Jwar Bhata - ज्वार-भाटा (Tide & Ebb)

Jwar Bhata - ज्वार-भाटा (Tide & Ebb)- इस पोस्ट में हम ज्वार-भाटा (Tide & Ebb) trick उनसे सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ये पोस्ट समान्य ज्ञान की दृस्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है ये नोट्स आगामी प्रतियोगिता परीक्षा के लिए उपयोगी है

ज्वार-भाटा (Tide & Ebb)

सागरीय जल के ऊपर उठकर आगे बढ़ाने को ज्वार (Tide) तथा सागरीये जल को नीचे गिरकर पीछे लौटने (सागर की ओर) भाटा (Ebb) कहते हैं। पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति की क्रियाशीलता ही ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का प्रमुख कारण हैं।

Jwar Bhata - ज्वार-भाटा (Tide & Ebb)
Jwar Bhata - ज्वार-भाटा (Tide & Ebb)


तरंग एवं ज्वार-भाटा

महासागरों में तीन प्रकार की गतियां होती हैं, तरंगें, धाराएं एवं ज्वार भाटा। ज्वार-भाटा से उत्पन्न तरंगों को ज्वारीय तरंग कहते हैं। तरंगों की उत्पत्ति पवन के घर्षण के फलस्वरूप होती है। तरंग का आकार एवं बल तीन कारकों पर निर्भर करता है

  1.  पवन की गति
  2. पवन के बहने की अवधि
  3. पवन के निर्विघ्न बहने की दूरी ।

तरंगों की उत्पत्ति के पश्चात् स्थानांतरण केवल तरंग गति का होता है, जल के कण अपने स्थान पर बने रहते है। पवन द्वारा उत्पन्न तरंगें तीन प्रकार की होती है-

 1. सी- विभिन्न तरंग - 

दैर्घ्य एवं दिशाओं वाली तरंगावलियाँ महासागर में एक साथ उत्पन्न हो जाती हैं। इसके फलस्वरूप एक अनियमित एवं अस्त-व्यस्त तरंगी प्रारूप का निर्माण हो जाता है, जिसे 'सी' कहा जाता है। 

2. स्वेल- 

समुद्र के समतल सतह को उद्वेलित करने वाली वायु की चपेट से बाहर निकलने के पश्चात् तरंगें एक समान ऊंचाई एवं आवर्त्त काल के साथ एक निश्चित रूप धारण कर लेती हैं। इन नियमित तरंगावलियों को 'स्वेल' या महातरंग कहा जाता है।

3. सर्फ - 

तटीय क्षेत्रों में टूटती हुई तरंगों को सर्फ कहा जाता है। 

तरंग के टूटने के पश्चात् जल की राशि शोर मचाती हुई तट पर ऊपर की ओर वेग से दौड़ती हुई प्रहार करती है, इसे स्वाश कहते हैं। फिर यह समुद्र की ओर वापस लौटती है, जिसे 'बैकवाश' कहा जाता है। महान तरंगें जिसे 'रोलर' कहा जाता है, कभी-कभी ही उत्पन्न होती हैं।

तरंगों की उत्पत्ति पवन की घर्षण क्रिया के कारण होती है।

महासागरीय जल में लहरों एवं धाराओं के अतिरिक्त एक विशिष्ट प्रकार की गति पायी जाती है, जिसमें निश्चित समयान्तराल पर दिन में दो बार महासागरीय जल ऊपर उठता है तथा नीचे गिरता है। माध्य समुद्र तल (M.S.L. या Mean) प्रमुख Sea Level) का निर्धारण जल की इसी गति के औसत के आधार पर किया जाता है। महासागरीय जल स्तर के ऊपर उठने तथा नीचे गिरने की क्रिया को ही क्रमशः ज्वार तथा भाटा (Tide and Ebb) के नाम से जाना जाता है।

चन्द्रमा, सूर्य तथा पृथ्वी की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति की क्रियाशीलता ही ज्वार-भाटे की उत्पत्ति का सबसे प्रमुख कारण है। चन्द्रमा तथा सूर्य की ज्वारोत्पादक शक्ति 11 : 5 के अनुपात में है अर्थात् चन्द्रमा की ज्वारोत्पादक शक्ति सूर्य की तुलना मे 2.17 गुना अधिक है।

ज्वार-भाटा की सक्रियता में विभिन्न स्थानों पर अन्तर पाया जाता है, इनके निम्नलिखित कारण हैं- 

(i) पृथ्वी के सन्दर्भ में चन्द्रमा की गति का तीव्र होना।
(ii) पृथ्वी के सन्दर्भ में सूर्य तथा चन्द्रमा की असमान स्थितियाँ।
(iii) भूधरातल पर जलराशियों के वितरण में असमानता।
(iv) महासागरों की आकृति एवं विस्तार से सम्बन्धित असमानताएँ।

हेंन आफवेन 

इन्होंने पृथ्वी की उत्पत्ति के संदर्भ में चुम्बकीय सिद्धांत में गुरुत्वाकर्षण तथा ज्वारीय शक्ति का उपयोग किया।

जेम्स जीन्स ब्रिटिश विद्वान् इन्होंने ज्वारीय परिकल्पना प्रस्तुत की।

ज्वार-भाटा के प्रकार-

1. उच्च ज्वार, दीर्घ ज्वार अथवा पूर्ण ज्वार/बसंत ज्वार (Spring or High Tide ) - 

युति तथा वियुति की दशा में दोष ज्वार आते हैं। ये ज्वार तभी आते हैं जब सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी एक सीधी रेखा में होते हैं। ऐसी अमावस्या (New Moon) अथवा पूर्णिमा (Full Moon) के समय आती है। भूमि नीच या उपभू की स्थिति में सामान्य से 20 प्रतिशत अधिक ऊँचा ज्वार आता है। इन दोनों दिनों में सूर्य और चन्द्रमा सम्मिलित का से पृथ्वी को आकर्षित करते हैं। इसलिए इन दो दिनों में उच्चतम ज्वार का निर्माण होता है।

2. निम्न (लघु) ज्वार (Low or Neep Tide) - 

जब सूर्य तथा चन्द्रमा पृथ्वी से समकोणीय स्थिति (Quadrature) में होने हैं, तब निम्न ज्वार आते हैं। यह स्थिति शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होती है। सूर्य और चन्द्रम के आकर्षण एक-दूसरे को संतुलित करने के प्रयास में उसे निष्क्रिय बना देते हैं। इससे पृथ्वी पर उनके ब का प्रभाव कम हो जाता है, फलस्वरूप इन दिनों में अत्यंत कम ऊँचाई वाले ज्वार का निर्माण होता है

नदी ज्वार (River Tide) - 

ये नदी की धारा में आने वाले ज्वार हैं, जो पवन-प्रवाह अथवा सागरीय जल के दबाव के कारण उत्पन्न होते हैं।

यद्यपि ज्वार प्रतिदिन 2 बार उठते हैं। प्रत्येक स्थान पर ज्वार का अंतराल 12 घंटे होना चाहिए, परंतु यह अंतराल 12 घंटे 26 मिनट का होता है। इसका कारण पृथ्वी का घूर्णन एवं चन्द्रमा का परिक्रमण है। स्पष्ट है किसी स्थान पर ज्वार एवं भाटे के बीच का अंतराल 6 घंटे 13 मिनट होता है।

चन्द्रमा पश्चिम से पूरब की ओर परिक्रमा 29½ दिन में करता है। घूर्णन करती हुई पृथ्वी को किसी भी स्थान की देशान्तर रेखा को प्रतिदिन चन्द्रमा के ठीक नीचे लाने में 24 घण्टे 52 मिनट लगते हैं।

पृथ्वी अपने अक्ष पर तीव्र गति से घूर्णन करती है एवं इस क्रिया में ज्वार तरंग को अपने साथ ले जाती है, परन्तु चंद्रमा ज्वार तरंग को रोकता है। अतः चंद्रमा जिस समय किसी विशेष अक्षांश पर होता है, वहां पर उसी समय ज्वार उत्पन्न नहीं होता है, बल्कि ज्वार कुछ समय बाद आता है। यह अंतराल बंदरगाह संस्थान (Establishment of Port) कहलाती है।

सामान्यतः ज्वार प्रतिदिन दो बार आते हैं लेकिन अपवाद स्वरूप इंग्लैण्ड के दक्षिणी तट पर स्थित साउथैम्पटन में ज्वार प्रतिदिन चार बार आता है।

ज्वार कुछ नदियों को बड़े जलयानों के लिए नौ संचालन योग्य बनाने में सहायता देता है। हुगली तथा टेम्स नदियों की ज्वारीय धाराओं के कारण क्रमश: कोलकाता और लंदन महत्त्वपूर्ण पत्तन बन सके हैं।


ज्वार-भाटा का महत्त्व/लाभ

  1. यह नौसंचालकों तथा मछुआरों को उनके कार्य संबंधी योजनाओं में मदद करता है।
  2. ज्वार-भाटा के कारण नदियों के मुहाने, समुद्र तट व बंदरगाह स्वच्छ, गहरे व व्यापार योग्य बने रहते हैं।
  3. वर्तमान समय में तकनीकी विकास के साथ ज्वारीय लहरों से जल विद्युत उत्पादन किया जाने लगा है। कनाडा, फ्रांस, रूस तथा चीन इसमें अग्रणी देश हैं। भारत में 3 मेगावाट शक्ति का एक विद्युत संयंत्र प. बंगाल में सुंदरवन के दुर्गादुवानी क्षेत्र में स्थापित किया जा रहा है।

ज्वार-भाटा से सम्बन्धित शब्दावली-


युति-वियुति या सिजिगी - जब सूर्य, पृथ्वी तथा चन्द्रमा एक सीधी रेखा में उपस्थित होते हैं, तब उस दशा को युति-वियुति अथवा सिजिगी कहते हैं।

उपभू स्थिति (समीप स्थिति / भूमि नीच) (Perigee) - 

चन्द्रमा अण्डाकार पथ पर पृथ्वी की परिक्रमा करता है, अतः पृथ्वी से उसकी दूरियों में अन्तर आता रहता है। जब चन्द्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक नजदीक स्थित होता है अर्थात् पृथ्वी तथा चन्द्रमा के केन्द्र के बीच की दूरी 3,56,000 किमी. होती है, तब उपभू की स्थिति होती है। इस स्थिति में चन्द्रमा का ज्वारोत्पादक बल सर्वाधिक होता है, जिस कारण उच्च ज्वार उत्पन्न होता है। इसे उपभू ज्वार (Perigean Tide) कहते हैं। 

जब कभी भी उच्च ज्वार एवं उपभू ज्वार (Perigean Tide) एक साथ आते हैं तो ज्वार की ऊँचाई असामान्य हो जाती है। जब कभी भी लघु ज्वार (Neap Tide) एवं उपभू ज्वार एक साथ आते हैं तो ज्वार एवं भाटा का जल-तल अत्यन्त कम हो जाता है।

अपभू स्थिति (दूर स्थिति / भूमि उच्च) (Apogee)- 

जब चन्द्रमा का केन्द्र पृथ्वी के केन्द्र से सर्वाधिक दूरी अर्थात् 4,07,000 किमी. पर स्थित होता है, तब अपभू की स्थिति होती है। इस समय सामान्य ज्वार उत्पन्न होता है।

समज्वार रेखा (Cotidal Lines) - 

एक ही समय पर आने वाले ज्वारों को मिलाने वाली रेखा को समज्वार रेखा कहा जाता है। इनकी सहायता से समज्वार रेखा मानचित्र तैयार किये जाते हैं।

ज्वार-भित्ति (Tidal Bore) - 

महासागरीय ज्वारीय लहरों के प्रभाव से नदियों के जल के एक दीवार के रूप में ऊपर उठ जाने पर ज्वारीय भित्ति का निर्माण होता है। भारत की हुगली नदी में ज्वारीय भित्ति का निर्माण सामान्यतया होता रहता है। अमेजन नदी में भी मुहाने की ओर काफी ऊँची ज्वार भित्तियाँ निर्मित हो जाती हैं।

उष्ण कटिबंधीय ज्वार - 

चन्द्रमा के डेक्लीनेशन के कारण जब इसकी किरणें कर्क रेखा या मकर रेखा पर सीधी पड़ती हैं तो उस समय आने वाली ज्वार उष्ण कटिबंधीय ज्वार कहलाता है। 

विषुवतरेखीय ज्वार-जब चंद्रमा की किरणें विषुवत रेखा पर लंबवत् रूप से पड़ती हैं तो उस स्थिति में ज्वार या भाटे की ऊंचाई में समानता आ जाती है। ऐसी अवस्था में आने वाले ज्वार को विषुवतरेखीय ज्वार कहा जाता है 

ज्वारभाटा की उत्पत्ति से सम्बन्धित सिद्धान्त

गतिक सिद्धान्त (Dynamic Theory) -

लाप्लास (Laplace), 1955 .

प्रगामी तरंग सिद्धान्त (Progressive Wave Theory)

विलियम हेवेल (William Whewell & G.B. Airy), 1833 .

नहर सिद्धान्त (Canal Theory)

सर जॉर्ज एअरी (Sir George Airy)

सन्तुलन सिद्धान्त (Equilibrium Theory)

सर आइजक न्यूटन (Sir I. Newton), 1687

स्थैतिक तरंग सिद्धान्त (Stationery Wave Theory)

आर.. हैरिस (R.A. Harris)


ज्वार-भाटा (Tide & Ebb) FAQ

Q विश्व का सबसे ऊँचा ज्वार भाटा कहाँ आता है?
Ans - विश्व में सबसे ऊँचा ज्वार फंडी की खाड़ी में आता है.
Q ज्वार भाटा कब आता है?
Ans - ये ज्वार पूर्णिमा तथा अमावस्या के दिन आते हैं
Q ज्वार भाटा से क्या लाभ है?
Ans - उच्च ज्वार नौसंचालन में सहायक होता है। ये जल-स्तर को तट की ऊँचाई तक पहुँचाते हैं। ये जहाज को बंदरगाह तक पहुँचाने में सहायक होते हैं। उच्च ज्वार मछली पकड़ने में भी मदद करते हैं।

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