भक्ति आंदोलन - Bhakti Andolan ke Sant

भक्ति शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख  श्वेताश्वतर उपनिषद में मिलता है लेकिन भक्ति शब्द का व्यापक प्रयोग श्रीमद्भागवत गीता में मिलता है गीता में ईश्वर प्राप्ति के तीन मार्ग बताए गए हैं
  1. कर्म मार्ग, 
  2. ज्ञान मार्ग, 
  3. भक्ति मार्ग,

भक्ति आंदोलन - Bhakti Andolan ke Sant

भक्ति आंदोलन - Bhakti Andolan ke Sant
भक्ति आंदोलन - Bhakti Andolan ke Sant

भक्ति आंदोलन की पृष्ठभूमि शंकराचार्य ने तैयार की थी इन्होंने चारों दिशाओं में चार मठ स्थापित करवाएं जो कि निम्न प्रकार है
  1. उत्तर - ज्योतिष पीठ - बद्रीनाथ (उत्तराखंड) 
  2. दक्षिणी - श्रृंगेरी पीठ - मैसूर (कर्नाटक)
  3. पूर्व - गोवर्धन पीठ - पूरी (उड़ीसा)
  4. पश्चिम - शारदा पीठ - द्वारिका (गुजरात )
भक्ति आंदोलन का प्रारंभ दक्षिण भारत के अलावार संतो ने किया था दक्षिण भारत में वैष्णव संतों को अलावार शिव संतो को नयनार कहा जाता था दक्षिण भारत में अलावार संतो की संख्या 12 नयनार संतों की संख्या 63 थी

रामानुजाचार्य 

  • रामानुजाचार्य को भक्ति आंदोलन का जनक कहा जाता है इनका दार्शनिक सिद्धांत विशिष्टाद्वैतवाद था रामानुजाचार्य ने  श्री भाष्य नामक ग्रंथ लिखा जो कि ब्रह्मसूत्र की टिका है इन्होंने श्री संप्रदाय की स्थापना की जिसका मुख्य केंद्र श्रीरंगम था रामानुजाचार्य चोल नरेश क्लोतुग प्रथम के समकालीन थे 

 निंबार्काचार्य 

  •  निंबार्काचार्य का दार्शनिक सिद्धांत द्वैताद्वैतवाद के नाम से प्रसिद्ध था इन्होंने सनक संप्रदाय की स्थापना की थी राजस्थान में  सनक संप्रदाय का प्रमुख केंद्र सलेमाबाद अजमेर में है 

 मध्वाचार्य 

  • इनका दार्शनिक सिद्धांत द्वैतवाद था इन्होंने ब्रह्म संप्रदाय की स्थापना की इन्हें आनंद तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है इन्हें वायु का अवतार माना जाता है 

वल्लभाचार्य 

  • वल्लभाचार्य का दार्शनिक सिद्धांत शुद्धाद्वैतवाद के नाम से जाना जाता था इन्होंने रूद्र संप्रदाय की स्थापना की इन्हें विष्णुस्वामी के नाम से भी जाना जाता है 

चैतन्य महाप्रभु 

  • चैतन्य महाप्रभु बंगाल उड़ीसा में भक्ति आंदोलन का प्रचार प्रसार करने वाले दार्शनिक थे इनका  वास्तविक नाम विशंभर था इन्हें गौरांग महाप्रभु के नाम से भी जाना जाता था इन्होंने शिक्षाष्टक नामक ग्रंथ की रचना की थी गौरांग महाप्रभु ने संकीर्तन प्रथा को प्रारंभ किया था उड़ीसा का शासक प्रताप रुद्रदेव चैतन्य महाप्रभु का शिष्य था 

 रामानंद 

  •  उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन के जनक रामानंद को माना जाता है रामानंद रामानुजाचार्य द्वारा स्थापित श्री संप्रदाय के पांचवे गुरु थे यह हिंदी भाषा में उपदेश  देने वाले प्रथम संत थे रामानंद ने राम की उपासना पर बल दिया इन्होंने आनंद भाष्य नामक ग्रंथ लिखा जो कि ब्रह्मसूत्र की टिका है रामानंद ने ही रामावत संप्रदाय की स्थापना की थी रामानंद निम्नवर्ग के लोगों को अपना शिष्य बनाने वाले भक्ति आंदोलन के प्रथम संत थे इन के 12 मुख्य थे रैदास( चमार), कबीर( झूला), सेन( नाई), धना( जाट), पीपा( राजपूत), नामदेव( दर्जी) 
नोट - प्रमुख निर्गुण संत रैदास कबीर नानक और दादू थे

 कबीर दास 

  • कबीर का जन्म 1398 में हुआ था कबीर सिकंदर लोदी का समकालीन था यह निर्गुण धारा के संत थे इन्होंने सांप्रदायिक एकता पर बल देते हुए धार्मिक आडंबरों का विरोध किया कबीर के उपदेशों का संकलन बीजक नामक ग्रंथ में है बीजक का संकलन कबीर के शिष्य भागो दास ने किया था

 तुलसीदास 

  • तुलसीदास का जन्म 1532 में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में हुआ था यह अकबर  और जहांगीर के समकालीन थे इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे व माता का नाम हुलसी और गुरु का नाम नरहरिदास था उनकी पत्नी रत्नावली थी इनकी मृत्यु 1623 में हुई थी इनकी प्रमुख रचनाएं रामचरित्रमानस, विनय पत्रिका, कवितावली, गीतावली, कृष्ण गीतावली, पार्वती मंगलम, जानकी मंगलम है

गुरु नानक देव

गुरु नानक देव का जन्म 1469 में तलवंडी पाकिस्तान में हुआ था वर्तमान में तलवंडी का नाम बदलकर ननकाना साहब कर दिया गया है यह सिख पंथ के संस्थापक थे इनके उपदेश गुरु ग्रंथ साहिब में है यह निर्गुण धारा के संत थे इन्होंने सांप्रदायिक सद्भावना पर बल दिया  था

 दादू दयाल 

  • दादू दयाल का जन्म 1544 में अहमदाबाद लोधी राम नामक ब्राह्मण के घर हुआ दादू को राजस्थान का कबीर कहा जाता है यह निर्गुण धारा के संत थे आमेर नरेश भगवानदास उनका शिष्य था इन्होंने फतेहपुर सीकरी के इबादत खाने में अकबर से धार्मिक चर्चा भी की थी दादू के 52 प्रमुख शिष्य थे जिन्हें 52 स्तंभ कहा जाता था दादू पंथ का मुख्य केंद्र नरेना जयपुर में है दादू पंथ के सत्संग स्थल को अलदरीबा कहा जाता है तथा पूजा स्थल को दादू द्वारा कहा जाता है दादू पंथ के पांच संप्रदाय है 
  • दादू के बाद उनका मुख्य उत्तराधिकारी गरीबदास बना  दादू के शिष्य सुंदर दास ने नागा पंथ की स्थापना की नागा पंथ के सन्यासी सेना में भी भर्ती होते थे दादू का शिष्य रजत जी जीवनभर दूल्हे के वेश में रहे  

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