भारत के संविधान की प्रस्तावना

संविधान की प्रस्तावना (उद्देशिका)  - किसी भी संविधान की प्रस्तावना में उस संविधान के बारे में सामान्य जानकारी उल्लेखित होती है इसी कारण 'प्रस्तावना' या 'उद्देशिका' का सामान्य अर्थ 'संविधान का परिचय' अथवा 'उसकी भूमिका' होती है। प्रस्तावना संविधान का सार है, इसी कारण इसे संविधान की कुंजी तथा संविधान की अन्तरात्मा [CTET-2013] भी कहते हैं।

अन्य देशों के समान भारतीय संविधान में भी सर्वप्रथम उसकी प्रस्तावना है, जिसमें संविधान के उद्देश्य (ध्येय) और देश के मौलिक लक्ष्यों (आदर्शों) को बताया गया है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना (उद्देशिका) का आधार पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा 13 दिसम्बर, 1946 को संविधान निर्मात्री सभा में प्रस्तुत उद्देश्य प्रस्ताव है जिसे संविधान सभा ने 22 जनवरी, 1947 को मंजूरी दी। अतः अप्रत्यक्ष रूप से प्रस्तावना के लेखक जवाहर लाल नेहरू माने गये हैं।

भारत के संविधान की प्रस्तावना

'हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा इसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार अभिव्यक्ति, धर्म, विश्वास और उपासना की | स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए, तथा इन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखण्डता को सुनिश्चित करने वाला बंधुत्व बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, विक्रम सम्वत् 2006) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। "

भारत के संविधान की प्रस्तावना
भारत के संविधान की प्रस्तावना


ध्यातव्य रहे - ऑस्ट्रेलिया के संविधान से प्रस्तावना की भाषा को तथा प्रस्तावना को संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से ग्रहण किया गया है। प्रस्तावना का प्रस्ताव सर्वप्रथम भारत शासन अधिनियम-1919 में लाया गया और इसको स्वीकृत भारत शासन अधिनियम, 1935 में किया गया था, तो वहीं उद्देशिका में भारत शब्द दो बार आया है ।

बेरूबारी यूनियन एवं एक्सचेंज ऑफ एन्क्लेव मामले में (1960 में) उच्चतम न्यायालय ने मत व्यक्त किया था कि प्रस्तावना संविधान का अंग नहीं है। अतः इसमें संशोधन नहीं किया जा सकता।

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के वाद (1973) में उच्चतम न्यायालय ने उक्त निर्णय को उलटते हुए स्वीकारा कि 'प्रस्तावना संविधान का ही एक भाग' है अत: अनुच्छेद 368 के तहत् इसमें संशोधन किया जा सकता है। बशर्ते संविधान के मूल ढांचे पर इसका प्रभाव न पड़े।

ध्यातव्य रहे - अनुच्छेद 137 के तहत् सर्वोच्च न्यायालय अपने पूर्ण निर्णय को बदल सकता है अगर यह कार्य सार्वजनिक हित में हो तो।

42वें संविधान संशोधन-संविधान की प्रस्तावना में आज तक केवल एक बार संशोधन किया गया है। मूल संविधान की प्रस्तावना 85 शब्दों से निर्मित थी। 42वें संविधान संशोधन, 1976 [REET 2016] द्वारा प्रस्तावना में संशोधन कर 'समाजवादी' 'पंथनिरपेक्ष' [UPET-2016] एवं 'अखण्डता' [UPTET-2018 ] शब्द जोड़े गये है। प्रारम्भ में भारतीय संविधान को 22 भाग 395 अनुच्छेद एवं 8 अनुसूचियों में बांटा गया।

ध्यातव्य रहे - 42वें संविधान संशोधन को भारत का मिनी / लघु संविधान कहा जाता है, तो वही वर्तमान में भारतीय संविधान में अनुसूचियों की संख्या-12 है ।

भारत के संविधान की प्रस्तावना में रूस से सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय शब्द, फ्रांस से स्वतंत्रता, समानता, भ्रातृत्व, ऑस्ट्रेलिया से प्रस्तावना की भाषा एवं अमेरिका से हम भारत के लोग शब्द लिये गये। प्रस्तावना को न्यायपालिका ने 'संविधान की कुंजी' कहा है। प्रस्तावना या उद्देशिका गैर न्यायिक है अर्थात् इसकी व्यवस्थाओं को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।

  1. प्रस्तावना को न्यायपालिका ने 'संविधान की कुंजी' कहा है। 
  2. प्रस्तावना या उद्देशिका गैर न्यायिक है अर्थात् इसकी व्यवस्थाओं को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  3. संविधान की प्रस्तावना में अब तक एक बार संशोधन किया गया है। 42वें संविधान संशोधन, 1976 के तहत् प्रस्तावना में 'समाजवादी और पंथ निरपेक्ष' तथा 'अखण्डता' शब्द जोड़े गये थे।

प्रस्तावना / उद्देशिका


लिखित तारीख - 26 नवम्बर, 1949
  1. प्रस्तावना संविधान का पहला पेज
  2. प्रस्तावना संविधान का सार
  3. प्रस्तावना संविधान का भाग

हम भारत के लोग

  1. भारत की जनता सर्वोच्च
  2. जनता सम्प्रभु
  3. शासन करने की अंतिम शक्ति जनता के पास
  4. जनता राजनीतिक शक्ति का मुख्य स्त्रोत है | CGTET-2011]।

समाजवादी

  1. समाज का स्वामित्व
  2. समानता का आधार
  3. समाज में जनकल्याण [CTET-2015 REET-2016]

पंथ निरपेक्ष

  1. राज्य का कोई धर्म नहीं होगा [CGTET-2011
  2. किसी भी धर्म को संविधान में मान्यता नहीं देगा
  3. सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार

ध्यातव्य रहे - विश्व का प्रथम पंथ निरपेक्ष राष्ट्र संयुक्त राज्य अमेरिका है।

लोकतंत्रात्मक - गणराज्य

  1. लोगों द्वारा लोगों का शासन
  2. लोकतंत्र के साथ गणतंत्र का प्रभुत्व
  3. राष्ट्र का प्रधान जनता द्वारा चुने गये निर्वाचित
  4. प्रतिनिधियों के माध्यम से निर्वाचित

ध्यातव्य रहे - प्रजातंत्र को 'जनता का जनता के लिए जनता के द्वारा शासन' अब्राहम लिंकन ने कहा है |CTET-2011]।

न्याय

  1. सामाजिक न्याय
  2. आर्थिक न्याय
  3. राजनीतिक न्याय

प्रस्तावना के बारे में प्रमुख व्यक्तियों के विचार

संविधान सभा के सदस्य अल्लादी कृष्णा स्वामी अय्यर ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना के बारे में कहा कि 'संविधान की प्रस्तावना हमारे दीर्घकालिक सपनों का विचार है।' (ट्रिक-कृष्ण के सपने) तो प्रारूप समिति के सदस्य के.एम. मुंशी ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना के बारे में कहा कि 'प्रस्तावना संविधान की राजनीतिक कुंडली है' (ट्रिक-मुंशी की कुंडली) । 

डॉ. ठाकुर दास भार्गव ने भारत के संविधान की प्रस्तावना के बारे में कहा कि प्रस्तावना संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है। प्रस्तावना संविधान की आत्मा एवं संविधान की कुंजी है। तो ब्रिटिश विद्वान अर्नेस्ट बार्कर ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना को 'संविधान का कुंजी नोट' कहा है।

एन. ए. पालकीवाला ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना को 'संविधान का परिचय-पत्र' (ट्रिक-पालकी का परिचय) कहा है।

प्रस्तावना (उद्देशिका) को पं. जवाहरलाल नेहरू ने संविधान की आत्मा/ हृदय कहा है, तो बी.आर. अम्बेडकर ने अनुच्छेद 32 (संवैधानिक उपचारों के अधिकार) को संविधान की आत्मा/हृदय / कुंजी बताया।

सर्वोच्च न्यायालय ने 1960 में संविधान की प्रस्तावना को 'संविधान निर्माताओं की कुंजी' कहा है। 

ध्यातव्य - व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता एवं अखंडता सुनिश्चित करना भारतीय संविधान की प्रस्तावना के अंतर्गत एक संकल्प हैं।

कुछ प्रमुख संविधान संशोधन

क्रमांक पारित तारीख

संबंधित विषय

पहला 1जून 1951

राज्य द्वारा पारित भूमि (भू-राजस्व) सुधार कानूनों को नवीं अनुसूची में रखकर न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर किया गया।

दूसरा 1953

राज्यों को संसद में प्रतिनिधित्व

तीसरा 1955

समवर्ती सूची में पशुपालन, कपास (कच्ची कपास) एवं खाद्यान्न ये तीन विषय शामिल किए।

सातवाँ 1956

राज्यों की श्रेणियों की समाप्ति कर राज्यों का पुनर्गठन [14 राज्य + 6 केंद्र शासित प्रदेश] किया गया।

राजस्थान राज्य में राज्यपाल पद का उद्भव

एक ही व्यक्ति को एक से अधिक राज्यों का राज्यपाल बनाया जा सकता है।

8वाँ 1960

अनुसूचित जाति जनजाति, एंग्लो इंडियन का आरक्षण 10 वर्ष बढ़ाकर 1970 तक कर दिया गया।

9 वाँ 1960

बेरुबारी क्षेत्र पाकिस्तान को सौंपने से संबंधित

10वाँ 1961

दादरा नागर हवेली को भारत का संघ शासित प्रदेश बनाया गया।

11वाँ1961

राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचक मण्डल से संबंधित उपबंध

12वाँ1962

गोवा दमन दीव को भारत का अंग बनाया गया। [पुर्तगाली आधिपत्य में गोवा 25वाँ राज्य था  

13वाँ1962

नागालैण्ड को भारत का नया राज्य घोषित किया गया [अनु. 371 (A) विशेष राज्य का दर्जा ]

14वाँ 1962

फ्रांसीसी आधिपत्य वाले पांडीचेरी को भारत का अंग बनाया गया।

15वाँ 1963

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई।

21वाँ 1967

आठवीं अनुसूची में सिंधी भाषा को 15वीं भाषा के रूप में जोड़ा गया।

24वाँ 1971

संसद मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भाग में संशोधन कर सकती है।

26वाँ 1971

देशी रियासतों के राजाओं के प्रिवीपर्स विशेषाधिकारों का अन्त कर दिया गया।

30वाँ 1973

सर्वोच्च न्यायालय में दीवानी विवादों की अपील के लिए धनराशि की सीमा 20,000 से 30,000 समाप्त कर दी गई तथा उसमें कोई विधि का सारवान प्रश्न उपस्थित होना चाहिए।

36वाँ 1975

राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल, उपराज्यपाल द्वारा उद्घोषित आपातकाल स्थिति वाले अध्यादेशों को न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर किया गया।

39वाँ 1975

राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष प्रधानमंत्री के निर्वाचन को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जाएगी।  

41वाँ 1976

राज्य लोक सेवाओं के सदस्यों की सेवानिवृत्ति आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई।

42वाँ 1976

[लघु संविधान]

1.प्रस्तावना में तीन नए शब्द-पंथ निरपेक्षता, समाजवादी तथा अखण्डता जोड़े गए।

2.संसद द्वारा किए गए संविधान संशोधनों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।

3.राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की मौलिक अधिकारों पर प्राथमिकता स्थापित।

4.मौलिक कर्त्तव्यों का समावेश।

5.न्यायिक पुनरावलोकन (अनु. 13) को सीमित किया गया। 

6.लोकसभा तथा विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष से बढ़ाकर 6 वर्ष कर दिया गया।

7.लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं की सीटें 1971 की जनसंख्या के आधार पर 2001 तक यथावत बनी रहेंगी। 8.राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की सलाह मानने पर बाध्य।

9.संमवर्ती सूची में पाँच नए विषय [(1) वन्यजीव पक्षियों का संरक्षण, (2) न्याय का प्रशासन, (3) जनसंख्या नियंत्रण तथा परिवार नियोजन (4) शिक्षा (BTET 2011], (5) नाप और तौल] जोड़े गए।

 

43वाँ 1978

न्यायिक पुनरावलोकन (अनु. 13) को पुनः विस्तृत कर दिया गया।

44वाँ 1978

सम्पत्ति के अधिकार को समाप्त किया गया। (इस समय भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी थी 

पारित 1979

लोकसभा तथा विधानसभा का कार्यकाल पुनः 6 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष कर दिया गया।

1.संसद तथा विधानमंडल के सदस्यों की योग्यता संबंधी वाद विवाद का हल राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल निर्वाचन आयोग की सलाह से करेगा।

2.संसद द्वारा किए गए संशोधनों को न्यायालय में चुनौती दी जा सकेगी। 

3.राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी विवाद का निपटारा सर्वोच्च न्यायालय तथा एमपी, एमएलए के निर्वाचन संबंधी विवाद का निपटारा उच्च न्यायालय करेगा।

4.अनु. 352 में आन्तरिक अशांति के स्थान पर सशस्त्र विद्रोह शब्द जोड़ा गया।

5.राष्ट्रपति 352 के तहत् आपातकाल की घोषणा तभी करेगा, जब मंत्रिमंडल लिखित सूचना देगी।

 

52वाँ 1985

10वीं अनुसूची (दल-बदल विरोधी अधिनियम) जोड़ी गई।

53वाँ 1986

मिजोरम को भारत का 23वाँ राज्य बनाया गया। 

55वाँ 1986

अरुणाचल प्रदेश को 24वाँ राज्य बनाया गया।

58वाँ 1987

भारतीय संविधान का हिंदी में प्राधिकृत रूप से प्रावधान। 

61वाँ 1989

मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।

65वाँ1990

अनुसूचित जाति तथा जनजाति को संवैधानिक दर्जा दिया गया।

69वाँ1991

केंद्रशासित क्षेत्र दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) घोषित किया गया तथा 70 सदस्यों वाली विधानसभा बनाई गई।

70वाँ 1992

दिल्ली तथा पांडिचेरी की विधानसभा के सदस्यों को राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेने का अधिकार दिया गया।

71वाँ 1992

8वीं अनुसूची में 3 भाषाएँ नेपाली, मणिपुरी तथा कोंकणी को जोड़ा गया।

73वाँ1993

11वीं अनुसूची (पंचायती राज से संबंधित अधिनियम) जोड़ी गई

74वाँ 1993

12वीं अनुसूची (नगर निकायों से संबंधित अधिनियम) जोड़ी गई।

76वाँ 1994

9वीं अनुसूची में तमिलनाडू के आरक्षण को जोड़ा गया।

79वाँ 1999

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति + एंग्लो इंडियन | का आरक्षण 10 वर्ष बढ़ाकर 2010 तक दिया गया।

85वाँ 2002

अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों के लिए सरकारी सेवाओं में पदोन्नति के आरक्षण की व्यवस्था

86वाँ 2002

अनु. 21A में 6 से 14 वर्ष के आयु के बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा दिलाने की व्यवस्था की गई।

91वाँ 2003

1.मंत्रिपरिषद् की सदस्य संख्या निम्न सदन की 15% होगी। जिन राज्यों में विधानसभा की सदस्य की न्यूनतम संख्या 60 से कम हो तो वहाँ न्यूनतम 12 मंत्री होंगे।

2.दल-बदल व्यवस्था में संशोधन किया गया।

92वाँ 2003

आठवीं अनुसूची में चार भाषाओं मैथिली, बोडो, डोगरी, संथाली (MBDS) जोड़ा गया। वर्तमान में आठवीं अनुसूची में कुल 22 भाषाएँ हैं।

94वाँ 2006 

मध्य प्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ तथा झारखंड राज्यों में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए एक मंत्री होगा, (बिहार इस सूची से हटा दिया गया इसकीजगह छत्तीसगढ़ झारखंड राज्यों को जोड़ा गया है।)

95वाँ 2009 

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एंग्लो इंडियन का आरक्षण 10 वर्ष बढ़कार 2020 कर दिया गया। 

96वाँ 2009

उड़ीसा का नाम बदलकर ओडीसा कर दिया गया।

97वाँ 2011 

इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 19 में संशोधन करके संविधान में एक नया भाग 'IXB' सहकारी समितियों के नाम से जोड़ा गया साथ ही इसमें नये अनुच्छेद 243ZH से 243ZT तक शामिल किये गये जो सहकारी समितियों से संबंधित है। यह अधिनियम 12 जनवरी, 2012 को लागू हुआ।

98वाँ 2013

इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 371(J) के अंतर्गत कर्नाटक के राज्यपाल को कर्नाटक और हैदराबाद के विकास हेतु निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है। इसे 2 जनवरी, 2013 से लागू किया गया।

99वाँ 2014

इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 124-A, 124-B, 124-C, 127, 128, 217, 222, 224-A, 231 में संशोधन करने का प्रावधान निर्धारित किया गया है। इसके अंतर्गत राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग NJAC (National Judicial Appoint ment Commission) का प्रावधान है।

100वाँ 2015

ध्यात्वय रहे- सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के आधारभूत ढाँचे के सिद्धांत के आधार पर इस संशोधन को रद्द घोषित कर दिया है।

इस संशोधन के द्वारा भारत और बांग्लादेश ने सीमा पर बने मानव बस्तियों का आदान-प्रदान किया है। भारत ने बांग्लादेश को 111 मानव बस्तियाँ दी है। तथा बांग्लादेश ने भारत को 51 मानव बस्तियाँ दी हैं। इसे एलबीए समझौता कहा जाता है। इस समझौते के तहत् भारत के 4 राज्यों पश्चिमी बंगाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा के सीमा क्षेत्र में परिवर्तन होगा।

 

101वाँ2016

इस संशोधन द्वारा वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को प्रारम्भ किया गया है।

102वाँ 2017

सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 'राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग' को संवैधानिक दर्जा दिया गया। 11 अगस्त, 2018 को अधिसूचित संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में अनु. 338B जोड़ा गया। इस आयोग में अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के अतिरिक्त 3 सदस्य होंगे, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। इस आयोग के द्वारा धारा 338 का क्लॉज 10 निरस्त किया गया है।

103वाँ 2019

इस संशोधन के तहत् देश के सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों से पिछड़े वर्गों हेतु सरकारी नौकरियाँ एवं शिक्षण संस्थानों में 10% आरक्षण का प्रावधान है। इस संशोधन के बाद अब कुल आरक्षण 59.5% हो गया है। यह 124वाँ संशोधन विधेयक था, जो 8 जनवरी, 2019 को लोकसभा में तथा 9 जनवरी, 2019 को राज्यसभा में पारित हुआ, जिसे राष्ट्रपति ने 12 जनवरी को स्वीकृति प्रदान की। इस अधिनियम के द्वारा संविधान के अनु. 15 16 में संशोधन कर अनु. 15 में नया क्लॉज 6 जोड़कर उच्चतर शिक्षण संस्थानों में इन वर्गों के लिए 10% आरक्षण तथा अनु. 16 में नया क्लॉज 6 जोड़कर सरकारी नौकरियों में इन वर्गों के लिए 10% आरक्षण का प्रावधान किया है।


भारतीय संविधान के 22 भाग

भाग

विषय

अनुच्छेद

भाग-1

संघ और उसका राज्य क्षेत्र

(1-4)

भाग-2

नागरिकता

(5-11)

भाग-3

मौलिक अधिकार

(12-35)

भाग-4

राज्य के नीति-निदेशक तत्व

(36-51)

भाग-4.

मूल कर्तव्य

(51)

भाग-5

संघ सरकार

अध्याय 

1. राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति प्रधानमंत्री

2. संसद

3. राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां

4. संघ की न्यायपालिका

5. भारत का नियंत्रक महालेखापरीक्षक

 

(52-151)

(52-78)

(79-122)

(123)

(124-147)

(148-151)

 

भाग-6

राज्य सरकार

(152-237)

भाग-7

सातवें संशोधन अधिनियम 1956 द्वारा निरस्त

(238)

भाग-8

संघ राज्य क्षेत्र

(239-242)

भाग-9

पंचायतें

(243, 243-243)

भाग-9

नगरपालिकाएं

(243 243 )

भाग-9

सहकारी समितियां

(243 -243 )

भाग- 10

अनुसूचित और जनजातिय क्षेत्र

(244, 244 )

भाग-11

संघ और राज्यों के बीच संबंध 

अध्याय 

1. विधायी संबंध

2. प्रशासनिक संबंध

 

(245-263)

(245-255)

(256-263)

 

भाग-12

वित्त संपति संविदाए और वाद

अध्याय 

1. वित्त [वित्त आयोग, अनु. 280 (UPTET-2014)| 

2. उधार लेना

3. संपत्ति, संविदाएं, अधिकार, दायित्व बाध्यताएं और वाद

4. संपत्ति का अधिकार

 

(264-300)

 

(264-291)

 

(292-293)

 

(294-300)

 

(300 )

 

भाग-13

भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व्यापार वाणिज्य और समागम

(301-307)

भाग-14

संघ राज्यों के अधीन सेवाएं

(308-323)

भाग-14

अधिकरण

(323-323)

भाग-15

निर्वाचन आयोग

(324-329)

भाग-16

कुछ वर्गों के संबंध में विशेष उपबंध

(330-342)

भाग-17

राजभाषा

अध्याय 1. संघ की भाषा भाषा आयोग ( अनु. 344 भारतीय संविधान के अनु. 344 के तहत् 1955 . में प्रथम राजकीय भाषा आयोग का गठन किया गया, जिसके अध्यक्ष बी.जी. खेर थे (UPTET-2015) ||

2. प्रादेशिक भाषा

3. उच्चतम उच्च न्यायालय की भाषा

4. भाषा संबंधी कुछ विधियाँ: अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया

5. विशेष निर्देश

 

(343-351)

भाग- 18

आपात उपबंध

(352-360)

भाग- 19

प्रकीर्ण

(361-367)

भाग-20

संविधान संशोधन 

368

भाग-21

अस्थायी, संक्रमण कालीन और विशेष उपबंध

(369-392) 

भाग-22

संक्षिप्त नाम, प्रारंभ, हिंदी में प्राधिकृत पाठ और निरासन

(393-395)

Post a Comment

0 Comments

close