राजस्थान के प्रमुख दुर्ग व किले - Rajasthan ke Durg in Hindi

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राजस्थान के प्रमुख दुर्ग व किले - राजस्थान की स्थापत्य कला का जनक राणा कुम्भा को माना जाता है । मुगल काल में राजस्थान की स्थापत्य कला पर मुगल शैली का प्रभाव पडा । हिन्दू कारीगरों ने मुस्लिम आर्दशों के अनुरूप जो भवन बनाए, उन्हें सुप्रसिद्ध कला विशेषज्ञ फर्ग्युसन ने इंडो-सारसेनिक शैली की संज्ञा दी है ।

राजस्थान के प्रमुख दुर्ग व किले - Rajasthan ke Durg in Hindi

राजस्थान के प्रमुख दुर्ग
राजस्थान के प्रमुख दुर्ग व किले 

  • जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह (प्रथम) को हिन्दुषत् कहा जाता था क्योंकि उनकी रूचि स्थापत्य कला में थी ।
  • महाराणा कुम्भा स्वयं शिल्पशास्त्री मंडन द्वारा वास्तुकला पर रचित साहित्य से प्रभावित था ।

15वीं शताब्दी में मेवाड़ के शिल्पी मंडन ने पाँच ग्रन्थ लिखें , जो निम्नलिखित थे

  1. प्रसाद मंडन - इसमें देवालय निर्माण के निर्देश दिये गये है ।
  2. रूपावतार मंडन - इसमें मूर्तियों के निर्माण सम्बन्धी निर्देश दिये गये है ।
  3. रूप मंडन - इसमें भी मूर्ति निर्माण सम्बन्धी सामग्री दी हुई है ।
  4. गृह मंडन - इसमें सामान्य व्यक्तियों के गृह, कुआँ, बावडी, तालाब महल आदि के निर्माण सम्बन्धी सामग्री दी हुई है ।
  5. वास्तुकार मंडन - इसमें विविध तत्वों से सम्बन्धित वर्णन है ।
  • मंडन के निर्देशन में ही चित्तौड़ के कीर्ति स्तम्भ का निर्माण किया गया ।

शुक्रनीति के अनुसार राज्य को यदि शरीर मान लिया जाता तो दुर्ग को शरीर के प्रमुख अंग हाथ की संज्ञा दी जाती है। शुक्रनीति के अनुसार, राज्य के सात अंग बताए गए हैं इनमें दुर्ग भी एक अंग है।  (i) स्वामी / राजा (ii) आमात्य (iii)सुहृत / गुप्तचर (iv) कोष (v) राष्ट्र (vi) दुर्ग (vii) सेना

Trick- 'पा ए पा व धन गिरि सहाय सैन्य दुर्ग'

शुक्र नीति में राजस्थान के दुर्गों का 9 तरह से वर्गीकरण किया गया जो निम्नलिखित प्रकार से है

  1. एरन दुर्ग - यह दुर्ग खाई, काँटों तथा कठोर पत्थरों से निर्मित होता हैं । उदाहरण - रणथम्भीर दुर्ग, चित्तौड़ दुर्ग ।
  2. धान्वन (मरूस्थल) दुर्ग - ये दुर्ग चारों ओर रेत के ऊँचे टीलों से घिरे होते है । उदाहरण - जैसलमेर, बीकानेर व नागौर के दुर्ग ।
  3. औदक दुर्ग (जल दुर्ग) - ये दुर्ग चारों ओर पानी से घिरे होते है । उदाहरण - गागरोण (झालावाड), भैंसरोड़गढ़ दुर्ग (चित्तोंड़गढ़) ।
  4. गिरि दुर्ग - ये पर्वत एकांत में किसी पहाडी पर स्थित होता है तथा इसमे जल संचय का अच्छा प्रबंध होता है । उदाहरण - कुम्भलगढ़, मांडलगढ़ (भीलवाडा), तारागढ़ (अजमेर), जयगढ़, नाहरगढ़ (जयपुर) , अचलगढ (सिरोही), मेहरानगढ (जोधपुर) ।
  5. सैन्य दूर्ग - जो व्यूह रचना में चतुर वीरों से व्याप्त होने से अभेद्य हो ये दुर्ग सर्वश्रेष्ठ समझे जाते है ।
  6. सहाय दुर्ग - जिसमें वीर और सदा साथ देने वाले बंधुजन रहते हो ।
  7. वन दुर्ग - जो चारों और वनों से ढका हुआ हो और कांटेदार वृक्ष हो । जैसे सिवाना दुर्ग, त्रिभुवनगढ़ दुर्ग रणथम्भौर दुर्ग ।
  8. पारिख दुर्ग -वे दुर्ग जिनके चारों और बहुत बडी खाई हो । जैसे लोहागढ़ दुर्ग, भरतपुर ।
  9. पारिध दुर्ग - जिसके चारों ओर ईट, पत्थर तथा मिट्टी से बनी बडी-बडी दीवारों का सुदृढ परकोटा हो जैसे - चित्तोड़गढ़, कुम्भलगढ़ दुर्ग ।
  • महाराणा कुंम्भा ने लगभग 32 दुर्गो का निर्माण करवाया ।
  • बीकानेर का जूनागढ़, कोटा का इन्द्रगढ़ जयपुर का आमेर दुर्ग इंडो सार्सेनिक शैली में बने हुए है । किलों की दीवारों पर हमला करने के लिए रेत आदि से बना ऊँचा चबूतरा पाशीब कहलाता हैं ।
  • किलों में चमड़े से ढका मोटा रास्ता साबात कहलाता है । राजस्थान में गागरोण और भैंसरोड़गढ़ को जल दुर्गों की श्रेणी में सम्मिलित किया गया है ।

राजस्थान के दुर्गो पर हुए आक्रमण

दुर्ग   
आक्रमणकारी
भटनेर दुर्ग (1091 ईं)
महमूद गजनबी, (1398 ईं (हनुमानगढतैमूरअकबर
रणथम्भीर दुर्ग (1301 ईं॰में
अलाउद्दीन खिलजी।
 (सवाईमाधोपुर)
गागरोण दुर्ग (1303 ईं.)  
अलप खाँ महम्मुद खिलजी।
 ( झालावाड )
सिवाणा दुर्ग (बाडमेर) (1308 ईं.)
अलाउद्दीन खिलजी
शेरगढ़ दुर्गधौलपुर) (1500 ईं.
बहलोल लोदी
चित्तोड़गढ का किला  
अकबरअलाउद्दीन खिलजी,
 बहादुरशाह
जैसलमेर का दुर्ग      
मोहम्मद बिन तुगलक फिरोजशाह  तुगलक,अलाउद्दीन खिलजी
सुवर्ण गिरि दुर्ग (जालौर) (1311-12 ईं.)
अलाउद्दीन खिलजी

राजस्थान के प्रमुख दुर्ग

Rajasthan ke Durg in Hindi
Rajasthan ke Durg in Hindi

राजस्थान के दुर्गों की पूरी जानकारी जो निम्नलिखित प्रकार से है


भटनेर दुर्ग

bhatner durg in hindi
bhatner fort

पता: वार्ड न .21, किरन भवन के पास, हनुमानगढ़, राजस्थान 335513
  • इसका निर्माण तीसरी शताब्दी में हुआ
  • यह दुर्ग हनुमानगढ़ जिले में स्थित है
  • इस दुर्ग को रेगिस्तान श्रेणी में रखा जाता है
  • इस दुर्ग में मुस्लिम महिलाओं का जोहर संपन्न हुआ
  • बीकानेर महाराज दलपत सिंह की मूर्ति उनकी रानियों सहित इसी दुर्ग में स्थित है

राजस्थान के सबसे प्राचीन दुर्ग को उत्तरी सीमा का प्रहरी/उत्तरी भड़ किवाड़ हनुमानगढ़ (बीकानेर के शासक सूरतसिंह ने मंगलवार को इस दुर्ग पर अधिकार कर इसका नाम हनुमानगढ़ कर दिया।) आदि नामों से जाना जाता है। 

  • इसका निर्माण 288 ई. में/तीसरी शताब्दी में घग्घर नदी के मुहाने पर भाटी नरेश भूपत द्वारा करवाया गया। इस दुर्ग पर सर्वाधिक विदेशी आक्रमण हुये। 
  • यह राजस्थान का सबसे प्राचीन दुर्ग है। 
  • तैमूरलंग ने नवम्बर 1398 ई. में भटनेर दुर्ग पर आक्रमण किया था। 
  • इसके बारे में तैमूर ने अपनी आत्मकथा “तुजुक-ए-तैमूरी" में लिखा है कि “मैंने इतना मजबूत व सुरक्षित किला पूरे हिन्दुस्तान में कहीं नहीं देखा"। 
  • इस दुर्ग में शेर खां की कब्र स्थित है। 
ध्यातव्य रहे- मध्य एशिया से आने वाले तमाम आक्रमण को भारत में सबसे पहले 'भटनेर दुर्ग' (हनुमानगढ़) ने झेला था।

भरतपुर दुर्ग

लोहागढ़ किला राजस्थान के में भरतपुर स्थित है। इसका निर्माण भरतपुर जाट शासकों द्वारा किया गया था। महाराजा सूरज मल ने अपने राज्य भर में कई किले और महल बनवाए, उनमें से एक लोहागढ़ किला है, जो भारतीय इतिहास में अब तक का सबसे मजबूत किला है।
Lohagarh Fort in hindi


पता: लोहागढ़ किला, गोपालगढ़, भरतपुर, राजस्थान 321001
  • भारतपुर दुर्ग का निर्माण सूरजमल जाट ने करवाया था
  • इस दुर्ग को पारीख श्रेणी में रखा जाता है
  • भरतपुर को अजय दुर्ग लोहागढ़ आदि नामों से जाना जाता है
भरतपुर में स्थित लोहागढ़ दुर्ग पारिख व स्थल दुर्ग की श्रेणी में आता है, जिसका निर्माण सूरजमल जाट (जाटों का प्लेटो/जाटों का अफलातून) द्वारा 1733-34 में करवाया गया, जिसे लोहागढ़ / अभेद्य दुर्ग/मिट्टी का किला/अजयगढ़/पूर्वी सीमान्त का प्रहरी आदि नामों से जाना जाता है। 
  • इस दुर्ग की विशेषता है कि यह एक जलभरी खाई से घिरा हुआ है। लोहागढ़ दुर्ग के स्थान पर पूर्व में लुहिया गांव के खेमकरण जाट द्वारा 1708 में एक मिट्टी की गढ़ी बनाई गई, जिसे 'चौबुर्जा' नाम से जाना जाता है। 
  • इस दुर्ग के निर्माण में कुल 8 वर्ष का समय लगा। 
  • इस किले के चारों ओर गहरी खाई है। इस खाई में मोती झील से सुजानगंगा नहर द्वारा पानी लाया जाता है। 

"हट जा गौरा पाछ न" व "आठ फिरंगी नौ गौरा लड़े जाट का दो छोरा" (यह दो छोरा दुर्जनलाल और माधोसिंह थे) आदि । कहावतें भरतपुर दुर्गा के लिए प्रसिद्ध है। 

  • इस दुर्ग में जवाहर बुर्ज (दिल्ली विजय पर) व फतेह बुर्ज (1806 में अंग्रेजों पर विजय के उपलक्ष्य में) बनवाये गये। 
  • इस दुर्ग में अष्ट धातु के किवाड़ लगे हुये। है, जिसे अल्लाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ से उतार कर दिल्ली के झीरी के किले पर वहाँ से शाहजहाँ ने लाल किले पर तथा वहाँ से 1765 ई. में जवाहर सिंह ने इस दुर्ग में लाकर लगा दिया। 

इसमें बिहारी मन्दिर व राजेश्वरी माता (भरतपुर वंश की कुल देवी) का मन्दिर है। राजस्थान का एकमात्र किला जिस पर अंग्रेज जनरल लॉर्ड लेक ने पाँच बार चढ़ाई की किन्तु असफल रहा।

चूरू का दुर्ग

Churu fort history in hindi
Churu fort history

  • इसका निर्माण ठाकुर कुशाल सिंह ने किया था
  • बीकानेर महाराजा सूरत सिंह के आक्रमण के समय ठाकुर शिव सिंह ने चांदी के गोले बरसाए थे

भैंसरोडगढ़

भैंसरोडगढ़ durg in hindi

भैंसरोडगढ़


  • इस दुर्ग का निर्माण भैंसाशाह और रोड़ा चारण ने करवाया था
  • यह दुर्ग जल दुर्ग की श्रेणी में आता है
  • भैंसरोडगढ़ चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित है
  • यह दुर्ग चंबल में बामणी नदी के संगम पर स्थित है इसे राजस्थान का वेल्लोर भी कहा जाता है
  • कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार इस दुर्ग को व्यापारियों की सुरक्षा के लिए उपयोग किया जाता था

मैगजीन किला

मैगजीन किला
Magazine fort

  • इस किले का निर्माण अकबर ने करवाया था
  • यह किला अजमेर में स्थित है
  • इस दुर्ग को अकबर का दौलतखाना भी कहा जाता है
  • मुगलों द्वारा मुस्लिम-हिंदू दुर्ग निर्माण पद्धति से बनाया हुआ यह एकमात्र दुर्ग राजस्थान में है । इस दुर्ग का निर्माण 1571-72 ई. में किया गया था ।
  • राजस्थान का एकमात्र इस्लामिक पद्धति से बना हुआ दुर्ग मैगजीन किला ही है
  • जहांगीर और टॉमस रो के मध्य मुलाकात 10 जनवरी 1616 में इसी दुर्ग में हुई थी
  • इंग्लैंड के सम्राट जेम्स प्रथम के दूत सर टामस रो ने इसी स्थान पर बादशाह जहाँगीर को अपना परिचय पत्र प्रस्तुत किया था एवं ईस्ट इंडिया कंपनी हेतु भारत में व्यापार की अनुमति प्राप्त की थी ।
  • भारत के गवर्नर जनरल व वायसराय लॉर्ड कर्जन ने 1905 में खाटू से प्राप्त पीले पत्थरों से जीर्णोद्धार करवाया था ।

शाहाबाद का किला (बाराँ)

 शाहाबाद का प्राचीन दुर्ग बाराँ में मुकुन्दरा पर्वत श्रेणी की भामती पहाड़ी पर स्थित है । यह दुर्ग 9 वीं शताब्दी में परमारों का बनवाया गया माना जाता है । इसका पुनर्निर्माण चौहान राजा मुकुटमणिदेव ने 1521 ईस्वी में करवाया था ।

 शेरशाह सूरी के कालिंजरा अभियान के दौरान इसका नाम सलीमाबाद रखा गया । मुगलों के शासन काल में इस दुर्ग का वर्तमान नाम शाहाबाद पड़ा ।

 शाहाबाद का किला ‘कुण्डाखोह’ नामक गहरे प्राकृतिक झरने से घिरा हुआ है ।

 शाहजहाँ ने यहाँ के अंतिम चौहान राजा इंद्रमन को हराकर दुर्ग पर मुगल स्थापित किया ।

 चौहान राजा इंद्रमन ने बादल महल बनवाया था । बादल महल के दोनों दरवाजों के समीप अललपंख (दो पंख युक्त हाथी की विशाल प्रतिमाएँ) लगी हुई है ।

 दुर्ग में रखी विशाल तोप ‘नवलबाण” दूर तक मार कर सकती थी ।

शेरगढ़ 

यह दुर्ग बाँरा की अटरू तहसील में परवन नदी के किनारे पर स्थित है । इस दुर्ग का निर्माण नागवंशीय शासकों ने करवाया था । उस समय इसका नाम कोशवर्धन था, परंतु बाद में शेरशाह सूरी के नाम पर इसका नाम शेरगढ़ रखा गया ।

 यह राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है , जहाँ पर सर्वनाम व उसकी रानी श्रीदेवी के पुत्र देवदत्त द्वारा एक बौद्ध विहार और मठ बनवाया गया ।

 अमीर खाँ पिंडारी ने अंग्रेजों के खौफ से शेरगढ़ दुर्ग में शरण ली ।

 झाला जालिमसिंह ने शेरगढ़ का जीर्णोद्धार करवाया और अपने रहने हेतु महल ‘झालाओं की हवेली’ बनवाई ।

 2011 में यहां 2500 ईसा पूर्व की प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं ।

 यह दुर्ग प्राचीन जैन शिल्प कला के लिए विख्यात है ।

 दुर्ग में सोभनाथ मंदिर, चारभुजा मंदिर , अमीर खाँ के महल , भव्य राजा प्रसाद आदि विद्यमान है ।

  • यह दुर्ग बारा जिले में स्थित है
  • यह दुर्ग परवन नदी के किनारे पर स्थित है
  • इसका निर्माण नागवंशी नरेश ने करवाया था
  • यह गिरी दुर्ग की श्रेणी में आता है
  • इस दुर्ग को कोसवर्धन दुर्ग भी कहा जाता है
  • इस दुर्ग का नाम शेरशाह सूरी के नाम पर शेरगढ़ कर दिया गया

चोमूहागढ़ (चौमूं का किला )

 ठाकुर कर्णसिंह ने 1595-97 ई. के लगभग बेणीदास नामक एक संत के आशीर्वाद से इस दुर्ग की नींव रखी । पहले इसे रघुनाथगढ़ कहा जाता था । इसे धाराधारगढ़ भी कहा जाता है ।

 माधोसिंह ने यहाँ ‘हवा मंदिर’ नाम से अतिथि गृह का निर्माण करवाया ।

 इसमें महलों का निर्माण ढूँढाड़ शैली में करवाया गया है ।

 यहाँ स्थित देवी निवास जयपुर के अल्बर्ट हॉल की प्रतिकृति है ।

 कमल पुष्प की पत्तियों का अंकन है ।

 1798 ई. में ठाकुर कृष्ण सिंह ने कस्बे के चतुर्दिक परकोटे का निर्माण करवाया । परकोटे के प्रमुख चार दरवाजे हैं – बावड़ी दरवाजा , पीहाला दरवाजा, होली दरवाजा एवं रावण दरवाजा ।

 दुर्ग के अंदर भव्य महलों में कृष्ण निवास, रतन निवास, शीश महल, मोती महल एवं देवी निवास उल्लेखनीय है ।

  • यह दुर्ग जयपुर में है और इस दुर्ग का निर्माण करण सिंह ने करवाया था
  • इस दुर्ग को धाराधारगढ़ और रघुनाथगढ़ भी कहा जाता है

चित्तौड़गढ़

  • चित्तौड़गढ़ का निर्माण चित्रांगद मौर्य ने करवाया था
  • यह दुर्ग गिरी दुर्ग की श्रेणी में आता है
  • यह दुर्ग गंभीरी और बेडच नदियों के संगम पर स्थित है
  • इस दुर्ग को चित्रकूट खिजराबाद और चित्रकूट नाम से भी जाना जाता है
  • इसे किलो का सिरमोर भी कहा जाता है

रणथंभौर दुर्ग

  • इसका निर्माण सपालदक्ष के चौहान शासक रणथम्भनदेव ने 944 में करवाया। 

  • यह सवाई माधोपुर में स्थित है
  • इस दुर्ग में राजस्थान का प्रथम साका 1301 ई में अलाउद्दीन खिलजी का हमीर देव चौहान पर आक्रमण के समय हुआ तब महारानी रंगा देवी ने जौहर किया था

रणथम्भौर दुर्ग को दुर्गाधिराज व चित्तौड़गढ़ के किले का छोटा भाई के नाम से जाना जाता है, जो हम्मीर की आन-बान व 'शान' का प्रतीक है। 

  • यह दुर्ग वन दुर्ग व गिरि दुर्ग का श्रेष्ठ उदाहरण है। 

इतिहासकार गौरी शंकर हीराचन्द ओझा के अनुसार रणथम्भौर का किला अण्डाकृति वाले एक ऊँचे पहाड़ पर स्थित है अतः इस दुर्ग का आकार अण्डाकार है। इसके चारों ओर की पहाड़ियों को किले की रक्षार्थ किले की दीवार कहा जाता है, 

Note - इसी कारण अबुल फजल ने इस किले के बारे में लिखा है कि अन्य सब दुर्ग नंगे है, जबकि यह दुर्ग बख्तरबन्द है। 
  • रणथम्भौर दुर्ग में एक विश्व प्रसिद्ध साका ( इस दुर्ग का पतन) 11 जुलाई, 1301 ई. में हुआ। युद्ध का प्रमुख कारण हम्मीर द्वारा अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मीर मुहम्मद शाह और उसकी मराठा बेगम चिमना को शरण देना रहा। 
  • इस युद्ध में राणा हम्मीर की उसके सेनापति रतिपाल एवं रणमल द्वारा धोखा देने के कारण पराजय हुई। 
  • इस युद्ध के समय अलाउद्दीन खिलजी के साथ उनके दरबारी कवि अमीर खुसरो (इस युद्ध का सजीव चित्रण करने वाला) थे। 
  • हम्मीर को शरणागत वत्सल एवं हठी के रूप में जाना जाता और उसकी प्रशंसा में कहा जाता है कि-
 '
सिंह सुवन सतपुरुष वचन कदली फलै इकबार । 
तिरिया तेल हम्मीर हठ चढ़ न दूसी बार।।

  • इस दुर्ग में 32 (बत्तीस) खम्भों की छतरी बनी हुई। इस छतरी का निर्माण हम्मीर देव ने अपने पिता जैतसिंह की स्मृति में करवाया था। 
  • यह छतरी न्याय की छतरी कहलाती है। 
  • इस दुर्ग का मुख्य आकर्षण नौलखा दरवाजा, हम्मीर का महल है, जो करौली के लाल पत्थरों से बना हुआ है।

इस दुर्ग में बना सुपारी महल भावनात्मक एकता का जीता जागता उदाहरण है क्योंकि इस महल में एक ही स्थान पर ‘त्रिनेत्र गणेश मन्दिर (यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद के शुक्ल गणेशचतुर्थी को एक विशाल मेला भरता है), मस्जिद (पीर  सदरूद्दीन की दरगाह) व गिरिजाघर' हैं जो हिन्दू-मुस्लिम तथा जैन संस्कृति के समन्वय का अनूठा उदाहरण पेश करते हैं। इस दुर्ग में गणेश मन्दिर के पूर्व में एक अज्ञात जलस्त्रोत है, जिसे गुप्त गंगा कहा जाता है। जौरा-भौरा महल-अनाज रखने का गोदाम है। 

ध्यातव्य रहे-2013 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर घोषित किया तथा दिसम्बर 2018 में इस दुर्ग पर 5 रु. का डाक टिकट जारी किया।

बीकानेर दुर्ग

इस दुर्ग की नींव रावबीका ने रखी, तब इसे बीकानेर का किला कहते थे, जिसे तुड़वाकर पुनः निर्माण रायसिंह ने 1588 ई. में हिन्दू व मुगल शैली में करवाया, तब इसे जूनागढ़ का किला कहने लगे।

  • दुर्ग का निर्माण 1589 से 94 के मध्य हुआ
  • बीकानेर दुर्ग का निर्माण मंत्री करमचंद की देखरेख में करवाया गया था
  • यह दुर्ग मरुस्थल में स्थित है
  •  यह दुर्ग धान्वन एवं स्थल दुर्ग की श्रेणी में आता है इसलिए इसे 'जमीन का जेवर' कहा जाता है, तो यह रातीघाटी नामक स्थान पर बना हुआ है, इसी कारण इस दुर्ग को रातीघाटी का किला भी कहते हैं।
  •  इस दुर्ग की आकृति चर्तुभुजाकार है एवं इसका निर्माण लाल पत्थर से हुआ है। जूनागढ़ दुर्ग रेगिस्तान में बने सभी दुर्गों में सर्वश्रेष्ठ है। 

इस किले में बने महलों के बारे में कहा जाता है, कि 'दीवारों के कान होते हैं परन्तु जूनागढ़ की दीवारें बोलती हैं।" इस दुर्ग में बने कर्ण महल का निर्माण महाराजा अनूपसिंह ने महाराजा कर्णसिंह की याद में करवाया। इस किले में बने 'अनूप महल' में सोने की कलम से कृष्ण रासलीला पर कार्य किया गया है। 

  • राजस्थान में पहली बार इसी दुर्ग में लिफ्ट लगाई गई, तो रायसिंह ने इस दुर्ग के सूरजपोल में हाथियों पर सवार जयमल व पत्ता की मूर्तियाँ लगवाई थी। 
  • इस किले में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का मन्दिर दर्शनीय हैं। 
  • सूरसिंह ने इसमें सूरसागर झील बनवाई, जिसका वसुन्धरा राजे ने जीर्णोद्वार करवाकर 15 अगस्त, 2008 को इसमें नौकायन का उद्घाटन किया। 
  • इस दुर्ग में एक भी साका नहीं हुआ है। 

जूनागढ़ किले के कर्ण महल (सार्वजनिक दर्शक हॉल), अनूप महल (प्रशासनिक संग्रहालय), गंगा महल (गंगा सिंह द्वारा निर्मित प्रथम विश्व युद्ध के विमानों का एक मुख्यालय), बादल महल (दीवारों पर भगवान कृष्ण और राधा के भित्ति चित्रों का चित्रण) प्रसिद्ध है। जूनागढ़ के कर्णपोल प्रवेश द्वार को ऐतिहासिक समय का मुख्य द्वार माना जाता है।

कीर्ति स्तंभ

  • कीर्ति स्तंभ चित्तौड़गढ़ में स्थित है
  • इसका निर्माण महाराणा कुंभा ने करवाया था
  • इसका निर्माण कुंभा द्वारा मांडू नरेश महमूद खिलजी को सारंगपुर युद्ध 1437 की विजय स्मृति में करवाया गया
  • इसे विजय स्तंभ विष्णु स्तंभ आदि नामों से जाना जाता है
  • इसे मूर्तियों का अजायबघर शब्दकोश विश्वकोश भी कहा जाता है
  • इस इमारत के वास्तुकार जैता नापा और पूंजा थे
  • नौवीं मंजिल पर कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति स्थित है

इस स्तम्भ का निर्माण महाराणा कुम्भा ने 1440 में, सारंगपुर युद्ध (1437 ई.) में महमूद खिलजी प्रथम के ऊपर विजय के उपलक्ष्य में करवाया, इसी कारण इसे विजय स्तम्भ / विक्ट्री टावर कहते हैं, 

  • यह इमारत विष्णु को समर्पित होने के कारण इसे विष्णु ध्वजगढ़ कहते हैं। इस इमारत में कई देवी-देवताओं की मूर्तियाँ लगी हुई है, इसी कारण इसे मूर्तियों का अजायबघर/ भारतीय मूर्ति कला का विश्व कोष कहते हैं। विजय स्तम्भ के वास्तुकार जैता और उसके पुत्र नापा, पोमा, पूंजा है। 
  • यह स्तम्भ नौ मंजिला (नौ निधियों का प्रतीक है) है जो 120 फीट ऊँचा है। इसमें 157 सीढ़ीयाँ है। 
  • इसकी तीसरी मंजिल पर नौ बार अल्लाह लिखा हुआ है। 
  • कर्नल जेम्स टॉड ने इसके  बारे में कहा "यह कुतुब मीनार से भी बेहतरीन इमारत हैं", 
  • फर्ग्यूसन ने इसकी तुलना रोम के टार्जन से की। 
  • यह राजस्थान की प्रथम इमारत है जिस पर 15 अगस्त, 1949 को एक रूपये का डाक टिकट जारी किया गया। 
  • विजय स्तम्भ राजस्थान पुलिस व माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान का प्रतीक चिह्न है।

नागौर दुर्ग

  • इस दुर्ग का प्राचीन नाम अहिछतरपुर था
  • यह दुर्ग नगाना और नाग दुर्ग के नाम पर भी प्रसिद्ध है
  • दुर्ग के बाहर से चलाई तोप के गोले महलों को क्षति पहुंचाए बिना ऊपर से निकल जाते थे
  • नागौर का किला 'धान्वन श्रेणी' का दुर्ग है, जिसका निर्माण कैमास (सोमेश्वर के सामन्त) ने वैशाख सुदी तृतीया विक्रम संवत् 1211 में करवाया इस दिन इन्होंने इस स्थान पर भेड़ व भेड़िये को लड़ते हुए देखा। इस दुर्ग को नागाणा दुर्ग / नाग दुर्ग / अहिछत्रपुर दुर्ग आदि नामों से जाना जाता है। यह ऐसा दुर्ग है जिस पर दागे गये तोप के गोले महलों को क्षति पहुंचायें बिना ऊपर से निकल जाते हैं। 

नागौर के दुर्ग में 28 विशाल बुर्जों का निर्माण किया गया है। यह दुर्ग वीर अमरसिंह राठौड़ की शौर्यगाथा के कारण इतिहास में विशिष्ट स्थान रखता है, जिसे यूनेस्को द्वारा “अवार्ड ऑफ एक्सीलेंस" पुरस्कार से 2007 में सम्मानित किया गया। अकबर ने 1570 ई. में यहाँ आमेर के शासक भारमल की सहायता से नागौर दरबार लगाया तथा उसकी स्मृति के लिए शुक्र तालाब का निर्माण करवाया, तो यहाँ अमरसिंह राठौड़ की छतरी बनी हुई है।

गागरोन दुर्ग

  • यह दुर्ग जल दुर्ग की श्रेणी में आता है
  • यह कालीसिंध को आहु नदी के संगम पर स्थित है
  • इसका निर्माण परमार नरेश बिजल देव ने करवाया था
  • इस दुर्ग में पीपाजी की छतरी स्थित है और यहां मीठे शाह की दरगाह स्थित है

शेरगढ़

  • यह दुर्ग धौलपुर में स्थित है
  • इसका निर्माण राव मालदेव ने करवाया था
  • इस दुर्ग में हुनहुँकार तोप स्थित है
  • इस दुर्ग में मीर सैयद की दरगाह स्थित है

कुंभलगढ़ दुर्ग

मेवाड़ और मारवाड़ की सीमा पर सादड़ी गाँव के समीप राजसमंद जिले में अरावली पर्वतमाला की 3568 फीट ऊंची चोटी पर स्थित गिरी दुर्ग का निर्माण महाराणा कुंभा ने शिल्पी मंडन की देखरेख में 1448-58 ई. के मध्य बनवाया ।

 उपनाम :- मत्स्येन्द्र , कुम्भलमेर , कुम्भलकर , माहोर , मेवाड-मारवाड़ सीमा का प्रहरी, मारवाड़ की छाती पर उठी हुई तलवार , मेवाड़ की आंख , मच्छेंद्रपुर , कुंभलमेरू , कमल मीर ।

 कुंभलगढ़ दुर्ग अरावली पर्वत श्रृंखला की जरगा, हेमकूट , नील हिमवंत , गन्धमादन के मध्य स्थित है ।

 इस दुर्ग के बारे में अबुल फजल ने लिखा है कि यह इतनी बुलंदी पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की ओर देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है ।

 कर्नल जेम्स टॉड ने इस दुर्ग की तुलना ‘एट्रुस्कन’ से की है ।

 कुंभलगढ़ दुर्ग में एक लघु दुर्ग ‘कटारगढ़’ (मेवाड़ की तीसरी आँख) स्थित है जिसमें ‘झाली रानी का मालिया’ महल एवं ‘बादल महल’ प्रमुख है । कटारगढ़ के उत्तर में झालीबाब बावड़ी तथा मामादेव का कुंड है । इस कुंड के पास ही कुंभा द्वारा निर्मित कुभास्वामी विष्णु मंदिर है ।

 इसी दुर्ग में स्वामीभक्त पन्नाधाय ने महाराणा उदयसिंह को बचाया तथा उनका लालन-पालन किया । इसी दुर्ग में उदयसिंह का मेवाड़ के महाराणा के रूप में राज्य अभिषेक हुआ ।

 इसी दुर्ग के महाराणा फतेहसिंह द्वारा निर्मित बादल महल (पैलेस ऑफ क्लाउड्स) में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था । गोगुंदा में अपना राजतिलक होने के बाद महाराणा प्रताप ने कुंभलगढ़ से ही मेवाड़ का शासन प्रारम्भ किया था । महाराणा प्रताप ने इसी दुर्ग से हल्दीघाटी के युद्ध की तैयारी की थी ।

 1578 में इस किले पर सर्वप्रथम शाहबाज खाँ(अकबर का सेनापति) का अधिकार हुआ ।

 कुंभलगढ़ दुर्ग के पूर्व में हाथिया गुढ़ा की नाल है तथा किले की तहलटी में महाराणा रायमल के बड़े पुत्र व राणा सांगा के भाई कुंवर पृथ्वीराज की 12 स्तंभो की छतरी (वास्तुकार-घषनपना) बनी हुई है जो ‘उडणा राजकुमार’ के नाम से प्रसिद्ध था ।

 यह दुर्ग 36 किलोमीटर लंबे तीहरे सुरक्षा परकोटे से सुरक्षित घिरा हुआ है जो अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड में दर्ज हैं । इसलिए इसे भारत की महान दीवार कहते हैं ।

 यह दुर्ग संकटकाल में मेवाड़ के राजाओं की शरण स्थली रहा है ।

 कुंभलगढ़ दुर्ग के उत्तर की तरफ से पैदल रास्ता ‘टूँट्या का होड़ा’ , पूर्व की तरफ हाथी गुढा की नाल में जाने का रास्ता ‘दाणीवटा’ एवं दुर्ग की पश्चिम दिशा का रास्ता ‘टीडाबारी’ कहलाता है ।

  • इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुंभा ने किया था
  • दुर्ग का वास्तुकार मंडल था यह दुर्ग राजसमंद में स्थित है
  • इस दुर्ग को गिरी दुर्ग की श्रेणी में रखा जाता है
  • यह दुर्ग मत्स्येंद्र कुंभलगढ़ माहोर आदि नामों से जाना जाता है
  • इस दूर के बारे में अबुल फजल ने कहा था कि नीचे से ऊपर देखने पर सिर की पगड़ी नीचे गिर जाती है
  • कुंभलगढ़ दुर्ग की परिधि 36 किलोमीटर लंबी है जिसे भारत की महान दीवार के नाम से जाना जाता है
  • इस दुर्ग में स्थित कटारगढ़ को मेवाड़ की तीसरी आंख कहा जाता है

अजयमेरू दुर्ग (तारागढ दुर्ग)

 अजमेर जिले के इस गिरी दुर्ग का निर्माण 7वीं शताब्दी में चौहान शासक अजयपाल ने तारागढ़ पर्वत की बीठली पहाड़ी पर करवाया । इसलिए इसे गढ़बीठली कहा जाता है ।

 इसी दुर्ग की तलहटी में चौहान शासक अजयराज ने 1113 ई. में अजमेर शहर की स्थापना की ।

 मेवाड़ के राणा रायमल के पुत्र पृथ्वीराज ने इस दुर्ग के कुछ भाग बनवाये और अपनी वीरांगना पत्नी तारा के नाम पर इसका नाम तारागढ़ रखा ।

 तारागढ़ के भीतर प्रसिद्ध मुस्लिम संत मीरा साहब की दरगाह भी हैं । यह दरगाह तारागढ़ के प्रथम गवर्नर मीर सैयद हुसैन खिंगसवार की है तथा प्रिय ‘घोड़े की मजार’ भी है ।

 इस पहाड़ी के ठीक नीचे एक प्राचीन गुफा शीशाखाना है जिससे अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान फाईसागर के निकट चामुंडा माता के मंदिर की पहाड़ियों पर दर्शन हेतु जाया करते थे ।

 मुगल उत्तराधिकारी युद्ध ने शाहजादा दाराशिकोह ने इसी दुर्ग में आश्रय लिया था ।

इसे ‘राजस्थान का जिब्राल्टर’ कहा जाता है ।

 अरावली पर्वतमाला के मध्य में स्थित होने के कारण इस दुर्ग को ‘अरावली का अरमान ‘ , ‘राजस्थान का हृदय’ और ‘राजपूताने की कुंजी’ कहा जाता है ।

 इतिहासविद् हरबिलास शारदा (अखबार-उल-अखयार) ने इस दुर्ग को भारत का प्रथम गिर दुर्ग कहा है ।

 अंग्रेज गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैटिंक ने 1832 में इसे सैनिकों के लिए आरोग्य सदन में परिवर्तित करा दिया ।

 शेरशाह सूरी ने पानी की व्यवस्था के लिए ‘हफ्ज जमाल’ (शीरचश्म) नामक चश्मे का निर्माण करवाया ।

 राव मालदेव ने अजमेररू दुर्ग में किले के ऊपर अरहठ से पानी पहुंचाने का प्रबंध किया ।

 तारागढ़ दुर्ग के प्रवेश द्वारों में विजयपोल, लक्ष्मी पोल, फूटा दरवाजा , भवानीपोल, हाथीपोल , अरकोट दरवाजा तथा बड़ा दरवाजा प्रमुख हैं ।

 इस दुर्ग की प्राचीर में 14 बुर्जें हैं जिनमें घूँघट , गूगड़ी , नगारची, बान्द्रा, फतेह बुर्ज आदि स्थित है ।

 यहाँ स्थित प्रमुख कुण्डों में नाना साहिब का झालरा , इब्राहिम शरीफ का झालरा , बड़ा झालरा शामिल है ।

 तारागढ़ पहाड़ी पर राज्य सरकार ने पृथ्वीराज स्मारक स्थापित किया है जहां पर पृथ्वीराज चौहान की घोड़ी पर सवार प्रतिमा है ।

 बिशप आर हैबर ने इसे ‘दूसरा जिब्राल्टर’ नाम दिया था ।

  • इस दुर्ग का निर्माण अजयराज चौहान ने किया था
  • यह दुर्ग गिरी दुर्ग की श्रेणी में आता है
  • हरविलास शारदा ने अजमेर दुर्ग को भारत का प्राचीनतम गिरी दुर्ग माना है
  • इस दुर्ग को गढ़ बिठली और तारागढ़ नाम से भी जाना जाता है
  • विसप हेबर ने इसको पूर्व का जिब्राल्टर कहां है
  • इस दुर्ग में मीर साहब की दरगाह स्थित है और मीर साहब के घोड़े की मजार की स्थित है

सिवाना दुर्ग

  • इस दुर्ग का निर्माण वीर नारायण पवार ने करवाया था
  • यह गिरी दुर्ग की श्रेणी में आता है
  • सिवाना दुर्ग बाड़मेर जिले में स्थित है
  • अलाउद्दीन खिलजी ने 1308 में इस दुर्ग को जीतकर इसका नाम खेराबाद रख दिया था
  • इसे मारवाड़ की संकट कालीन राजधानी भी कहा जाता है

राजा भोज के पुत्र वीर नारायण पंवार द्वारा 10वीं शताब्दी में निर्मित यह दुर्ग हल्देश्वर की पहाड़ी पर स्थित है । प्रारंभ में इसका नाम कुम्थाना का किला था ।

 सिवाणा का किला संकटकाल में मारवाड़ (जोधपुर) के राजाओं का शरण स्थल रहा है ।

 यह जालौर के दुर्ग की कुंजी के रूप में जाना जाता है ।

 इस दुर्ग में जयनारायण व्यास को बंदी बनाकर रखा गया था ।

 इस दुर्ग में 2 साके हुए हैं :- (१) 1308 में अलाउद्दीन खिलजी व वीर सातलदेव सोनगरा के मध्य युद्ध में । अलाउद्दीन ने इस दुर्ग का नाम खैराबाद रखा ।
(२) जोधपुर नरेश मोटा राजा उदयसिंह व वीरकल्ला रायमलोत के मध्य युद्ध में ।

गागरोण का दुर्ग (झालावाड़ )

दक्षिण-पूर्वी राजस्थान के सबसे प्राचीन व विकट दुर्गों में से एक गागरोण दुर्ग एक उत्कृष्ट जलदुर्ग है , जिसे झालावाड़ में आहू और कालीसिंध नदियों के संगम स्थल ‘सामेलजी’ के निकट डोड (परमार) राजपूतों द्वारा निर्मित करवाया गया था । इन्हीं के नाम पर डोडगढ़ या धूलरगढ़ कहते थे ।

चौहान कल्पद्रुम के अनुसार खींची राजवंश के संस्थापक देवनसिंह ने 12 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इसे डोड शासक बीजलदेव से जीतकर इसका नाम गागरोण रखा । यह दुर्ग मुकुंदरा की पहाड़ी पर बना हुआ है ।

जैतसिंह के समय ही प्रसिद्ध सूफी संत हमीदुद्दीन चिश्ती खुरासान से गागरोण आये । इनकी समाधि ‘मीठे शाह की दरगाह’ यहाँ अभी भी विद्यमान है ।

भगवान मधुसूदन का मंदिर जो राव दुर्जनसाल हाडा ने बनवाया ।

कोटा रियासत के सिक्के डालने के लिए निर्मित टकसाल ।

रामानंद के शिष्य संत नरेश पीपाजी की छतरी जहां प्रतिवर्ष उनकी पुण्यतिथि पर मेला भरता है ।

कोटा के झाला जालिमसिंह द्वारा निर्मित विशाल परकोटा ‘जालिमकोट’ एवं औरंगजेब द्वारा निर्मित बुलंद दरवाजा इस दुर्ग में मौजूद है ।

गागरोण दुर्ग तिहरे परकोटे से सुरक्षित है । रामबुर्ज एवं ध्वज बुर्ज इसकी विशाल बुर्जे हैं । दुर्ग के पास की ऊंची पहाड़ी को ‘गीध कराई’ कहते थे ।

पाषाणकालीन उपकरण हेतु प्रसिद्ध है ।

मुद्फ्फर (अरीदा/ढेंकुली) गागरोण दुर्ग में पत्थरों की वर्षा करने वाला यंत्र है ।

दुर्ग के अन्य नाम – डोडगढ़ , घूसरगढ, गर्गराटपुर, मुस्तफाबाद ।

विख्यात पक्षी विज्ञानी सलीम अली ने गागरोण क्षेत्र में पाये जाने वाले गागरोणी तोतों के संबंध में अपनी पुस्तक ‘द बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स’ में किया है । इनकी जाति हीरामन हिद्धलखा है ।

गागरोण के साके :-
(१) 1423 ई. में मांडू के सुल्तान होशंगशाह व भोज के पुत्र अचलदास खींची के मध्य युद्ध । अचलदास खींची की रानी उमादे ने जौहर किया । यह गागरोण दुर्ग का पहला साका था ।

(२) 1444 ई. में मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी प्रथम व अचलदास खींची के पुत्र पाल्हणसी के मध्य युद्ध । यह गागरोण दुर्ग का दूसरा साका था ।

जोधपुर दुर्ग (मेहरानगढ़ )

जोधपुर की चिड़ियाटूँक पहाड़ी (पंचेटिया पर्वत) पर अवस्थित इस गिरि दुर्ग के निर्माण की नींव जोधपुर के संस्थापक गांव जोधा ने 12 मई 1459 को रखी तथा उसके चारों ओर जोधपुर नगर बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया ।

 मयुराकृति को होने के कारण इस किले को मयूरध्वजगढ़ या मोरध्वजगढ़ तथा गढ़ चिंतामणि भी कहते हैं ।

 रूडीयार्ड किपलिंग ने इस दुर्ग के निर्माण के बारे में कहा है कि -‘इसका निर्माण फरिश्तों, परियों एवं देवताओं की करामात है ।’

 जैकलिन कैनेडी ने इस दुर्ग को ‘विश्व का आठवां आश्चर्य’ कहा है ।

 इस दुर्ग की नींव में भांभी जाति का राजिया नामक एक व्यक्ति जीवित चुना गया ।

 महाराजा मानसिंह द्वारा स्थापित जयपाल व पुस्तक प्रकाश पुस्तकालय इसी दुर्ग में स्थित है ।

 यहाँ महाराजा अभयसिंह द्वारा निर्मित फूल महल स्थित है ।

 यहाँ नीलम जड़ित मरकत-मणि के दो गुलाबी प्यालेनुमा जलाशय ( गुलाब सागर, गुलाब सागर का बच्चा) स्थित है ।

 दुर्ग के भीतर मोती महल (महाराजा सूरजसिंह द्वारा निर्मित), भूरे खां की मजार , फतह महल (महाराजा अजीत सिंह द्वारा निर्मित ) , ख्वाबगाह , तख्त विलास , दौलतखाना , चोखेलाव महल , बिचला महल स्थित है ।

 दौलतखाने के आंगन में महाराजा तख्तसिंह द्वारा निर्मित सिणगार चौकी है , जहाँ जोधपुर के राजाओं का राजतिलक होता था ।

 जल आपूर्ति के प्रमुख स्रोत के रूप में राणीसर तथा पदमसागर तालाब विशेष उल्लेखनीय हैं ।

 जोधपुर दुर्ग के दो बाहरी प्रवेश द्वार हैं जिनमें उत्तर- पूर्व में ‘जयपोल’ (महाराजा मानसिंह) तथा दक्षिण-पश्चिमी में शहर के अंदर से ‘फतेहपोल’ (महाराजा अजीतसिंह) है । इसका एक अन्य मुख्य प्रवेश द्वार ‘लोहापोल’ है । दुर्ग के अन्य द्वारों में ध्रुवपोल, सूरजपोल , इमरतपोल, भैंरोपोल तथा कांगरापोल है ।

 इस दुर्ग के साथ वीर शिरोमणि दुर्गादास , कीरतसिंह सोढ़ा और दो अतुल पराक्रमी क्षत्रिय योद्धा -धन्ना व भींवा के पराक्रम, बलिदान, स्वामी भक्ति और त्याग की गौरव गाथा जुड़ी हुई है ।

 लोहापोल के पास जोधपुर के अतुल पराक्रमी वीर योद्धा धन्ना व भींवा की 10 खम्भों की स्मारक छतरी (महाराजा अजीत सिंह द्वारा निर्मित ) हैं ।

 इस दुर्ग में शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित मस्जिद , महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश पुस्तकालय तथा मेहरानगढ़ संग्रहालय दर्शनीय है ।

 महाराजा सूरजसिंह द्वारा निर्मित मोती महल की छत व दीवारों पर सोने की पॉलिश का महीन कार्य महाराजा तख्तसिंह ने करवाया ।

 राव जोधा ने दुर्ग निर्माण के समय इसमें चामुंडा माता का मंदिर बनवाया था । अन्य मंदिरों में आनंद धनजी का मंदिर एवं मुरली मनोहर जी का मंदिर मुख्य हैं ।

 जोधपुर के राठौड़ वंश की कुलदेवी नागणेची माता का मंदिर भी मेहरानगढ़ दुर्ग के अंदर विद्यमान है ।

 मेहरानगढ़ दुर्ग में अनेक उत्कृष्ट तोपें – किलकिला , शंभूबाण , गजनी खाँ , कालका, भवानी,नागपली , नुसरत , गजक , गुब्बारा आदि यहाँ सुप्रसिद्ध तोपें हैं ।

  • जोधपुर दुर्ग का निर्माण राव जोधा ने किया था
  • दुर्ग का निर्माण 1459 में किया गया
  • दुर्ग की आकृति मयूर जैसी है
  • यह दुर्ग चिड़ियाटूक पहाड़ी पर स्थित है
  • इस दुर्ग को मयूरध्वज, गढ़ चिंतामणि, जोधाणा, मेहरानगढ़ नामों से जाना जाता है

जालौर दुर्ग

यह दुर्ग सूकड़ी नदी के दाहिने किनारे सुवर्णगिरि (सोनगिरी या कनकाचल) पहाड़ी पर स्थित है । डाँ दशरथ शर्मा के अनुसार प्रतिहार नरेश नागभट्ट प्रथम ने इस दुर्ग का निर्माण करवाया ।

 झालर और सोहन बावड़ी इस किले में स्थित है ।

 इस दुर्ग में जोधपुर नरेशों का राजकोष रखा जाता था ।

 संकट काल में मारवाड़ के राजाओं का आश्रय स्थल ।

 पश्चिमी राजस्थान का सबसे प्राचीन और सुदृढ़ दुर्ग ।

 यहाँ सुंधा पर्वत शिलालेख स्थित है ।

 पद्मनाथ द्वारा रचित कान्हड़देव प्रबंध में जालौर युद्ध का वर्णन है । इस दुर्ग का प्रसिद्ध साका वर्ष 1311-12 में हुआ । अलाउद्दीन खिलजी तथा कान्हड़देव सोनगरा के मध्य युद्ध ।

 जालौर का दुर्ग दिल्ली से गुजरात जाने वाले राजमार्ग पर स्थित है । इस कारण इसे मुस्लिम आक्रांताओं का अनेक बार सामना करना पड़ा ।

 इस दुर्ग के भीतर आशापुरा माता का मंदिर स्थित है, जिसके सामने बीरमदेव ने कटार घोंपकर आत्महत्या की ।

 संत मल्लिक शाह की दरगाह, परमार कालीन कीर्ति स्तंभ , स्वर्णगिरि मंदिर, तोपखाना मस्जिद आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल है ।

 जालौर दुर्ग के अन्य नाम सोनगढ़, सोनलगढ़, जाबालिपुर एवं जालहुर हैं ।

 दुर्ग का प्रथम प्रवेश द्वार ‘सूरजपोल’ है जो धनुषाकार छत से ढका हुआ है । दुर्ग का दूसरा प्रवेश द्वार ध्रुवपोल, तीसरा चाँदपोल एवं चौथा सिरेपोल है ।

 दुर्ग के भीतर महाराजा मानसिंह के महल , चामुंडा माता एवं जोग माता के मंदिर , दहियों की पोल आदि ऐतिहासिक भवन है ।

 दुर्ग में पहाड़ी के शिखर पर ‘वीरमदेव की चौकी’ उसके शौर्य एवं पराक्रम का स्मरण कराती है । किले के भीतर जाबलिकुंड , सोहनबाव आदि जलकुंड है ।

  • इस दुर्ग का निर्माण नागभट्ट प्रतिहार ने करवाया था
  • इसे सोनगढ़ सोनलगढ़ जलालाबाद नामों से जाना जाता है
  • यहां पर परमार कालीन कीर्ति स्तंभ स्थित है

जैसलमेर दुर्ग

जैसलमेर री ख्यात के अनुसार सोनारगढ़ या सोनगढ़ के नाम से प्रसिद्ध इस दुर्ग की नींव भाटी शासक राव जैसल ने 12 जुलाई 1155 को रखी । उसकी मृत्यु होने पर उसके पुत्र व उत्तराधिकारी शालिवाहन द्वितीय ने इस दुर्ग का अधिकांश निर्माण कार्य करवाया ।

 यह दुर्ग त्रिकूटाकृति का है जिसमें 99 बुर्जें हैं । यह गहरी पीले रंग के पत्थरों से निर्मित है जो सूर्य की धूप में स्वर्णिम आभा बिखेरते है । इसी वजह से इसे सोनारगढ़ कहा जाता है । इसके अलावा इसे राजस्थान का अंडमान व रेगिस्तान का गुलाब भी कहते हैं ।

 यह बिना चूने के सिर्फ पत्थर पर पत्थर रखकर बनाया गया है जो इसके स्थापत्य की अनूठी विशेषता है । जैसलमेर का दुर्ग विश्व का एकमात्र ऐसा किला है जिसकी छत लकड़ी की बनी हुई है ।

 जैसलमेर दुर्ग में हस्तलिखित ग्रंथों का एक दुर्लभ भंडार है । इन ग्रंथों का सबसे बड़ा यह संग्रह जैन आचार्य जिनभद्रसूरी के नाम पर ‘जिनभद्रसूरी ग्रंथ भंडार’ कहलाता है ।

 जैसलमेर दुर्ग राजस्थान में चित्तौड़गढ़ दुर्ग के बाद दूसरा सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट है ।

 दुर्ग का दोहरा परकोटा कमरकोट कहलाता है ।

 अक्षयपोल किले का मुख्य प्रवेश द्वार है । गणेशपोल, सूरजपोल, हवापोल अन्य प्रवेश द्वार हैं ।

 महारावल अखैसिंह द्वारा निर्मित सर्वोत्तम विलास (शीश महल), गज विलास, जवाहर विलास दर्शनीय है ।

 महारावल मूलराज द्वितीय ने रंग महल व मोती महल बनवाए ।

 दुर्ग में 12 वीं सदी में निर्मित आदिनाथ जैन मंदिर अन्य सभी मंदिरों से प्राचीन है । दुर्ग के भीतर स्थित जैसल कुआँ प्राचीन पेयजल स्रोत हैं ।

 सिलावटों ने बादल महल का निर्माण करवाया था । यह 5 मंजिला महल है । इस महल पर ब्रिटेन की वास्तुकला की छाप दिखाई देती है ।

 महारावल बैरीशाल के शासनकाल में भगवान विष्णु के लक्ष्मीनारायण मंदिर का निर्माण प्रतिहार शैली में बनवाया गया ।

 महारावल वैरिसिंह ने अपनी रानी रत्ना के नाम पर रत्नेश्वर महादेव का मंदिर बनवाया था और अपनी रानी सूर्यकंवर की स्मृति में सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया ।

 इस दुर्ग को जनवरी 2005 में विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया ।

 वर्ष 2009 में इस दुर्ग पर ₹5 का डाक टिकट जारी किया गया ।

 यह दुर्ग राज्य की ‘उत्तरी सीमा का प्रहरी’ कहलाता है ।

 जैसलमेर दुर्ग महलों में पत्थर पर बारीक खुदाई एवं कलात्मक जालियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है ।

 इस दुर्ग के पश्चिम में अमरसागर पोल एवं पूर्व में घड़सीसर का दरवाजा है । दुर्ग के अंदर ही घड़सीसर का तालाब है ।

 जैसलमेर दुर्ग के बारे में कहावत प्रसिद्ध है कि ‘पत्थर के पैर व लोहे के शरीर तथा काठ के घोड़े पर सवार होकर ही पहुंचा जा सकता है ।’

 इस दुर्ग के अंदर टीवमराय जी का मंदिर , दशहरा चौक , गज महल , खुशाल राजराजेश्वरी का मंदिर स्थित है ।

 जैसलमेर के प्रसिद्ध ढाई साके निम्न है :-

  1. जैसलमेर दुर्ग का प्रथम साका भाटी शासक मूलराज एवं दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के मध्य 1308 -13 के मध्य हुआ था ।
  2. दुर्ग का दूसरा साका दिल्ली के फिरोजशाह तुगलक व रावल दूदा के मध्य युद्ध के समय हुआ ।
  3. तीसरा ‘अर्द्ध साका’ 1550 में जैसलमेर के राम लूणकरण व कंधार के अमीर अली के मध्य युद्ध में हुआ था । इस युद्ध में वीरों ने केसरिया तो किया लेकिन जौहर नहीं हुआ इसलिए इसे अर्द्ध साका माना जाता है ।

  • इस दुर्ग का निर्माण राय जैसल ने किया था
  • दुर्ग का निर्माण 1155 में करवाया गया
  • किस दुर्ग को त्रिकूटाकृतिगढ़, सोनारगढ़, सोनगढ़ नामों से जाना जाता है
  • इस दुर्ग को उत्तरी सीमा का पहरी भी कहा जाता है
  • यह दुर्ग ढाई साके के लिए प्रसिद्ध है

कुचामन किला

  • इसका निर्माण जालिम सिंह ने किया था
  • यह किला नागौर जिले में स्थित है
  • इसे जागीरी किलो का सिरमौर कहा जाता है

माधोराजपुरा का किला (जयपुर)

 यह किला जयपुर जिले की फागी तहसील के पास माधोराजपुरा कस्बे में स्थित है । इसे महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम ने मराठों पर विजय के उपरांत बनवाया था ।

 महाराजा जयसिंह तृतीय के धाय माँ रूपा बढारण को इस किले में बंदी रखा गया था ।

 इस किले में गुंबद की आकृति का भवन है जिसे ‘चक्कीपाड़ा’ कहते हैं ।

जयगढ़  (jaipur)

यह दुर्ग चील्ह का टीला नामक स्थान पर मावठा झील के ऊपर स्थित है , जिसका निर्माण आमेर दुर्ग व महल परिसर की सुरक्षा हेतु व आमेर के राजा मानसिंह प्रथम द्वारा लाए हुए खजाने को रखने के लिए करवाया गया था ।

 डॉ. गोपीनाथ शर्मा व जगदीश सिंह गहलोत के अनुसार जयगढ़ दुर्ग का निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम ने करवाया ।

 जयगढ़ दुर्ग के तीन मुख्य प्रवेश द्वार है –
(१)डूँगर दरवाजा (नाहरगढ़ की तरफ)
(२) अवनि दरवाजा (आमेर महल की तरफ)
(३) भैंरू दरवाजा

 जयगढ़ में एक लघु दुर्ग ‘विजयगढ़ी’ भी है जहाँ महाराजा सवाई जयसिंह ने अपने छोटे भाई विजय सिंह को कैद में रखा था ।

 जयगढ़ दुर्ग के भीतर मध्यकालीन शस्त्रास्त्रों का विशाल संग्रहालय बना हुआ है ।

 यहाँ तोपें ढालने विशाल कारखाना भी था । यहाँ महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा इसी कारखाने में निर्मित ‘जयबाण’ एशिया की सबसे बड़ी तोप मानी जाती है , स्थित है ।

 इस दुर्ग में एक कठपुतली घर भी है ।

 दुर्ग में विजयगढ़ी के पार्श्व में सात मंजिला प्रकाश स्तंभ (दीया बुर्ज) स्थित है ।

 यहाँ कछवाहों राजाओं राजकोष रखा हुआ था । श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधान मंत्रित्व काल में गुप्त खजाने के लिए खुदाई हुई ।

 जयगढ़ दुर्ग अपनी पानी के टांको के लिए भी प्रसिद्ध है ।

 जलैब चौक , सुभट निवास , खिलबत , लक्ष्मी निवास, ललित मंदिर, विलास मंदिर, सूर्य मंदिर , राणावत जी का चौंक , आराम मंदिर आदि प्रमुख महल है ।

  • इस दुर्ग का निर्माण मानसिंह प्रथम कछवाहा के सवाई जयसिंह द्वितीय तक करवाया गया
  • यह भी गिरी दुर्ग की श्रेणी में आता है
  • मिर्जा राजा जयसिंह के नाम पर इस दुर्ग का नामकरण जयगढ़ हुआ
  • इस दुर्ग को रहस्यम दुर्ग भी कहा जाता है
  • इस दुर्ग में प्रवेश की अनुमति महाराजा के अलावा मात्र दो दुर्ग रक्षकों को थी
  • कछवाहा राजवंश का खजाना इसी दुर्ग में रखा गया था
  • एशिया की सबसे बड़ी जयबाण तोप इसी दुर्ग में है

दोसा का किला

  • इसे गिरी दुर्ग की श्रेणी में रखा जाता है
  • इसका निर्माण बडगूजर प्रतिहार राजाओं द्वारा करवाया गया
  • यह दुर्ग देवगिरी पहाड़ी पर स्थित है

नाहरगढ़ दुर्ग (jaipur)

नाहरगढ़ दुर्ग का निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह ने 1734 ईस्वी में मराठों के विरुद्ध सुरक्षा की दृष्टि से करवाया था । इसका पूर्व नाम सुदर्शनगढ़ था ।

 अरावली पर्वतमाला में स्थित यह किला जयपुर के मुकुट के समान है ।

 इसका नाहरगढ़ नाम लोकदेवता नाहरसिंह भोमिया के नाम पर पड़ा है, जिनका स्थान किले की प्राचीर में प्रवेश द्वार के निकट बना हुआ है ।

 सवाई माधोसिंह ने इसमें रानियों हेतु माधवेन्द्र पैलेस का निर्माण करवाया ।

 नाहरगढ़ दुर्ग में एक जैसे 9 महल है जो महाराजा माधोसिंह द्वितीय ने अपने 9 पासवानों हेतु बनाए थे । ये है – सूरज प्रकाश, खुशहाल प्रकाश , जवाहर प्रकाश , ललित प्रकाश, लक्ष्मी प्रकाश, आनंद प्रकाश, चंद्र प्रकाश, रत्न प्रकाश, व बसंत प्रकाश ।

 महाराजा जगतसिंह की प्रेमिका रसकपूर को इसी किले में कैद करके रखी गई थी ।

 नाहरगढ़ में दिवंगत राजाओं की गैटोर की छतरियां बनी हुई है ।

 इस किले में सुदर्शन कृष्ण भगवान का मंदिर है । अत: इसे सुलक्षण दुर्ग भी कहते हैं ।

 इस किले को जयपुर की ओर झांकता हुआ किला भी कहा जाता है ।

 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में महाराजा रामसिंह ने ब्रिटिश रेजिमेंट की पत्नी व अन्य यूरोपीय लोगों को नाहरगढ़ दुर्ग में सुरक्षा प्रदान की थी ।

 दुर्ग के अन्य भवनों में हवा मंदिर, महाराजा माधोसिंह का अतिथि ग्रह एवं सिलहखाना प्रसिद्ध है ।

  • इसका निर्माण सवाई जयसिंह द्वितीय ने करवाया था
  • इसका निर्माण 1734 में करवाया गया
  • यहां पर सवाई माधव सिंह द्वितीय ने अपने पासबना के लिए एक समान 9 महलों का निर्माण करवाया
  • इस दुर्ग के निर्माण का उद्देश्य मराठा आक्रमण से बचना था

आमेर (jaipur)

प्राचीन काल में अम्बावती, आम्बेर , अंबरीश और अम्बिकापुर आदि नामों से प्रसिद्ध । अरावली पर्वतमाला की कालीखोह पहाड़ी पर स्थित गिरी दुर्ग है ।

 राजा मानसिंह प्रथम द्वारा 1592 में निर्मित आमेर दुर्ग के महल हिंदू-मुस्लिम शैली के समन्वित रूप हैं। यहाँ शीश महल , शिला माता का मंदिर, जगत शिरोमणि मंदिर प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है ।

 यहाँ प्रसिद्ध मावठा जलाशय तथा दिलाराम का बाग (मिर्जा राजा जयसिंह निर्मित) स्थित है ।

 सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित आमेर दुर्ग के प्रवेश द्वार गणेशपोल को फर्ग्यूसन ने विश्व का सर्वश्रेष्ठ प्रवेश द्वार माना है ।

 1707 में मुगल बादशाह बहादुरशाह ने आमेर दुर्ग पर अधिकार कर उसका नाम मोमीनाबाद रखा ।

 मावठा झील के मध्य में स्थित सुगंधित केसर की क्यारियों का निर्माण 1664 में मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया ।

 मिर्जा राजा जयसिंह ने दीवान-ए-खास (शीश महल/जय मंदिर) का निर्माण कराया , जिसे महाकवि बिहारी ने दर्पण धाम कहा है ।

 मिर्जा राजा जयसिंह ने आम दरबार के लिए दीवान-ए-आम की स्थापना करवायी ।

 दीवान-ए-खास की छत पर बना हुआ यश मन्दिर संगमरमर की सुंदर व अलंकृत जालियों के लिए विख्यात है ।

 रानियों के मनोरंजन व हँसी-मजाक के लिए सुहाग मंदिर (सौभाग्य मंदिर) की स्थापना की गई ।

 यहाँ राजाओं का ग्रीष्मकालीन आवास ‘सुखमंदिर’ स्थित है ।

 आमेर के महलों में महाराजा मानसिंह के महल , रनिवास, शीला देवी का मंदिर , अंबिकेश्वर महादेव मंदिर , नृसिंह जी का मंदिर , जगत शिरोमणि मंदिर , गणेश पोल , शीश महल , बारादरी, कदमी महल (सबसे पुराना महल) आदि स्थित है ।

 बिशप हैबर ने आमेर के महलों की तुलना क्रेमलिन तथा अलब्रह्मा के महलों से की है ।

 जयपोल के अंदर जाते ही विशाल प्रांगण ‘जलेब चौक’ है ।

 महलों के पीछे महाराजा पृथ्वीराज की रानी बालाबाई की साल स्थित है ।

 जून, 2013 में आमेर दुर्ग को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत सूची में शामिल कर लिया गया है ।

  • इस दुर्ग का निर्माण भारमल और मानसिंह ने करवाया था
  • यह दुर्ग गिरी दुर्ग की श्रेणी में आता है
  • दुर्ग में सौभाग्य मंदिर कदमी महल प्रसिद्ध स्मारक स्थित है

बूंदी का किला

  • बूंदी के किले का निर्माण 1354 ईसवी में हुआ था
  • इसका निर्माण रावबर सिंह हाडा ने करवाया था
  • कर्नल जेम्स टॉड ने इसे राजस्थान के समस्त रजवाड़ों में श्रेष्ठ राज प्रसाद बूंदी राज महल को कहा था
  • बूंदी का किला भीति चित्रों के स्वर्ग के रूप में प्रसिद्ध है
राजस्थान के दुर्ग देखने हर साल विदेशों से लाखों लोग आते हैं यह पर्यटक राजस्थान के स्थानीय लोगों के लिए रोजगार उत्पन्न करते हैं और भारत के विदेशी मुद्रा कोष में वृद्धि करते हैं राजस्थान के दुर्गों को देखने आने वाले विदेशी लोग राजस्थान की संस्कृति से भी परिचित होते हैं जिससे हमारा सांस्कृतिक विस्तार विदेशों में भी होता है

Rajasthan ke Durg PDF File Details


Name of The Book : *Rajasthan ke Durg PDF File*
Document Format: PDF
Total Pages: 8
PDF Quality: Very Good
PDF Size: 2 MB
Book Credit: S. R. Khand

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9 Comments

  1. Lohe ki kilo se konsa durg bna hua h

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  2. कोकिलगढ़ किस किले को कहा जाता है

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  3. High quality information

    www.online-study.org.in

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  5. Sir. Rajputana mein Bhatti Rajvansh ki sthapna kisne ki .? (a) sardar bhatti (b) JaySingh Bhatti (c) Jaisal Bhatti (d) PratapSingh Bhatti

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