स्वतंत्रता संग्राम के कुछ प्रमुख व्यक्तित्व

स्वतंत्रता संग्राम के कुछ प्रमुख व्यक्तित्वदोस्तों आज Rajgk आपके लिये India GK in Hindi me  स्वतंत्रता संग्राम के कुछ प्रमुख व्यक्तित्व share कर रहे है, जो की General Knowledge (सामान्य ज्ञान) से सम्बंधित है. इस में स्वतंत्रता संग्राम के कुछ प्रमुख व्यक्तित्व का  सामान्य ज्ञान आपको पढने को मिलेगा.

 स्वतंत्रता संग्राम के कुछ प्रमुख व्यक्तित्व

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, गाँधीजी, लाला लाजपत राय, बिपिनचन्द्र पाल, बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय, रास बिहारी बोस, भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, सुखदेव, सुभाष चन्द्र बोस,  वी.डी. सावरकर, सरदार वल्लभभाई पटेल, पं. जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, गोपाल कृष्ण गोखले, दादाभाई नौरोजी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद आदि प्रमुख व्यक्तित्व है

स्वतंत्रता संग्राम के कुछ प्रमुख व्यक्तित्व
 स्वतंत्रता संग्राम के कुछ प्रमुख व्यक्तित्व


लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (23 जुलाई, 1856 - 1 अगस्त, 1920 )

हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता और भारत का बेताज बादशाह के नाम से प्रसिद्ध लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का जन्म महाराष्ट्र के पश्चिमी किनारे पर स्थित रत्नागिरि में चिकल गाँव में चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ। तिलक के बचपन का नाम 'केशव' था पर लोग उन्हें प्यार से 'बाल' कहते थे तो लोग इन्हें आदर से लोकमान्य (पूरे संसार में सम्मानित) कहते थे।

भारत में क्रांतिकारी विचार के जनक के रूप में लोकप्रिय, ये लाल बाल पाल की उग्रवादी त्रिगुट के सदस्य थे।तिलक ने बंबई में 1881 ई. में मराठी भाषा में केसरी नामक एवं 1882 ई. में अंग्रेजी भाषा में मराठा नामक पत्र प्रकाशित किए तो लोगों में राष्ट्र भावना जगाने के लिए 1893 में गणपति उत्सव व 1896 में शिवाजी उत्सव मनाने की परम्परा शुरू की।

तिलक प्रथम राष्ट्रवादी नेता थे जिन्होंने जनता से निकट संबंध स्थापित करने का प्रयत्न किया। इसी कारण से वे महात्मा गाँधी के अग्रगामी थे। उन्होंने पुनश्च हरिः ॐ- आंदोलन शुरू किया।

1897 में पूना के प्लेग कमिश्नरों की चापेकर बंधुओं ने हत्या कर दी थी। चापेकर बंधुओं को हत्या करने के लिए प्रेरित करने के आरोप में तिलक को 18 माह की सजा दी गई।

ध्यातव्य रहे - तिलक 'भारत के प्रथम राजनैतिक कैदी' माने जाते है। उन्होंने 1900 में पूना नवीन इंग्लिश विद्यालय स्थापित किया तो फर्ग्यूसन कॉलेज की स्थापना में भी उनका हाथ था।

1907 में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में तिलक ने लाला लाजपतराय को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया। किन्तु उदारवादियों के प्रयत्न से सूरत अधिवेशन का अध्यक्ष रास बिहारी बोस को बनाया गया। तिलक के उग्रवादी विचारों के कारण कांग्रेस का विभाजन 'नरम व गरम' दो दलों में हो गया और उन्हें इस विभाजन का दोषी माना गया। 1907 में उन्होंने विपिनचंद्र पाल और लाला लाजपतराय के साथ कांग्रेस के अंदर 'गरम दल' संगठित किया।

तिलक ही प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने स्वराज्य की माँग स्पष्ट रूप से की और 'स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, मैं इसे लेकर रहूँगा' का नारा दिया।

1908 के भारतीय प्रेस अधिनियम में कहा गया था कि, किसी भी भारतीय अखबार में विद्रोह फैलाने वाली सामग्री नहीं छप सकती लेकिन तिलक ने अपने अखबार केसरी में उत्तेजक लेख छाप दिये [UPTET-2015 | इसी कारण उन्हें 1908 से 1914 तक (6 वर्ष) बर्मा की मांडले जेल में कैद रहे वहाँ रहते हुए इन्होंने 'गीता रहस्य' नामक पुस्तक लिखी।

जेल से रिहा होने के बाद तिलक ने ऐनी बेसेन्ट के साथ मिलकर भारत में होमरूल लीग की स्थापना करते हुए 28 अप्रैल, 1916 में तिलक ने महाराष्ट्र में होमरूल लीग की स्थापना की जिसका केन्द्र पूना, बेलगाँव व कर्नाटक था। इंडियन अनरेस्ट के लेखक सर वेलेंटाइन चिरोल उन्हें 'भारत में अशान्ति का जन्मदाता' समझते थे।

1907 का कांग्रेस का विभाजन 1916 में लखनऊ पैक्ट के साथ समाप्त हुआ और एक बार फिर 1916 के कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में तिलक ने पुनः कांग्रेस दल में प्रवेश लिया। तिलक प्रकाण्ड विद्वान भी थे। 'Arctic Home of the Aryans' और 'गीता रहस्य' उनकी दो प्रमुख पुस्तकें हैं।

गाँधीजी के नेतृत्व में 1 अगस्त, 1920 के दिन कांग्रेस ने 'असहयोग आन्दोलन' शुरू करने का निर्णय लिया। इसी दिन 1 अगस्त, 1920 को तिलक का देहावसान हो गया।

तिलक को श्रद्धाजंलि देते हुए नेहरू जी ने उन्हें 'भारतीय क्रांति का जनक' एवं महात्मा गाँधी ने उन्हें भारत का निर्माता' कहा।

बाल गंगाधर तिलक ने कहा, 'पशु जाति का नियम हिंसा और मानव जाति का नियम अहिंसा है, किन्तु जहाँ कायरता और हिंसा में से किसी एक का चुनाव करना हो, तो भारत अपने अपमान का निराधार साक्षी बना रहे ऐसे नामर्द व्यवहार की अपेक्षा स्वमान की रक्षा के लिए हिंसा का आश्रय ले, उसे मैं उचित मानता हूँ

गाँधीजी  

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास कर्मचंद गांधी था, जिनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को काठियावाड (गुजरात) के पोरबन्दर नामक स्थान पर पिता कर्मचंद गांधी एवं माता पुतली बाई के घर हुआ। 30 जनवरी, 1948 को नई दिल्ली में स्थित बिरला भवन के सामने नाथूराम गोडसे ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। 

ये लियो टॉलस्टॉय की रचनाओं से प्रभावित थे। गाँधी ने दक्षिण अफ्रीका में टॉलस्टॉय फार्म की स्थापना भी की थी। दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गाँधी द्वारा प्रकाशित पत्रिका का नाम इंडियन ओपेनियन था। गाँधी जी अपना राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले को मानते थे। 

गांधीजी 9 जनवरी, 1915 को दक्षिण अफ्रीका से वापस भारत आये। उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध में सरकार के युद्ध प्रयासों में मदद की जिसके लिए सरकार ने उन्हें 'केसर-ए-हिन्द' की उपाधि से सम्मानित किया। इन्हें भर्ती करने वाला सार्जेन्ट भी कहा गया था। 

प्रारम्भ में इन्होंने भारत की सक्रिय राजनीति में भाग नहीं लिया क्योंकि वे देखना चाहते थे, कि राजनीति की दिशा कैसे तय करें? 1915 ई. में गांधीजी ने अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे 'सत्याग्रह आश्रम' (कोचरब, अहमदाबाद) की स्थापना की तथा गाँधीजी ने साबरमती नदी के 1 किनारे साबरमती आश्रम (अहमदाबाद) की स्थापना भी 1915 ई. में ही की थी। 1917 ई. में चम्पारन सत्याग्रह का सफल नेतृत्व किया और इसी जगह पहली बार गाँधीजी ने सत्याग्रह का प्रयोग किया। वर्ष  1918 में अहमदाबाद में महात्मा गाँधी ने सफलतापूर्वक मिल मजदूरों की हड़ताल का नेतृत्व किया था।

लाला लाजपत राय (28 जनवरी, 1865- 17 नवम्बर, 1928 )

'पंजाब केसरी' एवं 'शेर-ए-पंजाब' के नाम से प्रसिद्ध लाला लाजपतराय का जन्म पंजाब के मोगा जिले में जगरांव कस्बे के ढुड्डके गाँव में 28 जनवरी, 1865 को श्री राधाकृष्ण के घर में हुआ। भारत में क्रांतिकारी विचार के जनक के रूप में लोकप्रिय, ये लाल-बाल-पाल की उग्रवादी त्रिगुट के सदस्य थे।

लाहौर में एक कॉलेज भी खोला जिसका नाम 'दयानंद एंग्लो या वैदिक कॉलेज' रखा गया।

लाला लाजपतराय ने उर्दू भाषा में दैनिक पत्र 'पंजाबी', 'वन्देमातरम्' तथा एक अंग्रेजी भाषा में दैनिक पत्र 'द पीपल' (The People) प्रकाशित किया तो कुछ समय के लिए अमेरिका से 'यंग इंडिया' नामक पत्र का भी प्रकाशन किया।

वे अच्छे लेखक भी थे जो अंग्रेजी के अच्छे विद्वान थे लेकिन कर पुस्तकें उर्दू में लिखते थे। उन्होंने 'महान अशोक', 'श्रीकृष्ण और उनकी शिक्षा' और 'छत्रपति शिवाजी' आदि कई पुस्तकें लिखीं। लेकिन यंग इंडिया, तथा "Unhappy India's will to freedom" उनकी प्रसिद्ध पुस्तकें थीं। उन्होंने 'सर्वेन्ट्स ऑफ पीपुल सोसायटी की स्थापना की तथा लाहौर में 'नेशनल कॉलेज' और 'तिलक स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स' स्थापित किए। 

1920 में वे कांग्रेस के कलकत्ता में हुए विशेष अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए। इसी अधिवेशन में महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन को स्वीकृत किया गया था।

सन् 1928 में साइमन कमीशन के विरोध में लाहौर में 30 अक्टूबर, 1928 को विशाल प्रदर्शन किया गया। इस प्रदर्शन के दौरान लाला जी लाठीचार्ज में घायल हो गए। 17 नवंबर, 1928 को उनका देहावसान हो गया।

महात्मा गाँधी ने उनकी मृत्यु पर कहा था कि "भारतीय सौर मंडल से एक सितारा डूब गया है।"

बिपिनचन्द्र पाल (7 नवम्बर, 1858-20 मई, 1932 )

फादर ऑफ रिवोल्यूशनरी थॉट इन इंडिया (Father of Revolutionary Thoughts in India) नाम से प्रसिद्ध बिपित चन्द्र पाल का जन्म 7 नवंबर, 1858 को सिलहट जिले (वर्तमान) बांग्लादेश में) के पोइल गाँव में हुआ था। उनके पिता अच्छे वकील थे।

भारत में क्रांतिकारी विचार के जनक के रूप में लोकप्रिय, ये लाल-बाल-पाल की उग्रवादी त्रिगुट के सदस्य थे। इनका बाल्यकाल सिलहट में गुजरा और युवावस्था कलकत्ता में गुजरी जहाँ केशवचन्द्र सेन के व्याख्यान सुनकर सनातन धर्म को छोड़कर ब्रह्म समाज की दीक्षा प्राप्त की। उग्र राष्ट्रवाद के मूल्यों का प्रतिपादन करते हुए विपिनचन्द्र पाल ने 'आध्यात्मिक राष्ट्रवाद' की धारणा को जन्म दिया इसी कारण उन्हें 'प्रचंड राष्ट्रवाद का पैगम्बर' कहा जाता है।

विपिन चन्द्र ने इंग्लैण्ड में रहकर 'स्वराज्य' नामक एक पत्रिका निकाली। जब वे भारत लौटे तो उन्होंने 'न्यू इंडिया' नाम से एक अंग्रेजी साप्ताहिक पत्र चलाया। 20 मई, 1932 को उनका देहान्त हो गया।

ध्यान रहे बिपिनचन्द्र पाल 'परर्दिशक' साप्ताहिक पत्र के प्रकाशक और 'बंगाली' और 'द ट्रिब्यून' के सहायक संपादक रहे।

बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय (27 जून, 18388 अप्रैल, 1894 ) 

भारत के राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्' के रचयिता बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय का जन्म 27 जून, 1838 को बंगाल के चौबीस परगना के नेहाती (Neihati) के कांठाल पाड़ा नामक गाँव में ब्राह्मण परिवार हुआ था।

उनकी शिक्षा कलकत्ता में हुगली में मोहसिन कॉलेज व प्रेसीडेंसी कॉलेज में हुई और ये जेसोर के डिप्टी कलेक्टर के पद पर नियुक्त हुए। 1844 में उन्हें 'Companion, Order of the Indian Empire' बनाया गया।

अप्रैल, 1872 से 'बंगदर्शन' नामक साहित्यिक पत्र भी निका शुरू किया। इसमें संपादक स्वयं बँकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय थे।

आधुनिक बंगला साहित्य के जनक बंकिमचन्द्र ही थे जिनको बंगाली साहित्य में साहित्यिक पुनर्जागरण काल का प्रणेता माना. जाता है।

बंकिम चन्द्र के पहले उपन्यास का नाम था 'दुर्गेश नन्दिनी', जो 1865 में प्रकाशित हुआ। 'कपाल कुंडला' (1866), 'मृणालिनी' (1869), 'विषवृक्ष' (1873), 'कृष्णकान्त का वसीयतनामा' (1878), 'रजनी' (1877), 'चंद्रशेखर' (1877) आदि बंकिमचन्द्र द्वारा लिखित उपन्यास है तो सीताराम (1886) उनका अंतिम उपन्यास है।

ध्यातव्य रहे - बंकिमचन्द्र ने 'कृष्ण चरित्र' नाम से भी कुछ लेख लिखे।

'आनन्दमठ' बंकिमचन्द्र का सर्वाधिक प्रसिद्ध उपन्यास है जिसका असली उद्देश्य कहानी की आड़ में लोगों को देशभक्ति का पाठ पढ़ाना था। यह उपन्यास संन्यासी विद्रोह की पृष्ठभूमि पर लिखा गया था।

ध्यातव्य रहे - बंकिम जी ने प्रसिद्ध गीत 'वंदे मातरम' 1874 में लिखा था जिसे बाद में अपने उपन्यास आनन्द मठ में शामिल कर लिया। बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय की मृत्यु 8 अप्रैल, 1897 को कोलकाता में हुई।

रास बिहारी बोस 25 मई, 1886 21 जनवरी, 1945

रास बिहारी बोस का जन्म 25 मई, 1886 में उनके मामा के घर प. बंगाल के वर्धमान जिले में भद्रेश्वर के समीप सुबालदह नामक ग्राम में हुआ था। रास बिहारी बोस की प्रारंभिक शिक्षा चंद्रनगर में हुई और 1906 में वे देहरादून में नौकरी करने लगे।

23 दिसंबर, 1912 को चाँदनी चौक में लार्ड हार्डिंग पर बम फेंकने की योजना रास बिहारी बोस ने बनायी थी। 1913 में रास बिहारी बोस ने अंग्रेजी में 'लिबर्टी' नामक एक पर्चा छाप कर बँटवाया जिसमें यह घोषणा की गई थी कि 'इंकलाब' आज के समय का तकाजा है। " हमारी आजादी की मंजिल सशस्त्र क्रांति के रास्ते ही हासिल हो सकती है।"

रास बिहारी बोस एक फर्जी पासपोर्ट बनाकर 1915 में जापान चले गए और वहाँ उन्होंने एक जापानी लड़की से विवाह करके जापान की नागरिकता प्राप्त की। उसने ही सबसे पहले "एशिया एशियावासियों का है।" का नारा बुलंद किया। 

1924 में टोक्यो (जापान) में उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता लीग ( इंडियन इंडीपेंडेंट्स लीग) की स्थापना कर स्वतंत्रता आन्दोलन को शक्तिशाली बनाने के लिए 21 जून, 1942 को बैंकाक में रास बिहारी बोस ने सम्मेलन बुलाया।

ध्यातव्य रहे - रास बिहारी बोस ने जापान में न्यू एशिया नामक समाचार पत्र निकाला। जापान सरकार ने इन्हें ऑर्डर ऑफ द राइजिंग सन सम्मान से अलंकृत किया था।

15 दिसम्बर, 1941 में रास बिहारी बोस ने जापान के मलाया सा नामक स्थान पर प्रथम आजाद हिंद फौज की स्थापना की और कैप्टन मोहन सिंह को उसका प्रधान नियुक्त किया। इस फौज का उद्देश्य भारत की भूमि से अंग्रेजों को मार भगाना था।

4 जुलाई, 1943 को रास बिहारी बोस ने सिंगापुर में आजाद हिंद फौज की बागड़ोर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के हाथ सौंप दी। उन्होंने इंडियन इंडीपेंडेंट्स लीग के सभापति पद से इस्तीफा देकर सुभाष चन्द्र बोस को इस पद पर नियुक्त किया।

रास बिहारी बोस की मृत्यु 21 जनवरी, 1945 को जापान में हुई। नेताजी ने कहा था कि रास बिहारी बोस पूर्व एशिया में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के जन्मदाता थे।

भगतसिंह 28 सितम्बर, 1907- 23 मार्च, 1931

भगतसिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के लायलपुर गाँव के जाराँवाला तहसील के बंगा गाँव के चक न. 105 में सरदार किशनसिंह संधु व विद्यावती कौर के यहाँ एक सिक्ख परिवार में हुआ। इनके पूर्वज महाराजा रणजीत सिंह की सेना में कार्यरत थे।

भगतसिंह डी.ए.वी. कॉलेज लाहौर में जब शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तो अपने दो अध्यापकों भाई परमानंद व जयचंद विद्यालंकार से प्रभावित होकर 'मैं नास्तिक क्यों हूँ' शीर्षक से एक दार्शनिक निबन्ध लिखा।

भगतसिंह ने भगवती चरण के साथ मिलकर लाहौर में 1926 में 'नौजवान भारत सभा' की स्थापना की। इस सभा का नारा 'हिंदुस्तान जिंदाबाद' था। 

अक्टूबर, 1924 में कानपुर में रामप्रसाद बिस्मिल, योगेश चटर्जी और शचीन्द्र सान्याल ने 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' की स्थापना की, जिसमें भगतसिंह सम्मिलित हुए। भगतसिंह ने सितंबर, 1928 में क्रांतिकारी संगठन 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' (हिंदुस्तान प्रजातांत्रिक संघ) का नाम बदलकर 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' (हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ) कर दिया जिसका अर्थ था क्रांति के उद्देश्य 'समाजवादी समाज' की स्पष्ट घोषणा।

लाला लाजपतराय की मृत्यु के ठीक एक मास बाद 17 दिसम्बर, 1928 को भगतसिंह, राजगुरु, जयगोपाल व चंद्रशेखर आजाद ने स्कॉट की जगह सांडर्स की हत्या कर दी।

8 अप्रैल, 1929 को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केन्द्रीय विधानसभा में बम फेंकते हुए पर्चे बांटे जिस पर लिखा हुआ था कि 'बहरे कानों तक अपनी आवाज पहुँचाने के लिए हमने इस बम का प्रयोग किया'। भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त वहाँ से आसानी से फरार हो सकते थे लेकिन वो वहाँ से भागे नहीं बल्कि स्वयं को गिरफ्तार करवाया। जब उन्होंने नारा लगाया- इंकलाब जिंदाबाद साम्राज्यवाद मुर्दाबाद। यह नारा सशस्त्र क्रांति के इतिहास को भगतसिंह की विशेष देन है।

ध्यान रहें - इंकलाब जिंदाबाद की रचना मुहम्मद इकबाल ने की थी लेकिन इसे पहली बार नारे के रूप में प्रयोग भगतसिंह ने किया था।

दिल्ली जेल में 4 जून, 1929 को मुकदमे की सुनवाई सेशन जज मिस्टर मिडलटन की अदालत में प्रारम्भ हुई जबकि 10 जून, 1929 को केस की सुनवाई समाप्त हो गई और उसके तुरंत बाद भगतसिंह को मियांवाली जेल में और बटुकेश्वर दत्त को लाहौर सेंट्रल जेल में भेज दिया गया। बाद में 12 जून, 1929 को दोनों को आजीवन कारावास का दंड सुना दिया गया। जेल में भगतसिंह और उसके साथियों ने 14 जून, 1929 से 64 दिन की भूख हड़ताल की जिसमें 13 सितम्बर, 1929 को यतीन्द्रनाथ दास शहीद हो गए।

जेल में रहते हुए उन्होंने 'आत्मकथा', 'भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन', 'समाजवाद का आदर्श' और 'मृत्यु के द्वार पर' चार पुस्तकें लिखीं।

7 अक्टूबर, 1930 को ट्रिब्यूनल का एकतरफा निर्णय दिया गया जिसमें भगतसिंह, राजगुरु और सुखेदव को फाँसी की सजा सुनाई गई। उन्हें 23 मार्च, 1931 को शाम सात बजकर तैंतीस मिनट पर लाहौर जेल में फाँसी दे दी गई। फाँसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती से गा रहे थे- 'मेरा रंग दे बसन्ती चोला............ 

तीनों क्रान्तिकारियों के शवों का अंतिम संस्कार फिरोजपुर जिले के हुसैनीवाला में किया गया।

चन्द्रशेखर आजाद ( 26 जुलाई, 190627 फरवरी, 1931)

पंडित चंद्रशेखर आजाद का जन्म मध्यप्रदेश के अलिराजपुर जिले के भावरा गाँव में 23 जुलाई, 1906 को पंडित सीताराम तिवारी व माता जगरानी देवी के घर हुआ। इनके पूर्वज बदरका गाँव (जिला, उन्नाव, उत्तरप्रदेश) के थे।

फरवरी, 1922 में चौरी-चौरा की घटना के पश्चात् बिना किसी से पूछे गाँधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया तो देश के तमाम नवयुवकों की तरह आजाद का भी कांग्रेस से मोह भंग हो गया और वे हिन्दुस्तान प्रजातांत्रिक संघ में शामिल हो गए। 

1 जनवरी, 1925 को इस संघ ने समूचे हिंदुस्तान में अपना बहुचर्चित पर्चा 'द रिवोल्यूशनरी' बाँटा जिसमें दल की नीतियों का खुलासा किया गया था। इस संघ की नीतियों के अनुसार 9 अगस्त, 1925 को काकोरी काण्ड को अंजाम दिया गया।

अंग्रेज चंद्रशेखर आजाद को तो पकड़ नहीं सके पर अन्य सर्वोच्च कार्यकर्ताओं - पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ व रोशन सिंह को 19 दिसम्बर, 1927 तथा उससे दो दिन पूर्व राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को 17 दिसम्बर, 1927 को फाँसी पर चढ़ा दिया गया।

23 दिसंबर, 1930 को वायसराय लार्ड इरविन की ट्रेन को उड़ाने के लिए निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के पास दिल्ली-मथुरा लाइन के नीचे बम विस्फोट किया।

आजाद प्रखर देशभक्त थे। 27 फरवरी, 1931 को एस.पी. नाटबाबर के नेतृत्व में इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में हुई गोलाबारी में आजाद को वोरगति प्राप्त हुई। उस समय चन्द्रशेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क में अपने मित्र सुखदेव से मंत्रणा कर रहे थे। आजाद इस पुलिस की मुठभेड़ में अंतिम गोली स्वयं को मारकर शहीद हुए थे। इसी स्वभाव के कारण रामप्रसाद बिस्मिल इनको 'क्विक सिल्वर' (पारा) कहकर पुकारते थे।

सुखदेव (15 मई, 1907-23 मार्च, 1931)

सुखदेव का पूरा नाम सुखदेव थापर था। जिसका जन्म लुधियाना (पंजाब) में श्री रामलाल थापर व श्रीमती रल्ली देवी के घर 15 मई, 1907 को हुआ। जन्म से तीन माह पूर्व ही पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण इनके ताऊ अचिन्तराम ने इनका पालन-पोषण करने में उनकी माता की मदद की।

सुखदेव ने भगवती चरण बोहरा व भगतसिंह के साथ मिलकर लाहौर में 1926 में 'नौजवान भारत सभा' की स्थापना की। इस सभा का नारा 'हिंदुस्तान जिंदाबाद' था।

लाहौर में साइमन आयोग के विरोध में जुलूस का नेतृत्व करते जब लाला लाजपतराय पर लाठीचार्ज किया गया तो 17 नवंबर, 1928 को लाला लाजपतराय की मृत्यु हो गई जिसका बदला लेने के लिए लाला लाजपतराय की मृत्यु के ठीक एक मास बाद 17 दिसम्बर, 1928 को भगतसिंह, राजगुरु, जयगोपाल व चंद्रशेखर आजाद ने स्कॉट की जगह सांडर्स की हत्या कर दी।

ध्यान रहे - सांडर्स की हत्या चितरंजनदास की विधवा बसंती देवी के कथन का सीधा उत्तर था जिसमें उसने कहा था कि 'क्या देश में कोई युवक नहीं रहा।'

लाहौर षड्यंत्र केस में 23 मार्च, 1931 को भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर जेल में फाँसी दे दी गई। इस प्रकार सुखदेव मात्र 24 वर्ष की आयु में ही शहीद हो गए।

ध्यान रहे - भगतसिंह और सुखदेव दोनों एक ही सन् में पैदा हुए और एक साथ ही शहीद हो गए।

सुभाष चन्द्र बोस (23 जनवरी, 1897- 18 अगस्त,1945)

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में पिता जानकीनाथ बोस और माँ प्रभावती देवी के घर में हुआ था। 1912 में जानकीनाथ बंगाल विधानसभा के सदस्य बने और उन्हें रायबहादुर की उपाधि दी गई। 

आईसीएस की परीक्षा के लिए 1919 में बोस इंग्लैण्ड जाकर वहाँ कैंब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। जहाँ सुभाष को इंडियन सिविल सर्विस/ आईसीएस परीक्षा (1920) में चतुर्थ स्थान मिला। लेकिन सुभाष नियुक्ति से पूर्व ही आईसीएस के पद से त्याग-पत्र देकर भारत की आजादी के लिए काम करने के उद्देश्य से वापस भारत लौट आए।

ध्यातव्य रहे - भारत में सिविल सेवा का जन्मदाता कार्नवालिस था तो सत्येन्द्र नाथ टैगोर प्रथम भारतीय थे जिन्होंने 1863 में आईसीएस का पद ग्रहण किया। 1920 ई. में सुभाषचन्द्र बोस ने आईसीएस पद से त्याग-पत्र देने वाले प्रथम भारतीय थे तो 1874 ई. में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी पहले व्यक्ति थे जिन्हें असम के कलेक्टर पद से बर्खास्त किया गया।

सुभाष 16 जुलाई, 1921 को बंबई पहुँचे और वहाँ महात्मा गाँधी से मिलकर वे कलकत्ता गए और वहाँ चितरंजनदास से मिले। चितरंजनदास सुभाष के राजनीतिक गुरु थे। 

असहयोग आन्दोलन के समय जब प्रिंस ऑफ वेल्स भारत आया तो सुभाषचन्द्र बोस ने उसका विरोध किया। इसी कारण सुभाषचन्द्र बोस सहित उनके साथियों को 10 दिसम्बर, 1921 को जेल में डाल दिया गया। जेल से मुक्त होने पर उन्होंने बांगलार कथा समाचार-पत्र के संपादन का कार्य किया।

1923 में सी.आर. दास ने सुभाषचन्द्र बोस को कलकत्ता निगम का मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया लेकिन कुछ समय बाद ही सुभाषचन्द्र बोस पर क्रांतिकारी षड्यंत्र का आरोप लगाकर अंग्रेजी सरकार ने अक्टूबर, 1924 में उन्हें पुनः केद कर मांडले जेल (बर्मा) में डाल दिया गया। स्वास्थ्य खराब होने के कारण मई, 1927 को सुभाषचन्द्र बोस को जेल से मुक्त कर दिया गया। जिसके बाद 30 वर्ष की आयु में बंगाल प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।

1928 में कलकत्ता में आयोजित कांग्रेस कार्यसमिति के अधिवेशन में गाँधीजी के उस प्रस्ताव का विरोध किया जिसमें उन्होंने दिसम्बर, 1929 तक भारत को उपनिवेश का दर्जा न देने की सूरत में असहयोग आन्दोलन की चेतावनी दी थी। इस सुभाषचन्द्र बोस ने स्वतंत्रता दर्जे से कम किसी भी स्थिति को स्वीकार न करने का प्रस्ताव रखा।

ध्यातव्य रहे - सुभाषचन्द्र बोस देश के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करने वाले व्यक्तियों में प्रथम व्यक्ति थे।

सुभाषचन्द्र बोस 41 वर्ष की उम्र में फरवरी, 1938 में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस के हरिपुरा (गुजरात) के अध्यक्ष बने तथा 1939 के कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में गाँधीजी के विरोध के बावजूद भी वे पुनः कांग्रेस अध्यक्ष बने लेकिन बाद में कांग्रेसी नेताओं के विरोध के कारण अध्यक्ष पद से त्याग-पत्र देकर 1 मई, 1939 को उन्होंने 'फॉरवर्ड ब्लॉक' की स्थापना कर सशस्त्र संघर्ष द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करने का निश्चय किया।

ध्यातव्य रहे - शेष समय के लिए कांग्रेस का अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को बनाया गया।

4 जुलाई, 1940 को होलबेल स्मारक को ध्वस्त करने के आरोप में सुभाषचन्द्र बोस को पुनः जेल में डाल दिया गया। उन्होंने सोच समझकर नवम्बर, 1940 में अपनी मुक्ति के प्रश्न को लेकर जेल में भूख-हड़ताल की जिस कारण उन्हें 17 दिसम्बर, 1940 को जेल से मुक्त कर दिया गया लेकिन उनकी गतिविधियों पर निगरानी रखने के लिए उन्हें स्वयं के घर में ही नजरबंद कर दिया गया।

16 फरवरी, 1941 के दिन पुलिस की आँखों में धूल झोंककर सुभाषचन्द्र बोस अपने कलकत्ता के एलगिन रोड स्थित घर से पठान (जियाउद्दीन) के वेश में निकलकर पेशावर व रूस होते हुए मार्च, 1941 में बर्लिन पहुँचे।

ध्यातव्य रहे - बर्लिन में जाने के बाद कुछ समय के लिए सुभाषचन्द्र बोस ओरलैंडो मजेटा के नाम से पुकारे गये और वही 2 नवम्बर, 1941 को 'स्वतंत्र भारत केन्द्र' की स्थापना कर भारतीय सैन्य दल का भी निर्माण किया।

जब 8 दिसम्बर, 1941 को जापान ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की तब 1 फरवरी, 1942 को अंग्रेजों ने सिंगापुर में जापानियों के सामने हथियार डाले। उसी दिन से सुभाषचन्द्र बोस ने एशिया जाने की योजना बनाना प्रारम्भ की। जर्मनी में ही सुभाषचन्द्र बोस को सर्वप्रथम 'नेताजी' कहकर पुकारा गया।

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस 16 मई, 1943 को टोक्यो पहुँचकर जापान के प्रधानमंत्री जनरल तोजो से मिले जिन्होंने नेताजी को सहायता देने का आश्वासन दिया। नेताजी रास बिहारी बोस के साथ मिलकर 2 जुलाई, 1942 को टोक्यो से सिंगापुर पहुँचे और 4 जुलाई, 1943 को सिंगापुर के कैथे सिनेमा हॉल में रास बिहारी बोस ने आजाद हिन्द फौज की बागडोर नेताजी को सौंपते हुए 'इंडियन इंडिपिडेंस लीग' के सभापति पद से इस्तीफा देते हुए सुभाषचन्द्र बोस को इस पद पर नियुक्त किया। सुभाषचन्द्र बोस ने 'आई.एन.ए.' का पुनर्गठन कर चलो दिल्ली का नारा दिया।

21 अक्टूबर, 1943 के दिन सुभाषचन्द्र बोस ने सिंगापुर के कैथे सिनेमा हॉल में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार की स्थापना की घोषणा की। सुभाषचन्द्र बोस इस सरकार के मुखिया, प्रधानमंत्री तथा मुख्य सेनापति स्वयं बने और अपने पद की शपथ लेते हुए कहा कि 'ईश्वर के नाम पर यह पावन शपथ लेता हूं कि भारत और उसके 38 करोड़ निवासियों को स्वतंत्र कराऊंगा'।

संसार की 9 शक्तियों (चीन, कोरिया, जापान, जर्मनी, इटली, बर्मा, फिलीपीन्स, थाईलैण्ड व आयरलैण्ड) ने इस अस्थायी सरकार को मान्यता प्रदान की। जापान सरकार ने अपने नवविजित अंडमान व निकोबार द्वीपों को 8 नवंबर, 1943 को आजाद हिन्द फौज की अस्थायी सरकार को सौंप । इस प्रकार आजाद हिन्द सरकार को अपने पहले दो प्रदेश मिले जिनका नाम बाद में अंडमान का शहीद व निकोबार का स्वराज द्वीप रखा गया और लेफ्टिनेंट कर्नल ए.डी. लोगनादान को अस्थायी सरकार की ओर से उनका प्रथम भारतीय प्रशासक नियुक्त किया गया।

इस घोषणा के बाद नेताजी सिंगापुर में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई रेजिमेंट बनाई जिसकी संचालिका कप्तान लक्ष्मी सहगल (विवाह से पूर्व नाम लक्ष्मी स्वामीनाथन) को नियुक्त किया गया और आई.एन.ए. की तीन ब्रिगेडों के नाम- सुभाष ब्रिगेड, गाँधी ब्रिगेड व नेहरू ब्रिगेड रखा गया।

सुभाषचन्द्र बोस स्वतंत्र भारत के पहले प्रदेश अंडमान में 31 दिसम्बर 1943 को गये तथा बाद में जनवरी 1944 के प्रथम सप्ताह में इसका मुख्यालय रंगून (बर्मा) स्थानांतरित कर दिया इस प्रकार अब आजाद हिन्द फौज के दो मुख्यालय पहला रंगून व दूसरा सिंगापुर बने।

18 मार्च, 1944 को आई.एन.ए. ने सीमा पार करके भारत की भूमि पर पहली बार कदम रखा। 21 मार्च, 1944 को एक प्रेस सम्मेलन में नेताजी ने सम्पूर्ण संसार को इस ऐतिहासिक घटना की सूचना दी। 8 अप्रैल, 1944 को आजाद हिन्द फौज ने कोहिमा (वर्तमान नागालैण्ड में) के किले और एक छावनी पर कब्जा किया। 18 अप्रैल, 1944 को इंफाल पर आजाद हिन्द फौज ने पुनः आक्रमण किया लेकिन इस बार मौसम के कारण आजाद हिन्द फौज हार गई परन्तु नेताजी इस पराजय से निराश नहीं हुए और नेताजी ने युवकों से कहा-'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।'

ध्यातव्य 5-22 सितम्बर, 1944 को सुभाषचन्द्र बोस ने शहीदी दिवस मनाया।

उसी समय 7 मई, 1945 को जर्मनी ने पराजय स्वीकार कर ली और 6 अगस्त, 1945 को जापान के हिरोशिमा पर व 9 अगस्त, 1945 को जापान के नागासाकी में बम गिराये गये इसी कारण 13 अगस्त, 1945 को जापान ने भी पराजय स्वीकार कर ली।

जापान की पराजय के बाद आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया। जिसके बाद 17 अगस्त, 1945 को नेताजी सेगोन हवाई अड्डे से टोक्यो के लिए प्रस्थान कर रहे थे तो दूसरे ही दिन 18 अगस्त, 1945 को फारमोसा द्वीप (ताइपे) में वायुयान के टकरा जाने के कारण सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु हो गई। जिनके अवशेष रेनकोजी मंदिर (टोक्यो) में रखे हुए है परन्तु वर्तमान में भी इनकी मृत्यु के बारे में कहीं जाँच-समितियां कार्यरत है।

गाँधीजी ने बोस को देशभक्तों का देशभक्त कहा।

सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु पर गठित समितियां

1. शाह नवाज समिति वर्ष 1956, जवाहरलाल नेहरू 
2. खोसला आयोग वर्ष 1970, इंदिरा गाँधी 
3. मनोज मुखर्जी आयोग वर्ष 1999, अटल बिहारी वाजपेयी

वी.डी. सावरकर ( 28 मई, 1883-26 फरवरी, 1966 )

विनायक दामोदर सावरकर भारतीय इतिहास में 'वीर सावरकर' के नाम से लोकप्रिय थे। जिनका जन्म भागुर गाँव (नासिक, महाराष्ट्र) में 28 मई, 1883 को हुआ था। सावरकर ने पूना के फर्ग्यूसन कॉलेज में दाखिला लिया वहां वे लोकमान्य तिलक के सम्पर्क में आए। वी.डी. सावरकर ने 1899 में नासिक में 'मित्र मेला' नाम की एक संस्था आरम्भ की जिसे 1904 में 'अभिनव भारत' समाज में परिवर्तित कर दिया। अभिनव भारत की शाखाएं महाराष्ट्र एवं मध्यप्रांत में सक्रिय थी जिसमें बम बनाना, शस्त्र चलाने में प्रशिक्षण आदि दिए जाते थे।

सावरकर ने 10 मई, 1907 को 'इंडिया हाउस' में 1857 की क्रांति की अर्द्धशताब्दी मनाने का निश्चय कर 1857 की क्रांति पर मराठी में एक पुस्तक '1857 का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम' (भारत) की प्रथम सरकारी पुस्तक प्रकाशित की और इसे आजादी की पहली लड़ाई बताया।

ध्यान रहे सावरकर प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने 1857 के गदर को 'गदर' न कहकर 'भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम' की संज्ञा दी तो वी.डी. सावरकर ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे, जिनकी पुस्तक 'द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस' प्रकाशन 1909 से पूर्व ही ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर ली गई थी लेकिन पुस्तक गुप्त रूप से विभिन्न शीर्षक 'पीक वीक पेपर्स' और 'स्काट्स पेपर्स' के नाम से भारत पहुँची।

वी.डी.सावरकर को 'इंडिया हाउस' जैसे क्रांतिकारी समूह से संबंध रखने के कारण 1910 में गिरफ्तार किया गया। जब उन्हें बंदी बनाकर 8 जुलाई, 1910 को जलयान से भारत लाया जा रहा था तो वे समुद्र में कूदकर फ्रांस पहुंचे लेकिन पकड़े गए तथा उन्हें आजीवन कारावास की सजा देते हुए अण्डमान द्वीप की सेलुलर जेल में भेज दिया गया। उन्हें 1937 में जेल से रिहा किया गया। इसके बाद 1937 से 1942 तक हिन्दू महासभा के अध्यक्ष रहे।

सावरकर ने 'भारत छोड़ो आंदोलन' का भी विरोध किया और उसे 'भारत छोड़ो सेना रखो' आंदोलन नाम दिया। वे 'भारत विभाजन' की स्वीकृति के कारण कांग्रेस के कट्टर विरोधी हो गए थे। उन पर महात्मा गांधी की हत्या का भी आरोप लगाया गया और उन्हें पुनः बन्दी बनाया गया।

अंडमान निकोबार द्वीप समूह के पोर्टब्लेयर हवाई अड्डे का नाम 'वीर सावरकर हवाई अड्डा' रखा गया है।

सरदार वल्लभभाई पटेल (1875-1950 ई.)

31 अक्टूबर, 1875 को लौह पुरुष के नाम से प्रसिद्ध वल्लभ झावेर भाई पटेल का जन्म गुजरात के नादियाद नगर में हुआ था। उन्होंनें 1928 में बारदोली सत्याग्रह का सफल आन्दोलन करने पर वहां की महिलाओं द्वारा सरदार की उपाधि दी गई थी। उन्हें कांग्रेस का ड्रिल सार्जेण्ट माना जाता था तथा उन्होंने वर्ष 1937 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस चुनाव अभियान का नेतृत्व किया जिसके फलस्वरूप कांग्रेस ने 11 प्रान्तों में से 7 में विजय पायी, तो वहीं वर्ष 1946 में बनी पं. जवाहरलाल नेहरू की प्रथम अंतरिम सरकार में सरदार पटेल शामिल हुए और वर्ष 1947 में देश के आजाद होने पर उपप्रधानमंत्री नियुक्त हुए

ध्यातव्य रहे - भारत की देशी रियासतों के भारतसंघ में विलय [CTET-2018] कराने में सरदार पटेल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इसलिए उन्हें भारत का बिस्मार्क कहते हैं, तो वहीं सरदार पटेल द्वारा स्वतंत्र भारत के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा (ICS) का गठन किया गया।

मोहम्मद अली जिन्ना ( 1876-1948 ई.) 

25 दिसम्बर, 1876 को कराची में जन्मे मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के प्रथम गवर्नर जनरल (कायदे आजम) बने, जो मृत्यु पर्यन्त रहे, तो वहीं वे एक वकील राजनीतिज्ञ व पाकिस्तान के संस्थापक थे तथा पाकिस्तान के निर्माण का श्रेय जिन्ना व उनकी पार्टी मुस्लिम लीग को दिया जाता है। 

1913 से 14 अगस्त, 1947 तक (पाकिस्तान की स्वतंत्रता तक) अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के नेता रहे। 22 दिसम्बर 1939 को जिन्ना ने कांग्रेस की प्रान्तीय सरकारों द्वारा इस्तीफा दिये जाने पर कांग्रेस को धन्यवाद देते हुए 'हिन्दू आतंक, दमन और अन्याय से मुक्ति' के रूप में देश में मुक्ति दिवस मनाने की घोषणा की तथा मुक्ति दिवस मनाने के लिए बम्बई में एक का आयोजन हुआ, विशाल रैली तो वहीं भारत छोड़ो आन्दोलन के शुरू होने पर जिन्ना ने मुस्लिम लीग को 23 मार्च 1943 को पाकिस्तान दिवस मनाने का आह्वान किया और समस्त मुस्लमानों से कहा कि पाकिस्तान ही मुसलमनों का राष्ट्रीय उद्देश्य है। जिन्ना प्रारम्भ में राष्ट्रवादी थे, परन्तु बाद में वे मुस्लिम लीग के पृथक पाकिस्तान के प्रस्ताव के कट्टर समर्थक हो गये।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर

डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को इन्दौर (मध्यप्रदेश) के पास महू छावनी में महार जाति में हुआ था। इन्हें भारतीय संविधान के निर्माण हेतु बनी प्रारूप समिति (ड्राफ्ट कमेठी) का अध्यक्ष बनाया गया। इन्हें भारतीय संविधान का जनक / आधुनिक भारत का मनु / भारतीय संविधान के शिल्पकार/दलितों के मसीहा / बाबा साहेब / हिन्दू समाज का लिंकन एवं मार्टिन लूथर कहा जाता है। डॉ. अम्बेडकर दलित हित प्रयासरत रहे इन्होंने लंदन में आयोजित तीनों गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया था तथा इन्हीं के प्रयासों से मैक्डोनाल्ड के साम्प्रदायिक पंचाट में दलितों को पृथक निर्वाचन देने की घोषणा की गई, तो वहीं गांधी जी के साथ इन्होंने पूना समझौता किया, जिसमें दलितों के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था को समाप्त करने पर समझौता हुआ।

पं. जवाहरलाल नेहरू ( 1889 से 1964 ई.)

इनका जन्म 14 नवम्बर, 1889 को इलाहाबाद में हुआ था (वृश्चिक राशि में)। पिता श्री मोतीलाल नेहरू, माता स्वरूपरानी, पत्नी कमला कौल तथा निवास स्थान आनन्द भवन (इलाहाबाद) [UPTE-2015]। घर पर शिक्षा पूरी होने के बाद वे वकालात करने 1905 ई. में इंग्लैण्ड गये और पढ़ाई पूरी करने के बाद 1912 ई. में भारत लौट आये। भारत लौटने के चार माह बाद ही नेहरू जी इंडियन नेशनल कांग्रेस के बांकीपुर अधिवेशन में शामिल हुए। 

वे गांधीजी के असहयोग आन्दोलन में शरीक हुए और दिसम्बर, 1921 में पहली बार जेल गये, तो वहीं दिसम्बर, 1929 में लाहौर में होने वाले कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन का अध्यक्ष गांधीजी के प्रस्ताव पर नेहरूजी को चुना गया था (वे पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष बने थे) तथा इस अधिवेशन में 31 दिसम्बर, 1929 को प्रस्ताव पारित कर पूर्ण स्वराज्य प्राप्ति को कांग्रेस का परमध्येय निश्चित किया गया। और 31 दिसम्बर, 1929 को अर्द्धरात्रि के समय (1 जनवरी, 1930) लाहौर में रावी नदी के किनारे नेहरूजी ने कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राष्ट्रीय ध्वज फहराया। 6 अप्रैल, 1930 को नेहरू जी महात्मा गाँधी के नमक सत्याग्रह (सविनय अवज्ञा आंदोलन) में कूद पड़े और उन्हें जेल जाना पड़ा। 

नेहरू जी दिसम्बर, 1936 (फैजपुर अधिवेशन) में कांग्रेस के अध्यक्ष बने तथा 1939 में कांग्रेस के तत्वावधान में नेहरू जी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय योजना संघ का गठन किया गया था, तो वहीं नेहरू अखिल भारतीय लोक परिषद् के भी अध्यक्ष चुने गये, जिसके अध्यक्ष पद पर रहते हुए उन्होंने देशी रियासतों की जनता की राज्य लोक परिषदों को कांग्रेस से जोड़ा। सन् 1940 में महात्मा गाँधी द्वारा सरकार के युद्ध प्रयासों का प्रतिरोध करने के लिए प्रारम्भ किये गये व्यक्तिगत सत्याग्रह की विनोबा भावे (प्रथम सत्याग्रही) के बाद नेहरू दूसरे सत्याग्रही बने। 

नेहरू जी को 9 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के शुरू होने पर सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना आजाद व डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के साथ गिरफ्तार कर अहमदनगर के किले में रखा गया था और उन्होंने यहाँ रहते हुए अपनी प्रसिद्ध पुस्तक डिस्कवरी ऑफ इंडिया (भारत की खोज) की रचना की। सन् 1946 में वे पुनः कांग्रेस के अध्यक्ष बने और 16 मई, 1946 को प्रस्तुत कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों के तहत उनके नेतृत्व में 2 सितम्बर, 1946 को अंतरिम सरकार का गठन हुआ, तो वहीं 15 अगस्त, 1947 को देश के स्वतंत्र होने पर वे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और उन्होंने राष्ट्र के नाम रेडियो प्रसारण में कहा उत्पादन करना हमारी प्रथम प्राथमिकता होगी। 

स्वतंत्रता से लेकर 1964 तक मृत्युपर्यन्त वे भारत के प्रधानमंत्री रहे। नेहरू जी पंचशील के सिद्धांतों के प्रवर्तक थे, उन्होंने इन सिद्धांतों की घोषणा चीन के साथ 1955 में की थी। चीन के 1962 के आक्रमण से उन्हें गहरा सदमा पहुँचा था। 27 मई, 1964 को उनका निधन हो गया। उनका जन्म दिवस 14 नवम्बर बाल दिवस के रूप में मनाते हैं, तो वहीं वे बालकों में चाचा नेहरू के नाम से प्रसिद्ध थे।

नेहरू जी की प्रमुख पुस्तकें

सोवियत रूस (प्रथम पुस्तक जो) नवम्बर, 1927 की नेहरू जी की रूस यात्रा पर संक्षिप्त टिप्पणी थी), आत्मकथा (सन् 1936 में लंदन से प्रकाशित, जिसका 31 भाषाओं में अनुवाद हुआ), भारत की खोज (अप्रैल, 1944 से सितम्बर, 1944 तक की अवधि में अहमद नगर जेल प्रवास के दौरान इसकी रचना की), विश्व इतिहास की झलक (1935 में प्रकाशित इस पुस्तक में नेहरू द्वारा अपनी पुत्री इंदिरा को 26 मार्च, 1930 से 9 अगस्त, 1933 के बीच लिखे गये 176 पत्र हैं) तथा इंडिया टूडे एंड टूमारो (सन् 1959 में प्रथम आजाद स्मारक भाषण हेतु लिखी संक्षिप्त पुस्तक) ।

ध्यातव्य रहे - वर्षों पहले हमने नियति के साथ एक वादा किया था और अब वह वादा पूरा करने का समय आ गया है ये शब्द 14 अगस्त, 1947 की रात को जवाहर लाल नेहरू ने कहे थे। 'मध्यरात्रि की टंकार पर, जब संसार सोता है, भारत अपने जीवन व स्वतंत्रता के लिये जाग उठेगा।'-जवाहर लाल नेहरू। भारत और इंग्लैण्ड के आर्थिक हित प्रत्येक क्षेत्र में टकराते हैं, उक्त कथन जवाहर लाल नेहरू का है। मैं एक समाजवादी और गणतंत्रवादी हूँ। और मुझे राजाओं और राजकुमारों में विश्वास नहीं है। यह वक्तव्य जवाहर लाल नेहरू से संबंधित है।

गोपाल कृष्ण गोखले (1866 से 1915 ई.)

इनका जन्म 9 मई, 1866 को कोल्हापुर (महाराष्ट्र) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे कांग्रेस में नरम दल के प्रतिनिधि थे तथा उन्होंने प्रथम बार 1889 में कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन के मंच से राजनीति में प्रवेश लिया था। गोखले जी महात्मा गाँधी के राजनैतिक गुरु थे। इनके द्वारा 12 जून, 1905 को भारत सेवक समाज का गठन किया गया। उन्हें राजनीतिक कार्य की शिक्षा दीक्षा महादेव गोविंद रानाडे से मिली। वे 1902 में वायसराय की लैजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य बनाये गए। कांग्रेस का 1905 का बनारस अधिवेशन गोखले जी की अध्यक्षता में हुआ था। गोखले जी सन् 1912 में महात्मा गाँधी के निमंत्रण पर दक्षिणी अफ्रीका गये। उनका निधन 19 फरवरी, 1915 को हुआ।

दादाभाई नौरोजी

महाराष्ट्र के खड़ग ग्राम में पारसी परिवार में जन्में व भारत राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापकों में से एक दादाभाई नौरोजी को भारत का वयोवृद्ध पुरुष (ग्राण्ड ओल्डमैन ऑफ इंडिया) के नाम से जाना जाता है। इन्होंने अंग्रेजों द्वारा भारत से धन के निष्कासन का सिद्धांत (Wealth Drain Theory) प्रतिपादित किया। नौरोजी ब्रिटिश संसद के सदन हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य बनने वाले पहले भारतीय थे, तो वहीं वे तीन बार (1886, 1893 व 1906) कांग्रेस के अध्यक्ष बने। इन्होंने पॉवर्टी एण्ड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी। नौरोजी को भारतीय राजनीति एवं अर्थशास्त्र का पिता कहते हैं। उनके द्वारा लंदन में लंदन इंडियन एसोशिएसन तथा बाद में ईस्ट इंडिया एसोशिएसन की स्थापना की गई थी।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद

भारत के प्रथम राष्ट्रपति व देश रत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म बिहार के गाँव जीरादेई में 3 दिसम्बर, 1884 को हुआ तथा व सन् 1916 में पटना आ गये। इनके द्वारा 1905 के बंग-भंग विरोधी आंदोलन में भाग लिया गया और वे 1920 में गाँधीजी के असहयोग त आंदोलन में कूद पड़े। 6 फरवरी, 1921 को महात्मा गाँधी ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा स्थापित बिहार विद्यापीठ का विधिवत् उद्घाटन किया था। 

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को बिहार का गाँधी कहते हैं। इनके द्वारा सन् 1918 में अंग्रेजी पत्र सर्चलाइट तथा पटना से 1920 में हिन्दी साप्ताहिक देश निकाला गया। वे The Dawn Society के सक्रिय सदस्य थे। देशवासियों ने देशरत्न के नाम से अलंकृत कर उनके प्रति बिहार में आये प्रलयकारी भूकम्प के दौरान किये गये राहत कार्यों के लिए आभार व्यक्त किया। 

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद अक्टूबर, कांग्रेस के मुम्बई अधिवेशन के सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुने गये थे। 11 1934 में दिसम्बर, 1946 को उन्हें संविधान सभा का स्थाई अध्यक्ष बनाया गया, तो वहीं 26 जनवरी, 1950 को स्वतंत्र भारत के नये संविधान के तहत उन्होंने भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण की। 13 मई, 1962 को उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा लिखित प्रमुख ग्रन्थ है-खण्डित भारत (इडिया डिवाइडेड, 1946), आत्मकथा, चम्पारण सत्याग्रह (1962), स्वतंत्रता से (Since Independence), महात्मा गाँधी और बिहार, कुछ संस्मरण तथा बापू के कदमों में।

ध्यातव्य रहे - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इण्डिया डिवाइडेड ग्रन्थ की रचना बांकीपुर जेल में की थी ।

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