Rajasthan ke Lok Geet राजस्थान में गाए जाने वाले गीतों के अनुपात में लोकगीतों का दायरा अधिक बड़ा है लोक गीत राजस्थानी संस्कृति के अभिन्न अंग है प्राचीन काल से ही राजस्थानी लोक संगीत प्रेमी है
रविन्द्र नाथ टैगोर ने लोक गीतों को संस्कृति का सुखद संदेश ले जाने वाली कला कहा है ।
महात्मा गाँधी के शब्दों में - लोकगीत जनता की भाषा है ...... लोक गीत हमारी संस्कृति के पहरेदार है ।
देवेन्द सत्यार्थी के अनुसार' लोकगीत किसी सस्कृति के मुँह बोले चित्र है ।
rajasthan ke lok geet gk - राजस्थानी लोकगीत
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Rajasthan ke Lok Geet GK in Hindi - राजस्थानी लोकगीत |
rajasthan ke lok geet मे तीन, सात, नौ, बत्तीस व छप्पन संख्याओं का प्रयोग मिलता है और साथ ही लय बनाने के लिए उनमें निरर्थक शब्दों का भी समायोजन कर लिया जाता है ।
कुछ विद्वान लोक वार्ता का प्रथम संकलनकर्ता कर्नल जेम्स टॉड को मानते है, किन्तु वास्तविक अर्थों में 1892 ईं ० में प्रकाशित C. E. गेब्हर का ग्रंथ ' फोक सांग्स आँफ सदर्न इंडिया ' को भारत में लोक साहित्य का प्रथम ग्रंथ माना जाना चाहिए ।
राजस्थान के लोकगीत
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प्रमुख लोक गीत |
- राजस्थान के लोक गीतों को संग्रह करने का कार्यं जैन कवियों द्वारा आज से लगभग 500 वर्ष पूर्व किया गया था ।
आंगो मोरियों
- यह एक राजस्थानी लोक गीत है , जिसमें पारिवारिक सुख का चित्रण मिलता है ।
- यह किसी की याद में गाया जाने वाला गीत है ।
- यह गीत पुत्री की विदाई पर गाया जाता है ।
अजमो
- यह गीत गर्भावस्था के आठवें महीने में गाया जाता है ।
इडूणी
- यह गीत स्त्रियां पानी भरने जाते समय गाती है ।
उमादे
- राजस्थान में यह रूठी रानी का गीत है ।
ढोलामारू
- यह सिरोही का प्रेमकथा पर आधारित गीत है । इसे ढाढी गाते है । इसमें ढोला मारू की प्रेमकथा का वर्णन किया गया है ।
झोरावा
- जैसलमेर जिले में पति के प्रदेश जाने पर उसके वियोग मे गाया जाने वाला गीत है ।
झूलरिया
- यह गीत माहेरा या भात भरते समय गाया जाता है ।
फतमल
- यह गीत हाड़ौती के राव फतहल तथा उसकी टोडा की रहने वाली प्रेमिका की भावनाओं से संबंधित है ।
फतसड़ा
- विवाह के अवसर पर अतिथियों के आगमन पर यह गीत गाया जाता है ।
फाग
- यह होली के अवसर पर गाया जाने वाला गीत है ।
तेजा
- यह तेजाजी की भक्ति में खेत की बुवाई/जुताई करते समय गाया जाता है ।
मोरिया थाईं रे थाईं
- इस गरासिया गीत में दूल्हे की प्रशंसा की जाती है और महिलाएं इसके इर्द गिर्द नृत्य करती है ।
मरसिया
- मारवाड़ क्षेत्र मे किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की मृत्यु के अवसर पर गाया जाने वाला गीत ।
मोरिया
- इसमें ऐसी बालिका की व्यथा है, जिसका संबंध तो तय हो चुका है, लेकिन विवाह में देरी है यह एक विरह गीत है । मोरिया का अर्थ मोर होता है ।
माहेरा
- बहिन के लडके या लडकी की शादी के समय भाई उसको चूनडी ओंढाता है और भात भरता है । अतः इस प्रसंग से संबधित गीत भात/माहेरा के गीत कहलाते है ।
मूमल
- जैसलमेर में गाया जाने वाला श्रृंगारित एव प्रेम गीत है । मूमल लोद्रवा ( जैसलमेर ) की राजकुमारी थी ।
लाखा फुलाणी के 'गीत-
- ये गीत मध्यकाल से प्रारंभ माने जाते है और इनकी उत्पत्ति सिंध प्रदेश से हुई थी ।
लांगुरिया
- करौली क्षेत्र की कुल देवी 'केला देवी' की आराधना में गाए जाने वाले ये भक्ति गीत है ।
लसकरिया
- लसकरिया गीत कच्छी घोडी नृत्य करते समय गाया जाता है ।
बीन्द
- बीन्द गीत कच्छी घोडी नृत्य करते समय गाया जाता हैं
रसाला
- रसाला गीत कच्छी घोडी नृत्य करते समय गाया जाता है ।
रमगारिया
- रमगारिया गीत कच्छी घोडी नृत्य करते समय गाया जाता है ।
लावणी
- लावणी का अर्ध बुलाने से है । नायक के द्वारा नायिका को बुलाने के लिए यह गीत गाया जाता है । मोरध्वज, ऊसंमन, भरथरी आदि प्रमुख लावणियां है ।
लूर
- यह राजपूत स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला गीत है ।
लोरी
- ये गीत माँ द्वारा अपने बच्चे को सुलाने के लिए गाती है ।
गोरबंद
- यह गणगौर पर स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला गीत है । गोरबंद ऊँट के गले का आभूषण होता है । राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों विशेषत: मरूस्थली व शेखावाटी क्षेत्रों में लोकप्रिय 'गोरबन्द' गीत प्रचलित है ।
गोपीचन्द
- इसमें बंगाल के शासक गोपीचन्द द्वारा अपनी रानियों के साथ किया संवाद चर्चित है ।
गणगौर
- गणगौर के अवसर पर गाया जाने वाला गीत । राज्य में सर्वाधिक गीत इसी अवसर पर गाये जाते है ।
गढ़
- ये गीत सामन्तो राज दरबारों और अन्य समृद्ध लोगों द्वारा आयोजित महफिलों में गाए जाते है । ये रजवाडी व पेशेवर गीत है । ढोली दमापी मुसलमान तवायफें इन गीतों को गाते है ।
बना-बन्नी
- विवाह के अवसर पर वार-वधू के लिए ये गीत गाये जाते है ।
बीणजारा
- यह एक प्रश्नोत्तर परक गीत है । इस गीत में पत्नी पति को व्यापार हेतु प्रदेश जाने की प्रेरणा देती है ।
विनायक
- विनायक मांगलिक कार्यो के देवता है किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले विनायक (गणेशजी की पूजा) पूजा कर गीत गाये जाते है ।
बंधावा
- यह शुभ कार्यं के सम्पत्र होने पर गाया जाने वाला लोकगीत है ।
बादली गीत
- बादली गीत शेखावाटी, मेवाड़ व हाडौती क्षेत्र में गाया जाने वाला वर्षा ऋतु से संबंधित गीत है ।
बीरा गीत
- बीरा नामक लोकगीत ढूंढाड़ अंचल में भात सम्पन्न होने के समय गाया जाता है ।
बेमाता गीत
- नवजात शिशु का भाग्य लिखने वाली बेमाता के लिए यह गीत गाया जाता है ।
भणेत
- राजस्थान में श्रम करते समय परिश्रम से होने वाली थकान को दूर करने के लिए इस गीत को गाया जाता हैं ।
पडवलियों
- बालक के जन्म होने के पश्चात बालमनुहार के लिए गाये जाने वाला गीत है । पडवलियों का अर्थ घास से बनाया हुआ छोटा मकान होता है
पणिहारी
- पनघट से पानी भरने वाली स्त्री को पणिहारी कहते है । इस गीत में राजस्थानी स्त्री का पतिव्रत धर्म पर अटल रहना बताया गया है ।
परणेत
- इस गीत का सम्बन्थ विवाह से है । राजस्थान में विवाह के गीत सबसे अधिक प्रचलित है । परणेत के गीतों में बिदाई के गीत बहुत ही मर्म स्पर्शी होते है ।
पावणा
- यह गीत दामाद के ससुराल आगमन पर गाया जाता है ।
पपैया
- पपैया एक प्रसिद्ध पक्षी है । इसमें एक युवती किसी विवाहित युवक को भ्रष्ट करना चाहती है, किन्तु युवक उसको अन्त में यही कहता है कि मेरी स्त्री ही मुझे स्वीकार होगी । अत: इस आदर्श गीत में पुरूष अन्य स्त्री से मिलने के लिए मना करता है ।
पंछीड़ा
- यह गीत हाडौती व ढूंढाड़ क्षेत्र में मेलों के अवसर पर अलगोजे, ढोलक व मंजीरे के साथ गाया जाता है ।
पवाड़ा
- किसी महापुरूष, वीर के विशेष कार्यों को वर्णित करने वाली रचनाएं 'पवाडा' कहलाती है ।
पटैल्या
- यह पर्वतीय क्षेत्रों में आदिवासियों के द्वारा गाया जाने वाला गीत है ।
बिछिया
- यह पर्वतीय क्षेत्रों में आदिवासियों के द्वारा गाया जाने वाला गीत है ।
लालर
- यह पर्वतीय क्षेत्रों में आदिवासियों के द्वारा गाया जाने वाला गीत है ।
पीपली
- यह रेगिस्तानी क्षेत्र विशेषत: शेखावाटी, बीकानेर, मारवाड़ के कुछ भागों में स्त्रियों द्वारा वर्षा ऋतु में गाया जाने वाला लोकगीत है । इसमें प्रेयसी अपने परदेश गये पति को बुलाती है । यह तीज के त्यौहार के कुछ दिन पूर्व गाया जाता है ।
पीठी
- विवाह के अवसर पर दोनों पक्ष के यहाँ वर-वधु को नहलाने से पूर्व पीठी या उबटन लगाते है, जिससे उनमें रूपनिखार आए, उस समय 'पीठी गीत' गाया जाता है । यह कार्य भौजाई (भाभी) द्वारा किया जाता हैं ।
सुपियारदे
- इस गीत में त्रिकोणीय प्रेम कथा का वर्णन किया गया है ।
पील्लो गीत
- यह शिशु जन्म के पश्चात जलवा पूजन के समय गाया जाता है ।
सुवंटिया
- इस गीत में भील स्त्री द्वारा परदेश गये पति को संदेश भेजती है ।
सहसण या सैंसण माता के गीत
- सैंसण माता का जैन धर्म के तेरापंथी संप्रदाय में भारी महत्व है । जैन श्रावकों की निराहार तपस्या के दौरान सहसण माता के गीत गाये जाते है ।
सुपणा
- यह विरहणी का एक स्वप्न गीत है । इस गीत के द्वारा रात्रि में आये स्वप्न का वर्णन किया जाता हैं ।
सींठणा/सीठणी
- विवाह के अवसर पर भोजन के समय गाये जाने वाले गीत सीठणा गाली गीत है ।
सेजा
- इसमें प्रकृति पूजन, लोकगीत, परम्परा , कला और संस्कृति का जीवंत प्रतीक है । इसमें कुँवारियां श्रेष्ठ वर की कामना, अखण्ड सौभाग्य एवं सुखी दामपत्य जीवन की शुभेच्छा से पूजा अर्चना करती है ।
सारंग
- यह संगीत दोपहर के समय में गाया जाता है ।
केसरिया बालम
- यह राज्य गीत है । इस गीत के माध्यम से प्रदेश गये पति को आने का संदेश भेजा जाता है ।
कांगसियो
- यह बालों के श्रृंगार का गीत है ।
काजलियौ
- भारतीय संस्कृति में काजल सोलह श्रृंगारो में से एक श्रृंगारिक गीत हैं । यह विवाह के समय वर की आँखों में भोजाई काजल डालते समय गाती है ।
कोयलडी
- परिवार की स्त्रियां वधू को विदा करते समय विदाई गीत कोयलडी गाती है ।
कुकड़लू
- शादी के अवसर पर जब दूल्हा तोरण पर पहुंचता है तो महिलाएं ये गीत गाती है ।
कामण
- राजस्थान के कई क्षेत्रों मे वर को जादू-टोने से बचाने हेतु गाये जाने वाले गीत कामण कहलाते है ।
कलाकी
- कलाकी एक वीर रस प्रधान गीत है ।
कलाली
- कलाली लोग शराब निकालने और बेचने का काम करते है । ये ठेकेदार होते है । कलाली गीत में सवाल-जवाब है । इस गीत में श्रृंगारिक एवं मन 'की चंचलता दिखाई देती है ।
कुरंजा
- राजस्थानी लोक जीवन में विरहणी द्वारा अपने प्रियतम को संदेश भिजवाने हेतु कुरंजा पक्षी को माध्यम बनाकर यह गीत गाया जाता है ।
कुकडी
- यह रात्रि जागरण का अंतिम गीत होता है ।
केवडा
- केवडा एक वृक्ष है । यह प्रेयसी द्वारा गाया जाने वाला गीत है ।
काछबा
- यह प्रेम गाथा पर आधारित लोक गीत है, जो पश्चिमी राजस्थान मे गाया जाता है ।
कागा
- इसमें विरहणी नायिका कौए को सम्बोधित करके अपने प्रियतम के आने का शगुन मानती है और कौए को प्रलोभन देकर उड़ने को कहती है ।
हिन्डो/हिन्डोल्या
- श्रावण मास मे राजस्थानी महिलाएं झूला झूलते समय यह लालित्यपूर्ण गीत गाती है ।
हमसीढ़ो
- उत्तरी मेवाड़ में भीलों का प्रसिद्ध लोकगीत है । इसे स्त्री-पुरुष साथ मिलकर गाते है ।
हरजस
- राजस्थानी महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला सगुण भक्ति का लोकगीत है, जिसमें राम और कृष्णा की लीलाओं का वर्णन है । यह गीत शेखावाटी क्षेत्र में किसी को मृत्यु के अवसर पर गाया जाता है ।
हालरिया
- यह जैसलमेर मे बच्चे के जन्म के अवसर पर गाया जाने वाला गीत है ।
हिचकी
- किसी के द्वारा याद किये जाने पर हिचकी आती है । उस समय गाया जाने वाला गीत हिचकी गीत है ।
हरणी
- यह गीत दीपावली के त्यौहार पर 10-15 दिन पहले मेवाड क्षेत्र में छोटे-छोटे बच्चों की टोलीयों द्वारा घर-घर जाकर गाया जाता है इसे लोवडी गीत भी कहते है । इस गीत के द्वारा बच्चे दीपावली पर खर्च करने के लिए थोड़ा-थोड़ा पैसा एकत्रित करते है ।
होलर
- यह गीत पुत्र जन्म से संबंधित है
हीड
- यह गीत मेवाड क्षेत्र में दीपावली के अवसर पर आदिवासी लोग समूह रूप में घर-घर जाकर एक गाथा के रूप में गाते है हीड़ का तात्पर्य दीपक होता है ।
हूंस
- इस गीत के माध्यम से राजस्थान गर्भवती महिला को दो जीवों वाली कहते है । हूंस का अर्थ गर्भवती की इच्छा होती है इस तरह के गीतों में घेवर, केरी मत्तीरा फली एवं बेर की इच्छापूर्ति के गीत गाते है ।
हर का हिंडोला
- यह गीत किसी वृद्ध की मृत्यु के अवसर पर गाया जाता हैं ।
दारूडी
- यह गीत रजवाडों में शराब पीते समय गाया जाता है
दुपट्टा
- यह गीत दूल्हे की सालियों द्वारा गाया जाता है ।
धुंसो/धुंसा
- यह मारवाड़ का राज्य गीत है । इस गीत में अजीत सिंह की धाय माता गोरा धाय का वर्णन है ।
घूमर
- यह गणगौर के त्यौहार व विशेष पर्वो तथा उत्सवों पर मुख्य रूप से गाया जाता है ।
घुड़ला
- यह मारवाड़ क्षेत्र में होली के बाद घुड़ला त्यौहार के अवसर पर कन्याओं द्वारा गाया जाने चाला लोकगीत हैं ।
घुघरी
- बच्चे के जन्म के अवसर पर गाया जाने वाला गीत ।
घोडी
- लडके के विवाह के अवसर पर निकासी के समय गाया जाने वाला गीत है ।
रतन राणा
- यह अमरकोट (पाकिस्तान) के सोढा राणा रतन सिंह का गीत है । यह पश्चिमी क्षेत्र में गाया जाने वाला सगुन भक्ति का गीत है ।
रातिजगा
- रातभर जाग कर गाये जाने वाले गीत रातिजगा गीत कहलाते है ।
रसिया
- यह गीत भरतपुर, धौलपुर मे गाया जाता है ।
जलो और जलाल/जला
- वधू के घर जब स्त्रियाँ वर की बारात का डेरा देखने जाती है, तब यह गीत गाया जाता है ।
जीणमाता का गीत
- यह गीत राजस्थान के समस्त गीतों में सबसे लम्बा लोक गीत है । इस गीत में भाईं-बहन के प्रेम, पहाडों की तपस्या, मन्नतों का पूरा होना और आक्रमणकारियों से क्षेत्र की रक्षा का वर्णन किया जाता है
जकडियां
- यह पीर ओलियों की प्रशंसा में गाया जाने वाला धार्मिक गीत है । राजस्थानी मुस्लिम समाज मे इन गीतों का प्रचलन सर्वाधिक है ।
जच्चा
- यह गीत पुत्र जन्म के अवसर पर गाया जाता है, इसका अन्य नाम होलर है ।
जीरो
- इस गीत में पत्नी अपने पति को जीरे की खेती न करने का अनुरोध करती है ।
चरचरी
- ताल और नृत्य के साथ उत्सव में गाई जाने वाली रचना 'चरचरी' कहलाती है ।
चाक गीत
- विवाह के समय स्त्रियों द्वारा कुम्हार के घर जाकर पूजने (घड़ा) के समय गाया जाता है ।
चिरमी
- यह गीत चिरमी पौधे को सम्बोधित करके नववधु द्वारा भाई व पिता की प्रतीक्षा में गाया जाता है ।
हींडा
- यह गीत सहरिया जनजाति में दीपावली के अवसर पर गाया जाता है ।
लहंगी
- यह गीत जनजाति के द्वारा वर्षा ऋतु में गाया जाता है ।
आल्हा
- यह गीत सहरिया जनजाति के द्वारा वर्षा वस्तु में गाया जाता है ।
चौबाली
- राजस्थानी लोकगीतों का संस्मरण चौबाली कहलाता है ।
रामदेवजी के गीत
- लोकदेवताओं में सबसे लम्बे गीत रामदेवजी के गीत है ।
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2 Comments
great
ReplyDeletehttps://www.bedguide.in/2019/03/kerala-bed-entrance-book-Pdf.html
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ReplyDeleteEven I can't find all this anywhere
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