प्रति सेकण्ड हो जाती है। भूकम्पीय तरंगों की गति में यह वृद्धि वहाँ पर अधिक दबाव के कारण है।
क्रोड का विस्तार 2900 किमी. से पृथ्वी के केन्द्र (6371 किमी.) तक है। इसका आयतन समस्त पृथ्वी के आयतन का मात्र 17 प्रतिशत तथा समस्त द्रव्यमान का 34 प्रतिशत है। क्रोड की बाह्य सीमा को विशर्ट-गुटेनबर्ग असातत्य (Wiechert Gutenburg Discontinuity) कहते हैं। इस सीमा पर घनत्व में अत्यधिक परिवर्तन आता है। इस सीमा के ऊपर मेण्टल का घनत्व 5.5 ग्राम/सेमी' तथा इसके नीचे क्रोड का घनत्व 10.0 ग्राम / सेमी है। द्रव्यमान बहुत अधिक है। विशर्ट-गुटेनबर्ग असातत्य पर P. तरंगों की गति 12.6 किमी. प्रति सेकण्ड से घटकर 8.4 किमी. प्रति सेकण्ड रह जाती है।
क्रोड में दो विभिन्न सीमाएँ पाई जाती हैं, जो सम्पूर्ण क्रोड को तीन विभिन्न भागों में बाँटती हैं
यह विशर्ट गुटेनबर्ग असातत्य (गहराई 2900 किमी.) से 4980 किमी. की गहराई तक विस्तृत है। इसमें से S- तरंगें नहीं गुजर सकतीं। वहाँ पर अत्यधिक दबाव होता है।
इसका विस्तार 4980 से 5120 किमी. की गहराई तक है। यह बाह्य क्रोड तथा आन्तरिक क्रोड को एक-दूसरे से अलग करती हैं।
यह 5120 किमी. की गहराई से पृथ्वी के केन्द्र (गहराई 6371 किमी.) तक विस्तृत है। यह ठोस की अवस्था में है जिसका घनत्व 13.6ग्राम/सेमी है। यहाँ पर P- तरंगों की गति 11.23 किमी. प्रति सेकण्ड होती है।
स्थल भाग पर समुद्रों का अतिक्रमण पहली बार इस काल में हुआ। प्राचीनतम अवसादी शैलों (Sedimentary Rocks) का निर्माण कैम्ब्रियन काल में ही हुआ था।
समुद्रों में उत्पन्न होने वाली घासों के प्रथम अवशेष इस काल की चट्टानों में पाये जाते हैं। अप्लेशियन पर्वतमाला का निर्माण ऑडविसियन काल में ही हुआ।
सर्वप्रथम रीढ़ वाले जीवों तथा मछलियों का आविर्भाव सिल्यूरियन काल में हुआ। सिल्यूरियन काल को 'रीढ़ की हड्डी वाले जीवों का काल' (Age of Vertebrates) के रूप में जाना जाता है।
कार्बोनीफेरस युगयुग-
उभयचर जीवों (Amphibians) का विकास कार्बोनीफेरस युग की एक प्रमुख घटना है।
ट्रियासिक काल-
इस काल को 'रेंगने वाले जीवों का काल' (Age of Reptiles) कहा जाता है। गोण्डवानालैण्ड भूखण्ड का विभाजन ट्रियासिक काल में ही हुआ, जिससे आस्ट्रेलिया, दक्षिणी भारत, अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिका के स्थल खण्ड बने।
जुरैसिक काल-
जलचर, थलचर तथा नभचर तीनों प्रकार के जीवों का विकास जुरैसिक काल में माना जाता है।
नवजीवी महाकल्प (Cenozoic Era)-
इसके प्रारम्भ में जलवायविक परिवर्तन के कारण सम्पूर्ण जीवों का विनाश हो तथा लाखों वर्षों बाद पृथ्वी पर वनस्पतियों एवं जीवों का पुनः आविर्भाव हुआ।
हिमालय पर्वतमाला तथा दक्षिण के प्रायद्वीपीय भाग के बीच स्थित जलपूर्ण घाटी (द्रोणी) में अवसादों के जमाव से उत्तर भारत के विशाल मैदान की उत्पत्ति नवजीवी महाकल्प में ही हुई।
प्लीस्टोसीन काल-
पृथ्वी पर उड़ने वाले पक्षियों का आगमन इस काल में हुआ। मानव तथा अन्य स्तनपायी इसी काल में विकसित हुए।
अभिनव काल में प्लीस्टोसीन काल के हिम की तापमान में वृद्धि के कारण समाप्त हो गयी तथा विश्व की वर्तमान दशा प्राप्त हुई, जो अभी जारी है।
पैलियोसीन युग- वर्तमान घोड़े के प्राचीन रूप का उद्भव पैलियोसीन युग में हुआ।
इयोसीन युग- इस युग में अनेक प्रकार के स्तनधारियों, फल युक्त पौधों व धान्यों का आविर्भाव हुआ।
ओलिगोसीन युग- इस काल में मानव कपि (Anthropoid ape) अस्तित्व में आए।
मायोसीन युग- इसमें हेल व कपि जैसे उच्च श्रेणी के स्तनधारी अस्तित्व में आए।
शैल/चट्टान (Rocks)
शैल- भूपटल की रचना करने वाले पदार्थ को चट्टान या शैल कहा जाता है। शैलों का निर्माण चक्रीय रूप से होता है। भूवैज्ञानिकों ने शैलों को पृथ्वी के भूवैज्ञानिक इतिहास के पृष्ठ कहा है।
पेट्रोलॉजी- शैलों के विज्ञान को कहते हैं।
शिलीभवन- संचित पदार्थ के शैलों में परिणत होने की प्रक्रिया को कहते है।
शैली चक्र-
धरातल का निर्माण विभिन्न प्रकार की शैलों से हुआ है। परन्तु शैलें अपने मूल रूप में अधिक समय तक नहीं रहती हैं। इनमें परिवर्तन होते रहते हैं। भूपृष्ठ पर मुख्यतः तीन प्रकार की शैल पायी जाती हैं आग्नेय शैल, अवसादी शैल तथा कार्याांतरित शैल
1. आग्नेय चट्टानें /प्राथमिक चट्टानें (Igneous Rocks)
आग्नेय शब्द लैटिन भाषा के Ignis शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है अग्नि आग्नेय चट्टानों का निर्माण मैग्मा के ठंडा होकर जमने एवं ठोस होने से होता है।
आग्नेय शैलें भूपटल की प्राचीनतम शैलें हैं। इन शैलों के अपक्षय तथा रूपान्तरण से अन्य प्रकार की शैलें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बनती हैं। इसीलिए आग्नेय शैलें मौलिक या प्राथमिक शैलें कहलाती है।
इन चट्टानों की मुख्य विशेषता कठोरता एवं सरन्ध्र होना है। पानी का इन पर कोई प्रभाव नहीं होता।
ये चट्टानें स्थूल, परत रहित, कठोर, सघन और जीवाश्म रहित होती हैं। इन शैलों का वितरण ज्वालामुखी क्षेत्रों में पाया जाता है। सोना, चाँदी, ताँबा, लोहा आदि खनिज इसी शैल से प्राप्त होते हैं।
प्रमुख आग्नेय शैलें- साइनाइट, मोन्जोनाइट, डायोराइट, बेसाल्ट पोरफिरी, ऑब्सोडियन, डोलोमाइट, ग्रेनाइट, रायोलाइट , ग्रेबो, पोरिडोटाइट, एण्डेसाइट आदि।
बहिर्भेदी आग्नेय शैल इसकी संरचना बहुत महीन दानों वाली होती है। उदाहरण के लिए बेसाल्ट।
वैथोलिय, तैकोलिथ, फैकोलिथ, लोपोलिथ, सिल, डाइक आदि मध्यवर्ती आग्नेय चट्टान के विभिन्न रूप है।
पातालीय चट्टान (Plutonic Rock) का नामकरण प्लूटो (यूनानी देवता) के नाम पर किया गया है।
बाह्य आग्नेय चट्टान को ज्वालामुखी चट्टान भी कहते हैं।
अम्ल प्रधान आग्नेय शैल में सिलिका की मात्रा 65 से 85% होती है।
सिलिका की मात्रा अधिक होने के कारण ग्रेनाइट अम्लीय चट्टान का उदाहरण है।
बेसिक आग्नेय शैल में सिलिका की मात्रा 45 से 60% होती है।
बेसाल्ट, ग्रेबो तथा डोलेरोइट बेसिक क्षारीय आग्नेय शैल के उदाहरण हैं।
अवसादी चट्टानें /तलछटी, परतदार चट्टानें (Sedimentary or Stratified Rocks)
अवसादी (सेडिमेंटरी)- इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द सेडिमेंटम से हुई है, जिसका अर्थ है- स्थिर/नीचे बैठना। समुद्र के तल या भू-भाग पर परतों के रूप में जमा अवसाद जब अपने भार से या ऊपरी दाब से कठोर हो जाते हैं तो उन्हें अवसादी शैल कहते हैं। अवसादी शैल में जीवाश्म होते हैं। धरातल का 75 प्रतिशत भाग अवसादी शैलों से निर्मित है। जबकि समस्त भूपृष्ठ के निर्माण में 95 प्रतिशत योग आग्नेय एवं कायान्तरित शैलों का एवं केवल 5 प्रतिशत अवसादी शैलों का है। ये चट्टानें परतदार होती हैं।
ये चट्टानें प्रायः मुलायम होती हैं (जैसे- चीका मिट्टी, पंक आदि), परन्तु ये कड़ी भी हो सकती हैं (जैसे-बलुआ पत्थर)। ये शैलें अधिकांशत: प्रवेश्य (Porous) होती हैं, परंतु चीका मिट्टी जैसी परतदार चट्टानें अप्रवेश्य भी हो सकती हैं।
इनका निर्माण अधिकांशतः जल में होता है। परंतु लोएस जैसी परतदार चट्टानों का निर्माण पवन द्वारा जल के बाहर भी होता है। बोल्डर क्ले (Boulder Clay) या टिल (Till) हिमानी द्वारा निक्षेपित परतदार चट्टानों के उदाहरण हैं, जिसमें विभिन्न आकार के चट्टानी टुकड़े मौजूद रहते हैं। परतदार चट्टानों के अन्य उदाहरण हैं-
- पवन द्वारा निर्मित - लोएस
- हिमानी द्वारा निर्मित- बोल्डर क्ले
- जल द्वारा निर्मित - बलुआ पत्थर (Sand Stone), गोलाश्म (Conglomerate), चीका मिट्टी (Clay), शेल (Shale) आदि। सिल्ट एवं क्ले के संगठित होने से शेल का निर्माण होता है।
- जीव जन्तुओं द्वारा निर्मित - चूना पत्थर (Lime Stone), खड़िया (Chalk)।
- पेड़ पौधों द्वारा निर्मित - पीट (Peat), कोयला, लिग्नाइट
- रासायनिक तत्त्वों द्वारा निर्मित - डोलोमाइट (Dolomite), सेंधा नमक (Rock Salt), जिप्सम, चूना पत्थर (Limestone)आदि।
अवसादी शैलों का निर्माण मुख्यतः अपरदन के साधनों (जल, हिम एवं पवन) द्वारा होता है।
ये स्तरित शैलें एवं गौण शैलें भी कहलाती हैं।
बलुआ पत्थर चूने का पत्थर, चिकनी मिट्टी, कोयला, प्राकृतिक तेल-गैस व खडिया इन्हीं शैलों में पाए जाते हैं।
अवसादी शैलें सरन्ध्री होती हैं। इनमें सरलता से वलन पड़ते हैं। इन शैलों में क्षेत्रीय विस्तार अधिक होता है। ये चट्टानें रवेविहीन तथा मुलायम होती हैं।
पृथ्वी के अन्दर ताप, दबाव तथा रासायनिक क्रियाओं के प्रभाव से आग्नेय व अवसादी चट्टानों के स्वरुप तथा गुणधर्म में परिवर्तन हो जाता है तो कायान्तरित या रूपान्तरित चट्टानों का निर्माण होता है।
जब शैलों में कणों का आकार 1/32 से 1/356 किलोमीटर व्यास का होता है तो उस सिल्ट को चीका या क्ले चट्टान कहते हैं। क्ले चट्टान का निर्माण पूर्णतया क्लोइन खनिज द्वारा होता है।
अवसादी चट्टान को द्वितीयक चट्टान (Secondary Rocks) भी कहते हैं।
खड़िया पत्थर का निर्माण फोरोमिनिफेरा नामक सूक्ष्म समुद्री जीवों से कैल्शियम निकालने से होता है।
अवसादी चट्टानों में सर्वाधिक अंश 80% क्ले चट्टान का होता है।
चट्टानों में पाए जाने वाले तत्वों में ऑक्सीजन (46.71%), सिलीकॉन (27.69%), एल्यूमिनियम (8.07%), लोहा, आदि शामिल होते हैं ।
अवसादी शैलों के प्रमुख उदाहरण- बालुका पत्थर, काँग्लोमरेट, चीका, सिल्ट शैल, लोयस, ट्रेवरटाइन, डोलोमाइट जिप्सम, शैल लवण, फ्लिन्ट, चर्ट, चाक, चूना पत्थर, कोयला आदि।
3. कायान्तरित शैलें (Metamorphic Rocks)-
Metamorphic (कायान्तरित) शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन भाषा के दो शब्दों Meta (परिवर्तन) एवं Morphe (आकृति) से हुई है । "कायान्तरण" वह प्रक्रिया है जिसमें समेकित शैलों में पुनः क्रिस्टलीकरण होता है तथा वास्तविक शैलों में पदार्थ पुनः संगठित हो जाते है।
किसी शैल के मौलिक स्वरूप के रूप परिवर्तन से विकसित होने वाली शैल को कायान्तरित शैल कहा जाता है। कायान्तरित शैलें पूर्ववर्ती शैलों के कणों के गठन या बनावट तथा रासायनिक संघटन में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती हैं। कायान्तरण द्वारा विशिष्ट भू-आकृतियों का निर्माण होता है।
ये शैलें जीवाश्म रहित होती है।
कायान्तरित शैलों में बहुमूल्य धातुएँ एवं खनिज पाये जाते हैं।
पत्रण (Foliation ) -
जब कायांतरण की प्रक्रिया में शैलों के कुछ कण या खनिज सतहों या रेखाओं के रूप में व्यवस्थित हो जाते हैं, तो कायांतरित शैल में खनिज अथवा गणों की यह व्यवस्थाप रेखांकन कहलाती हैं।
पत्रीकरण के आधार पर कायांतरित शैलों को दो भागों में बाँटा जा सकता है
1. पत्रित शैल - इसमें स्लेट, शिष्ट, नीस आदि मुख्य हैं।
2. अपत्रित शैल - इसमें क्वार्ट्ज, संगमरमर, सर्पेन्टाइन आदि मुख्य हैं।
बैंडेड शैल -
कभी-कभी खनिज या कण पतली से मोटी सतह में इस प्रकार व्यवस्थित होते एवं गहरे रंगों में दिखाई देते हैं, कायांतरित शैलों में ऐसी संरचनाओं को बैंडिंग कहते हैं, और बैंडिंग प्रदर्शित करने वाली शैलों को 'बैंडेड शैल' कहा जाता है।
चट्टानों का रूपान्तरण
- गोलाश्म (Gravel) _कांग्लोमरेट_ कांग्लोमरेट शिस्टी
- बालू (Sand) - बालू पत्थर (Schist) -क्वार्टजाइट
- कांप (Clay)- शैल - फाइलाइट - शिस्ट
- कैल्शियम कार्बोनेट- चूना पत्थर संगमरमर
- ग्रेनाइट - नीस
कायान्तरित शैलों के प्रमुख उदाहरण
शिस्ट (अभ्रक शिस्ट, हॉर्नब्लेण्ड शिस्ट) नीस ,स्लेट, फाडलाइट, संगमरमर, एन्र्थेसाइट ,क्वार्टजाइट।
रूपांतरित या कायांतरित चट्टानें
आग्नेय चट्टान
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रूपांतरिक रूप
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ग्रेनाइट
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नाइस
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बेसाल्ट
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ऐम्फी बोलाइट
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गैब्रो
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सर्पेण्टाइन
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बालू पत्थर
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क्वार्टजाइट
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चूना पत्थर
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संगमरमर
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परतदार चट्टान
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रूपांतरित
रूप
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शेल
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स्लेट
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कोयला
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ग्रेफाइट, हीरा
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स्लेट
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शिष्ट
|
शिष्ट
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फायलाइट खनिजों की कठोरता
|
FAQ
Q 1 - पृथ्वी की कितनी परत होते हैं?
Ans - पृथ्वी की आतंरिक संरचना में मुख्यतः तीन परतें हैं, जो निम्नलिखित हैं: क्रस्ट, मेंटल, कोर।
Q 2 - पृथ्वी का केंद्रीय भाग क्या कहलाता है?
Ans - लेहमैन-असंबद्धता(Lehmann Discontinuity) बाह्य क्रोड और आन्तरिक क्रोड के सीमा क्षेत्र को लेहमैन-असंबद्धता कहते हैं.
केंद्रीय भाग (Core) पृथ्वी के केंद्र के क्षेत्र को केंद्रीय भाग कहते हैं यह क्षेत्र निकेल और फेरस का बना है
Q 3 - पृथ्वी की गहराई कितने किलोमीटर है?
Ans - धरती का गर्भ (अर्थ कोर) बाहरी सतह से करीब 5,100 से 6,371 किलोमीटर नीचे है. इसका आकार एक बड़ी गेंद जैसा है और व्यास 1,200 किलोमीटर माना जाता है. सीधे तौर पर इतनी गहराई में पहुंचना इंसान के लिए फिलहाल संभव नहीं है. दुनिया में अभी तक सबसे गहरी खुदाई 4 किलोमीटर तक ही हुई है.
Q 4 - पृथ्वी की सबसे बाहरी परत को क्या कहा जाता है?
Ans - पृथ्वी के सबसे बाहरी हिस्से को भूपर्पटी कहा जाता है, भूपर्पटी के बाद मेंटल स्थित है।
Q 5 - पृथ्वी की सबसे निचली परत कौन सी है?
Ans - भूपर्पटी अथवा क्रस्ट की मोटाई 8 से 40 किमी. तक मानी जाती है। इस परत की निचली सीमा को मोहोरोविसिक असंबद्धता या मोहो असंबद्धता कहा जाता है। पृथ्वी पर महासागर और महाद्वीप केवल इसी भाग में स्थित हैं।
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