राजस्थान में संत सम्प्रदाय | Rajasthan ke Pramukh Sant Sampraday

राजस्थान में संत सम्प्रदाय | Rajasthan ke Pramukh Sant Sampraday

rajasthan ke sant sampraday
 Rajasthan ke Pramukh Sant Sampraday

इस पोस्ट में आप राजस्थान के प्रमुख  संत or सम्प्रदाय ( Rajasthan ke Pramukh Sant Sampraday in Hindi ) Raj. GK, राजस्थान के संत संप्रदाय trick  के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे 

संत रज्जब जी

  • संत रज्जब जी का जन्म सांगानेर (जयपुर) मे 16वी सदी में हुआ ।
  •  विवाह के लिए जाते समय दादूजी के उपदेश सुनकर ये उनके शिष्य बन गये तथा जीवनभर दूल्हे के वेश में रहते हुए ' दादू के उपदेशों ' का बखान किया । " रज्जब वाणी एवं 'सर्वगी' इनके प्रमुख ग्रन्थ है । 
  • रज्जब जी की प्रधान गद्दी सांगानेर में है । 
  • रज्जब जी की मृत्यु भी सांगानेर (जयपुर) में हुई ।

संत सुन्दरदास जी

  • संत सुन्दरदास जी का जन्म दौसा जिले के खण्डेलवाल वैश्य परिवार में हुआ । 
  • सुन्दरदास जी के पिता का नाम श्री परमानन्द (शाह चोखा ) व माता का नाम सती था ।
  • दादू पंथ में नागा साधु वर्ग प्रारम्भ किया ।

संत पीपा जी

  • संत पीपा जी का जन्म 1525 ई. (सं. 1380) की चैत्र पूर्णिमा को गागरोन दुर्ग के राजा खींची चौहान कड़ावा राव के यहाँ हुआ ।
  • पीपा जी की माता का नाम लक्ष्मीवती था ।
  • पीपा जी के बचपन का नाम प्रतापसिंह था ।
  • संत पीपा जी रामानन्द जी के शिष्य थे ।
  • संत पीपा जी वस्त्रों की सिलाई का कार्य करते थे ।
  • दर्जी समुदाय पीपा जी को अपना आराध्य देवता मानता है । 
  • समदडी, जोधपुर के मसूरिया, गढ गागरोन में पीपाजी के मेले आयोजित होते हैं ।
  • समदडी ग्राम (बाडमेर) में पीपाजी का मंदिर स्थित है ।
  • दिल्ली के सुल्तान फिरोजशाह तुगलक के द्वारा गागरोण पर हमला किये जाने पर संत पीपा जी ने फिरोजशाह तुगलक को पराजित किया था ।
  • टोडा (टोंक) में पीपाजी की गुफा है । पीपाजी की 20 रानियाँ थी । 
  • पीपाजी ने अपनी छोटी पत्नी रानी सीता पद्मावती की प्रेरणा व कुलदेवी की कृपा अपना राजकाज अपने भतीजे को सौंपकर वैराग्य धारण कर लिया । 
  • पीपाजी का श्रीहरि साक्षात दर्शन "द्वारकाधीश मंदिर' में हुआ । 
  • संत पीपाजी की चमत्कारिक घटनाओं में तेली जाति के एक व्यक्ति को मारकर पुन: जीवित करना और खूँखार जानवर शेर को भी पालतू बना लेना आदि शामिल है । 
  • पीपाजी ने अपना अंतिम समय टोंक जिले के ' टोडा ग्राम ' में स्थित एक गुफा में भजन करते हुए व्यतीत किया जहाँ पर चैत्र कृष्ण नवमी को देवलोक (मृत्यु) को प्राप्त हुए । वह गुफा आज " संत पीपा की गुफा' (तहसील-टोड़ारायसिंह, जिला टोंक) के नाम से जानी जाती है । 
  • संत पीपाजी की छतरी कालीसिंध नदी के किनारे गागरोण दुर्ग (झालावाड) में स्थित है जहाँ उनके चरण चिह्न की पूजा होती है । 
  • संत पीपाजी के त्याग व सेवा रूपी कार्यो के बारे में संत रविदास के विचार इस प्रकार से है
 न कबीर के लक्ष्मी ना कोऊ मेरे ठाट ।
धन पीपा जिन तज दियो, रबिया राज अरू पाट । ।

माव जी

  • संत माव जी को महामनोहर जी के नाम से भी जाना जाता है ।
  • संत मावजी का जन्म बागड़ प्रदेश के सांबला ग्राम (डूंगरपुर) में हुआ ।
  • 1727 ई में बेणेश्वर नामक स्थान पर संत मावजी को ज्ञान की प्राप्ति हुई और यहीं इन्होंने बेणेश्वर धाम की स्थापना की ।
  • मावजी की वाणी 'चोपडा' कहलाती है ।
  • संत मावजी की पीठ-साबला ग्राम में स्थित है ।
  • संत मावजी का प्रमुख मंदिर माही नदी तट पर साबला गाँव में है ।
  • इन्हें श्रीकृष्ण के निकलंकी अवतार के रूप में माना जाता है ।
  • संत मावजी ने निष्कलंक सम्प्रदाय की स्थापना की ।

रामचरण जी

  • रामचरण जी का जन्म 1718 ई. में माघ शुक्ल चर्तुदशी लोडा ग्राम (जयपुर) में हुआ ।
  • इनके बचपन का नाम रामकिशन था ।
  • रामचरण जी के माता का नाम देऊजी तथा पिता का नामा बख़तराम था ।
  • इनकी पत्नी का नाम गुलाम कंवर था !
  • रामचरण जी एक रात को घूमते-घूमते मेवाड़ के  शाहपुर पहुंचे । वहाँ दातड़ा ग्राम में रह रहे स्वामी श्री कृपाराम जी महाराज को अपना गुरू स्वीकार किया ।
  • सोडा ग्राम रामचरण जी का ननिहाल था, जहाँ उनका जन्म हुआ, ' इनका वास्तविक गाँव बनवाडो था ।
  • रामचरण जी के कूल 12 प्रधान शिष्य थे ।
  • गुरू कृपाराम जी ने रामकिशन को रामचरण जी नाम प्रदान किया ।
  • इनके अनुयायी गुलाबी वस्त्र धारण करते है ।
  • वि. संवत् 1817 ई. में रामचरण जी ने रामस्नेही सम्प्रदाय की स्थापना की
  • शाहपुरा ( भीलवाडा) में रामस्नेही सम्प्रदाय की प्रधान पीठ स्थित है ।
  • रामचरण जी के उपदेश ' अणर्भवाणी ' आनाभाई वैणी' नामक ग्रन्थ में संग्रहित है ।

रामस्नेही सम्प्रदाय की राजस्थान में चार पीठे है

1. शाहपुरा 
2. रैण
3. सिंहथल 
4. खेड़ापा

  • शाहपुरा पीठ की नींव संत रामचरण जी ने डाली थी ।
  •  रैण (मैड़ता सिटी, नागौर) इसके संस्थापक संत दरियाव जी है ।
  • खेड़ापा (जोधपुर) इसके संस्थापक रामदास जी है ।
  • सिंहथल (बीकानेर) इसके संस्थापक संत हरिराम दास जी है ।
  • रामचरण जी ने गुरु के महत्व पर सर्वाधिक बल दिया । इनके अनुसार गुरू से दीक्षा प्राप्त किये बिना कोई भी राम स्नेही भवसागर से छुटकारा प्राप्त नहीं कर सकता ।
  • रामस्नेही सम्प्रदाय में निर्गुण भक्ति तथा सगुण भवित की रामधुनी एवं भजन कीर्त्तन की परम्परा के समन्वय से निर्गुण-निराकार परब्रह्म राम की उपासना की जाती है ।
  • इनका राम दशरथ पुत्र राम न होकर कण-कण में व्याप्त निर्गुण-निराकार परब्रह्म है ।
  • रामद्वारा - रामस्नेही सम्प्रदाय का प्रार्थना स्थल ।
  • बैशाख कृष्णा पंचमी गुरूवार विक्रम संवत् 1855 ( 5 अप्रेल, 1797 ) को रामचरण महाराज ने शाहपुरा ( भीलवाडा) में महानिर्वाण प्राप्त किया । 
  • होली के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण एकम् से चैत्र कृष्ण पंचमी तक फूलडोल का मेला लगता है ।

संत चरणदास जी

  • चरणदास जी का जन्म अलवर जिले में डेहरा नामक गाँव में 1703 में मुरलीधर वैश्य के यहाँ हुआ ।
  • इनके गुरू का नाम शुकदेव मुनि था ।
  • चरणदास जी की माता का नाम कुंजो देवी था ।
  • इनका प्रारम्भिक नाम रणजीत था ।
  • इनके प्रमुख ग्रन्थ -' ब्रह्म ज्ञान सागर ', ' ब्रह्मचरित्र ' भक्ति सागर' तथा ' ज्ञान सर्वोदय ' है ।
  • चरणदास जी पीले वस्त्र पहनते थे ।
  • चरणदास जी ने नादिरशाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी ।
  • श्रीमद् भागवत को चरणदास जी ने आधार धर्मग्रन्थ माना ।
  • चरणदास जी का पंथ चरणदासी पंथ कहलाया ।
  • चरणदासी पंथ सगुण एवं निर्गुण  भक्ति मार्ग का मिश्रण है ।
  • चरणदासी पंथ का मेवात तथा दिल्ली के क्षेत्र में अत्यधिक प्रभाव है ।
  • राज्य का एकमात्र संत जिसका जन्म राजस्थान में हुआ परंतु इनके द्वारा चलाए गए चरणदासी संप्रदाय की मुख्य पीठ दिल्ली में है ।
  • सहजोबाईं तथा दयाबाई इनकी दो प्रमुख शिष्या थी ।

  1. सहजोबाई  - सहजोवाई का जन्म डेहरा गाँव (अलवर) के एक वैश्य परिवार में 1800 ईं. में हुआ । इन्होनें सहज प्रकाश नामक ग्रंथ की रचना की ।
  2. दयाबाई - दयाबाई का जन्म मेहरा ग्राम (अलवर) में हुआ । इन्होनै 'दया बोध ' और 'विनय मालिका ' नामक दो ग्रंथों की रचना की ।
  • इस सम्प्रदाय के 42 नियम है ।
  • चरणदास जी का निधन दिल्ली में 1782 में हुआ । यहाँ इनकी समाधि पर वसंत पंचमी को मेला लगता है ।

धन्ना जी

  • इनका जन्म 1415 ई. में धुवन(टोंक) में हुआ था। 
  • धन्ना जी जाति से जाट थे ।
  •  इनके द्वारा रचित पदों को ' धन्नाजी की आरती ' कहा जाता है ।  
  • 5 वें सिक्ख गुरू अर्जुनदेव ने भी धन्नाजी की भक्तिभाव के बारे में गुरू ग्रंथ साहिब में उल्लेख किया है । 
  • इनका मुख्य मेला धूवन गाँव (टोंक) में लगता है, जहाँ सर्वाधिक अनुयायी पंजाब से आते है । 
  • धन्ना जी निर्गुण उपासक थे । 
  • धन्ना जी राजस्थान छोडकर बनारस गए और रामानंद के शिष्य बन गए । 
  • राजस्थान में भक्ति अन्दोलन के जनक संत धन्ना जी माने जाते है । 
  • धना जी का स्मारक जोबनेर (जयपुर) में स्थित है ।

भक्ति कवि दुर्लभ

  • इनका जन्म 1753 में बागड क्षेत्र में हुआ था । 
  • इनको ' राजस्थान का नृसिंह ' भी कहा जाता है ।
  • दुर्लभ जी ने डूंगरपुर और बाँसवाड़ा को अपना कार्य क्षेत्र बनाया । 
  • दुर्लभ जी ने लोगों को कृष्ण भक्ति के उपदेश दिये ।

हरिराम दास जी

  • हरिराम दास जी का जन्म व मृत्यु सिंहथल (बीकानेर) में हुआ ।
  •  इनके पिता का नाम श्री भागचन्द जी जोशी था ।
  •  हरिराम दास जी के गुरू संत श्री जैमलदास जी थे ।
  • हरिराम दास जी ने जैमलदास जी से रामस्नेही पंथ की दीक्षा ली तथा रामस्नेही सम्प्रदाय की सिंहथल शाखा स्थापित की । 
  • इनकी प्रमुख कृति ' निशानी ' थी । इसमें प्राणायाम, समाधि एवं योग के तत्त्वों का उल्लेख है ।
  • इन्होंने गुरू को पारस पत्थर से भी उच्च स्थान दिया ।
  • सिंहथल (बीकानेर) में रामस्नेही पंथ के संस्थापक संत हरिराम दास जी है ।

लालदास जी

  • इनका जन्म मेवात प्रदेश के धोलीदूव गाँव में श्रावण कृष्ण पंचमी को 1540 ई. में हुआ । 
  • इनके माता-पिता का नाम सपदा-चांदमल था । 
  • लालदास जी मेव जाति के लकड़हारे थे । 
  • इनके पूजा स्थल अलवर, शेरपुर व नगला में हैं । 
  • भरतपुर व अलवर की मेव जाति मे लालदास जी की अधिक मान्यता है । 
  • लालदासी सम्प्रदाय के उपदेश 'वाणी' नामक ग्रन्थ में संग्रहित है । 
  • लालदासजी 'लालदासी सम्प्रदाय ' के संस्थापक है । 
  • इनका समाधि स्थल नगला (भरतपुर) में है ।
  • लालदास जी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया ।
  • लालदास जी ने तिजारा के मुस्लिम संत गद्दन चिश्ती (मद्दाम) से दीक्षा ली थी ।
  • इनकी मृत्यु नगला गाँव (भरतपुर रियासत) में हुईं थी । 
  • लालदासजी की चेतावनियाँ उनका प्रमुख काव्य ग्रंथ है ।
  • इस संप्रदाय में दीक्षित करने के लिए शिष्य को गधे पर काला मुँह 'करके उल्टा बिठाया जाता है और फिर उसे गाँव की गलियों में घुमाया जाता है ता कि उसके जीवन में लेशमात्र भी अभिमान न रहे । 
  • शाहजहाँ का पुत्र दाराशिकोह संत लालदासजी से मिलने आया था । तब संत ने कहा कि दिल्ली के तख्त पर तो वही बैठेगा, जो अपने भाईयों की हत्या करेगा । आगे चलकर यह भविष्यवाणी सिद्ध हुई । औरंगजेब ने अपने भाईयों दाराशिकोह, शुजा व मुराद का वध करके दिल्ली के तख्त पर कब्जा किया था ।
  • इस पंथ के लोग मेव जाति की कन्या से विवाह करते है । 
  • लालदास जी ने समाज में व्याप्त मिथ्याचारों और अंधविश्वासों का विरोध किया व भक्ति तथा नैतिक शुद्धता पर बल दिया ।

हरिदास निरंजनी

  • इनका जन्म कापडोद (नागौर) में हुआ । 
  • हरिदास जी सांखला क्षत्रिय परिवार के थे । 
  • इनका मूल नाम हरिसिंह था ।
  • हरिदास जी ने निर्गुण भक्ति का उपदेश देकर 'निरंजनी सम्प्रदाय ' चलाया ।
  • इनके उपदेश 'मंत्र राज प्रकाश ' तथा ' हरिपुरुष जी की वाणी' में संग्रहित है ।
  • हरिदास जी संत बनने से पहले डकैत थे ।
  • हरिदास (हरिपुरुष) जी को 'कलियुग 'का वाल्मिकी' कहा जाता है ।
  • इनको कुटुम्बियों के महात्मा ने समझाया कि ' जो हत्यालूट करेगा, वही उस पाप का भागीदार होगा' यह सुनकर हरिदास जी ने डकैत का मार्ग छोड़ दिया ।
  • हरिदास जी ने 'तीखी डूंगरी' पर जाकर घोर तपस्या की ।
  • गाढा बास/गाढा धाम-नागौर की डीडवाना तहसील के गाँव में हरिदास जी ने समाधि ग्रहण की ।
  • पहले ये डकैती का काम करते थे,परंतु एक दिन एक महात्मा ने इन्हें समझाया कि' जो व्यक्ति हत्या व लूटमार करता है वही उस पाप का भागीदार होता है न कि उसको खाने वाला । ' यह सुनकर हरिसिंह डकैती का कार्य छोडकर कापडौद के नजदीक ' तीखी डूगरी ' पर घोर तपस्या कर अपना एक 'निरंजनी संप्रदाय चलाया । 
  • इनके द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथ भक्त विरदावली ‘, भरथरी संवाद तथा "साखी" है ।
  • संत हरिदास जी ने गाढा बाँस गांव (डीडवाना-नागौर) में समाधि ली जहाँ प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ल एकम् से फाल्गुन शुक्ल द्वादशी तक मेला लगता है ।

संत रैदास

  • संत रैदास जी के गुरू का नाम रामानन्द था ।
  • रैदास जी की वाणियों को ' रैदास की परची ' भी कहते है । रैदास चमार जाति से थे ।
  • संत रैदास जी जाति-पांति व बाह्य आडम्बरों के कट्टर विरोधी थे ।
  • रैदास की वाणियां मानवता, सहिष्णुता, आत्मसमर्पण, भक्ति आदि विषयों से सम्बन्धित्त रसों को लोगों के दिलों में आज तक प्रेरणा की स्त्रोत बनी हुई है ।
  • कबीरदास जी ने रैदास को संतो का संत कहा ।
  • रैदास जी की छतरी चित्तौड़गढ के कुम्भश्याम मंदिर के एक कोने में है ।
  • मीरां बाई के गुरू का नाम रैदास था ।
  • रैदास के ग्रंथ परची कहलाते है ।

संत जैमलदास जी

  • संत जैमलदास जी रामस्नेही सम्प्रदाय के प्रसिद्ध संत श्री माधोदास जी दीवान के शिष्य थे ।
  • जैमलदास जी ने हरिराम दास जी को दीक्षा दी थी ।
  • जैमलदास जी को सिंहथल खेड़ापा शाखा का आचार्य भी माना जाता है ।

आचार्य परशुराम

  • इनका जन्म 16वी शताब्दी में ठीकरिया गाँव (सीकर) में हुआ था ।
  • आचार्य परशुराम 36वे निम्बाकाचार्य थे ।
  • इन्होंने हरिव्यास देवाचार्य से दीक्षा प्राप्त कर मथुरा में नारद टीले पर तप किया ।
  • सलेमाबाद (अजमेर) में निम्बार्क संप्रदाय की पीठ की स्थापना के साथ एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया जहाँ पर इन्होंने जीवित समाधि ली ।
  • सलेमाबाद में आज भी उनकी चरण यादुकाओं की पूजा की जाती है ।
  • जयपुर नरेश जगतसिंह ने सलेमाबाद जाकर आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त किया तत्पश्चात् राजकुमार जयसिंह का जन्म हुआ ।
  • 19वीं सदी में इस राजवंश ने इस संप्रदाय को काफी आश्रय प्रदान किया ।

गूदड़ सम्प्रदाय

  • गूदड़ संप्रदाय के प्रवर्तक संतदास जी थे । 
  • इस संप्रदाय की प्रमुख गद्दी दाँतड़ा (भीलवाडा) में है ।
  • संतदास जी गूदडी से वने कपडे पहने थे । इसलिए इस संप्रदाय का नाम मूदड संप्रदाय पडा ।

परनामी सम्प्रदाय

  • कृष्ण भगवान को अपना अराध्य देव मानने वाले प्राणनाथ जी (जामनगर-गुजरात) ने अपने गुरू निजानंद स्वामी से दीक्षा लेकर 'परनामी संप्रदाय' की स्थापना की ।
  • प्राणनाथ जी की शिक्षाएँ एवं उपदेश "कुंजलभ स्वरूपं' नामक ग्रंथ में उल्लेखित है ।
  • परनामी संप्रदाय मुख्य पीठ 'पना' (मध्यप्रदेश) में है ।
  • राजस्थान में परनामी संप्रदाय के सर्वाधिक अनुयायी आदर्श नगर (जयपुर) में रहते है । जहाँ इनकी पीठ है ।

संत रामदास जी

  • इनका जन्म भीकमकोर ग्राम (जोधपुर) में हुआ तथा मृत्यु खेड़ापा में हुई ।
  • रामदास जी ने रामस्नेही सम्प्रदाय के श्री हरिरांमदास जी से दीक्षा ग्रहण कर इस सम्प्रदाय की खेड़ापा शाखा स्थापित की ।

संत नवलदास जी (नवल सम्प्रदाय )

  • नवल संप्रदाय के प्रवर्तक संत नवल दास जी थे ।
  • संत नवल दास जी का जन्म हस्सोलाव गाँव (नागौर) में जन्म हुआ था ।
  • नवल संप्रदाय की प्रमुख पीठ जोधपुर में है ।
  • इनकी वाणी का संगृह 'नवलेश्वर अनुभव वाणी' में है

अलखिया सम्प्रदाय 

  • चूरू जिले में जन्मे स्वामी लाल गिरी द्वारा 10वीं शताब्दी में इस निर्गुण भक्ति संप्रदाय की स्थापना की गई । 
  • आलखिया संप्रदाय की प्रमुख पीठ बीकानेर में है । ' अखल स्तुति प्रकाश ' इस संप्रदाय का प्रमुख ग्रंथ है ।

नरहड़ के पीर

  • नरहड़ के पीर का नाम हज़रत शक्कर बाबा बताया जाता है । 
  • इनकी दरगाह चिड़ावा (झुंझुनू) के पास नरहड़ ग्राम में है ।
  • शेख सलीम चिश्ती नरहड़ पीर के शिष्य थे, जिनके नाम पर बादशाह अकबर ने अपने पुत्र का नाम सलीम (बादशाह जहांगीर) रखा ।
  • नरहड़ पीर को शेखावटी (सीकर, चूरू, झुंझुनू) क्षेत्र में पूरी मान्यता है।
  • नरहड़ के पीर का उर्स जन्माष्टमी पर भरता है ।
  • पुरानी मान्यता के अनुसार पागलपन के असाध्य रोगी भी इनकी जात से ठीक हो जाते है ।
  • नरहड़ के पीर 'बागड के धणी' के रूप में प्रसिद्ध है ।
  • नरहड पीर की दरगाह साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा स्थल है ।

ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती 

  • गरीब नवाज ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का जन्म फारस के एक गाँव सर्जरी में हुआ था ।
  • अजमेर जिले में ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है, जहाँ उर्स पर विशाल मेला लगता है । यह उर्स रज्जब मास की 1 से 6 तारीख तक भरता है ।
  • मुईनुद्दीन चिश्ती ने पृथ्वीराज चौहान तृतीय के काल में अजमेर को अपनी कर्मस्थली बनाया ।
  • उर्स का मेला हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिक सद्भाव का सर्वोत्तम केन्द्र है ।
  • अकबर पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा से पैदल जियारत करने यहाँ आया था ।

पीर फखरुद्दीन

  • ये दाउदी बोहरा सम्प्रदाय के आराध्य पीर है । 
  • पीर फखरूद्दीन की गलियाकोट (डूंगरपुर) में दरगाह है

राजस्थान के संत संप्रदाय trick एवं उनकी प्रमुख गद्दी 

  1. अलखिया संप्रदाय बीकानेर
  2. बिश्नोई संप्रदाय मुकाम तालवा नोखा (बीकानेर) 
  3. ज़सनाथी संप्रदाय कतरियासर (बीकानेर)
  4. गूदड़ संप्रदाय , दाँतडा (भीलवाड़ा)
  5. रामस्नेही संप्रदाय शाहपुरा (भीलवाडा)
  6. लालदासी संप्रदाय नगला (भरतपुर)
  7. दादूपंथ नारायणा(जयपुर)
  8. गौडीय (ब्रह्म) संप्रदाय गोविंद देवजी (जयपुर)
  9. रामानन्दी संप्रदाय गलताजी (जयपुर)
  10. रसिक संप्रदाय रैवासा (सीकर)  
  11. निरंजवी संप्रदाय गाढा डीडवाना-नागौर'
  12. नाथ संप्रदाय जोधपुर
  13. नवल संप्रदाय जोधपुर
  14. वल्लभ संप्रदाय नाथद्वासा राजसमंद 
  15. निम्बार्क संप्रदाय सलेमाबाद (अजमेर) 
  16. चिश्ती संप्रदाय अजमेर 
  17. चरणदासी संप्रदाय दिल्ली

Read also

  1. संत - दादूदयाल
  2. संत जसनाथ जी 
  3. संत जांभोजी विश्नोई
Rajasthan ke Pramukh Sant Sampraday ke PDF download krne ke liye download butan pr click kre

 राजस्थान के संत संप्रदाय pdf download

Post a Comment

3 Comments

close