local Wind) |

पवन के प्रकार
 विश्व की पवने 


1. प्रचलित पवन-

जो पवन वायुदाब के अक्षांशीय अन्तर के कारण वर्ष भर एक से दूसरे कटिबन्ध की ओर प्रवाहित होती है। उसे प्रचलित पवन या स्थायी पवन (Permanent Wind), निश्चित पवन (Invariable Wind) अथवा ग्रहीय या सनातनी हवाएँ (planetory Winds) कहा जाता है। ये पवन महाद्वीपों तथा महासागरों के विशाल क्षेत्र वर्ष भर एक समान प्रवाहित होती है। व्यापारिक पवन (Trade Winds) तथा पछुवा पवन (Westerless)इस वर्ग की दो प्रमुख हवाएँ हैं।

(i) व्यापारिक पवन - 

दक्षिणी अक्षांश के क्षेत्रों अर्थात् उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्धों से भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध की ओर दोनों गोलाद्धों में वर्ष भर निरन्तर प्रवाहित होने वाली पवन को व्यापारिक पवन कहा जाता है। इसका अंग्रेजी भाषान्तरण 'ट्रेड विण्ड्स' (Trade Winds) है, जिसमें 'ट्रेड' शब्द जर्मन भाषा से लिया गया है, जिसका तात्पर्य निर्दिष्ट पथ या मार्ग से है। ये हवाएँ एक निर्दिष्ट पथ पर वर्ष भर एक ही दिशा में निरन्तर बहने वाली हवाएँ हैं। यह पवन फेरल के नियम एवं कोरिऑलिस बल के कारण उत्तरी  गोलार्द्ध में अपने दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बायीं ओर विक्षेपित हो जाती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इन्हें उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवन के नाम से जाना जाता है तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में इन हवाओं के दिशा दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर चलती है, अतः इन्हें दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवन कहा हैं। 

ये 30° से 35° उत्तर व दक्षिण अक्षांशों के बीच चलती हैं। भूमध्य रखा के समीप दोनों व्यापारिक पवन आपस में मिलकर अत्याधिक तापमान के कारण ऊपर उठ जाती हैं तथा घनघोर वर्षा करती हैं। इनका वेग 15 से 25 किमी. प्रति घण्टा होता है।

पछुआ पवन - 

दोनों गोलार्द्धां में उपोष्ण उच्च वायुदाब (30°–35°) कटिबन्धों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब (60°–65°) कटिबन्धों की ओर चलने वाली स्थायी हवाओं को इनकी पश्चिम दिशा के कारण इन्हें पछुआ पवन कहा जाता है। उत्तरी गोलार्द्ध में ये दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर प्रवाहित होती हैं। जहाँ पर ये गर्म तथा आर्द्र पछुआ हवाएँ ध्रुवों से आने वाली ठण्डी हवाओं से मिलती हैं, शीतोष्ण वाताग्र बनाते हैं। पछुआ हवाओं के साथ चक्रवात तथा प्रतिचक्रवात भी पश्चिम से पूर्व दिशा में चलते हैं।

पछुआ पवनों का सर्वश्रेष्ठ विकास 40° से 50° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य पाया जाता है क्योंकि यहाँ जलराशि के विशाल विस्तार के कारण पवनों की गति अपेक्षाकृत तेज तथा दिशा निश्चित होती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में इनकी प्रचण्डता के कारण इन्हें 40° से 65° अक्षाशों के मध्य 'गरजता चालीसा' (Roaring Forties), 50° अक्षांश के समीपवर्ती क्षेत्र में 'प्रचण्ड पचासा' (Furious Fifties), तथा 60° अक्षांश के समीपवर्ती क्षेत्र में 'चीखता साठा' (Shrieking Sixties) के नाम से जाना जाता है। गर्म अक्षांशों से ठण्डे अक्षांश की ओर चलने के कारण पछुआ पवनें शीतोष्ण कटिबन्ध में स्थित महाद्वीपों के पश्चिमी भागों जैसे पश्चिमी यूरोप, पश्चिमी कनाडा तथा दक्षिणी-पश्चिमी चिली में वर्ष भर वर्षा करती हैं। पछुआ एकमात्र स्थायी पवन है, जो निम्न से उच्च अक्षांशों की ओर चलती है।

ध्रुवीय पवन - 

ध्रुवीय उच्च वायुदाब की पेटियों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की पेटियों की ओर प्रवाहित होने वाली पवनों को ध्रुवीय पवन के नाम से जाना जाता है। उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर होती है। कम तापमान के क्षेत्रों से अधिक तापमान वाले क्षेत्रों की ओर प्रवाहित होने के कारण ये पवनें प्रायः शुष्क होती है, क्योंकि इनकी जलवाष्प धारण की क्षमता कम होती है। इनकी गति बहुत तीव्र (100 मील प्रति घंट) होती है। ये स्वास्थ्य के लिए कष्टप्रद एवं जन-धन के लिएहानिकारक होती है। 

2. सामयिक पवन - 

मौसम या समय के साथ जिन पवनों की दिशा में परिवर्तन पाया जाता है, उन्हें सामयिक या कालिक पवन कहा जाता है। पवनों के इस वर्ग में निम्न पवनों को शामिल किया जाता है-

(i) मानसून पवने (Monsoon Winds) - 

मानसून ऐसी पवनें हैं, जिनकी प्रवाह-दिशा में मौसम के साथ परिवर्तन आता है। वर्तमान में धरातल पर प्रवाहित होने वाली उन सभी हवाओं को, जो मौसम के अनुसार अपनी दिशा में पूर्ण परिवर्तन स्थापित कर लेती है 'मानसून' के नाम से संबोधित किया जाता है। मानसूनी पवन सामान्यत: उष्ण कटिबंध में चलती है।

ग्रीष्मकालीन मानसून - 

21 मार्च के बाद सूर्य के उत्तरायण होने के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य सीधा चमकने लगता है, परिणामस्वरूप उत्तरी गोलार्द्ध में सौर्थिक ऊर्जा अधिक मिलने लगती है। 21 जून को सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकता है, इससे यहाँ न्यूनदाब बन जाता है। परिणामस्वरूप हवाएँ उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर चलने लगती हैं तथा सागर के ऊपर से आने के कारण पर्याप्त नमी के कारण घनघोर वर्षा करती हैं।

शीतकालीन मानसून- 

23 सितम्बर के बाद सूर्य की स्थिति दक्षिणायन होने लगती है एवं 22 दिसम्बर को मकर रेखा पर लम्बवत् चमकने के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में शीतकाल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में ग्रीष्मकाल होता है। दक्षिणी गोलार्द्ध में निम्न वायुदाब की स्थिति होती है, मानसून लौटने लगता है तथा शीतकाल में कोरोमंडल तट पर भारी वर्षा होती है। 

स्थलीय एवं सागरीय समीर (Land and Sea Breezes)- 

दिन समय निकटवर्ती समुद्र की अपेक्षा स्थल भाग के अधिक गर्म हो जाने के कारण वहाँ निम्न वायुदाब की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जबकि सागरीय भाग के अपेक्षाकृत ठण्डा रहने के कारण वहाँ उच्च वायुदाब मिलता है। स्थल की गर्म हवा के हल्की होकर ऊपर उठ जाने पर रिक्त हुए स्थान को भरने के लिए सागरीय भागों से हवा का प्रवाह स्थल की ओर होने लगता है, जिसे सागरीय समीर कहते हैं।

रात के समय तीव्र पार्थिव विकिरण के कारण स्थल भाग सागरीय भाग की अपेक्षा शीघ्रता से ठण्डा हो जाता है, जिसके कारण उस पर उच्च वायुदाब उपस्थित हो जाता है। सागरीय भाग अपेक्षाकृत निमः वायुदाब का क्षेत्र होता है, जिसके कारण स्थल से सागर की ओर पवन संचार होने लगता है। इन पवनों को स्थलीय समीर कहते हैं।

स्थलीय एवं सागरीय समीर छोटे पैमाने पर प्रवाहित होने वाली मानसून हवाएँ ही हैं, जिनकी दिशा में 24 घण्टे में दो बार परिवर्तन होता है।

स्थलीय एवं जलीय समीर का प्रभाव समुद्र तट से 25 किमी. दूरी तक होता है तथा इनकी ऊँचाई धरातल से मात्र 60 या 70 मीटर होती है। सागरीय समीर प्रायः 10 से 11 बजे प्रारंभ होती है। यह अपराह्न 1 या 2 बजे सबसे तीव्र होती है। सायं 8 बजे

पर्वत एवं घाटी समीर (Mountain and Valley Breezes )

अधिकांश पर्वतीय क्षेत्रों में दो प्रकार की दैनिक हवाएँ प्रवाहित होती हैं। दिन के समय पर्वतीय ढाल वाला क्षेत्र उसकी घाटियों की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाता है, जिसके कारण पवन का संचरण घाटी से ऊपर की ओर होने लगता है। इसी को घाटी समीर कहते हैं। 

सूर्यास्त के पश्चात् रात्रि के समय यह व्यवस्था पूर्णतः पलट जाती है। पर्वतीय ढालों पर पार्थिव विकिरण द्वारा तेजी से ऊष्मा का विसर्जन हो जाने से वहाँ उच्च वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है तथा ऊँचाई वाले भागों से ठंडी एवं घनी हवा नीचे बैठने लगती है। इसी पवन को पर्वत समीर कहते हैं।

24 घण्टे के अन्दर इनकी दिशा में दो बार पूर्ण परिवर्तन होता है, इस कारण इन्हें दैनिक समीर भी कहा जाता है

चक्रवाती पवनें (Cyclonic winds) - 

जब किसी स्थान का निम्न वायुदाब क्षेत्र चारों ओर से उच्च वायुदाब से घिर जाता है तो हवाएँ बाहर से केन्द्र की ओर चक्राकार गति से चलने लगती है, इन्हें चक्रवाती पवनें कहते हैं। जब उच्च वायुदाब का केन्द्र चारों ओर से निम्न वायुदाब के क्षेत्र से घिर जाता है तो हवाएँ अन्दर से बाहर की ओर चक्राकार गति में चलने लगती है जिन्हें प्रति चक्रवाती पवनें कहते हैं। चक्रवातों को भिन्न-भिन्न देशों/क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। उत्तरी अटलांटिक और पूर्वी अमेरिका के तटों पर उठने वा चक्रवात को हरिकेन (Hurricane), मैक्सिको की खाड़ी, मिसीसिपी-मिसौरी घाटी में तथा मालागासी के पास उठने वाले चक्रवात को टॉरनेडो (Tornado), चीन, जापान, उत्तरी प्रशान्त के चक्रवातों को 'टायफून', तिमोर सागर और आस्ट्रेलिया के उत्तर-पश्चिम में चलने वाले चक्रवात को विली-विली कहते हैं।

3.स्थानीय हवाएँ - 

स्थानीय धरातलीय बनावट, तापमान एवं वायुदाब की विशिष्ट स्थिति के कारण सम्भवत: प्रचलित पवनें के विपरीत प्रवाहित होने वाली हवाएँ 'स्थानीय हवाओं के रूप में जानी जाती हैं। इनका प्रभाव अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्रों पर पड़ता है तथा ये क्षोभ मंडल की सबसे निम्नवर्ती परतों में ही सीमित रहती हैं। इनमें अल्जीरिया एवं लेवेंट में सिराको, दक्षिण पूर्वी स्पेन में लेवेश, उत्तरी मिस्र में खमसिन, उत्तरी अफ्रीका में हरमट्टन, ट्यूनिस तथा लीबिया में गिबली, सहारा एवं अरब में सिमूम तथा ऑस्ट्रेलिया में बिक्रफील्डर्स मुख्य है।

विश्व की प्रमुख स्थानीय हवाएँ

सिराको- सहारा मरुस्थल में भूमध्य सागर की ओर चलने वाली गर्म हवा। इसके अन्य नाम हैं-
  1. खमसिन -मिस्र, 
  2. गिविली-लीबीया, 
  3. चिली-ट्यूनीशिया, 
  4. लेस्ट-मैड्रिया, 
  5. सिरॉको-इटली, 
  6. लेबेक-स्पेन। 

सहारा मरुस्थल से इटली में प्रवाहित होने वाली सिराको पवन बालू के कणों से युक्त होती है। रूम सागर से नमी धारण करने के बाद यह जब इटली में वर्षा करती है तो लाल बालू के कण नीचे बैठने लगते हैं और ऐसा लगता है कि 'रक्त वृद्धि' हो रही है। इस प्रकार की वर्षा को इटली में रक्त की वर्षा (Blood Rain) कहते हैं। 

सिमूम (Simoom) - अरब के रेगिस्तान में चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवा।

हरमट्टन (Harmattan) - 

सहारा रेगिस्तान से उत्तर-पूर्व दिशा में चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवा। गिनी तट पर इस हवा को डॉक्टर के नाम से जाना जाता है क्योंकि यह वायु इस क्षेत्र के निवासियों को आर्द्र मौसम से राहत दिलाती है।

ब्रिकफील्डर-  आस्ट्रेलिया के विक्टोरिया प्रांत में चलने वाली शुष्क हवा।

साण्टा अना (Santa Ana)- 

दक्षिण कैलीफोर्निया राज्य (सं. रा. अमेरिका) में साण्टय अना घाटी से चलने वाली गर्म तथा शुष्क हवा संकरी घाटियों से बहने वाली गर्म एवं शुष्क हवाओं के स्थानीय नाम- 
  1. यामो (Yamo)- जापान, 
  2. जोण्डा (Zonda)- अर्जेण्टीना (ऐण्डियन घाटी से), 
  3. ट्रैमोण्टेन (Tramontane) - मध्य यूरोप की घाटियों में।

  • नॉरवेस्टर (Norwester) न्यूजीलैण्ड में उच्च पर्वतों से उतरने वाली गर्म, शुष्क तथा धूल भरी हवा। 
  • शामल (Shamal) मेसोपोटामिया (इराक) तथा फारस की खाड़ी में चलने वाली गर्म एवं शुष्क उत्तर-पूर्वी हवा।।
  • ब्लैक रोलर - वृहत मैदान उ. अमेरिका में दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पश्चिम में चलने वाली गर्म एवं धूल भरी हवा।
  • बोरा (Bora) यूगोस्लाविया के एड्रियाटिक तट पर चलने वाली ठंडी हवा।
  • ट्रैमोण्टाना (Tramontana) - उत्तरी इटली में चलने वाली ठंडी हवा।
  • बर्गस (Bergs) -  दक्षिण अफ्रीका में जाड़े में चलने वाली गर्म हवा।
  • पोनेन्टी (Ponente)- भूमध्य सागरीय क्षेत्रों विशेषकर कोर्सिको तट तथा फ्रांस में चलने वाली शुष्क तथा ठंडी हवा। 
  • पैम्पेरो (Pampero) अर्जेण्टीना तथा उरुग्वे के पम्पास क्षेत्र में चलने वाली रैखिक प्रचण्ड वायु 
  • पैपेगयो (Papagayao)- मैक्सिको के तट पर चलने वाली शीतल, शुष्क तथा तीव्र हवाएँ।
  • टेरल (Terral) - पेरू एवं चिली के पश्चिमी तटों पर चलने वाली समीर।
  • जोरन (Joran)- जूरा पर्वत से जेनेवा झील तक रात्रि में चलने वाली शीतल एवं शुष्क हवा।
  • नार्दर (Norther) - टेक्सास राज्य (संयुक्त राज्य अमेरिका) में चलने वाली शुष्क एवं शीतल हवा।
  • नॉर्टी (Norte) - नार्दर हवा का मध्य अमेरिकी क्रम।
  • सॉमर - ईरान के कुर्दिस्तान पर्वत में उत्तर पश्चिमी दिशा में चलने वाली गर्म हवा।
  • काराबुरॉन - ग्रीष्म के प्रारंभ में तारिम बेसिन में चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवा। 
  • कालिक पवन- मानसून प्रकार की प्रबल दक्षिणी-पश्चिमी हवा, जो ग्रीष्मकाल में मध्य अमेरिका के प्रशान्त महासागरीय तट पर चलती है। 
  • विरजान (Virozon)- पेरू तथा चिली के पश्चिमी तटों पर चलने वाली समुद्री समीर।


बेण्डावेल्स (Vendavales)

जिब्राल्टर जल-सन्धि तथा स्पेन के पूर्वी तट से सुदूरवर्ती क्षेत्रों को प्रभावित करने वाले अवदाबों से संबंधित तीव्र दक्षिणी-पश्चिमी हवा, जो प्रायः शीतकाल में तीव्र वर्षा के लिए उत्तरदायी होती है।

सुमात्रा (Sumatra) - 

मलक्का जल-संधि क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली रेखीय प्रचण्ड हवा, जो सामान्यतया दक्षिण-पश्चिम मानसून की अवधि में रात्रि के समय अचानक प्रवाहित होती है तथा तड़ित झंझावात का रूप धारण कर लेती है। 

कैटाबेटिक पवन - 

यह स्थानीय पवन प्रायः विकिरण द्वारा ठंडी होकर रात्रि के समय पर्वत ढालों से नीचे की ओर बहती है। यह ठंडी वायु के प्रवाह से भी उत्पन्न होती है, जो हिम टोपों (Ice-Caps) के ढालों से नीचे चलती है।

सदर्न बर्स्टन (Southern Burster) - 

आस्ट्रेलिया के न्यू साउथवेल्स प्रान्त में चलने वाली प्रबल शुष्क पवन, जिसके कारण वहाँ का तापमान काफी कम हो जाता है।

सीस्तान (Seistan) 

पूर्वी ईरान के सीस्तान प्रान्त में ग्रीष्म काल में चलने वाली तीव्र उत्तरी हवा, जिसकी गति कभी-कभी 110 किमी प्रति घण्टा तक हो जाती है, को '120 दिन की पवन' के नाम से जाना जाता है।

नेवाडोज (Nevados) - 

दक्षिण अमेरिका के एण्डीज पर्वतीय हिम क्षेत्रों से इक्वेडोर की उच्च घाटियों में नियमित रूप से प्रवाहित होने वाली हवा, जो एक एनाबेटिक हवा है।।

मैस्ट्रो (Marstro ) - 

भूमध्य क्षेत्र के मध्यवर्ती भाग में चलने वाली उत्तरी-पश्चिमी हवा, जो यहाँ उत्पन्न होने वाले किसी अवदाब के पश्चिमी भाग में अधिक तीव्रता से प्रवाहित होती है।

हबूब (Haboob) - 

उत्तरी एवं उत्तर-पूर्वी सूडान, विशेषकर खारतूम के समीप चलने वाली एक प्रकार की धूल भरी आँधी, जिसके कारण दृश्यता कम हो जाती है तथा कभी-कभी तड़ित-झंझावातों के साथ भारी वर्षा भी हो जाती है। यह विशेषकर मई तथा सितम्बर के महीनों में दोपहर के बाद चलती है।

ग्रेगेल (Gregale) - 

दक्षिणी यूरोप एवं भूमध्यसागरीय क्षेत्रों के मध्य भाग में उत्तर-पश्चिम अथवा उत्तर-पूर्व दिशा से शीत ऋतु में प्रवाहित होने वाली तीव्र पवन।

फ्राइजेम (Friagem) 

ब्राजील के उष्णकटिबन्धीय कैम्पोज क्षेत्र में प्रति चक्रवात उत्पन्न हो जाने के कारण आने वाली शीत-लहर जो मई या जून के महीनों में प्रवाहित होकर इस क्षेत्र के तापमान को 10° सेण्टीग्रेड तक घटा देती है।

बुरान अथवा पूर्गा - 

रूस तथा मध्यवर्ती एशिया में चलने वाली उत्तरी-पूर्वी हवा जो अधिकांशत: शीतकाल में चलती है और हिम-प्रवाह को जन्म देती है। शीतकालीन हिमयुक्त बुरान पवन को 'पूर्गा' के नाम से जाना 

बागियो (Baguio) - 

फिलीपीन्स द्वीपसमूह में आने वाले उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों को बारयो के नाम से जाना जाता है।


मानसून एवं अन्य पवनें

 मानसून- मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के 'मौसिम' शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ मौसम है। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग अरब सागर की पवनों के लिए किया गया था जो छः माह उत्तर-पूर्व की राय ओर से तथा छः माह दक्षिण-पश्चिम की ओर से चलती है।

मानसूनों की उत्पत्ति के संबंध में प्रचलित अवधारणाएँ 

1. तापीय संकल्पना मानसून पवनें धरातल का संवाहनिक क्रम है जो जल तथा स्थल के विरोधी स्वभाव के कारण तथा तापीय भिन्नता के कारण पैदा होती है।

2. गतिक संकल्पना- फ्लोन ने मानसूनों की गतिक उत्पत्ति की विचारधारा प्रस्तुत की। उसके अनुसार मानसून पवनें वायुदाब  एवं पवन पेटियों के खिसकने से उत्पन्न होती हैं। 

3. जेट स्ट्रीम संकल्पना- ये धरातल से 6000 मी. से 12000 मी. की ऊंचाई के मध्य दोनों गोलाद्धों के चारों ओर 20° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों से ध्रुवों के निकट वर्षभर चलती हैं। जेट स्ट्रीम के प्रमुख अनुसंधानकर्ता रॉसबी थे।

जेट धाराएँ प्रायः पश्चिम से पूर्व की ओर चलती हैं तथा 10 से 13 किमी. की ऊँचाई पर सबसे तीव्रत चलती है। जेट धाराएँ क्षोभमंडल के ऊपरी भाग में चलने वाली तीव्र वेग वाली पवनें हैं।

गौण धरातलीय पवनें

1. धरातलीय अवरोध से उत्पन्न पवनें, 2. शुष्क व शीतल (स्थानीय) पवनें

1. धरातलीय अवरोध से उत्पन्न पवनें

(i) चिनूक पवनें - 

ये उत्तरी अमेरिका में रॉकी पर्वतों के पूर्व में उतरने वाली गर्म व शुष्क पवनें है। इस हवा का औसत तापक्रम 40° फा. होता है। इस हवा के आगमन से तापक्रम में अचानक वृद्धि होती है तथा कभी-कभी तो कुछ मिनटों में तापक्रम 34° फा. तक बढ़ जाता है जिसके फलस्वरूप धरातल पर बर्फ अचानक पिफल 2 लगती हैं। इस कारण इस पवन को हिमभक्षी (Snoweater) भी कहते हैं।

(ii) फॉन-  

ये चिनूक जैसी शुष्क व गर्म पवनें हैं जो यूरोप में आल्प्स पर्वतों के उत्तरी ढालों पर शीत तथा बसंत ऋतु में तापमानों को ऊँचा कर देती है। इनका सर्वाधिक प्रभाव स्विट्जरलैण्ड में अंगूर को पकाने में देखा जा सकता है।


2. शुष्क व शीतल (स्थानीय) पवनें

(i) मिस्ट्रल 

ये दक्षिणी फ्रांस में लियोंस की खाड़ी तट पर चलने वाली शुष्क व शीतल पवनें हैं। ये यूरोप के महाद्वीपीय भागों में उत्पन्न होती हैं।

(ii) ब्लिजार्ड / बुराँ- 

ये अत्यंत तीव्र पवनें हैं जो उच्च पर्वतों, अत्यधिक शीतल ध्रुवीय प्रदेशों, उत्तरी कनाडा, उत्तरी साइबेरिया मंगोलिया, मंचूरिया आदि में प्रवाहित होती है। इनमें हवाओं की गति 50-60 मील प्रति घंटा होती है। 

साइबेरिया, मंगोलिया व मंचूरिया में इन हिम झंझावातों को बुरों कहते हैं। इनकी तुलना मध्य एवं दक्षिण संयुक्त राज्य के नार्दर्स से की जा सकती है। अंटार्कटिका में एडिलीलैंड में ये पवनें अधिक सक्रिय होती हैं, अत: इसे ब्लिजार्ड का घर कहते हैं।

(iii) शीत लहरें - 

शीतकाल में दक्षिणी फ्रांस में बाइज तथा दक्षिणी स्पेन में लेवांतर प्रबल शीतल पवनें चलती है।अर्जेन्टीना तथा उरुग्वे में पैम्पेरो सर्द हवाएँ हैं। कोस्टारिका के उत्तरी-पश्चिमी तट पर पापागायों की खाड़ी से सर्द पवनें चलती हैं जिन्हें पापागायो कहते हैं।

दक्षिणी मैक्सिको तथा उत्तरी मध्य अमेरिका से शीतकाल में टेडुयाटिपेकर नामक धूलभरी तेज आँधियाँ चलती हैं। ब्राजील के कैम्पोज तथा मध्य अमेजन घाटी में फ्राइजेम नामक शीत लहरें चलती है।

महत्त्वपूर्ण शब्दावली

मरुस्थल - सामान्यतः 10-20 इंच (25-50 सेमी.) औसत वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र अर्द्ध-मरुस्थल तथा 10 इंच (25 सेमी.) से कम वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र मरुस्थल कहलाते हैं।

ध्रुवीय मरुस्थल

ये सदैव हिमाच्छादित रहते हैं। ग्रीनलैण्ड तथा अंटार्कटिका इसके मुख्य उदाहरण है। 

मध्य अक्षांशीय मरुस्थल - 

ये मरुस्थल महाद्वीपों के आन्तरिक भागों में स्थित हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में ग्रेट बेसिन, अर्जेंटीना में पैंटेगानिया, मंगोलिया में गोदी तथा यूरेशिया में तुर्किस्तान इस प्रकार के मरुस्थल हैं।

निम्न अक्षांशीय मरुस्थल - 

15° से 30°अंक्षाशों के मध्य ऊष्णकटिबंधीय अधिक दाब की पेटी में महाद्वीपों के पश्चिमी भाग में ये मरुस्थल स्थित हैं। अफ्रीका में सहारा व कालाहारी, एशिया में अरब व थार, मैक्सिको में सोनोरा, दक्षिणी अमेरिका में चिली व पीरू का अटाकामा और ऑस्ट्रेलिया में विक्टोरिया मरुस्थल संसार के विशालतम भरुस्थलों में गिने जाते हैं

चट्टानी मरुस्थल या हामादा- 

पवन के अपवाहन तथा अपघर्षण कार्य से मरुस्थल की आधार शैल पर विषम सतह निर्मित होती है, उस पर कहीं गड्ढे व कहीं टीले उत्पन्न होते हैं। ऐसे धरातल वाले मरुस्थल सहारा में हामादा कहलाते हैं। 

पथरीला मरुस्थल या रेग - 

पथरीले धरातल के ऊपर बजरी, कंकड़-पत्थर, बालू से युक्त धरातल वाला मरुस्थल अल्जीरिया में रेग तथा लीबिया व मित्र में सेरिर कहलाता है।

रेतीला मरुस्थल या अर्ग - 

बालुका पत्थर के धरातल पर पवन की क्रिया से ढीली रेत की सतह विकसित होती है। ऐसे मरुस्थल सहारा में अर्ग कहलाते हैं।

बैगनोल्ड - इनके अनुसार मुख्यतः दो प्रकार के स्तूप होते हैं बरखान एवं सीफ।मरुस्थल-

बरखान

ये वास्तव में अनुप्रस्थ स्तूपों के ही विशिष्ट रूप हैं। ये अर्द्धचन्द्राकार या चापाकार टीले होते हैं। इनकी औसत ऊँचाई 30 मीटर तक होती है।

हैक - इनके अनुसार तीन प्रकार के स्तूप होते हैं अनुदैर्ध्य, अनुप्रस्थ तथा परवलयिक।

मेल्टन -  इन्होंने तीन प्रकार के स्तूप बताये हैं सामान्य स्तूप, वनस्पति के अवरोध से उत्पन्न स्तूप तथा जटिल स्तूप।

अनुदैर्ध्य स्तूप

ये पवन की दिशा में उसके समान्तर निर्मित स्तूप होते हैं। इनका सम्मुख बल मन्द तथा विमुख ढाल तीव्र होता है। ये ऑस्ट्रेलिया, लीबिया तथा सहारा मरुस्थलों में अधिक पाये जाते हैं। इन्हें सीफ भी कहते हैं। राजस्थान में ऐसे स्तूप अधिक मिलते हैं।

अनुप्रस्थ स्तूप- इनका निर्माण प्रचलित पवन की दिशा के समकोण पर होता है।

लोयस

यह पवन द्वारा उड़ाये गये धूल कणों के निक्षेप से निर्मित स्थल रूप है।सर्वप्रथम लोयस का अध्ययन जर्मन विद्वान् रिचथोफेन ने किया।यूरोप में लोयस को लिमन के नाम से जाना जाता है।

पेडिमान्ट- 

ये पर्वतीय ढाल पर स्थित सामान्य ढालू मैदान हैं, जो पर्वतीय अग्रभाग तथा बहादा के मध्य में स्थित होते हैं। इन्हें निम्नीकरण के मैदान कहते हैं।

बहादा- 

ये मन्द ढाल युक्त मैदान हैं, जो पेडिमान्ट तथा प्लाया के मध्य स्थित होते हैं। इनका निर्माण पेडिमान्ट के नीचे तथा प्लाया के किनारे निर्मित जलोढ़ पंखों द्वारा होता है।

अपरदन चक्र - 

सर्वप्रथम डेविस ने शुष्क प्रदेशों में अपरदन चक्र की संकल्पना प्रस्तुत की थी। मरस्थलों में अपरदन का प्रमुख साधन पवन है।

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