Mahasagar ki Dharaye | महासागरीय धाराएँ (Ocean Currents)

Mahasagar ki Dharaye - इस पोस्ट में हम महासागरीय धाराएँ (Ocean Currents) trick उनसे सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ये पोस्ट समान्य ज्ञान की दृस्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है ये नोट्स आगामी प्रतियोगिता परीक्षा के लिए उपयोगी है

Mahasagar ki Dharaye |  महासागरीय धाराएँ (Ocean Currents)

Mahasagar ki Dharaye | महासागरीय धाराएँ (Ocean Currents)
Mahasagar ki Dharaye | महासागरीय धाराएँ (Ocean Currents)


महासागरीय जल में तीन गतियाँ देखने को मिलती है- 
1. सामुद्रिक लहरे, 2. महासागरीय धाराए, 3. ज्वारभाटा।

महासागरीय धाराएँ (Ocean Currents)

सागरों में विशाल जलराशि की निश्चित दिशा में प्रवाहित होने की क्षैतिज गति को महासागरीय धाराएँ कहते हैं। सागरीय गतियों में धाराएँ सर्वाधिक शक्तिशाली होती हैं, क्योंकि इनके द्वारा सागरीय जल हजारों किलोमीटर तक वहा लिया जाता है। धाराओं में जल की गति 2 से 10 किमी. प्रति घंटे तक होती है। महासागरीय धारायें महासागरों में नदी प्रवाह के समान हैं। महासागरीय धारायें दो प्रकार के बलों के द्वारा प्रभावित होती हैं

  1. प्राथमिक बल- जल की गति को प्रारंभ करता है। 
  2. द्वितीयक बल- धाराओं के प्रवाह को नियंत्रित करता है।

 गहराई के आधार पर सागरीय धाराएँ दो प्रकार की होती है

  1. गहरी जलधारा- महासागीरय जल का 90 प्रतिशत भाग गहरी जलधारा के रूप में है।
  2. ऊपरी जलधारा- महासागरीय जल का 10 प्रतिशत भाग सतही या ऊपरी जलधारा के रूप में है। 

 तापमान के आधार पर सागरीय धाराएँ दो प्रकार की होती हैं 

  1. गर्म धारा - उष्ण भूमध्यरेखीय क्षेत्रों से ध्रुवों की ओर प्रवाहित होने वाली धाराएँ गर्म धारा कहलाती हैं। इनकी सतह का तापमान अधिक होता है। जैसे ब्राजील धारा, गल्फस्ट्रीम, अटलांटिक ड्रिफ्ट, क्यूरोशिवो धारा, 
  2. ठंडी धारा - गर्म धारा के विपरीत जब धाराएँ ध्रुवीय क्षेत्रों से भूमध्य रेखा की ओर प्रवाहित होती हैं तो ठंडी धाराएँ कहलाती हैं। इनके सतह का तापमान कम होता है। जैसे- लेब्रोडोर धारा, बेंगुला धारा, कनारी धारा, क्यूराइल, धारा, कैलिफोर्निया धारा, पेरू धारा।

अपने आकार एवं गति की दृष्टि से धाराएँ तीन प्रकार की होती है

  1. ड्रिफ्ट (प्रवाह) - ये चौड़ी, उथली व मन्द प्रवाह वाली जल धारायें हैं। उत्तरी अटलाष्टिक एवं दक्षिणी अटलाण्टिक प्रवाह ऐसे ही हैं। 
  2. धारा ये एक निश्चित सीमाओं एवं ड्रिफ्ट की अपेक्षा अधिक तीव्र गति वाली जल धारायें हैं। क्यूरोसिवो, पीरू, बेंगुला आदि धाराएँ इसके उदाहरण हैं।
  3. स्ट्रीम इनकी सीमाएँ अधिक सुनिश्चित होती हैं जिसमें विशाल समुद्री जल राशि एक निश्चित दिशा में नदी के समान (88 किमी./घंटा) आगे की ओर प्रवाहित होती हैं। गल्फ स्ट्रीम इसका उत्तम उदाहरण है।

धाराओं की उत्पत्ति

विभाजन- धाराओं की उत्पत्ति के कारकों को 3 भागों में बांटा गया है

1. सागर से संबंधित कारक

1. तापमान में भिन्नता - 

पृथ्वी पर सूर्य के ताप के वितरण में असमानता पाई जाती है। विषुवत रेखीय भागों में अत्यधिक सूर्याताप के कारण जल का तापमान ऊँचा हो जाता है जिससे जल का घनत्व अत्यधिक कम हो जाता है और वह विषवृत् रेखीय जल धारा के रूप में गतिशील हो जाता है।  

 2.घनत्व व लवणता में भिन्त्रता-

सागरीय लवणता से सागरीय जल का घनत्व प्रभावित होता है तथा घनत्व में अंतर के कारण धाराएँ उत्पन्न होती है। ध्रुवीय भागों में न्यून सूर्यताप के फलस्वरूप कम तापमान के कारण उच्च घनत्व पाया जाता है, परंतु हिम के पिघलने के कारण लक्षणता कम हो जाती है जिस कारण घनत्व कम हो जाता है, इससे ध्रुवों से ठंडे जल की धाराएँ विषुवत् रेखा की ओर चलने लगती है।

 2. बाह्य सागरीय कारक

 1.वायुदाब तथा हवाएँ-

जहाँ पर वायुदाब अधिक होता है, वहाँ पर जल के आयतन में कमी के कारण जल का तल नीचा हो जाता है। -कम वायुदाब वाले क्षेत्रों में जल का तल ऊँचा हो जाता है, अतः उच्च जल तल से निम्न जल तल (उच्च वायुदाब क्षेत्र) की ओर जल गतिशील हो जाता है। परिणामस्वरूप धारा की उत्पत्ति हो जाती है। प्रचलित (सनातनी) हवाएँ धाराओं की उत्पत्ति का कारण बनती है।

2. वाष्पीकरण तथा वर्षा- 

जिन भागों में वर्षा अधिक होती है तथा वाष्पीकरण कम होता है, वहाँ पर अत्यधिक जलराशि के कारण जल का तल ऊँचा हो जाता है जहाँ पर वर्ष कम होती है परंतु वाष्पीकरण अधिक होता है, वहाँ जल का तल नीचा होता है।

कम वाष्पीकरण के साथ उच्च वर्षा के कारण लवणता कम हो जाती है जिससे सागरीय जल का घनत्व कम हो जाता है, इससे जल का तल ऊँचा हो जाता है। उच्च जलवल से निम्न जल तल की ओर धाराएँ चलने लगती है। 

विषुवत् रेखा पर उच्च वर्षा एवं न्यून वाष्पीकरण के कारण उच्च जलतल होने से उच्च अक्षांशों की ओर धाराएँ चलने लगती हैं।

धुवीय भागों में वाष्पीकरण कम होता है लेकिन हिम के पिघलने से प्राप्त जल को अधिकता के कारण धाराएँ मध्य अक्षांशों की ओर चलने लगती है। जिस तापमान पर जल वाष्पीकरण होना शुरू करता है उसे वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा कहा जाता है।

वाष्पीकरण का मुख्य कारण तापमाना है। वायुमण्डल से जल को बूंदों और हिमकणों के धरातल पर गिरने को वर्षण कहते हैं।

पृथ्वी के परिभ्रमण से संबंधित कारक

पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण जल में पूर्व से पश्चिम दिशा में गति उत्पन्न हो जाती है। 

धाराओं की उत्पत्ति को नियन्त्रित करने वाले कारक

1.पृथ्वी के स्वभाव से संबंधित कारक-

(1) गुरुत्वाकर्षण शक्ति
(2)  पृथ्वी के परिभ्रमण संबंधी कारक

2.बाह्य सागरीय कारक

(1) वायु दाब
(2) प्रचलित हवाएँ
(3)वर्षा एवं उसका विवरण
( 4) सूर्यातप एवं वाष्पीकरण

3.सागर-संबंधी कारक

(1)   तापक्रम में भिन्नता
(2) लवणता व घनत्व में भिन्नता
(3) दबाव में भिन्नता
 (4) बर्फ का गलना

 4.महासागरीय धाराओं में परिवर्तनलाने वाले कारक

(1) तट की दिशा तथा आकार
(2) मौसमी परिवर्तन
(3) सागर तलीय आकृतियाँ


1. प्रशान्त महासागर की धाराएं -

गर्म धाराएँ

उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा - यह मैक्सिको के पश्चिमी तट से फिलीपींस तक पश्चिम दिशा में प्रवाहित होती है। 

दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा

यह दक्षिण प्रशान्त महासागर में पश्चिम की ओर बहती हुई न्यूगिनी के निकट दो भागों में विभक्त हो जाती है

विपरीत भूमध्य रेखीय धारा

उत्तर व दक्षिण भूमध्य रेखीय धाराओं द्वारा उत्पन्न असमान समुद्रीय तल को बराबर करने के लिए शान्त हवा की पेटी में यह धारा पूर्व की ओर बहती है।

क्यूरोसिवो धारा

यह ताईवान के तट से उत्तर की पछुआ पवनों द्वारा प्रेरित होकर 300 उत्तरी अक्षांश तक तट के सहारे बहती है। जापान के क्यूशू द्वीप से टकराकर इसकी दो शाखायें हो जाती हैं। एक शाखा जापान सागर में सुशीमा (Tsushima) के नाम से जानी जाती है तथा बाहरी शाखा मुख्य क्यूरोसिवो के रूप में जापान के पूर्व से होकर उत्तर में बेरिंग सागर की ओर चली जाती है।

पूर्वी आस्ट्रेलिया धारा

जब दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा न्यूगिनी तट से टकराती है तो उसका अधिकांश जल दक्षिण पश्चिम की ओर मुड़कर आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के सहारे पूर्वी आस्ट्रेलिया धारा के रूप में बहने लगता है।

ठण्डी धाराएँ

क्यूराइल / ओयाशियो धारा - उत्तरी आर्कटिक महासागर से चला हुआ जल बॅरिंग जलडमरूमध्य से होकर दक्षिण ओर प्रवाहित होता है जिसे ओयाशियो (Oyashio current) धारा कहते हैं।

कैलीफोर्निया धारा

यह धारा कैलीफोर्निया की खाड़ी के सहारे सहारे उत्तर से दक्षिण की ओर चलती है और उत्तरी विषुवतीय धारा में मिल जाती है।

3. पछुआ पवन प्रवाह - 

यह पश्चिम से पूर्व की ओर 400-500 दक्षिण अक्षांश क्षेत्र में पछुआ पवन के प्रभाव के कारण प्रवाहित होती है।

4. पेरू या हम्बोल्ट ठण्डी धारा - 

उत्तर दिशा में बहती हुई यह द. विषुवतीय धारा से मिल जाती है। हम्बोल्ट ने 1802 में इस धारा का विस्तृत अध्ययन किया था, इसलिये इस धारा को 'हम्बोल्ट धारा' भी कहते हैं।

1.क्यूरोशिवो धारा

गर्म

2. क्यूराइल धारा

ठंडी

3.पेरु या हम्बोल्ट धारा

ठंडी

4.उत्तरी विषुवतरेखीय जलधारा

उष्ण अथवा गर्म

5.उत्तरी प्रशान्त प्रवाह

गर्म

6.अलास्का की धारा

गर्म

7.सुशीमा (Tsushima) धारा

गर्म

8.कैलीफोर्निया की धारा

ठंडी

9. दक्षिणी विषुवतरेखीय जलधारा 

गर्म

10. पूर्वी आस्ट्रेलिया धारा (न्यूसाउथवेल्स धारा)

गर्म

II. अण्टार्कटिका प्रवाह

ठंडी

12. विपरीत विषुवतरेखीय जलधारा

गर्म

13. अलनीनो धारा

गर्म

14. ओखोटस्क धारा

ठंडी


2. अटलांटिक महासागर की धाराएँ-

गर्म धाराएँ

उत्तरी अटलांटिक भू-मध्यरेखीय धारा - जो दो धाराओं में 'एंटीलिज' धाराओं में बँट जाती है। 

दक्षिणी अटलांटिक भू-मध्यरेखीय धारा - यह द. अमेरिका के पूर्वी तट पर जाकर सैन रॉक नामक टापू से टकराकर दो भागों में उत्तरी विषुवतीय धारा तथा ब्राजील धारा में बँट जाती है।


गल्फ स्ट्रीम धारा -  

सागरीय धाराओं में यह सबसे प्रबल धाराओं में से एक हैं जिसकी उत्पत्ति मैक्सिको की खाड़ी में होती है। इसके अन्तर्गत तीन धाराएँ आती हैं-

  1. फ्लोरिडा धारा - फ्लोरिडा जलडमरूमध्य से केप हैटेरास (संयुक्त राज्य अमेरिका) तक
  2. गल्फ स्ट्रीम - केप हैटेरास से न्यूफाउण्डलैंड के पास ग्राण्ड बैंक तक (दक्षिण-पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका)
  3. उत्तरी अटलान्टिक डिफ्ट - ग्राण्ड बैंक से पश्चिम यूरोप तक

विपरीत भूमध्य रेखीय धारा – 

इस धारा की दिशा उत्तरी तथा दक्षिणी विषुवतीय धारा के प्रतिकूल या विपरीत दिशा में होती है। यह पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होती है। यह एक गर्म तथा कम शक्तिशाली धारा है। पश्चिमी भाग में यह धाराओं के बीच में लुप्त हो जाती है जबकि पूर्वी भाग में दिखाई पड़ती है। इस धारा को 'गिनी धारा' (Guinea Current) के नाम से सम्बोधित करते हैं। इसकी सीमा व तीव्रता मौसम के अनुसार बदलती रहती है। जनवरी में इनकी गति धीमी तथा 20-30 उत्तरी अक्षांशों के बीच तथा जुलाई में तीव्र व इसकी सीमा 70 उत्तरी अक्षांशों तक मिलती है। यह धारा दोनों विषुवतीय धाराओं द्वारा अधिक जलराशि के पश्चिम की ओर हट जाने से रिक्त पड़े अंश को सन्तुलित करने के अभिप्राय से दोनों के विपरीत दिशा में चलती है। विपरीत भूमध्येरखीय धारा की उत्पत्ति उत्तरी व दक्षिणी विषुवतीय धाराओं के जल को दोनों अमेरिकी महाद्वीपीय तटों से टकराकर वापस पीछे लौटे जल (back water) से भी माना जाता हैं।

ठंडी धाराएँ

लैब्रोडोर धारा - इसका जन्म बैफिन की खाड़ी में होता है और यह बैफिन द्वीप और ग्रीनलैंड के बीच दक्षिणपूर्व को ओर प्रवाहित होता है। सेन्ट लारेन्स नदी के मुहाने पर न्यूफाउण्डलैंड द्वीप के समीप यह गल्फ स्ट्रीम से मिलती है जिससे घना कोहरा उत्पन्न होता है।

इरमिंजर धारा या ग्रीनलैंड धारा - यह ग्रीनलैंड और आइसलैंड के बीच प्रवाहित होती है और उत्तरी अटलान्टिक ड्रिफ्ट से मिल जाती है।

केनारी धारा - 

उत्तरी अटलांटिक ड्रिफ्ट जब स्पेन के तट के निकट पहुँचकर दो धाराओं में विभक्त हो जाती है। इसकी एक शाखा दक्षिण की ओर मुड़कर केनारी द्वीपों के निकट तथा अफ्रीका के पश्चिमी तट पर। प्रवाहित होती हुई उ. पूर्वी व्यापारिक पवनों के प्रभाव के कारण उत्तरी विषुवतीय धारा से मिल जाती है। 

फॉकलैण्ड धारा - 

दक्षिणी अटलांटिक महासागर में फाकलैंड द्वीप के समीप एक ठण्डी धारा का जन्म होता है जो अर्जेन्टीना तट के सहारे बहती हुई लाप्लाटा नदी के मुहाने के निकट ब्राजील गर्म धारा से मिलती है। 

दक्षिणी अटलांटिक ड्रिफ्ट - 

जब 400 दक्षिणी अक्षांश के समीप ब्राजील व फाकलैंड धारायें पछुआ पवनों के प्रभाव में आती हैं तो समुद्री धारा का प्रवाह पश्चिम से पूर्व की ओर होने लगता है। इसे पश्चिमी वायु प्रवाह (west wind drift) भी कहते हैं। 

बेंगुला धारा - 

उत्तर में गिनी तट के निकट यह धारा पश्चिम की ओर मुड़ जाती है और दक्षिणी विषुवतीय धारा से मिल जाती है।

नाम

प्रकृति

1.गल्फ स्ट्रीम धारा

गर्म

2. फ्लोरिडा धारा

गर्म

3.केनारी धारा

ठंडी

4.लैब्रेडोर धारा

ठंडी

5.उत्तरी विषुवतरेखीय जलधारा

उष्ण अथवा गर्म

6.दक्षिणी विषुवतरेखीय जलधारा

उष्ण

7.नावें की धारा

उष्ण

8.पूर्वी ग्रीनलैण्ड धारा

ठंडी 

9.इरमिंजर धारा

उष्ण

10.ब्राजील की जलधारा

उष्ण

11.बैंगुला की धारा

ठंडी

12.अण्टार्कटिका प्रवाह(. अटलांटिक)

ठंडी 

13. विपरीत (Conunter)विषुवतरेखीय जलधारा

उष्ण 

14.रेनेल धारा

उष्ण

15. फॉकलैंड धारा

ठंडी

16. एंटीलिस धारा

गर्म


3. हिन्द महासागर की धाराएँ

गर्म धाराएँ-

ग्रीष्म मानसून धारा (Summer Monsoon Current) - ग्रीष्म ऋतु में हिन्द महासागर में दक्षिण पश्चिमी मानसून हवाओं के प्रभाव से धाराएँ घड़ी की सूइयों के अनुकूल (clockwise direction) चलती हैं।

यह अफ्रीका के पूर्वी तट के सहारे बहती हुई अरब सागर में प्रवेश करती हैं और अरब प्रायद्वीप के दक्षिण पूर्वी तट, पाकिस्तान और भारत के पश्चिमी तट का चक्कर लगाती हुई आगे की ओर बढ़ती हैं। इसके आगे कुमारी अन्तरीप व श्रीलंका का चक्कर लगाकर बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करती है। बंगाल की खाड़ी में भारत के पूर्वी तट के सहारे बहती हुई म्यांमार, सुमात्रा के पश्चिमी तट पर पहुँचती हैं और वहाँ भूमध्य रेखीय धारा से मिल जाती है। इसे दक्षिणी पश्चिमी मानसून प्रवाह (South West Monsoon Drift) भी कहते हैं।

शीत मानसून धारा (Winter Monsoon Current) - 

शीत ऋतु में उत्तरी पूर्वी मानसून के प्रभाव में एशिया महाद्वीप के दक्षिणी तटों के सहारे एक धारा प्रवाहित होती है। इसकी दिशा पूर्व से पश्चिम को रहती है। यह धारा पूर्वी अफ्रीका के तट पर उत्तर से दक्षिण की ओर मुड़ जाती है। इस सम्पूर्ण चक्र को उत्तरी पूर्वपूर्वी मानसून प्रवाह (North East Monsoon Drift) भी कहते हैं

दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा (South Equatorial Current) - 

यह धारा हिन्द महासागर में 100 से 150 दक्षिण अक्षांश के बीच आस्ट्रेलिया और अफ्रीका के बीच पूर्व से पश्चिमी की ओर दक्षिण पूर्वी सनातन पवनों के द्वारा उत्पन्न होती है। 100 अक्षांश के निकट हो यह मालागासी द्वीप के उत्तर में दो शाखाओं मोजाम्बिक धारा एवं अगुल्हास धारा में विभाजित होकर दक्षिण की ओर बहने लगती है।

ठण्डी धाराएँ-

पश्चिमी आस्ट्रेलियन धारा (West Australian Current) अण्टार्कटिक डिफ्ट की एक शाखा आस्ट्रेलिया के दक्षिणी-पश्चिमी तट से उत्तर की ओर आस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट के सहारे प्रवाहित होती है। 

अण्टार्कटिका प्रवाह (Antarctic Drift) 

हिन्द महासागर के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में अगुलहास धारा जब पछुआ पवन के प्रभाव में आती है तो वह पश्चिम से पूर्व की ओर मुड़कर अटकटिक प्रवाह के साथ मिलकर आगे बढ़ती है।

नाम

प्रकृति

1. मोजाम्बिक धारा

गर्म जल धारा

2. अगुल्हास धारा

गर्म जल धारा

3. दक्षिणी विषुवतरेखीय जलधारा

गर्म एवं स्थायी

4. पश्चिमी आस्ट्रेलिया की धारा

ठण्डी एवं स्थायी

5. ग्रीष्मकालीन मानसून प्रवाह

गर्म एवं परिवर्तनशील

6. शीतकालीन मानसून प्रवाह

ठण्डी एवं परिवर्तनशील

7. दक्षिणी हिन्द धारा  

ठण्डी


अलनिनो (क्रिसमिस के बच्चों की धारा) तथा ला निनो धारा

अलनिनो धारा - यह एक महासागरीय घटना है जिसकी उत्पत्ति विषुवत् रेखा के पास महासागरीय जल की ताप प्रवणत के कारण प्रशांत महासागर में होती है। अलनिनो धारा को विपरीत धारा के नाम से भी जाना जाता है। यह दक्षिणी अमेरिका के पेरू तट के पश्चिम में तट से 180 किमी की दूरी पर उत्तर से दक्षिण दिशा में प्रवाहित होती है।

अलनिनो का विस्तार 3° दक्षिण से 18° दक्षिण अक्षांश तक रहता है। इस धारा के कारण पेरू तट का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है।

  1. अलनिनो गर्म जलधारा है जिसके आगमन पर सागरीय जल का तापमान सामान्य से 3-4°C बढ़ जाता है। 
  2. अलनिनो को येशु शिशु तथा लानिनो को अलनिनो की छोटी बहन के रूप में मान्यता दी जाती है। 
  3. अलनिनो का संबंध पूर्वी प्रशांत महासागरीय जल के तापमान में वृद्धि तथा लानिनो का पश्चिमी प्रशांत महासागर के ऊष्मन से जोड़ा जाता है। पेरू का तटवर्ती महासागरीय जल सागरीय जीवों के लिए विश्व में सर्वाधिक उपयुक्त है।

जिस वर्ष अलनिनो प्रबल होती है उस वर्ष पूर्वी प्रशांत महासागर के पूर्वी उष्ण कटिबंधी भाग में जलवृष्टि में औसत से 4-6 गुना वृद्धि हो जाती है जबकि पश्चिमी प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में सूखे की स्थिति हो जाती है। इसके कारण इंडोनेशिया, भारत, बांग्लादेश आदि सूखे से ग्रसित रहते हैं।

इन्सो-  

अलनिनो तथा दक्षिणी दोलन को सम्मिलित रूप से इन्सो कहा जाता है। इन्सो को भूमंडलीय प्राकृतिक प्रकोप तथा विनाश का पर्याय माना जाता है।

डार्विन एवं ताहेती - 

अलनिनो की घटना को स्पष्ट करने के लिए डार्विन (130°W) एवं ताहेती (150 W ) के वायुदाब को सूचक माना गया है।

ला-निनो धारा -

ला-निनो एक प्रतिसागरीय धारा है। इसका आविर्भाव पश्चिमी प्रशांत महासागर में उस समय होता है जब पूर्वी प्रशांत महासागर में अलनिनो का प्रभाव समाप्त हो जाता है। ला-निनो के उद्भव के साथ पश्चिमी प्रशांत महासागर के उष्ण कटिबंधी भाग में तापमान में वृद्धि होने से वाष्पीकरण अधिक होता है जिससे इंडोनेशिया एवं समीपवर्ती भागों में सामान्य से अधिक वर्षा होती है।

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