Short Notes on Dadu dayal ji | राजस्थान के संत - दादूदयाल

नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में आप राजस्थान के प्रमुख  संत दादूदयाल दादू सम्प्रदाय  के संस्थापक के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगे तो अपने दोस्तों को जरूर शेयर करें

राजस्थान के प्रमुख संत dadu दयाल


Rajasthan ke sant dadu dayal ji
राजस्थान के संत - दादूदयाल

  • दादूदयाल जी का जन्म 1544 ईं. (फाल्गुन शुक्ल अष्टमी) अहमदाबाद में हुआ ।
  • संत दादू की शिष्य परम्परा में 152 शिष्य माने जाते हैं, जिनमें 52 प्रमुख शिष्य अब 52 स्तम्भ कहलाते हैं ।
  • दादूजी की रचनाएँ दादूदयाल री वाणी और दूहा हरड़ेवाणी है । इनकी भाषा ढूंढाडी है ।
  • दादूदयाल जी की कर्म भूमि राजस्थान थी ।
  • भगवत् भक्ति के साथ-साथ दादू धुनिये का कार्यं भी करते थे । नरैना या नरायणा (जयपुर) में दादूपंथियों की प्रधान गद्दी स्थित है । 
  • 1585 ईं. में फतेहपुर सीकरी की यात्रा के दौरान उन्होंने अकबर से भेंट की तथा उसे अपने विचारों से प्रभावित किया ।
  • संत दादूजी ने ईश्वर गुरू में आस्था, प्रेम और नैतिकता,आत्मज्ञान, जात-पात की निस्सारता तथा सत्य एवं संयमित जीवन पर जोर दिया । 

दादू सम्प्रदाय की स्थापना

  • 1574 ई. में दादू दयाल ने साम्भर में दादू सम्प्रदाय की स्थापना की तथा मृत्यु के बाद दादूपंथ नाम से जाने गये ।
  • दादूपंथ के सत्संग स्थल अलख दरीबा कहलाते है ।
  • 1568 ई. में सांभर में आकर प्रथम उपदेश दिया । सन् 1602 में नरैना (फुलेरा) आ गये और वही ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी 1605 ईं. में महाप्रयाण किया ।
  • नारायणा/नराणां (जयपुर) में दादूजी के कपडे और पोथियां वर्त्तमान समय तक सुरक्षित रखी गई है ।
  • दादूजी के शरीर को भैराण की पहाडी दादूखोल नामक गुफा में समाधि ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी संवत् 1660 या 1605 ई को दी गई । 
  • सांभर में जब विद्रोहियों ने दादू जी के विरुद्ध षडयंत्र रचना प्रारम्भ किया तो 1575 ई० में दादू अपने 25 शिष्यों दो साथ आमेर चले गये ।
  • दादू पंथी हमेशा अविवाहित रहते है ।
  • दादूपंथी अपनी मृत्यु के बाद शव को पशु-पक्षियों को खिलाते हैं । 
  • संत सुंदरदास एकमात्र ऐसे कवि जिन्हें साहित्य मर्मज्ञ और पद साखियों के अतिरिक्त कवित्त सवैया लिखने में सिद्धहस्त माना जाता है, जिसकी भाषा ' पिंगल ' थी । 
  • दादूजी को दूसरा शंकराचार्य भी कहा जाता है ।
  • इन्होंने 42 ग्रंथों की रचना की जिनमें ' ज्ञान समुद्रा, ज्ञान सवैया (सुंदर विलास) , सुंदर सार, सुंदर ग्रंथावली ' इनके महत्वपूर्ण ग्रंथ है ।

लोक मान्यता के अनुसार… 

  • दादूदयाल साबरमती नदी (अहमदाबाद-गुजरात) में बहते हुए लोदीरामजी (सारस्वत ब्राह्मण) को संदूक में मिले ।
  • दादूजी ने कबीरदास के शिष्य श्री वृंदावन जी (बुड्ढनजी) से 11 वर्ष की उम्र में दीक्षा लेकर घर को त्यागा और मात्र 19 वर्ष की आयु में राजस्थान में प्रवेश कर सिरोही, कल्याणपुर, साँभर, अजमेर होते हुए अंततः दूदू के पास 'नारायणा' में अपना स्थान अंतिम समय व्यतीत किया । 
  • दादूदयाल के 152 शिष्य थे जिनमें से प्रमुख 52 शिष्य जो 52 स्तंभ कहलाते है, जिनमें पुत्र ' गरीबदास” ,मिस्किनदास के अलावा बखनाजी, रज्जबजी, सुंदरदासजी, जगन्नाथ व माधोदासजी आदि प्रमुख है ।
  • नागा पंथदादूजी के शिष्य सुंदरदासजी द्वारा शुरू किया गया नागा पंथ जिसमें साधुओं के पास हथियार भी होते है । 
  • इसी नागा संप्रदाय के संतों ने जयपुर राज्य के सवाई जयसिंह व जोधपुर के राजा मानसिंह की सहायता की थी ।
  • जिस दिन दादूजी की मृत्यु हुई उसी दिन से उन्होनें अपनी आँखें बंद कर ली और जीवनभर नहीं खोली ।
  • इनका निवास स्थल 'रज्जब द्वार' कहलाता है ।
  • इनके शिष्यों को 'रज्जवात‘ अथवा ' रज्जब पंथी ' कहा है । 
  • राजस्थान में भक्ति आंदोलन को फैलाने का श्रेय दादूजी को है । दादूजी के गुरू का नाम वृद्धानन्द था ।
  • दादूदयाल के प्रमुख ग्रन्थ दादूदयाल री वाणी , दादूदयाल रां दूहा , कायाबेली है ।

दादूजी को ' राजस्थान का कबीर ' कहा जाता है ।  सम्भवत: दादूजी मुसलमान एवं व्यवसाय से धुनिया थे ।

दादू पंथ की शाखाएं

दादूपंथी पांच प्रकार के होते है
  1.  खालसा गरीबदास जी की आचार्य परम्परा से सम्बद्ध साधु ।
  2. विरक्त - रमते फिरते गृहस्थियों को दादू धर्म का उपदेश देने वाले साधु ।
  3. उत्तरादे व स्थानधारी - जो राजस्थान को छोडकर उत्तरी भारत में चले गये ।
  4. खाकी - जो शरीर पर भस्म लगाते है व जटा रखते है । 
  5. इसके अलावा इनमें नागा साधु भी होते हैं । नागा शाखा सुंदरदास प्रवर्तक ।

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