1857 ki Kranti - 1857 की क्रांति

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1857 ki Kranti -  1857 की क्रांति

भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम लॉर्ड कैनिंग के समय प्रारम्भ हुआ क्योंकि भारतीय सैनिकों को एनफील्ड राइफलें दी गई, जिसमें कारतूस भरने से पूर्व उस पर लगे चिकने पदार्थ को मुँह से हटाना पड़ता था। अफवाह फैली की यह चिकना पदार्थ 'सूअर व गाय की चर्बी' से बना है। 

इसके परिणामस्वरूप बुरहानपुर बैरक के 19वीं नेटिव इन्फैन्ट्री के सिपाहियों ने 26 फरवरी, 1857 को आदेश मानने से इंकार कर दिया। इससे पहले 'ब्राउनबेस' नाम की बंदूक काम में ली जाती थी। इस नयी रायफल को सबसे पहले क्रीमिया युद्ध (1854) के समय प्रयोग किया गया था। चर्बी वाले कारतूस के उपयोग पर 29 मार्च, 1857 ई. को बैरकपुर की सैनिक छावनी में 'मंगल पाण्डे' व 'ईश्वर पाण्डे' ने विरोध किया, यह क्रान्ति की शुरुआत नहीं थी, अपितु प्रथम घटना थी। विद्रोह के फलस्वरूप 8 अप्रैल, 1857 ई. को मंगल पाण्डे को फाँसी दे दी गयी।

9 मई, 1857 ई. को मेरठ में 85 सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। 10 मई, 1857 ई. को यह विद्रोह पूरी छावनी में फैलता है, 11 मई को वे दिल्ली पहुँचते हैं, जहाँ मुगल सम्राट 'बहादुरशाह जफर द्वितीय' को अपना नेता घोषित कर दिया, बख्त खाँ को सेनापति और नाना साहब को पेशवा घोषित कर दिया। पहले 31 मई 1857 ई. को क्रान्ति का दिन घोषित किया गया था जिसमें 'रोटी व कमल' क्रान्ति का प्रतीक थे, लेकिन यह क्रान्ति समय से पूर्व 10 मई को प्रारम्भ हुई। 12 मई को बहादुरशाह जफर द्वितीय को 'राष्ट्रीय 'सम्राट' घोषित किया गया।

1857 के विद्रोह के कारण

1857 ki Kranti -  1857 की क्रांति
1857 ki Kranti


1. राजनीतिक कारण-

डलहौजी की व्यपगत नीति, राजा महाराजाओं के पदों व पेंशन को समाप्त करना, 1849 में मुगल बादशाह को लाल किला छोड़कर कुतुब मीनार में रहने का आदेश, 1856 में कैनिंग की घोषणा कि बहादुर शाह की मृत्यु के बाद बादशाह की उपाधि धारण नहीं करेगा आदि कारण रहे।

2. प्रशासनिक कारण-

दोषपूर्ण व व्ययकारक न्याय व्यवस्था, नौकरियों में भेदभाव पूर्ण नीति, कंपनी में भ्रष्टाचार, अपर्याप्त सुधारों के कारण भारतीयों में असंतोष था।

3. आर्थिक कारण-

कंपनी द्वारा भारतीयों का आर्थिक शोषण भी विद्रोह का एक प्रमुख कारण बना। अंग्रेजों की 'मुक्त व्यापार नीति' एवं इंग्लैण्ड में बने वस्त्रों को कम मूल्य पर बेचना व कर मुक्त कर देने से भारतीय वस्त्र उद्योग को पूरी तरह समाप्त कर दिया, जिस कारण भारत का एक बहुत बड़ा तबका बेरोजगारी, गरीबी व ऋणग्रस्ता से ग्रसित हो गया। अंग्रेजों ने भारत की कृषि को वाणिज्यिकरण का रूप दे दिया गया। इसके परिणाम स्वरूप भयंकर अकालों को जन्म दिया।

4. सामाजिक कारण- 

सरकार के सती प्रथा निषेध (1829) व विधवा पुनर्विवाह कानून (1856) जैसे प्रगतिशील कदमों को भारतीय रुढ़िवादी समाज ने परंपराओं पर प्रहार के रूप में देखा। पाश्चात्य शिक्षा व रेल, तार के विकास का भी भारतीय मानस पर विपरीत प्रभाव पड़ा।

5. धार्मिक कारण-

भारत में ईसाई मिशनरियों के कार्यों ने भी असंतोष बढ़ाने का कार्य किया। पादरी वर्ग मिशनरियों के स्कूलों में भारतीय धर्म की खुली आलोचना करते एवं खिल्ली उड़ाते थे। कंपनी सरकार ने भी धार्मिक रूप से भेदभाव किया, उन्होंने धर्म परिवर्तित ईसाईयों को नौकरी व प्रशासन में सुविधा मुहैया कराई। मिशनरी स्कूलों में बाइबिल की शिक्षा अनिवार्य थी। इससे भारतीयों के मन में यह बात बैठ गई कि अंग्रेज उनके धर्म को नष्ट करना चाहते है।

6. सैनिक कारण-

सेना में भेदभाव, सुविधाओं में कटौती। कैनिंग ने जनरल सर्विस इनलिस्टमेंट एक्ट बनाया, जिसके अनुसार बंगाल सेना को भारत से बाहर युद्ध पर जाने को कहा, जो भारतीय धर्म के अनुसार गलत था। 1854 ई. में 'डाकघर अधिनियम' द्वारा सैनिकों की निःशुल्क डाक सुविधा समाप्त कर दी गई। इससे सैनिकों में तीव्र गति से असंतोष पनपा।

7. विद्रोह का तात्कालिक कारण -

जनवरी, 1857 में बंगाल सेना में यह अफवाह फैल गई थी, कि नई राइफल के कारतूस में गाय और सूअर की चर्बी मिली हुई है, इस कारण सैनिकों ने इसके न इस्तेमाल से इंकार कर दिया। चर्बीयुक्त कारतूसों के प्रयोग के विरुद्ध

पहली घटना 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर छावनी (बंगाल) में ' घटी | CGTET-2011] । जहाँ मंगल पाण्डे ने कारतूसों के प्रयोग से इंकार करते हुए दो अंग्रेज अधिकारीयों लेफ्टिनेंट बाग एवं लेफ्टिनेण्ट) जनरल ह्यूसन की हत्या कर दी। 

इसके बाद 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में स्थित 20 एन. आई. तथा 3 एल. सी. की पैदल टुकड़ी ने कारतूस के प्रयोगों से इंकार कर विद्रोह का बिगुल बजा दिया। 11 मई, 1857 को प्रातःकाल विद्रोहियों ने दिल्ली पर अधिकार कर मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को पुनः भारत का सम्राट घोषित कर  दिया। इसके बाद भारत के विभिन्न क्षेत्रों- अलीगढ़, लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, बनारस, बरेली, आगरा, शाहजहाँपुर, की रूहेलखण्ड, झाँसी में विद्रोह हो गया। 

लेकिन पंजाब, राजस्थान, मुम्बई, हैदराबाद, कश्मीर इस क्रांति से अलग रहे। विद्रोहियों ने बख्त खाँ को बहादुर शाह का सेनापति तथा नाना साहब को पेशवा नियुक्त किया।

ध्यातव्य रहे -1857 की क्रांति के समय इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री पार्मस्टन (लिबरल) थे। अंग्रेजी भारतीय सेना का निर्माण 1748 ई. में आरम्भ हुआ। उस समय मेजर स्ट्रिंजर लॉरेंस को अंग्रेजी भारतीय सेना का जनक पुकारा गया। भारतीयों को सेना में ऊंचे से ऊंचा प्राप्त होने वाला पद सूबेदार का था। लॉर्ड कैनिंग भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा नियुक्त अंतिम गवर्नर जनरल था। 

विद्रोह का आरंभ और विस्तार

विद्रोह की योजना - ऐसा माना जाता है कि 1857 का विद्रोह कोई अचानक नहीं फूटा । बल्कि इसके पीछे कई वर्षों की योजना का परिणाम था। 

इतिहासकार सुंदरलाल के अनुसार, इस विशाल योजना का सूत्रपात कानपुर के समीप बिठूर या लंदन में हुआ। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि नाना साहब के निकटस्थ 'अजीमुल्ला खाँ' तथा सतारा के अपदस्थ राजा के निकटवर्ती रणोजी बापू ने लंदन में विद्रोह की योजना बनाई।

यह भी कहा जाता है कि क्रांति के लिए गुप्त संगठनों ने भी कार्य कि किया जिनमें साधू-संन्यासी, बजाने-नाचने वाले और घुमन्तु लोगों ने क्रांति के प्रतीक के रूप में कमल और रोटी को चुना। कमल को उन सैन्य टुकड़ियों में पहुँचाया गया, जो क्रांति में शामिल होने के लिए तैयार थी तथा रोटी को एक गाँव से दूसरे गाँव तक चौकीदारों के जरिये पहुँचाया गया।

भारत के विभिन्न भागों में विद्रोह और दमन

15 जून तक क्रांति पूरे उत्तर भारत में फैल चुकी थी। आसाम के अंतिम राजा के दीवान मनीराम दत्त विद्रोह में विद्रोहियों का साथ देने का निश्चय किया। दिल्ली में 82 वर्षीय मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने विद्रोह का नेतृत्व प्रदान किया, बख्त खाँ को उसका सहयोगी व सेनापति बनाया तथा नाना साहब उसके पेशवा नियुक्त हुए। 

भारतीय सैनिकों ने अंग्रेज सेना का मुकाबला किया, परंतु सितम्बर, 1857 को अंग्रेजों का दिल्ली पर पुनः अधिकार हो गया तथा 20 सितम्बर, 1857 को बहादुर शाह जफर ने हुमायूँ के मकबरे में अंग्रेज लेफ्टिनेंट हडसन के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया और उसे रंगून में निर्वासित कर दिया, जहाँ उसकी मृत्यु हो गई। रंगून में बहादुर शाह की मजार पर लिखा है कि 'जफर इतना बदनसीब है कि उसे अपनी मातृभूमि में दफन के लिए दो गज जमीन नसीब नहीं हुई।'

लखनऊ में विद्रोह 4 जून, 1857 को प्रारम्भ हुआ और इसमें लॉरेन्स मारा गया। हेवलॉक व आउट्रम ने लखनऊ को पुनः जीतने का प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहे और क्रांतिकारी भारी पड़े। लेकिन नवम्बर, 1857 ई. में मुख्य सेनापति सर कॉलिन कैम्पबेल ने गोरखा रेजीमेन्ट के साथ उनका प्रतिरोध किया, बेगम हजरत महल ने अपने पुत्र विरजिस कादिर के साथ उनका प्रतिरोध किया। 

लेकिन मार्च, 1858 में लखनऊ पर अंग्रेजों का पुनः अधिकार हो गया बेगम हजरत महल ने इसके बाद मौलवी अहमदुल्ला के साथ शाहजहाँपुर में विद्रोह का नेतृत्व किया, लेकिन वह वहाँ भी पराजित हो गई और नेपाल चली गई, जहाँ गुमनामी में उसकी मृत्यु हो गई।

कानपुर में 5 जून, 1857 को पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब (घोंधू पंत) ने विद्रोह का नेतृत्व प्रदान किया तथा तात्या टोपे उनके प्रमुख सहयोगी थे। नाना साहब को पेशवा घोषित कर दिया। जनरल हू ह्वीलर ने विद्रोहियों के सामने 27 जून को आत्म समर्पण कर दिया। यूरोपिय महिला, बालकों, अधिकारियों की हत्या कर दी गई।

अंग्रेजों ने कैम्पबेल के नेतृत्व में आक्रमण किया, नाना साहब ने प्रतिरोध किया, लेकिन अनेक पराजय झेलने के बाद नेपाल भाग गये। 

4 जून, 1857 में रानी लक्ष्मीबाई (मनु ) के नेतृत्व में झाँसी में विद्रोह कर दिया। झाँसी को डलहौजी ने अपनी व्यपगत या गोद निषेध नीति के कारण गंगाधर राव के दत्तक पुत्र को झाँसी का उत्तराधिकारी मानने से इंकार करते हुए ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया था। तात्या टोपे लक्ष्मीबाई की मदद करने झाँसी आ पहुँचा। झाँसी को प्राप्त करने के लिए सर ह्यूरोज ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया, जिसमें लक्ष्मीबाई पराजित हुई और 3 अप्रैल, 1858 को पुनः अधिकार हो गया। तब यहाँ से ग्वालियर आगरा गई। अनेक युद्धों में अंग्रेजों को पराजित किया, लेकिन 17 जून, 1858 ई. को जनरल हुरोज से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गई। इस साहसी महिला के बारे में अंग्रेज जनरल ह्यूरोज ने भी प्रशंसा की और कहा कि 'भारतीय क्रांतिकारियों में यहाँ सोची हुई और अकेली मर्द है।'

तात्याँ टोपे ग्वालियर के पतन के बाद राजस्थान में गये, लेकिन अंग्रेजी सेना उनका लगातार पीछा कर रही थी और अंत में एक जमींदार मित्र मानसिंह के विश्वासघात के कारण 18 अप्रेल, 1859 को पकड़ा गया और उसे फाँसी पर लटका दिया गया। तात्या टोपे का वास्तविक नाम 'रामचन्द्र पांडुरंग' था।

फैजाबाद 1857 की क्रांति का मुख्य स्थल रहा था, यहाँ के विद्रोह का नेतृत्व मौलवी अहमदुल्ला ने किया। मौलवी अहमदुल्ला 5 जून, 1858 ई. को रूहेलखण्ड की सीमा पर पकड़ा गया और इसे गोली मार दी गई।

जगदीशपुर (आरा, बिहार) के जमींदार कुंवर सिंह ने 1857 की क्रांति का झंडा बुलंद किया। वह बुजुर्ग जमीदार था, लेकिन साहस, वीरता में अंग्रेज सेनानायकों पर भारी था। 1857 के विद्रोहियों में कुंवरसिंह सबसे साहसी सेनानायक था, उसे 'बिहार का सिंह' कहा जाता था। रोहतास, रीवा, मिर्जापुर, बांदा, लखनऊ तक विद्रोह का नेतृत्व प्रदान कर अंग्रेजी सेना को कई बार परास्त किया, मार्च, 1858 में कुंवर सिंह ने आजमगढ़ पर अधिकार कर लिया। आजमगढ़ पर अंग्रेजी दबाव के कारण जगदीशपुर की तरफ गया। बलिया के पास गंगा पार करते समय उनकी एक बाँह पर गोली लग गयी, लेकिन कुँवर सिंह ने बाँह काटकर गंगा को समर्पित कर दी और अप्रैल, 1858 को उसने जगदीशपुर पर अधिकार कर दिया लेकिन 22 अप्रेल, 1858 को जगदीशपुर में उनका देहांत हो गया।

रूहेलखण्ड में खान बहादुर खाँ ने 1857 की क्रांति का नेतृत्व किया। इन्हें मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर ने सूबेदार नियुक्त किया। अंग्रेजों ने इन्हें पकड़कर फाँसी पर लटका दिया और रूहेलखण्ड पर अधिकार कर लिया।

उड़ीसा में भी ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी गई। विद्रोह आरंभ होने पर बिहार के हजारीबाग जेल में कैद संबलपुर के राजकुमारों सुरेन्दर शाही तथा उज्वलशाही को विद्रोहियों ने जेल से मुक्त करवा लिया। ये दोनों राजकुमार उड़ीसा में विद्रोहियों के नेता बन गए। समूचे संबलपुर पर इनका अधिकार हो गया। इसी प्रकार गंजाम के साबरों ने राधाकृष्ण दंडसेना के नेतृत्व में परालकीमेडी में विद्रोही का झंडा बुलंद किया और अंग्रेजों ने बड़ी कठिनाई से इन पर अधिकार किया। पंजाब 1857 की क्रांति के समय अलग रहा, लेकिन वीर देशी सिपाहियों ने पंजाब के अनेक स्थानों पर विद्रोह किया। वजीर खाँ के नेतृत्व में 9वीं अनियमित घुड़सवार सेना की रेजीमेन्ट ने विद्रोह किया। विद्रोह दबा दिया गया और वजीर खाँ मारे गये। सेना के अतिरिक्त कुल्लु में राजा प्रतापसिंह और उनके भाई वीर सिंह ने विद्रोह किया, परंतु उन्हें पकड़कर फाँसी दे दी गई।

राजस्थान में मेरठ की सूचना मिलते ही - नसीराबाद, नीमच, अजमेर, आबू, एरिनपुरा, मंदसौर, जोधपुर में विद्रोह हुआ।

सम्पूर्ण क्रान्ति का नेतृत्व

केन्द्र का नाम

नेता

दमन

दिल्ली 

बहादुर शाह जफर 

निकलसन, हडसन 

कानपुर (बिट्टूर)

नाना साहब,तात्याँ टोपे

कैंपवेल

झांसी

लक्ष्मी बाई

ह्यूरोज

लखनऊ (अवध)

बेगम हजरत महल

 कैंपवेल

इलाहाबाद / बनारस जगदीशपुर (बिहार)

लियाकत अली कुँवर सिंह

कर्नल नील विलियम टेलर विंसेट आयर

बरेली

खान बहादुर

-

फैजाबाद (अयोध्या)

मौलवी अहमदुल्ला

-

फतेहपुर

अलीमुल्ला

-

ग्वालियर

तात्याँ टोपे

-


नोट - बेगम हजरत महल अंग्रेज जनरल कैंपवेल से हारने के बाद अपने पुत्र बिरजिस कांदिर के साथ नेपाल भाग गयीं और वहीं उनकी मृत्यु हो गई।
नोट - नरवर के एक जागीरदार मानसिंह के विश्वासघात के कारण तात्याँ टोपे को पकड़कर फाँसी दे दी गई।

1857 की क्रांति का स्वरूप

1857 के विद्रोह के फलस्वरूप को लेकर इतिहासकारों में मतैक्य का अभाव पाया जाता है-

    1. जॉन लॉरेन्स, सीले, मैलसन व आर.सी. मजूमदार इसकी व्याख्या सैनिक विद्रोह के रूप में करते हैं।
    2. जेम्स आउट्रम का मानना है कि यह केवल हिन्दू-मुस्लिम षडयंत्र मात्र था।
    3. एल.ई.आर. रीज के अनुसार यह धर्मान्धों का ईसाईयों के विरुद्ध विद्रोह था।
    4. टी. आर. होम्स ने इसे बर्बरता व सभ्यता के बीच युद्ध 
    5. इस क्रांति का स्वरूप सामंतीय भी नहीं था। इसमें उन्हीं बताया है। सामंतों, राजा, महाराजाओं ने भाग लिया, जिनके राज्य पेंशन अथवा  विशेषाधिकार छीन लिये। जैसे अवध का नवाब, नाना साहब,रानी लक्ष्मीबाई, हजरत महल बेगम आदि।
    6. बी.डी. सावरकर प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के रूप में स्वीकार करते हैं।
    7. एस. एन. सेन, एस. बी. चौधरी, अशोक मेहता व इंग्लैण्ड के बेंजामिन डिजरैली ने विद्रोह को राष्ट्रीय एवं जन विद्रोह की संज्ञा दी।

ध्यातव्य रहे- 1857 के सिपाही विद्रोह की शुरूआत मेरठ से हुई। जुलाई 1858 तक संग्राम पूर्णतया समाप्त हो गया एवं 1859 तक ब्रिटिश सत्ता भारत पर पुनःस्थापित हुई। 1857 ई. के दौरान लिखित पुस्तक माझा प्रवास के लेखक विष्णुभट्ट गोडसे थे [REET-2011], तो रानी लक्ष्मीबाई को महलपरी तथा हजरत महल को महकपरी कहा गया है।

1857 के विद्रोह के परिणाम व महत्व

  1. महारानी विक्टोरिया ने 1 नवम्बर, 1858 ई. को घोषणापत्र जारी किया जिसमें क्राउन का भारत में व्यक्तिगत प्रतिनिधि का नया पद वायसराय सृजित किया गया। यह इलाहाबाद के दरबार में लॉर्ड कैनिंग द्वारा पढ़ी गई थी। लॉर्ड कैनिंग को गवर्नर जनरल वायसराय बनाया गया। ब्रिटिश सरकार ने लोगों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति को अपनाया तथा ब्रिटिश संसद ने 1858 ई. में कानून पास कर ईस्ट इंडिया कम्पनी के सारे अधिकार छीन लिये [CTET-2014, REET 2011] । 
  2. कम्पनी के शासन के स्थान पर महारानी का शासन और भारत को महारानी की रैयत घोषित किया। 
  3. भारतीय रियासतों में आंतरिक हस्तक्षेप नहीं करने की घोषणा की तथा हड़प नीति को समाप्त कर दिया गया।
  4. भारतीय सामाजिक रीति-रिवाजों में अहस्तक्षेप की नीति को अपनाया।
  5. इंग्लैण्ड की संसद के एक सदस्य को भारत सचिव नियुक्त किया गया, इस नियुक्ति के अनुसार उसे भारतीय व्यवस्था का 10 वर्ष का अनुभव होना जरूरी था।
  6. 1857 की क्रांति के बाद भारतीय एवं अंग्रेज सैनिकों के मध्य अनुपात को लेकर कमेटी गठित की गई।
  7. मुगल शासन को समाप्त कर 'बहादुरशाह जफर' को रंगून भेज दिया गया, जहाँ उसकी 1862 ई. में मृत्यु हो गई।

1857 के विद्रोह से संबंधित प्रमुख पुस्तकें

  1. रेबेलियन 1857 - पी.सी. जोशी, 
  2. द सेपॉय मयूटिनी ऑफ 1857- एच.पी. चट्टोपाध्याय, 
  3. 1857 इन इंडिया- ए.टी.एम्बरी, 
  4. एटीन फिफ्टीन सेवन-मौलाना अबुल कलाम आजाद, 
  5. थ्योरीज ऑफ द इंडियन म्यूटिनी, 
  6. रेबेलियन इन द इंडियन म्यूटिनीज व म्यूटिनी 1857- शशिभूषण चौधरी, 
  7. द इंडियन वॉर ऑफ इन्डिपिन्डेन्स 1857 वी.वी. सावरकर, 
  8. सैनिक बगावत व 1857 का विद्रोह- एस. एन. सेन 
  9. द सिपॉय म्यूटिनी एण्ड द रिबेलियन ऑफ 1857 व British Paramountary and the Indian Renaissance आर. सी. मजूमदार ।

ध्यातव्य रहे- भारत में मंत्रिमण्डलीय व्यवस्था की नींव का श्रेय लॉर्ड कैनिंग को है। बंगाल सेना के भारतीय सिपाहियों ने विद्रोह किया था, क्योंकि ब्रिटिशों ने उन्हें ग्रीस का इस्तेमाल करने के लिये बाध्य किया था। चर्म कामगारों मुक्त कार्टिज के सामाजिक उत्थान हेतु चालू किये गये सतनामी आंदोलन के नेता गुरु घासीदास थे। ब्रिटिश सरकार द्वारा स्थापित इंडिगो कमीशन (1860) ने नील रोपकों को दोषी पाया। 1855-56 ई. में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह में संथालों का नेता सिद्धू और कान्हू था। कूका आंदोलन पंजाब में हुआ था। एका आंदोलन का नेता मदारी पासी था। 1857 के आंदोलन के सरकारी इतिहासकार एस. एन. सेन थे। टीपू सुल्तान ने श्रीरंगपट्टनम को अपनी राजधानी बनाया था।

1857 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अपने राजनैतिक सत्ता के 100 वर्ष पूरे कर लिये, जिसमें वह एक व्यापारी कम्पनी से राजनीतिक शक्ति बन गई। सहायक संधि, व्यपगत संधि, आर्थिक नीति व कठोर भेदभाव पूर्ण प्रशासनिक नीति, सामाजिक प्रथाओं में हस्तक्षेप तथा चर्बी वाले कारतूस ने 1857 की क्रांति को जन्म दिया।

1857 की क्रांति FAQ

Q 1 सन 1857 के विद्रोह में सिपाहियों में असंतोष का कारण क्या था?
Ans - 1857 के विद्रोह का प्रमुख राजनीतिक कारण ब्रिटिश सरकार की 'गोद निषेध प्रथा' या 'हड़प नीति' थी। यह अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति थी जो ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के दिमाग की उपज थी। ... राज्य हड़प नीति के कारण भारतीय राजाओं में बहुत असंतोष पैदा हुआ था।
Q 2 1857 के विद्रोह के दौरान भारतीय और अंग्रेजी सैनिकों का अनुपात क्या था?
Ans - तोपखाने पर पूर्णरूप से अंग्रेज़ी सेना का अधिकार हो गया। अब बंगाल प्रेसीडेन्सी के लिए सेना में भारतीय और अंग्रेज़ सैनिकों का अनुपात 2:1 का हो गया, जबकि मद्रास और बम्बई प्रसीडेन्सियों में यह अनुपात 3:1 का हो गया। उच्च जाति के लोगों में से सैनिकों की भर्ती बन्द कर दी गयी।
Q 3 विद्रोह के बाद अंग्रेजी शासन के स्वरूप में क्या बदलाव आया?
Ans - विद्रोह के बाद का वर्ष – विद्रोह के दमन के बाद भारत में अंग्रेजी शासन के ढांचे एवं स्वरूप में काफी परिवर्तन किया गया। 1858 में ब्रिटिश संसद ने कानून पास करते हुए भारत पर से ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त कर सीधे ब्रिटेन की सरकार के शासन को स्थापित किया।
Q 4 1857 के विद्रोह में अलग अलग वर्गों की मांगे क्या थी?
Ans - इन नीतियों से राजाओं, रानियों, किसानों, जमींदारों, आदिवासियों, सिपाहियों, सब पर तरह-तरह से असर पड़े। आप यह भी देख चुके हैं कि जो नीतियाँ और कार्रवाइयाँ जनता के हित में नहीं होती या जो उनकी भावनाओं को ठेस पहुँचाती हैं उनका लोग किस तरह विरोध करते हैं।
Q 5 1857 के विद्रोह के समय भारतीय शासन तंत्र कौन संभाल रहा था?
Ans - कैनिंग

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